1 सावन सरीखी बन सखी,आ गई मन द्वार
देखती मैं खोल खिड़की ,खूब बरसे प्यार ।
चाहता है झूमना मन ,क्यों रहूँ मन मार
निकल आंगन में खड़ी मैं,झूम लूं इस बार ।
2 ठान ले मिल के अगर हम,देश का उत्थान
कौन रोकेगा भला फिर,हम लगा दें जान । साथआप भी तो,छोड़ दें अब शान
देख लेना तब बढेगा देश का सम्मान ।
3 जा रही ये रात देखो,आ रही ये प्रात
पहन के चूनर किरण की,झूमते हैं पात ।
नाचते पुलकित कमल दल, ओस भीगे गात
सूर्य को करके नमनअब,दिवस की शुरुआत
4 कामना करते सभी तो,सुख सुधा की रोज
पोंछ के दुख की निशानी,तब करें सुख खोज ।
कंटकों से पथ भरे है, खूब चुभते शूल
बीज रोपें यत्न करके , खिल सकें जो फूल ।
5 चाहिए अब इस मनुज को,प्रेम का आधार
जो बनें संबंध उनमें , खूब सींचें प्यार ।
हो गई यदि भूल तो फिर , कीजिये मनुहार
सुख भरा जीवन मिले , मानिए आभार ।
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