Saturday 5 March 2022

2022 के स्वरचित संकलित गीत :-- यादों के कण, मेरे भाई



 

जल रही शमा भी रोशनी के लिए
ढल रही है रात रोशनी के लिए।

इक जुनून  मन में  वो लिए चले
शीश ये कुर्बान माँ भारती के लिए

इसी की कोख से जन्म हमने लिया
जिएं -मरें हम सभी देश के लिए

खड़े जहां वहीं से बढ़ें कदम कदम
कुछ तो करें देश के विकास के लिए

कौंधती दामिनी कह रही है  सदा 
चमक रहा  ये  रवि रोशनी के लिये 
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर  ,छ ग

[02/09, 4:01 pm] Chandrawati 
भाई मेरे कबआओगे,मात-पिता की तुम्हीं निशानी
 करूँ प्रतिक्षा लेकर राखी,  खुश रखना सदा भवानी.
नेक  बड़े किस्मत से बेटे,घर  परिवार संभाले हैं 
स्वर्ग रहे मात पिता पत्नी, रिश्तों  की कदर न जानी.
 खुद  का   व्यवसाय तुम्हारा है, छुट्टी की ना मजबूरी 
 ना चाहूं कपड़े गहने पर, फिर भी होती क्यों  हैरानी. 
एक  कोख के हम जन्में  हैं,        माता-पिता के बड़े दुलारे 
बचपन में तो प्यार बहुत था, अब 
  आई क्या परशानी. 
 दिन में मेरे घर तुम्हें न भाया, रहे 
 संग ससुराल मेरे
 घर अपने रहना ना भाया,तेरी  शादी की ठानी.  
हर संकट में ढाल बनी मैं,  हाथ उठाकर सदा दिया है 
यम द्वारे से तुझको लाया,  क्यों  करता है नादानी.
 हम दोनों रहते दूर अकेले,  जरा  तो  सोच लो   भाई,
ना  झगड़ा है ना नाराजी, करते  बचपन से  मनमानी.
 ईश्वर का दिया है सब कुछ, पर 
 मिला  न  तेरा प्यार
 अकल मिले इतनी बस  इसको, 
 जीवन है बहता पानी.
 कहा सुना कुछ दिल में हो,  माफ करो  मेरे भाई
 अब तो ना रूठ मेरे भाई, चार दिनों की जिंदगानी.
 डॉ चंद्रावती नागेश्वर

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मुक्तक लोक का विशेष आयोजन 
"लो आ गयी महाशिवरात्रि"........

 नीलकंठ  बाघंबर धारी, ओम  नमः  शिवाय 
 गूंज  रहा धरती अंबर में,  ओम नमः शिवाय.  
 
शिव विवाह की पावन  तिथि में , शंखनाद गूंजे  
उमा का सिंगार  है अद्भुत ,  ओम नमः शिवाय.

 हे त्रिशूल धर जग हितकारी, शंभु  तुम्हें प्रणाम
 हे  शिव शंकर प्रलयंकारी, ओम नमः शिवाय.
 
 हे गंगाधर हे  त्रिपुरारी, गल नाग हार धर
 आशुतोष तुम अवढर दानी,ओम नमः शिवाय.

विपदा आन पड़ी है भारी, हे जगतारण शिव 
देवाधिदेव तुम महादेव, ओम नमः शिवाय.

 जग में तुम ही आदि अजन्मा, शरण गहें  तेरी
 दया करो भोले भंडारी, ओम नमः  शिवा
 डॉ चंद्रावती नागेश्वर
 सानफ्रांसिस्को 
 1 मार्च 2022
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भारत की गरिमा बढ़ती है, इसकी ही संतानों  से 
 खून पसीना खूब बहाते, डरें  नहीं बलिदानों से 

 देश किसी के  बने  नहीं है, खींची हुई रेखाओं से
 इसी  धरा पर हम  जन्मे हैं, भारत  के   दीवानों  से. 

 कर्ज चुकाते फर्ज निभाते, जान तिरंगे  में रहती 
 हरी भरी धरती की शोभा, खेतों और खलिहानों  से.
 रहें  प्रेम से बहु भाषा भाषी, रखते मन सद्भाव यहाँ 
 दया मूल है दान धर्म का. सीखा है विद्वानों  से. 


 नदी पहाड़ गाय भी पूजा,  बैल सर्प हाथी  पूजे 
 कृतज्ञता का ज्ञापन करना.सीखें हम गुणवानों से.

 देश  हमारा हमीं  देश से, इक दूजे से दोनों  हैं 
बुनियाद देश  की बनती  है , सैनिक  और  किसानों से . 

 लोक कथाओं लोक गीत में ,  जीवन सार समाया  है
 ॐ नाम चहुँ दिशि  बिखरे  हैं ,बन सुवास   बागानों  से. 
 खून बहा अनगिन  बेटों का, आजादी का सूर्य उगा
 संग समर्पण देशभक्ति के, रूप  दिया  अरमानों से.

 डॉ चंद्रावती नागेश्वर
 सानफ्रांसिस्को
09. 03. 2022
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वसंत  के दोहे :--
 तबियत  ढीली शीत की, रिपु सम लागे  मीत 
चहक  रही है धूप अब, पाकर सब की प्रीत. 

 शीत  विदाई ले रही, पीले पत्तों संग
 डाली डाली झूमती , लेकर  नई  उमंग. 
 
सुन आहट  ऋतुराज  की, बौराया  है  आम 
कलियों ने स्वागत किया, पूजित है अब काम

 पुष्प पालकी बैठकर, आया  है  मधुमास
  नृत्य करें हैं लोग  सब,   मौसम है अब खास.

 धरा सुंदरी ने  किया, फूलों से  सिंगार  
 जग आनंद विभोर है, देख बसंत बहार

 अपने पूरे रंग में , आता फागुन मास
 जीवन के सौंदर्य का, देता है आभास.  

पृथा कुमारी  से करे, फागुन प्यार अपार 
 फूलों की सौगात दे , करता है मनुहार.

डॉ  चंद्रावती नागेश्वर,
रायपुर,  छत्तीसगढ़
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हम यादों के कण-  चुन लेना, 
  याद  जरा हमको कर' लेना.

 सुधियों  के सूने कोने में, 
नन्हा सा दीप जला देना. 

 उत्सव  की कुछ  सौगातों में, 
बूंद  नेह  की  टपका देना. 

 पर्व  रोशनी  का जब आए,
भाव  पुष्प   एक  चढ़ा देना. 

 जो  भी  मेरे सखी  सखा  हों, 
    मीठी मुस्कान  हमें  देना.

भारत भू की मैं हूं रज कण, 
 गंगा जल  तर्पण कर देना.

 होली का पर्व मनाओ  तो,
चुटकी  भर रंग उड़ा देना. 

 हवा चले जब जब बसंत की, 
मन  की बगिया  महका देना . 

याद  आयें   दिवाली पर तो, 
हँस कर  इक दीप  जला लेना. 

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर 
रायपुर   छत्तीसगढ़
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आ गई दीपावली, 
दे रहे शुभकामना 
द्वेष  की दीवार थी,
 मिट गई वह भावना. 

मन दीपक जब जलते
 तभी उजाले हंसते, 
   उतारो अहम  मन से
 अब दूरी न पालना. 

चैन  की हो जिंदगी
 सोचो फिर दोबारा,
 भंवर से पार आए
  अब हमें तुम थामना.

  सोच ले तो निभे  यह 
 जोड़ने का पर्व है
  
. चलो बदले स्वयं को 
  अब हमें ना हारना. 

 दिन वही रात वही 
सोच  बदली हैं अभी
चल पड़े नव राह  पर 
 मौसम है सुहावना.

डॉ चंद्रावती नागेश्वर 
रायपुर छत्तीसगढ़
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-याद   करूँ ना  बीता हुआ जमाना
 याद नहीं वो  छूटा   हुआ   मुहाना.  

 कभी नहीं वापस आता बीता कल
  भोर नया है गीत नया अब गाना. 

 आओ मिलकर पौधे नए  उगाएँ 
  हमें बाग फूलों के अब नये सजाना.
अपनी मुट्ठी में है आज हमारा 
हर हालत में हमको  इसे बचाना 

 नहीं भीड़ में गुम होना है मुझको
 अलग  पहचान भीड़ से मुझे  बनाना
 डॉ   चंद्रावती नागेश्वर 
रायपुर छत्तीसगढ़
 
संध्या रानी 

बड़ी लगन से  करे प्रतिक्षा,सूरज की पटरानी है 
कठिन सफर से लौटे प्रिय की, करती वह अगवानी है. 

  आभा चमके  जल थल नभ में,रूप  छटा बिखराती  वह 
साँझ ढले सबके मन मोहे, रवि प्रिया  संध्या रानी. 

 दिन डूबे करते हैं तारे, छुपा छुपी का खेल सभी 
 महके जूही चमेली द्वार,  प्रिय की थकन मिटानी  है. 

 चहक  चहक कर थके पखेरू, तुलसी पूजन  की बेला आई 
 देव आरती की तैयारी, घर घर  दीप जलानी है 

 रहें  अडिग सूर्य कर्म पथ पर,  निज  कर्तव्य निभाते हैं  
 जीवनसंगिनी संध्या को, राह वही अपनानी  है।
डॉ चंद्रावती नागेश्वर ,
रायपुर छत्तीसगढ़

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