Tuesday 21 August 2018

हरि गीतिका क्रमांक 5

20/08, 20

1   मन रस भरे सब दुख हरे,देख शिशु मुख ममता जगे
     संताप हर सन्तान सुख,अमरत्व का अनुभव लगे ।
    सुत गोद उनके बैठ कर,मुदित मन हो जब नाचता
      ममता भरे मन में खुशी,उस पर सभी सुख वारता

2 : अवतरित हों इस देश की,पावन धरा पर अटल जी ।
  गुरु चाणक्य सुत शिवा भी ,साथ उनके हों भगत  जी।
           आजाद राणा जनम लें,वीरांगना अवतार लें
    फिर घातियों से निपटने ,कमर कस के सब ठान लें ।

3      मां भारती के लाल तुम,मन देश की परवाह हो
अंतिम समय में विवश तुम,अभी मिटने की चाह हो ।
     हर रोम में रमता वही,  वह रूह है क्यों दुख सहे
उम्र जो ढले थक कर पस्त,रख मन मलाल कष्ट सहे ।

4   है राह कांटों से भरे, कड़ियाँ बिखरती सांस की
   तम के घने इन बादलों ,में भी किरण है आस की।
 मन लोभ है कहते सभी, है दस्तक यह विकास की
मंजिल मिलेगी एक दिन,चिर कामना विश्वास की ।


5       करते सदा सम्मान हम,मां भारती केआन की
      हम तो खड़े इसके लिये, बाजी लगाने जान की ।
श्रम स्वेद अपना नित बहा,आगाज कर नव सृजन का
     मिल के सभी ऐसा करें,काया पलट हो वतन का ।

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