सुभोर ~
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प्रातः का वन्दन है,
स्वर्णिम अभिनन्दन है,
धरती के माथे पर
सूरज का चंदन है !
~ वि. शुक्ल
सिर पर आंचल की छाँव रहे
कदमों में सुख का गांव रहे.
हर तीरथ तेरे पांव तले
मां स्वर्ग सदा इस स्थान रहे.
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P
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मन सिहरा,ठहरा तनिक,देखा अप्रतिम रूप।
भोर सुहानी सहचरी , पसर गई लो ,धूप ।।
~ विश्वम्भर शुक्ल
ये जो है जिन्दगी ~
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बादलों सी मचलती रही जिन्दगी,
चार दिन खूब छलती रही जिन्दगी,
हमने चाहा बहुत, साथ हम भी चलें,
हमसे आगे निकलती रही जिन्दगी!
--- विश्वम्भर शुक्ल
ये जो है जिन्दगी ~
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