Friday 31 August 2018

हरि गीतिका----क्रमांक 6

1  हरि गीतिका रट नीतिका,सोच समझ कर लिखा करें
  सुर ताल से मन मोहता,हरि के भजन लिख दुख  हरें।
        हम पांचवे को लघु रखें, हर सातवें में भी सखे
     मन में गुनें यह क्रम सदा,फिर अंत में गुरु ही रखे।

2   जब गोद मे मां के तभी, तक भा रहा यह जग जिसे
      वह तरसता तेरे बिना ,दिल की तड़प कहता किसे।
आंचल नहीं फिर भी छुवन, ही कम नहीं शिशु के लिये
         ममता वही तो है लुटा ,तीरथ यही जिसके लिये। 


3     सब पेड़ के कुल गुरु रहें, बर नीम पीपर हित करें
        आभार हम इनका करें,जग में सभी के दुख हरें।
     फल फूल दें सेवा करें ,सब कुछ लुटा कर चुप रहें
       उपकार भूलें हम सभी,नव पौध रोपण पथ गहें ।


4      यह रात तो बीते कहाँ , अब नींद भी आती नहीं
 भूले नहीं वो मधुर पल,अब भोर उजली लगती नहीं।
     तकलीफ में औलाद हो,अश्रु आँख के थमते नहीं
         मुश्किल घड़ी हों दूर सब,होते पास अपने नहीं।


5     धन संपदा जोड़ो नही, किस काम का तेरे लिये
        सब छूट जाता है यहीं  ,होता नहीँअपने लिये।
            करता रहा खिलवाड़ तू,मौज पाने के लिये
  कर लो जतन तुम भी जरा, प्रभु से मिलाने के लिये

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