Tuesday 25 August 2020

गीतिका श्रृंगार रस 1मधुमास की जादूगरी

देख देख दर्पण में खुद को
पहचान न पाऊँ मैं खुद को।

जब से तुम परदेश गए हो
दर्पण में देखा नहीं खुद को।

ना चिट्ठी ना पाती भेजी 
कैसे मैं समझाऊं खुद को।

बीत रहा है बैरी सावन
कैसे धीर बंधाऊँ खुद को।

   टँगी हुई लौ बुझने वाली
 कैसे अब समझाऊं खुद को।

रोशन रखते यही उजाले
यादों से बहलाया खुद को।

श्रृंगार बिना सूना  जीवन
कैसे कहूँ सुहागन खुद को।

प्राण दीप  ले आस लगाऊँ
सजना प्रकट करो अब खुद को।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
राययपुर  ,छ ग
तिथी  10,  03 , 2021

लूटगूंजे कलरव चिड़ियों के, = 14 मात्राएँ हो गईं हैं 13 ही चाहिए 
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खग के कलरव गूँजते (13) -

सभी कुछ हम लुटाते है,वतन की आन के खातिर।

करें  हम देश की  सेवा, कर्म है लक्ष्य को पाना
चढ़ाते शीश अपना हम, वतन की शान के खातिर।

सदा ऊंचा तिरंगा हो ,फहरता शान से नभ में
यही हम चाह रखते हैं,गुणों के गान के खातिर।

दुश्मनों को भगाना है , यही जज्बात रखते हैं।
सुरक्षा देश की करना ,हमें  सम्मान के ख़ातिर।

यहीं पर जन्म पाया है ,यहीं का अन्न खाया है
 शपथ माँ की उठाते हैं, सदा उत्थान के खातिर।

अमर होता नहीं कोई , मनुज जीवन मिला हमको
किसी के काम आना है ,इसी अरमान के खातिर।

लिखें हम खून से अपने ,नया इतिहास अब यारों
उमड़ता है हृदय में जोश ,नव निर्माण के खातिर।

करें कुरबान अपनी जान, यही दिन रात सोचा है
जलाते प्राण का दीपक, नए दिनमान के खातिर।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
3/  8/ 2020
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15  अगस्त 2020  तिरंगा 
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  गगन तिरंगा लहराता है
सबके मन को हर्षाता है।
देश हमारा सबसे प्यारा
मन स्वाभिमान उपजाता है।

देश भक्ति का बीज उगाता
धर्म जाति का भेद मिटाता।
बलिदानी को नमन करें हम
गौरव पथ  हमको दिखलाता।

विश्व बन्धुता को समझाता
अमन शांति का पाठ पढ़ाता।
   न्यारा लगता  विश्व पटल पर  
सद्भाव प्रेम  करुणा  लाता ।

  योग क्षेम की धार बहाता
   भाई चारा हमें सिखाता।
सन्तान सभी परम पिता के
मानवता का भाव जगाता ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
सिवनी म प्र
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देश के सभी आत्मीय जनों , प्रिय जनों को
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाइयां ....
वन्देमातरम,जय भारत 
 आजादी का पर्व खुशी से ,   आज मनाएं हम
  देश के लिए कभी किया जो, आज बताएं हम।
  स्वाभिमान के पंख लगा कर,खुद को पहचाने 
 कर्ज बहुत हैं भारत माँ के, शीघ्र चुकाएं हम ।
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
सिवनी मध्य प्रदेश
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जिंदगी जंग है तो जौहर  दिखाना चाहिए
मुश्किलों के बीच रहकरभी मुस्कुराना चाहिए।

डराती खूब मुश्किल  है डरें नहीं हम तो
 परखना काम इनका है मुस्कुराना चाहिए।

जिंदगी हमेशा सुख दुख  -धूप छांव जैसी  है
 मन में धीर सदा रखकर मुस्कुराना चाहिए।

चलें नही कांटों पर हटाना दूर उनको है,
हटा कर राह से उनको मुस्कुराना चाहिए।

 अवरोध बन सकता नहीं राह का पर्वत कभी
चढ़ें यत्न से  सीढ़ी  बना मुस्कुराना चाहिए।

निकलता रोज सूरज अस्त होकर नया बनता
सूर्य से सीख लेकर भी मुस्कुराना चाहिए ।

बाग में फूल नित झरकर,खिले हैं शान से हरदम।
देखकर उनको हमे भी मुस्कुराना चाहिए।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
25 /8 2020
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नृत्य करती सी लगे मधुमास की जादूगरी
बाग मे कलियाँ करें  परिहास की जादूगरी।

तरु लताएं झूमती दस्तक मिली ऋतुराज की
छंद रचती कोकिला उल्लास की जादूगरी 

पुष्प सुंदर मोहते मन को भरे आनंद से
दहकते वन लाल फूल पलास की जादूगरी।

इस वसन्ती रूप पर धरा के मोहते हैं श्याम भी
रात पूनम गोपियों के संग रास की जादूगरी

गीत स्वागत के रचें खिलते कमल तालाब के
थिरकती किरणें सुबह के आभास की जादूगरी।

घायल करे तीर पुष्पों के चलाकर काम भी
बहकता हैं पवन  फागुन मास की जादूगरी।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
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इठलाती बलखाती  सरिता,कल कल गीत सुनाती है
पर्वत की गोदी से निकली,सबके मन को भाती है ।

रोक सके ना इसको कोई , चाहे हो चट्टान बड़ा
वेगवती जल धार लिए यह,अपनी राह बनाती है।

पंछी उन पर करें बसेरा ,गीत प्रभाती जो गाते
हँसती मुस्काती नित बढ़ती,मैदानों पर आ जाती।

सींच सींच प्यासे पेड़ों को,कर देती है हरा भरा
फूलों से लदी डालियां,देख देख हर्षाती है।

ऊर्वर भूमि और मीठा जल, देख शहर बसने लगते
जगह जगह की मिट्टी लाकर, चौड़ा पाट बनाती है।


नदियां भी तो अपने श्रम से,नक्शे नए बना देती
तट  पर रहने वालों को यह,जीवन कला सिखाती है।

 पालित पोषित करती सबको ,तनमन को भी तृप्त करे 
कई सभ्यता विकसित होती,  मन उमंग भर जाता है।

सुख से रहना मेरे बच्चों , दुआ यही उनको देती
लक्ष्य सदा है आगे बढ़ना कह आगे बढ़ जाती है।

परहित करना धर्म हमारा ,जीवन  को सफल बनाना
प्रभु का आभार न भूलें, जीवन मन्त्र सिखाती है ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
दिनाँक 21, 09, 2023
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