Monday, 18 September 2023

कुछ गीतों के बिखरे मोती ---= छोटे-छोटे गम है,

छोटे छोटे गम है, छोटी-छोटी खुशियां
 छोटे-छोटे मुख की,  बड़ी-बड़ी बतियां

छोटे-छोटे पांव हैं , लंबा ये  सफर है
 छोटे-छोटे कदमों से, मिटती हैं दूरियां.

 छोटी-छोटी उलझनें , छोटी-छोटी रंजिशें 
 भूल इन्हें आगे बढ़ें, स्वर्ग सी है दुनियां. 

 छोटी-छोटी भूल से, बढ़ती दरारें  हैं
 छोटी-छोटी कोशिशें से, दूर नहीं खुशियां.

 छोटी-छोटी चाहतें , छोटी छोटी राहतें
 पल ना गँवाना यूं ही, बीत जाए सदियां. 

 छोटी छोटी अंखियों के, बड़े-बड़े सपने
 छोटी-छोटी कश्तियां, हारी  बड़ी नदियां.

 तन तपन मिटाती है, प्यास बुझाती हैं 
  अंबर से बरसें  जो, छोटी-छोटी बूंदियां. 

 डॉ चंद्रावती नागेश्वर 
रायपुर छत्तीसगढ़





Friday, 15 September 2023

हिंदी दिवस

मुक्तक लोक 484
स्वाभिमान है हिन्दी, हिन्दी काव्य सलिला 15-9-23

सहज सरल है भाषा हिंदी ,  याद रखो
देश वासियों.
यही विरासत है पीढ़ी की, याद रखो देश प्रेमियों.

      भारत के जन मन की बोली 
       सुन ले जो उसकी ये होली.
       दिल से दिल की बात कहे
       बंद कपाट हृदय के खोली.   

इसे  संवारो  सब मिलकर के ,बंधु सखा बहन  भाइयों .
सहज सरल है भाषा हिंदी , याद रखो देश वासियों.

     विज्ञान के मानक पर खरी
    शब्द अर्थ से  है  हरी भरी .
      बाहों में समेटे व्याकरण
    रस अलंकार की लगे झरी.

मन भूमि संस्कारित करती, ना भूलो सुत प्रवासियों.
सहज सरल है भाषा हिंदी, याद रखो
देश वासियों.

 अपनी बोली अपनी भाषा 
 हो उन्नत सबकी अभिलाषा.
 मान देश  का  हमें बढ़ाना
 हो  विकास सबकी  है आशा,
  मानवता ही धर्म हमारा , बढ़े चलो कर्म  योगियों
सहज सरल है भाषा हिंदी ,याद रखो
देश वासियों.
       
डॉ चंद्रावती नागेश्वर 
रायपुर छत्तीसगढ़

Friday, 10 March 2023

दोहालय में प्रेषित दोहे....

दिन बुधवार---स्वतन्त्र दोहे

हाथों में भूगोल है,नजरों में आकाश
अहंकार के फेर में,होता महा विनाश ।
 
जब जब शिवता मौन थी,पुरुष काम का दास
रीति नीति बिन लोग सब ,छल बल आये रास

 सबके हित की सोच कर,करें विघ्न का नाश
सबका मिले सुकर्म तो , बिखरे कर्म प्रकाश

सब मिल कर के ठान लें, हो पुरजोर प्रयास
सब का हो सहयोग तो,बने नया इतिहास ।

 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा ,छ ग
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नमन दोहालय
शीर्षक - नित्य, नित सदा,,,,,

 जनम जनम से दूर हैं ,रही न उसकी याद
मन के भीतर बैठ कर ,नित करता सम्वाद ।

नित नित आगे बढ़ रहे,सारे जग के लोग
फिर हम पीछे क्यों हुये, लगा नकल का रोग ।

गहरी सांसे तो सदा ,   अन्तस का वरदान
तन मन को ताजा करें,लगता प्रभु में ध्यान ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा ,छ ग
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स्वतन्त्र दोहे
खुशबू अपने देश की,होली का त्यौहार
रंग लिये खुशियां खड़ी,बांटे सबको प्यार ।l
 
रंग बिरंगे लोग हैं,उड़ता रंग गुलाल
हवा बावरी हो गई,चूमे सबके गाल. 

धूम मची है रंग की,बजते ढोल मृदंग
गली गली में उड़ रहे, बड़े  अनूठे रंग ।

दिवस फूल से खिल गये, चढ़ा बसन्ती रंग
हवा नशीली हो गई,मचा रही हुड़दंग 

लाल हरे पीले सभी, मिल जाएँ जब संग
 इस होली में देखना, खूब जमेगा रंग. 

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा ,छ ग
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साप्ताहिक आयोजन 2020 (रवि वार) 
कलम चढा लें सान पर,तीखी कर लें धार
जन जागृति का लक्ष्य ले,आओ करें विचार

बुझती चिंतन आग है, जला सकें इक बार
लेखन कर्म सफल बनें ,इस पर करें विचार 

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
बोस्टन


साप्ताहिक आयोजन -क्रमांक 201--स्वतन्त्र दोहे----
बुध से शुक्र-------
फूल सी नाजुक बिटिया, हमको इस पर नाज
इसकी क्षमता देख कर ,अचरज होता आज
   

समय चक्र रुकता नहीं, करलो कोटि उपाय
नब्ज समय की पकड़ लें ,इक पल व्यर्थ न जाय

नदिया के दो कूल हैं,बहे बीच में धार
जीवन तो इक नाव है,सुख दुख दो पतवार

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
बोस्टन,U S A


स्वतन्त्र दोहे -दिन शुक्र वार का शुक्रिया
सभी को प्रातः नमन

क्षितिज बिखेरे लालिमा, बांधे बन्दनवार
सूरज का शुभ आगमन,करना है सत्कार

पंख पसारे उड़ चला,मेघों के उस पार
सूरज छूना चाहता, कोशिश है बेकार

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
बोस्टन, नार्थ स्टेशन
19  ,1  ,2018

शीत लहर से कांपती,खूब जड़ाती रात
धुंध कोहरा सब चले, हिम की चली बरात. 

  साप्ताहिक आयोजन  गुरु  , शुक्र
स्वतन्त्र दोहे ----
फूल शूल दोनों रहें, इक दूजे के संग
अलग अलग हैं रूप गुण, करते कभी न जंग
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
बोस्टन

 साथ में देवे तकदीर हमारी
 कभी धनी अब भिखारी

 ताल पोखरे सूख रहे सब 
अब आई कूपों की बारी

 एक अकेली नारी हूं मैं 
घात  में बैठे सभी शिकारी 

जब से तुम परदेश गए हो 
सूद खोर हड़पे  खेती बारी

 कोर्ट कचहरी के चक्कर में 
बिक गए घर के लोटा थारी

डॉ  चंद्रावती नागेश्वर


Tuesday, 24 May 2022

भोर का वंदन ---

सुभोर ~
👏
प्रातः का वन्दन है,
स्वर्णिम अभिनन्दन है,
धरती के माथे पर 
सूरज का चंदन है !
         ~ वि. शुक्ल
   सिर  पर  आंचल की छाँव  रहे 
   कदमों में सुख का गांव रहे. 
       हर तीरथ  तेरे  पांव तले
       मां स्वर्ग सदा इस स्थान रहे.


👏
P
👏
मन सिहरा,ठहरा तनिक,देखा अप्रतिम रूप।
भोर सुहानी सहचरी , पसर गई लो ,धूप ।।
                ~ विश्वम्भर शुक्ल

ये जो है जिन्दगी ~
👌
बादलों सी मचलती रही जिन्दगी,
        चार दिन खूब छलती रही जिन्दगी,
हमने चाहा बहुत, साथ हम भी चलें,
        हमसे आगे निकलती रही जिन्दगी!
                     --- विश्वम्भर शुक्ल
ये जो है जिन्दगी ~
👌

Tuesday, 10 May 2022

मनपसंद प्रेरक़ रचनायें .....

गीतिका ~
👌
गौर से सुन अब हमें भी सर उठाना आ गया 
--------------------------------
आग पर हैं पाँव ,होंठों पर तराना आ गया,
आदमी को आदमी पर मुस्कराना आ गया।
-
तोड़ लेना डाल से मत पुष्प कलिका ने कहा,
गौर से सुन अब हमें भी सर उठाना आ गया।
-
पादुका पग की नहीं अभिमान है वह शीश की,
आँसुओं की नदी को अब खिल-खिलाना आ गया।
-
अब न रोके से रुकेगी वाग्धारा वेग की ,
सँग शिलाओं,पत्थरों के, जल बहाना आ गया।
-
मुट्ठियों में कैद हैं अब मौसमी सब आँधियाँ,
लोरियाँ अब चैन की जब से सुनाना आ गया।
 --- प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
लखनऊ
👌
मैं  तुम्हारे प्रश्न का उत्तर नहीं हूँ,
अब किसी आघात को तत्पर नहीं हूँ।

देवता की तरह जो पूजा गया हो ,
माफ करना मित्र, वह पत्थर नही हूँ !

पुष्प जैसा निखरकर बिखरा बहुत मैं,
पर किसी की राह का कंकर नहीं हूँ।

सुधा पीने के मिले अवसर कभी जब,
पिया विष ही किन्तु मै शंकर नहीं हूँ ।

फिर नया अनुबंध लिखकर क्या करोगे,
अमिट स्याही से लिखा अक्षर नहीं हूँ !

स्वत: जन्मी वेदना का स्वयं साक्षी ,
निरर्थक संभावना का स्वर नहीं हूँ।
______ प्रो. विश्वम्भर शुक्ल
लखनऊ
जीवनामृत~
जिनसे जीवन मिला उन्हें हम वंदन कर लें,
श्रद्धा,नमन, आस्था से अभिनन्दन कर लें,
भक्ति-भाव, अनुरक्ति पूज्य हैं सदा हमारे
पुण्य-पुष्प अर्पित कर मन को चन्दन कर लें !
_______  विश्वम्भर शुक्ल
जीवनामृत~J---=---------=------=---==------
💝
खुश्बू बिखेरे पुष्प सी ,रस-धार दीजिए ,
      रचना की हो पहचान वो रफ़्तार दीजिए,
संकल्प श्रेष्ठ राष्ट्र का,हो सार्थक सृजन ,
      अपनी कलम के हाथ मे तलवार दीजिए !
                     ---   प्रो.विश्वम्भर शुक्ल 
सुभोर ~
💝
जिन्दगी निर्मल हँसी है जो तुम्हारी है,
       चमक जाती है इक बिजली की तरह,
बाँटती फिरती है रंगों की दुआएँ देखो
       फूल पर उड़ती हुई तितली की तरह !
                              ~ विश्वम्भर शुक्ल
सुभोर ~
💝
मृदुल , कोमल  छुअन की अभिव्यंजना अच्छी लगी,
शुभ्र निश्छल प्रेम की परिकल्पना अच्छी लगी ,
छुपी वाणी में मधुर संदेश की जो शब्दिका है ,
सार्थक दिन कर गई , शुभकामना अच्छी लगी ।
          ----- प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
सुभोर~
💝
प्यार देकर इन्हें पाले रखना,
        रिश्ते नाजुक हैं सम्हाले रखना,
जिन्दगी नाम तंग गलियों का 
          उम्र भर इनमें उजाले रखना !
                         ~ विश्वम्भर शुक्ल
सुभोर~
💝
प्यार देकर इन्हें पाले रखना,
        रिश्ते नाजुक हैं सम्हाले रखना,
जिन्दगी नाम तंग गलियों का 
          उम्र भर इनमें उजाले रखना !
                         ~ विश्वम्भर शुक्ल
 वीथिका से एक चित्र ~
👏💝👏
सूख गई थी सोई बगिया आज गई फिर भीज,
लो फिर हरी भरी हो बैठी गजब ज़िंदगी चीज ,
हवा बही ,बादल घिर आये,बदल गया मौसम 
फिर से स्वागत को आतुर है यादों की दहलीज !
                       ___ प्रो.विश्वम्भर शुक्
 . 
वसंत वर्णन  :---
डाली डाली झूमती, देख बसंत बहार. 
फागुन की पदचाप सुन, झूम उठा संसार.
: फागुन आया देख के, वन उपवन गुलजार
 है पूनम की रात में, होली का त्यौहार. 
 महुआ डोरे डालता,   टेसू मन मुस्काय 
 हाला पीये  प्रीत का , तितली भ्रमर बयार. 
 मन बैरागी डोलता, फागुन  ही बहकाय  
  फागुन कहे पुकार के, खुशियों   के दिन चार.
 नव पल्लव से हैं सजे, वृक्ष लता के देह 
 खिलती कलियां दे रही, फूलों  का उपहार.
 पीली चुनरी पहन चली, धरती मन हरषाय 
 रूप रंग कुछ दिन रहे, आओ कर लें  प्यार.
----------------===--------------===----------
भावों पर सीवन लगा 
देखा चारों ओर,
स्वारथ में डूबी मिली 
संबंधों की डोर।

पीड़ा उर में बाँधकर
अधर मढ़ी मुस्कान,
पथ पर अपने बढ़ चली
जीने की ज़िद ठान।
अभी जूझना है मुझे,
बंधन का ये ठोर।

हिय कलसी अमृत भरा 
रे मन ले संज्ञान,
अंतस डुबकी ले ज़रा
ये ही पावन  स्नान।
नवजीवन के साथ है,
अनुबंधों की भोर।

कर्मभोग ये योग तक
अपना ही ये लेख,
व्यूह रचित ये स्वयं का
अंतर्मन से देख।
मुमुक्ष-मन की चाहना,
प्रबंध बड़े कठोर।
कोकिला अग्रवाल 
--------------*---------==*----------*------=--
शब्द मंथन!! 

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प्रभात बेला
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भोर भयी चिड़िया चहकी महकी बगिया कलियां मुस्काती।
सूरज की किरणें धरती पर जीवन ज्योति सदा बिखराती।
वायु सुगंधित डोल रही सबके मन को कितना हरषाती।
शंख बजे घड़ियाल बजे करते सब सुंदर गीत प्रभाती।

जितेन्द्र मिश्र 'भास्वर

बैठ रश्मियों के स्यंदन पर "भोर"   सुहानी  आई।
ऊर्जा  का संचार  किया है नव  चेतना   जगाई।

सरसिज  खिले  सरोवर 
भँवरे गुन-गुन गुन-गुन गाये।
शीतल मदिर पवन तन-मन 
को स्पंदित कर जाये।
स्वर्णिम आभा बैठ क्षितिज में मन्द-मन्द मुस्काई।
ऊर्जा------------------------

सुंदर सुखद "विहान" प्रकृति की
सुषुमा हृदय लुभाती।
गूँज रहा है मधुर-मधुर स्वर
खगकुल करें प्रभाती।
खोल यामिनी का अवगुंठन वसुधा ली अँगड़ाई।
ऊर्जा------------------------------

रहो सतत गतिमान कर्म के 
पथ पर बढ़ते रहना।
एक लक्ष्य ले बढ़ो प्रगति की 
सीढ़ी चढ़ते रहना।
चीर निशा का तिमिर सुबह  किरणों ने राह दिखाई।
ऊर्जा-------------------------------

स्वेद बूँद से सींच धरा को 
कर देता है नन्दन।
कर्मशील मानव का दुनिया 
करती है अभिनन्दन।
मन में यदि विश्वास जिंदगी लगती है सुखदाई।
ऊर्जा का संचार हुआ है नव चेतना जगाई।

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
                   -----सुधा मिश्रा

Friday, 1 April 2022

नव सम्वत का स्वागत , अभिनंदन, शुभकामना

,   01, 04, 2022 तीथि , चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 


आओ सभी ध्वज अपना लहरायें 
 नव फूलों से घरआँगन महकायें.
नव वर्ष हमारा उमंग भर लाया 
कोंपल मुस्कायें  मौसम हर्षायें  . 

        हिन्दू नववर्ष की आप सभी को बहुत बहुत बधाई  एवम  शुभकामनायें             
      
        डॉ चंद्रावती नागेश्वर


 सुमन सुगंधित  नित खिलें,मिले सदा ही प्यार 
 भरा रहे दामन सदा, खुशियां  नाचे द्वार.
 नया वर्ष भरता  रहे, नव उमंग का संग 
 सुख समृद्धि का वास हो, दुआ यही शत बार.

 डॉ चंद्रावती नागेश्वर

        हिन्दू नववर्ष की आप सभी को बहुत बहुत बधाई.
जन्म दिन की हार्दिक बधाई 
अशेष मंगल शुभकामनाएँ __

        *******

आज की सुबह जब आई है, 
ख़ुशियों की सौगात ले आई है |
कदम चूमे हरदम ख़ुशियाँ तो, 
जन्म दिन की अशेष बधाई है ||

***

हरदम  संग  बहारें  हों ,
और ख़ुशहाल नज़ारे हों |
वीरानी का कोई काम नहीं, 
सलमा चाँद सितारे हों ||

******

बहुत मुबारक जन्म दिन हो, दिल से दिल की सौगातें, 
मंगल कामना है अशेष, समझो दिल से दिल की बातें ||
दिन - रात तुम्हारे अधरों पर, यूँ सजी रहे मुस्कान सदा, 
हों  चाँदी  जैसे  दिन सभी  और  रहें  सुनहरी सब रातें ||

*****

कर्ण प्रिय कुछ बातें हों और अच्छी मुलाकातें हों ,
जन्म दिन हर दिन आए, बस प्रेम रस सौगातें हों |
आओ प्रिये सँवारे मिलकर, जीवन की बगिया हम, 
ख़ुशनुमा हो हर पल यों ही, ख़ुशियों की बरसातें हों ||

                        ✍ <>©<> श्यामल सिन्हा !👮!
03--मई --2022
*ए “सुबह ” तुम जब भी  
                    आना,*
     *सब के लिए बस "खुशियाँ"
                    लाना*
          *हर चेहरे पर “हंसी ”
                   सजाना*
         *हर आँगन मैं “फूल ”
                  खिलाना
    * जो “रोये ” हैं  इन्हें हँसाना *
         *जो “रूठे ” हैं  इन्हें 
                   मनाना,*
       *जो “बिछड़े” हैं तुम इन्हे
                  मिलाना*
      *प्यारी “सुबह ”तुम जब भी
                    आना*
      *सब के लिए बस “खुशियां”
                  ही लाना

*******     ******-*----***-***** - *******

Saturday, 5 March 2022

2022 के स्वरचित संकलित गीत :-- यादों के कण, मेरे भाई



 

जल रही शमा भी रोशनी के लिए
ढल रही है रात रोशनी के लिए।

इक जुनून  मन में  वो लिए चले
शीश ये कुर्बान माँ भारती के लिए

इसी की कोख से जन्म हमने लिया
जिएं -मरें हम सभी देश के लिए

खड़े जहां वहीं से बढ़ें कदम कदम
कुछ तो करें देश के विकास के लिए

कौंधती दामिनी कह रही है  सदा 
चमक रहा  ये  रवि रोशनी के लिये 
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर  ,छ ग

[02/09, 4:01 pm] Chandrawati 
भाई मेरे कबआओगे,मात-पिता की तुम्हीं निशानी
 करूँ प्रतिक्षा लेकर राखी,  खुश रखना सदा भवानी.
नेक  बड़े किस्मत से बेटे,घर  परिवार संभाले हैं 
स्वर्ग रहे मात पिता पत्नी, रिश्तों  की कदर न जानी.
 खुद  का   व्यवसाय तुम्हारा है, छुट्टी की ना मजबूरी 
 ना चाहूं कपड़े गहने पर, फिर भी होती क्यों  हैरानी. 
एक  कोख के हम जन्में  हैं,        माता-पिता के बड़े दुलारे 
बचपन में तो प्यार बहुत था, अब 
  आई क्या परशानी. 
 दिन में मेरे घर तुम्हें न भाया, रहे 
 संग ससुराल मेरे
 घर अपने रहना ना भाया,तेरी  शादी की ठानी.  
हर संकट में ढाल बनी मैं,  हाथ उठाकर सदा दिया है 
यम द्वारे से तुझको लाया,  क्यों  करता है नादानी.
 हम दोनों रहते दूर अकेले,  जरा  तो  सोच लो   भाई,
ना  झगड़ा है ना नाराजी, करते  बचपन से  मनमानी.
 ईश्वर का दिया है सब कुछ, पर 
 मिला  न  तेरा प्यार
 अकल मिले इतनी बस  इसको, 
 जीवन है बहता पानी.
 कहा सुना कुछ दिल में हो,  माफ करो  मेरे भाई
 अब तो ना रूठ मेरे भाई, चार दिनों की जिंदगानी.
 डॉ चंद्रावती नागेश्वर

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मुक्तक लोक का विशेष आयोजन 
"लो आ गयी महाशिवरात्रि"........

 नीलकंठ  बाघंबर धारी, ओम  नमः  शिवाय 
 गूंज  रहा धरती अंबर में,  ओम नमः शिवाय.  
 
शिव विवाह की पावन  तिथि में , शंखनाद गूंजे  
उमा का सिंगार  है अद्भुत ,  ओम नमः शिवाय.

 हे त्रिशूल धर जग हितकारी, शंभु  तुम्हें प्रणाम
 हे  शिव शंकर प्रलयंकारी, ओम नमः शिवाय.
 
 हे गंगाधर हे  त्रिपुरारी, गल नाग हार धर
 आशुतोष तुम अवढर दानी,ओम नमः शिवाय.

विपदा आन पड़ी है भारी, हे जगतारण शिव 
देवाधिदेव तुम महादेव, ओम नमः शिवाय.

 जग में तुम ही आदि अजन्मा, शरण गहें  तेरी
 दया करो भोले भंडारी, ओम नमः  शिवा
 डॉ चंद्रावती नागेश्वर
 सानफ्रांसिस्को 
 1 मार्च 2022
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भारत की गरिमा बढ़ती है, इसकी ही संतानों  से 
 खून पसीना खूब बहाते, डरें  नहीं बलिदानों से 

 देश किसी के  बने  नहीं है, खींची हुई रेखाओं से
 इसी  धरा पर हम  जन्मे हैं, भारत  के   दीवानों  से. 

 कर्ज चुकाते फर्ज निभाते, जान तिरंगे  में रहती 
 हरी भरी धरती की शोभा, खेतों और खलिहानों  से.
 रहें  प्रेम से बहु भाषा भाषी, रखते मन सद्भाव यहाँ 
 दया मूल है दान धर्म का. सीखा है विद्वानों  से. 


 नदी पहाड़ गाय भी पूजा,  बैल सर्प हाथी  पूजे 
 कृतज्ञता का ज्ञापन करना.सीखें हम गुणवानों से.

 देश  हमारा हमीं  देश से, इक दूजे से दोनों  हैं 
बुनियाद देश  की बनती  है , सैनिक  और  किसानों से . 

 लोक कथाओं लोक गीत में ,  जीवन सार समाया  है
 ॐ नाम चहुँ दिशि  बिखरे  हैं ,बन सुवास   बागानों  से. 
 खून बहा अनगिन  बेटों का, आजादी का सूर्य उगा
 संग समर्पण देशभक्ति के, रूप  दिया  अरमानों से.

 डॉ चंद्रावती नागेश्वर
 सानफ्रांसिस्को
09. 03. 2022
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वसंत  के दोहे :--
 तबियत  ढीली शीत की, रिपु सम लागे  मीत 
चहक  रही है धूप अब, पाकर सब की प्रीत. 

 शीत  विदाई ले रही, पीले पत्तों संग
 डाली डाली झूमती , लेकर  नई  उमंग. 
 
सुन आहट  ऋतुराज  की, बौराया  है  आम 
कलियों ने स्वागत किया, पूजित है अब काम

 पुष्प पालकी बैठकर, आया  है  मधुमास
  नृत्य करें हैं लोग  सब,   मौसम है अब खास.

 धरा सुंदरी ने  किया, फूलों से  सिंगार  
 जग आनंद विभोर है, देख बसंत बहार

 अपने पूरे रंग में , आता फागुन मास
 जीवन के सौंदर्य का, देता है आभास.  

पृथा कुमारी  से करे, फागुन प्यार अपार 
 फूलों की सौगात दे , करता है मनुहार.

डॉ  चंद्रावती नागेश्वर,
रायपुर,  छत्तीसगढ़
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हम यादों के कण-  चुन लेना, 
  याद  जरा हमको कर' लेना.

 सुधियों  के सूने कोने में, 
नन्हा सा दीप जला देना. 

 उत्सव  की कुछ  सौगातों में, 
बूंद  नेह  की  टपका देना. 

 पर्व  रोशनी  का जब आए,
भाव  पुष्प   एक  चढ़ा देना. 

 जो  भी  मेरे सखी  सखा  हों, 
    मीठी मुस्कान  हमें  देना.

भारत भू की मैं हूं रज कण, 
 गंगा जल  तर्पण कर देना.

 होली का पर्व मनाओ  तो,
चुटकी  भर रंग उड़ा देना. 

 हवा चले जब जब बसंत की, 
मन  की बगिया  महका देना . 

याद  आयें   दिवाली पर तो, 
हँस कर  इक दीप  जला लेना. 

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर 
रायपुर   छत्तीसगढ़
--------------*------------*--------------*-----------
आ गई दीपावली, 
दे रहे शुभकामना 
द्वेष  की दीवार थी,
 मिट गई वह भावना. 

मन दीपक जब जलते
 तभी उजाले हंसते, 
   उतारो अहम  मन से
 अब दूरी न पालना. 

चैन  की हो जिंदगी
 सोचो फिर दोबारा,
 भंवर से पार आए
  अब हमें तुम थामना.

  सोच ले तो निभे  यह 
 जोड़ने का पर्व है
  
. चलो बदले स्वयं को 
  अब हमें ना हारना. 

 दिन वही रात वही 
सोच  बदली हैं अभी
चल पड़े नव राह  पर 
 मौसम है सुहावना.

डॉ चंद्रावती नागेश्वर 
रायपुर छत्तीसगढ़
-------------*--------------*-----------*------------
-याद   करूँ ना  बीता हुआ जमाना
 याद नहीं वो  छूटा   हुआ   मुहाना.  

 कभी नहीं वापस आता बीता कल
  भोर नया है गीत नया अब गाना. 

 आओ मिलकर पौधे नए  उगाएँ 
  हमें बाग फूलों के अब नये सजाना.
अपनी मुट्ठी में है आज हमारा 
हर हालत में हमको  इसे बचाना 

 नहीं भीड़ में गुम होना है मुझको
 अलग  पहचान भीड़ से मुझे  बनाना
 डॉ   चंद्रावती नागेश्वर 
रायपुर छत्तीसगढ़
 
संध्या रानी 

बड़ी लगन से  करे प्रतिक्षा,सूरज की पटरानी है 
कठिन सफर से लौटे प्रिय की, करती वह अगवानी है. 

  आभा चमके  जल थल नभ में,रूप  छटा बिखराती  वह 
साँझ ढले सबके मन मोहे, रवि प्रिया  संध्या रानी. 

 दिन डूबे करते हैं तारे, छुपा छुपी का खेल सभी 
 महके जूही चमेली द्वार,  प्रिय की थकन मिटानी  है. 

 चहक  चहक कर थके पखेरू, तुलसी पूजन  की बेला आई 
 देव आरती की तैयारी, घर घर  दीप जलानी है 

 रहें  अडिग सूर्य कर्म पथ पर,  निज  कर्तव्य निभाते हैं  
 जीवनसंगिनी संध्या को, राह वही अपनानी  है।
डॉ चंद्रावती नागेश्वर ,
रायपुर छत्तीसगढ़

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