Wednesday 13 May 2020

लघुकथा लेखन श्रृंखला - ( 8 )

लघुकथा समारोह 16 (प्रथम)
शीर्षक --परिक्रमा
आदरणीय संचालक महोदय,सम्मान्य 
मंच एवम कथाप्रेमी मित्रों को सादर ...

           मेरी 12वीं बोर्ड परीक्षा पास आरही है ।मैं पढ़ना तो चाहती हूं, अपने घर केपास की मस्जिद से सुबह   
से शाम तक हर 2 घण्टे में अज़ान की आवाज आती रहती है ।शादी ब्याह का सीजन है  मोहल्ले में  'राज श्री
पैलेस ' है जंहा आये दिन शादी  ,पार्टियां चलती है लाऊड स्पीकर पर  डीजे ,गाना बजता रहता है।अपने घर के पास 
जो छोटा सा मैदान है सुबह -शाम छोटे बच्चे क्रिकेट खेलते हुए बहुत शोर मचाते रहते हैं।  बता भाई ऐसे में कोई  कैसे अच्छी तैयारी कर पायेगा ?
अपने बड़े भैया हिमांशु से  पूजा बता रही है ।
हिमांशु  उसे समझाते हुए कहा- मेरी बहना  एग्जाम की तैयारी कर रही है ,यह सोचकर न अजान बंद हो सकता है, न बच्चों का शोर मचाना ।इन सब के बीच ही  उसी घर में रहते हुये प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करके अपनी  मंजिल तक  पहुंचा हूँ न....तुम्हे भी पढ़ने का टाइम  ऐडजस्ट करना है ।
       दादा जी बैठक में अखबार पढ़ते हुए दोनो भी बहन की बात सुनते रहे  । उन्होंने बहू को  कहा-आज शाम तुलसी में तुम दीपक मत जलाना ।ये काम आज पूजा को करने दो ।
सूर्यास्त के समय दादाजी ने पूजा  बुलाकर बड़े प्यार से कहा -बेटा आज सोमवती अमावस्या है ।तुम्हारी मम्मी
किचन के काम में व्यस्त है ।तुम हाथ मुंह धोकर आओ,
मैं दीप बाती तैयार कर देता हूँ  
'ॐ नमः सोमाय ' मंत्र बोलते हुये  इसे तुलसीचौरा की  पांच परिक्रमा करके  प्रणाम  कर तुलसी जी के नीचे रखकर प्रणाम करना है।तुमसे हो पायेगा या नहीं बता दो।  हां हो जाएगा कहते हुए .......पूजा दादा जी लाइए दीपक । दादाजी ने कहा -- देखो सावधानी से परिक्रमा करना।  दीपक  तेल से पूरा भरा है । छलकना औरबुझना नहीं चाहिये ।वह दीपक लेकर   आंगन की तरफ चली । 
उस छोटे से जगह की परिक्रमा पूरी करने में काफी समय लग गया ।इस काम को जितना आसान समझ रही थी ।
उतना था नहीं ।
परिक्रमा के बाद दादा जी को प्रणाम किया तो उन्होंने पूजा से पूछा -तुम परिक्रमा कर रही थी तब डीजे में 
कौन सा गाना बज रहा था ? 
पता नहीँ ...
क्रिकेट खेलने वाले बच्चे तो  खूब शोर मचा  रहे थे न...
 नहीं मुझे कुछ भी सुनाई  नहीं दिया ।मेरा पूरा ध्यान तो
तेल कहीं छलक न जाये इसी में लगा था ....
बेटा इसी तरह पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाना है .........
.  डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर , छ ग 
9425584403
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                           (  2 )

लघुकथा समारोह 16 ( द्वितीय )
आदरणीय संचालक महोदय,
सम्मान्य मंच ,स्नेही मित्रों ...
शीर्षक --* मेरा सुनहरा भविष्य *

           माँ फोन पर तुम्हारी एक ही रट होती है । शादी करले .... बहुत से रिश्ते आ रहे हैं । तू कब घर आ रहा है ? मुम्बई जैसी जगह में मुझे सैटल होने में वक्त तो लगेगा न... 
    --   हाँ  तू सही है ,पर दो साल हो गए । ऐसी कैसी कम्पनी है ,कि बीमार बाप को देखने  दो दिन की छुट्टी भी नही देती ।
   बेटा कल ही डॉक्टर कह रहे थे, कि इनके पास अधिक समय नहीं है...रतनपुर छोटी सी जगह है , बेटा हमे भी अपने साथ  ले चल  न ..
मुंबई में तो बड़े-बड़े डॉकटर हैं वहाँ इलाज करा के देख शायद ठीक हो जावें ...इस बुढ़ापे में अकेले कहाँ कहाँ दौड़ लगाऊं ?  पैसा भी तो नहीं है। घर  भी गिरवी है।
-- अच्छा ठीक है  जल्दी ही कुछ करता हूँ । सप्ताहांत  में . छुट्टी  मिल जाये ये उम्मीद तो है  बॉस से बात हुई है...
         ये सुनकर कैंसर ग्रस्त वृद्ध पिता के चेहरे में खुशियां चमक  उठी।
माँ के थके पके  शरीर में नई स्फूर्ति का संचार होने लगा । घर की नए सिरे से सफाई की, अस्त व्यस्त कमरे दुल्हन की तरह सज उठे । बेटे की पसंद के व्यंजन,फल मिठाईयां मंगाई गई ।
 शनिवार की शाम तक बेटा इच्छित अपनी प्रेयसी हर्षिता  के साथ आया ।  भोजन के बाद बताया -- माँ  हम परसों सुबह हम वापस  चले जायेंगे 12 बजे की हमारी हमारी फ़्लाइट है ।
       ये तुम्हारी होने वाली बहू है । मेरा और हर्षिता का हमारी कम्पनी न्यूजरसी के प्रोजेक्ट  के लिए सेलेक्शन कर लिया है ।
  --बेटा इतनी जल्दी वा...प...स ।
पा..पा.. की त..बि..य..त..
 --  माँ  वो तो ठीक होने से रहे। पैसे चिंता मत करो। मैं  पैसे भेज दूंगा । (माँ समझ गई कि बेटा सब कुछ तय करके आया है। जिद्दी है , कुछ नही सुनेगा। )   
 कुछ सोच कर  माँ  ने सुझाव दिया --कल का समय  है ।कम से कम  कुछ लोगों को बुला कर  सादगी से अंगूठी रस्म तो कर लो ।आज कल सब रेडिमेड मिल जाता है। थोड़ी देर के लिए ही सही पापा अपनी शारीरिक पीड़ा को भुलाकर  अपने इकलौते बेटे की शादी की कल्पना में ख़ुशी के कुछ पल जी लेंगे।  तुम दोनों को आशीषों का कवच और इन्हें सपनों का महल तो मिल जाएगा ।
-- माँ  मेरी बात ध्यान से सुनो और समझने की कोशिश करो। तुम  सिर्फ अपना ही  सोचती हो।  
    मैं ये सब ढकोसले नहीं करूंगा। तुम समझती क्यों नहीं मेरी स्थिति को ?...
 हर्षिता और उसकी फेमिली वालों के भी  तो हमारी शादी को लेकर कई अरमान हैं  ।
 "पापा और तुम मेरा  गुजरा हुआ अतीत हो   --- हर्षिता  मेरा सुनहरा भविष्य है ...
.
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
 रायपुर छ ग
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                               (3 )
 लघुकथा। लोक   --
 शीर्षक--  मौका नहीं मिला
सुनंदा ने चुपके से बहन की शादी के कुछ गहने और रुपये लेकर पोटली बांधी स्कूल बैग में दो चार कपड़े रखे और कोचिंग के लिए सुबह सुबह निकल पड़ी।स्कूटी अपनी सहेली के घर छोड़ा  और आगे बढ़ गई 
आगे मोड़ पर शकील उसका इंतजार कर रहा था   दुकान में बाइक खड़ी करके दोनो बस में चढ़ गए
 एक घण्टे बाद शकील ने कहा - मेरे पास चेंज नही है 500 का नोट देना जरा  
  थोड़ी देर बाद सुनंदा ने पूछा - हम तो नागपुर जारहेथे न ? 
 - नहीं
-- फिर कहाँ रहेँगे ?
--देखते हैं 
पैसे तो लाई हो न ?
    घर में सब लोग थे मौका नहीं मिला निकालने का 
 और गहने ?
आलमारी की चाबी तो नानी के कमर में खोंची रहती है ।
  मौक़ा ही नहीं मिला
  - तुम तो कहते थे नागपुर में जाकर शादी कर लेंगे।
- वहां उनका बहुत बड़ा बिज़नेस है तुम उनके साथ काम करोगे ।
   सुनंदा का माथा ठनका । उसने कहा  मैंने कल ही मम्मी का ATM लिया था  मेरी बुक में रह गया है अभी तो दो घण्टे ही  हुए हैं हम वापस चलें  । किसी को शक भी नही होगा  हमारा काम  हो जाएगा । 
 शकील  की आंखे चमक उठी । कल वेलेंटाइन डे  है इसी दिन  हमारी शादी होगी । यह कहकर सुनंदा  उसके करीब सरक कर धीरे से उसका हाथ चूम लिया।
वे दोनों वहां से लौट गए
 घर लौटने में   सुनंदा को बहुत देर लगी ।उसने जाते ही मम्मी को जरूरी बात बतानी है कहकर अलग कमरे में बुलाया  सब दरवाजे बंद कर  पहले तो  मम्मी के गले लग कर सिसक सिसक कर खूब रोई ।
फिर सारी कहानी बताई गठरी से निकाल कर पैसे और गहने दिए ।
मम्मी से माफी मांगी । 
मम्मी ने भगवान को बहुत धन्यवाद दिया --  कि उसने मेरी बेटी को सद्बुद्धि दी उन्हें बहुत बड़ी मुसीबत और कलंक से बच लिया ।
.....डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर ,छ ग--
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                               (4)                     
-[10/02, 11:51 AM] Chandrawati: आदरणीय आचार्य ओम नीरव  जी एवम सम्मानीया संचालक महोदया
मुझे लघुकथा लोक में शामिल करने हेतु हार्दिक धन्यवाद
 प्रस्तुत है लघुकथा --- शीर्षक है - "बहादुरी "
    
      सरोज बस्तर के बीहड़ जंगल मे इंद्रावती नदी के किनारे बसे गांव सेन्द्रीपाली में परिवार के साथ रहती है
 मिट्टी का कच्चा घर है खेती किसानी करके दोजून का जुगाड़ हो जाता था। एक दिन कुछ नक्सली आये  और पिता को बाहर बुलाकर बात किया ।पिता के इनकार करने पर पिता ,मां ,बड़ा भाई सब को गोली से मार डाला।
उस दिन सरोज अपने मामा के घर गई हुई थी। उसकेबाद से वह अपने घर कभी नहीं लौटी ,आज दस साल बाद  पढ़ लिख कर नौकरी जॉइन करने पुलिस बनकर थाने में आई है।
   थाने दार एवम अन्य पुलिस कर्मियों ने बड़ी गर्म जोशी
 से उसका स्वागत किया।
 जब पुलिस विभाग में उसकी पोस्टिंग हुई तो कोंटा जिला मुख्यालय में पूछा गया - कि महिला है -नई नौकरी है-नई उमर की है कुछ दिन  यहीं  अटेच कर देते हैं  । 
 सरोज ने बड़ी विनम्रता से कहा -  मैं सेन्द्रीपाली एरिया में जाना चाहती हूं  । थानेदार ने ध्यान से उसे देखा ।फिर कहा - उस बीहड़ जंगल के नक्सली इलाके में पग पग पर
 मौत का खतरा मंडराता रहता है । सरोज ने कहा -- मौत तो एक दिन आनी ही है सर,  मैं किसी मकसद से पुलिस विभाग में आई हूँ । मेरी मौत तो आज से दस साल पहले 
हो गई होती ।ईश्वर ने मुझे मेरे माता , पिता भाई के कातिलों से बदला लेने ही जिन्दा रखा है 
मैं खतरों से नहीं डरती  । बहादुरी  से उनका सामना करते हुए अपने लक्ष्य को पाना चाहती हूँ । 
  खुश होकर थानेदार ने उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा ---  सच कहती हो सरोज "   बहादुरी "  सिर्फ पुरुषों की
 जागीर नहीं है  यह तो एक जज्बा है जुनून है।
 ईश्वर तुम्हारी रक्षा करे ,कामयाबी दे  ।

  डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
 रायपुर ,छ ग
[10/02, 11:43 PM] Chandrawati: गूंगी का गंगाराम
 
निर्मलाऔर भागवत की आधी उमर बीत गई थी निसंतान थे बहुत पूजा-पाठ,व्रत उपवास ,दान -धर्म किया करते थे।इस बार गंगा स्नान के लिए हरिद्वार गए लौटते समय  रात के समय ट्रेन जब कटनी पहुंचने वाली थी बगल में बैठी महिला ने निर्मला की गोद मे अपनी बच्चा देते हुए कहा ---अम्मा जी मैं बाथरूम होकर आती हूँ तब तक इसे देख लो 
उसके बाद वह वापस ही नहीँ आई । कटनी में उन्हें उतारना था। डिब्बे में पता लगाया  कई लोगों से पूछा  फिर थाने जाकर सारी घटना बताई ।थाने दार ने उनका पता नोट किया और  बच्चे की देखभाल करने को कहा । बच्चे केमाता पिता का पता ही नहीं चला। 
वह लगभग एक साल की बच्ची अब इनकी बेटी की तरह पलने लगी उसका नाम गंगा रखा गया वक्त गुजरता गया वह बड़ी होती   गई पर बोल नही पाती थीअतः सब उसे गूंगी ही पुकारते थे ।
एक दिन शाम ढले तक उसकी प्यारी गाय गौरी घर नही लौटी
उसे ढूंढती हुई दूर निकल गई अंधेरा घिरने लगा लौटते समय 
किसी बलिष्ट हाथों ने पीछे से उसे पकड़ लिया वह बहुत रोई छटपटाई लेकिन अपनी इज्जत बचा न पाई। रोती कलपती बदहवास सी भागती घर आकर मां को इशारों बताने की पूरी कोशिश की।
मां समझ तो गई पर क्या करती ?
कुछ ही महीनों बाद तो उसके बेडौल शरीर देखकर सारे गांव को पता चल ही गया ।लोक लाज के भय से भागवत घर छोड़कर चले 
 गए पर माँ उस  बेकसूर बेचारी को उस हालत में अकेली छोड़ के 
कहां जाती। उसने हर हाल में बेटी का साथ देने का निश्चय किया।
    समय आने पर उसने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया।हर्षा तिरेक में गूंगी के मुख से पहला शब्द निकला--ग ग ग गं ग ग गा--
                अब निर्मला और गूंगी के जीवन का 
लक्ष्य था बेटा गंगा राम का जीवन सँवरना ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
शंकर नगर ,रायपुर  छ ग
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1 comment:

  1. जानकारी साझा करने के लिए आपका धन्यवाद...हिंदी hindi news पर जारी रहें.

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