Thursday 1 April 2021

लघुकथा श्रृंखला 32 - मन को चुभते रिश्ते, कन्या का कुल गोत्र , संगत की रंगत , आ हम लौट चलें










शीर्षक  ----   "मन को चुभते रिश्ते "
         शादी के बाद ससुराल में  मंजु की पहली रात पति से मुलाकात ने मन को विषैले चुभन से भर दिया। पति धर्मेश ने साफ साफ दो टूक  शब्दों में स्पष्ट कर दिया --  मंजु  मैं अपने माता पिता की इकलौती सन्तान हूँ ।
उनकी जिद के खातिर मैंने ये शादी की है। मैं पति धर्म तो निभाउंगा पर तुम्हें प्यार नहीं दे पाउंगा। मैं शालू से बहुत प्यार करता हूँ।  मेरे दिल दिमाग में वही बसी है।
 मैं उसकी जगह किसी और को नहीं दे सकता। तुम्हें मेरी शर्त मंजूर  है,तो ठीक है। अन्यथा तुम चाहो तो आपसी सहमति से तलाक हो सकता है।
              यह सुनकर वह सन्न राह गई। वह सोचने लगी ---- यह कैसा भाग्य है मेरा?? जन्म लेते ही जननी स्वर्ग सिधार गई,  शादी होते ही पति से तलाक -- -- 
नहीं----  नहीं.....
  माँ को यमलोक जाने से रोकना तो वश में नहीं  था। किंतु परित्यक्ता के कलंक से बचना होगा । 
 ईश्वर के दिये  इस जीवन का अंत करके  प्रभु इच्छा का अपमान भी नहीं करूंगी । मुझे अपने भाग्य से लड़ना होगा ।
 ईश्वर शायद मेरी परीक्षा ले रहा है । यही सही --  प्रश्न पेपर सामने है ,तो हल लिखना ही होगा ।
                   सौतेली माँ के आने से पिता भी सौतेले  हो जाते हैँ । यह झूठ नहीं है।  विदाई के समय पिता ने कहा था -- अब वही तेरा घर है।याद रखना बेटियों का धर्म है कि मायके की लाज रखे । यहां से डोली जा रही ही वहां से अर्थी पर ही निकलना। जा बेटी तीज ,त्यौहार में खुशी खुशी  पति के साथ आना । उससे लड़ झगड़ कर कभी यहां मत आना -----पिता की ये बातें उसके कानों में गूंज रही हैं।
अब इतनी बड़ी दुनियां में वह कहां  जाये ?? क्या करे ??
                    पूरी रात आंखों आंखों में कटी  सुबह होते ही  सासु माँ के चरण स्पर्श करते ही बिलख पड़ीं।बिना बताए ही सास सब समझ गई । उसके सिर पर हाथ फेरते हुये कहा --- बहू मेरा धरमू पत्थर दिल नहीं है । शालू के माता पिता को इनके इश्क की खबर लगते ही उसे यू पी में अपने गांव ले जाकर उसकी शादी कर दी।अब तो वह बच्चे वाली हो गई है ।
 धीरे से ये भी उसे भूल जाएगा । फिर सब ठीक हो जाएगा ।तू धीरज रख । मेरे जीते जी इस घर में तुझे खाने पहनने की कभी  कमी नहीं होने दूंगी। तू मेरी बेटी समान है। तुम्हारे ससुर को पेंशन मिलती है ।उनके बाद भी मुझे मिलेगी। धरमू भी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता है । आज नहीं तो कल उसे अपनी गलती का एहसास जरूर होगा।
                  इसे अपना भाग्य मान मंजु ने  धीरे धीरे उस परिस्थिति से समझौता कर लिया। सास ससुर मंजु के काम और व्यवहार से बहुत खुश हैं।  अख़बार में टीचर के लिए वैकेंसी निकली तो ससुर ने आवेदन करवा दिया। इंटरव्यू में उसका सेलेक्शन भी हो गया । उसे नौकरी भी ज्वाइन करवा दी ।  सांसारिक जीवन चलता रहा। जयंत और मयंक दो  बेटे हो गए। सासु माँ के मन में अपने लिए ममता का सागर लहराता दिखाई दिया । यही उसके लिए पर्याप्त है।
 शादी को दस साल बाद भी  इतने बरसों में पति से गहना तो दूर एक साड़ी तक गिफ्ट में नहीं मिला। बच्चों को देख धर्मेश के मन में कभी वात्सल्य भी नहीं उमड़ा । कभी हुलस कर बच्चों को गोद मे नहीं उठाया । एक खिलौना भी नहीं लाया । वह अपने ही घर मे मेहमानों की तरह रहता । अपने काम से काम रखता ।  उनका रिश्ता कैक्टस के कांटों की तरह चुभन भरा ही रहा ।
                              इस बीच ससुर जी हार्टअटैक से   
गुजर गए। सासु माँ बच्चों पर जान छिड़कती है । अपने बेटे से ज्यादा बहू  को मानती है । नौकरी ने उसके भीतर आत्म विश्वास भर दिया ।
              अब कुछ दिनों से धर्मेश अपनी माँ से ,जिद करने  लगा कि उसे एक अनाथ लड़की गोद लेनी है । माँ ने कोई ध्यान नहीं दिया । एक दिन  एक किशोरी लड़की कोअपने बाइक पर बैठा कर घर ले आया । जिसे वह अनाथ बता रहा था , वह तो शालू की ही प्रति मूर्ति थी।  माँ ने उस समय कहा --सोच विचार कर बताते हैं । माँ ने दूसरे ही दिन मंजु के साथ कोर्ट जाकर अपनी सारी संपत्ति से धर्मेश को बेदखल करके जयंत और मयंक के नाम करवा दिया । उसके बाद धर्मेंश से कहा --  मैंने सोचा था आज नहीं तो कल तेरे सिर से इश्क का भूत उतर जाएगा । अपनी जिममेदारी समझने लगेगा। 
 किंतु जैसे जैसे तेरी उमर बढ़ रही है  तेरा पागलपन बढ़ता जा रहा है।
          लक्ष्मी जैसी  सुंदर सुशील बहू को  किस बात की सजा दे रहा है तू ?? और कब तक ????  आज भी उसके मन का एक कोना  सूना पडा है,  पति के प्यार के लिए । अब तो तू  हद पार कर  रहा है। इस घर मे तेरे लिए अब कोई जगह नहीं है  ....
     अपना सामान उठा और निकल यहां से ..... उसके बाद तुझे जो करना है कर ।  कल के  अखबार में पढ़ लेना। तुझे इस घर से और अपनी सम्पति से बेदखल करती हूं -------
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दिनांक 1 ,4   ,2021
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 शीर्षक     -----  " कन्या का कुल गोत्र "
 सोमनाथ रोज शाम को आरती के समय  अम्बिका मंदिर जाया करते हैं।आज वह भजन कीर्तन के बाद पुजारी जी को अपने मन की बात बताया ---आप तो जानते हो , सर्पदंश से मेरी पत्नी की अकाल मृत्यु के समय मेरा बेटा रोहित ढाई साल का था। मैं उसे अपनी आंख से दूर नही होने देना चाहता था, न तो सौतेली माँ के हाथों सौंपना चाहता था। गांव में मेरी निःसन्तान विधवा बुआ अकेली रहती थी । बड़े मान मनौवल के बाद उसे साथ लाया। वही मेरे बेटे को पाल रही थी । गृहस्थी के काम ,नौकरी और बच्चा पालना मेरे बस की बात नहीं थी ।
                 मैं सेठ के घर काम करता था । एक दिन उन्हीं के काम से दूसरे गांव गया था। लौटते समय रात हो गई ।मैं  तालाब के पार पर पहुँचा तो बच्चे के रोने की आवाज से ठिठक गया । धीरे धीरे आवाज की तरफ बढ़ा ।टार्च से देखा  तो एक नन्हीं सी बच्ची बिलख रही थीं। मैंने उसे गोद मे उठा लिया  और घर ले आया । 
  उसे देख बुआ बहुत नाराज हुई बोली---  अभी तो एक  को ही जतनना भारी पड़ रहा है।दूसरी को भी घर ले आया।
             मैने  कहा  -- बुआ चिंता मत करो  हम दोनों मिल कर पाल लेंगे। रोहित तब  बोलने लगा था। बापू की गोद में  बच्ची को देखकर  सोचा कोई खिलौना है । खुश होकर पूछा -- बापू  ये  गुड़िया मेरे लिए है ??
 ---हाँ बेटा ये तेरे लिए है।
 ---    मैं  इसके साथ खेलूंगा ...
 --  खेलना पर अभी ये बहुत छोटी  है। थोड़ी बड़ी हो जाएगी तब खेलना। इससे राखी बंधवाना ।
 गुड़िया का नाम अम्बिका रखा गया ।
  बुआ के आने से बहुत सहूलियत हो गई।  दोनो बच्चे साथ साथ खेल कर बढ़ने लगे ।
 सोम नाथ  कुंए से पानी भर देता,घर की साफ सफाई कर देता,कपड़े धो देता । अब उसका मन सेठजी के घर काम पर जाने को नहीं होता । बच्चों की बाल क्रीड़ाएं देखने मे अधिक आनंद आता। 
 उसने बुआ से कहा -- मैं सोच रहा हूँ कि रोहित की माँ के गहने रखे हैं उन्हें बेच कर किराने की दूकान खोल लेता हूँ। बुआ ने कहा --नहीं  वो बहू की निशानी है ।उसे रोहित की बहू आएगी तो पहनेगी।
 मेरे ये सोने की हंसुली और  ये मोटे मोटे पैंजन है। पुराने   चलन के हैं बुढ़ापे में अब मैं कहां पहनुंगी। इसे बेच  कर दुकान लगा ले।
 उसके बाद बुआ के नाम से ही जमना बाई किराना स्टोर खुल गया।
दूकान अच्छी चलने लगी ।सोमनाथ  धीरे धीरे  पैसा जमा कर अपने बगल की जमीन  खरीद कर बड़ा सा पक्का मकान बनवा लिया । मकान के छज्जे पर लिखवाया ---   "  "जमना निवास "  धीरे धीरे उसकी गिनती गांव के अमीर लोगों में होने लगी ।
           अब रोहित गांव के स्कूल में पढ़ाई पूरी करके बड़ी पढ़ाई करने  शहर गया ।
          सोमनाथ ने अपनी पालिता पुत्री के बारे में  सब कुछ बताया  और कहा ---अब बुआ की तबियत ठीक नहीं रहती है । अम्बी अभी पन्द्रह की हुई है। घर का काम सीख रही है। बुआ जिद कर रही है कि जल्दी से अम्बी की शादी करा दो ।मेरी जिंदगी का क्या ठिकाना ?? 
             अब उन्हें कैसे बताऊँ कि अम्बी  के न तो जाति का पता है,न तो कुल गोत्र का । गांव में तो ये सब बहुत मायने रखता है। पुजारी जी आप तो कथा -पूजा कराने  आसपास के गांवों में जाते हो  मेरी अम्बी   के लायक कोई  लड़का पता करो ।
                  उनकी बातें  गांव  के बड़े सेठ सुन रहे थे। उनकी बेटी के साथ अम्बी पढ़ती है। गांव में आठवीं तक सरकारी स्कूल है । वे बेटी और अपनी सेठानी के मुंह से हैं। अम्बी की बहुत तारीफ सुन चुके हैं  । पुजारी जी के द्वारा  सन्देश  भेज कर सोमनाथ को बुलवाया। परिवार  के बारे में पूछा।  सोमनाथ ने बताया मेरी बेटी आगे पढ़ना चाहती है।
लड़की जात को अपनी नजरों से दूर नही भेजूंगा ।
 लेकिन उसकी शादी के बाद तो  दूर भेजना पड़ेगा।
        सोमनाथ जी अगर गांव में ही उसके लिए  योग्य वर मिल जाये तो .....
      इससे अच्छी बात  तो कोई हो नहीं सकती ।
अपने भाई के बेटे के लिए शादी का प्रस्ताव रखता हूँ । मेरा भाई इस दुनिया में नही  रहा। उसके बेटा  ऋषभ और एक बेटी  प्रिया को  हमने बचपन से पाला है। वह भी शहर में  पढ़ता है । उसके बाद हमारा कारोबार सम्हालेगा । 
    सोमनाथ ने कहा ---प...र..  मेरी बेटी के बारे में सब कुछ जान तो लो ...
 उन्होंने कहा --हमें पुजारी जी ने सब बता दिया है। यह कन्या हमारे लिए जनक पुत्री जानकी की तरह है। उसका पालन तुमने किया है तुमसे उसे संस्कार मिले हैं। गुणी और अच्छे चरित्र तथा सदव्यवहार वालों का कुल गोत्र  नहीं पूछा जाता।   शादी की बात तय हो गई। सोम नाथ ने कहा -
मेरे बेटे  के शहर से लौटते ही  सगाई  । शादी का शुभ मुहूर्त देख कर धूम धाम से शादी होगी । पर दो साल  बाद गौना होगा।  अम्बी   पत्राचार से दसवीं की परीक्षा की तैयारी कर रही है। उसकी परीक्षा हो जाये  फिर गौना। उसे घर गृहस्थी के सारे  काम  सिखा कर भेजूंगा।सेठ जी ने स्वीकृति जताई। बुआ ने सुना तो बहुत खुश हो गई । वह तो बन्नी गीत गुनगुनाने लगी ।
 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
 दि. 4  ,4  ,20 21
 
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 सेठ जी ने आगे कहा -- एक बात मेरे दिल में है वो भी कह  देता हूँ ।  आपको रोहित का ब्याह भी तो करना है।
 सोमनाथ -- लेकिन सेठ जी  मेरा बेटा  पढ़ाई के बाद गांव में हाई स्कूल खोलना चाहता है। उसके  लिए 
पढ़ी लिखी लड़की देखूंगा, जो स्कूल में पढ़ा सके। स्कूल के कामों में मदद कर सके। 
           प्रिया आठवी पास है ।  आप चाहें तो  अपने बेटे से बात करके  हमे बता दीजिए।  हम दोनों की बेटियाँ एक साथ उसी स्कूल में पढ़ेंगी। और आगे चलकर पढ़ाएंगी  भी।
     हम भी इस गांव में सुधार लाना चाहते हैं  उसकी शुरुआत अपने घर से ही करते हैं ।   
           बुआ की सारी मुराद  बिन मांगे  पूरी होने जारही हैं।
उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर।  छ ग
दिनांक 3   ,4   ,2021
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शीर्षक-"संगत ने बदली रंगत"
 कुछ  दिनों  पहले  सोनम अंबुजा मॉल में  शॉपिंग कर रही थी । वहां  उसकी स्कूल फ्रेंड  विनी मिली ।  उसने चहक कर कहा -- अरे सोनम तुम यहाँ  कैसे ??
 सोनम --  तुम  ....  विनी हो क्या ??
 सॉरी यार मैं पहले तो तुझे पहचान ही नहीं पाई । कैसा हुलिया बना रखा है तुमने?  बिल्कुल आँटी जी लगती हो।  विनी --- मैंने तो तुम्हें देखते ही पहचान लिया । बिल्कुल जस की तस ,पहले से ज्यादा स्मार्ट हो गई हो। बता यहां कैसे??
     सोनम --चलो सामने काफी शॉप में बैठ कर  बातें करते हैं ।फिर सब तुम्हें बताउंगी।
 विनी -- तुम चलो । मैं अपने श्रीमान को बता कर आती हूँ।
                               वह लौटकर आई और बोली ---
   सोनम मैं आ गई  कुछ खाने पीने का ऑर्डर नहीं किया क्या ....?
सोनम --  बोलो क्या मंगाना है?
विनी - पहले तो कोल्ड ड्रिंक,फिर  चाउमीन या पास्ता बोल क्या पसन्द है? पीजा या बर्गर ----
 सोनम --- पार्टी करनी है क्या ???
विनी --अरे खाने आये हैं तो अच्छे से खाएंगे न । 
सोनम - विनी  तू कितनी बदल गई है  हमारे फ्रेंड सर्कल में सबसे स्मार्ट ,जिंदादिल,फुर्तीली, हंसने हंसाने वाली अपनी उमर से कई साल बड़ी लगने लगी हो ।  
विनी ---  शादी के बाद पति,बच्चों की जिम्मेदारी अपने लिए कुछ सोचने का वक्त ही नहीं मिलता  था। अब दोनो बच्चे  बाहर पढ़ते हैं ,पति की इलेक्ट्रॉनिक की दूकान है। सब अपने काम में व्यस्त हैं।बैंक जाना हो  होस्पिटल या शॉपिंग मुझे पति का मुंह ताकना पड़ता है।अब अकेले बाहर जाने का मन ही नहीं होता ।
  सोनम  --  कोई बात नहीं अब इसी शहर में मेरे पति का ट्रांसफर हो गया  है ।हम मिलते रहेंगे,और वो पहले वाली विनी को  वापस ले आएंगे ।
    विनी -- सच !   ऐसा हो सकता है??
 सोनम -- अभी  भी वक्त है  सम्हाल ले खुद को। अगर तू चाहेगी तो पहले जैसी स्मार्ट बन सकती है ।बस मैं जैसा कहूँ तुझे पूरी ईमानदारी से करना   होगा ।
 विनी --  गॉड प्रॉमिस  मुझे अपने जैसी बना दे। तू जो कहेगी   मैं करूंगी  । बस वेरिकोस वाला ऑपरेशन  नहीं कराउंगी  ।उपासी नहीं रहूंगी। कितना सारा हर्बल ट्रीट मेन्ट करवा ली कोई फर्क नहीं पड़ा। 
 सोनम  --   तू भर पेट खाना खा सकती है।कल से मॉर्निंग वॉक और योगा शुरू  ।अपना पता बता दे  सुबह अपनी  स्कूटी से  तुझे लेने आऊंगी । 
               विनी के पति  भी वहां आ गये । सबने काफी पीया। सोनम से मिलकर बहुत खुश हुए और बोले  -- सोनम जी  अगर विनी की स्मार्टनेस और कांफिडेंस वापस आ जाये  तो चमत्कार हो जाएगा ।   मैं  जीवन भर आपका एहसानमन्द रहूंगा ।
 सोनम --  इसके लिए हम और आप तो हेल्पर हैं । जो  करना है  इसे ही करना होगा। आपको इसे हौसला  देते रहना है । मैं जैसा कहूंगी उसे मानना है। अच्छा तो कल मिलेंगे  ---
  : दूसरे दिन से सोनम उसे पास के गार्डन में योगा कराती 
     गार्डन के 4 -5 चक्कर लगवाती ।  फ़ास्ट फूड,जंक फूड,कोल्ड्रिंक, चटर-पटर सब बन्द।सादा खाना सलाद और फल के अलावा घर मेंऔर कुछ भी लाना बन्द करवा दिया । एक महीने में  5 kg वजन कम हो गया। 
       सोनम  ने XXL के  बाद  अब XL साइज के  बढ़िया सलवार सूट  विनी को गिफ्ट दिए । सोनम की लोक  प्रियता इतनी बढ़ी कि उस गार्डन में 8 -10 महिलाएं उनके साथ नियमित योगा करने योगा मेट लेकर आ जाती। तीन महीने में  सबका 12 से15 kg वजन कम हो गया। अधिकांश लोग सलवार सूट और लेगीस , कुछ जीन्स टॉप पहनने लगी। 
    इस बीच एक दिन सोनम ने विनी से कहा -मेरे घर के पास मेरी पड़ोसन प्राइवेट स्कूल चलाती है।  उसकी एक टीचर प्रसूति अवकाश पर चली गई। तो तीन महीने तू वहां नौकरी करले।  
विनी के पति ने उसे ढ़ाई तीन हजार की नौकरी करने को मना कर दिया  कहा -- तुम मेरे से हर महीने  छै हजार ले लेना पर नौकरी नहीं करना ।
सोनम ने उन्हें समझाया --- कि यहां बात  पैसे की नहीं - किसी की जरूरत में सहायता करने की है। जब वो सक्षम है वेतन देने में ,तो  स्वैच्छिक  या अवैतनिक  काम करने की जरूरत नहीं है। जो पैसा मिलेगा उसे किसी गरीब को दान कर देना अपनी मेहनत की कमाई को दान करने  की खुशी  और सन्तुष्टि को महसूस करके देखना।तब उनके पति ने  नौकरी की अनुमति दे दी।
 अब प्रश्न उठा कि  वह नौकरी पर  जाएगी कैसे ?  
सोनम --तेरी बेटी की स्कूटी  गैरेज में ऐसे ही  बेकार पड़ी है ,कब काम आऐगी ??
  अब विनी बोली --  बाप रे बाप  मैं नहीं सीख सकती स्कूटी . -----सीखना तो तुझे पड़ेगा ...गॉड प्रॉमिस को भूल गई ??
 सोनम ---अभी दिसम्बर की छुट्टी में तेरे बच्चे आएंगे  न वो प्रेक्टिस करा देंगे और  जीजाजी  दो तीन दिन में सीखा देंगे। उन्हें भी तो मम्मी के स्मार्टनेस की सरप्राइज देनी है कि नहीं।
विनी ने स्कूटी सीखी धीरे धीरे अकेली बाहर जाने लगी।  स्कूल स्टाफ के साथ रहन सहन का तौर तरीका  बदला,   5 -6 घण्टे बाहर रहती । पहले घर में  T V के सामने घण्टों बैठे बैठे अनाप शनाप खाती रहती थी ।अब उसको वक्त ही नहीं मिलता। अब तो जल्दी से तैयार होना,  सलीके से कपड़े पहनना,पढ़ाने की तैयारी करना होता है।इससे नॉलेज बढ़ने लगा, पैसा कितनी मेहनत से कमाया जाता है । इसका अनुभव भी  हुआ ।  
ये सब उसकी फ्रेंड के पर्सनालिटी डेवलपमेंट का हिस्सा था ।  जिसने उसके अंदर बहुत परिवर्तन लाया ।
  यही है संगत की रंगत और  सकारात्मक सोच का परिणाम है। यह सोनम के नारी जागृति अभियान का  प्रभावी तरीका   नारी सशक्तीकरण का  हिस्सा भी है। इस तरह अपने समय का सदुपयोग करती  है वह।
डॉ. चन्द्रावती  नागेश्वर
रायपुर छ ग
 दिनांक 8 ,4 ,2021
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 लघु कथा समारोह 64

: " आ लौट चलें हम"  

             निर्मला जी  के रिटायरमेंट को 6 महीने  बचे हैं । दीवाली में जब उनका बेटा  अमन और बहू  स्वाति भारत आये थे ,तो पता चला  उनकी  चार -पांच  महीनों की छुट्टियाँ बची हैं जो लेप्स होने वाली हैं। उन्होंने माँ का पासपोर्ट बनवा कर वीजा भी लगवा   दिया ।अपने साथ लेकर  न्युयॉर्क चले गए । माँ को पहली बार साथ ले जाना इसलिए भी जरूरी था कि आगे उन्हें अकेले ही आना -जाना पड़ेगा तो आइडिया हो जाये। चेक इन करवाना बोर्डिंग पास लेना, इमिग्रेशन फार्म भरना  चेकआउट करना सब वो सीख जाएं। 
                  सब कुछ अनायास और  बहुत सुखद रहा। पहली बार वो हवाई जहाज में  इतनी लंबी यात्रा पर गईं। उन्हें सब कुछ बड़ा अनोखा और अदभुत लग रहा था ।  दिल्ली से 22 घण्टे की थकान भरी हवाई यात्रा। के बाद  फिर लम्बी लाइन ,बैग के खुद की चेकिंग का बड़े उबाऊ दौर से  गुजरते हुए  समान लेकर बाहर निकले और टैक्सी लेकर घर पहुंचे । निर्मला जी तो  जेट लेग के कारण  5 -6 दिनों तक सोती ही रहीं  सिर्फ  ब्रश करने नहाने, खाना खाने  को  बहू उठाती तो बड़ी मुश्किल से उठती फिर सो जाती। 
    हर  वीकेंड में प्रायः  शॉपिंग करने या घूमने जाते।  बेटा बहू जब दोनों ऑफिस चले जाते तब  समय काटे  नहीं कटता । न कोई  बात करने वाला  न  पूछने वाला ।  घर में सारी सुविधा ,एक से एक खाने पीने की चीजें  टी वी  मोबाइल  सब था ,पर चलाना नहीं आता था,और वहाँ की भाषा समझ में नहीं आती ।  घर में अकेली भूतनी की  तरह ये कमरे से वो कमरे में डोलती रहती ।  
          एक बार उनका सुगर बढ़ गया  चक्कर आने लगे  ,घबराहट बढ़ने लगी ।बेटे को फोन किया , बहू को फोन किया लेकिन दोनों में से कोई न आ पाया । बहू शाम को थोड़ा जल्दी आई पर  हॉस्पिटल ले जाने मेंअसमर्थता बताई। 
    स्वाति ने बताया कि अमेरिका में जिनका मेडिकल बीमा नहीं उनका कहीं कोई इलाज नहीं होता।  u s  के डॉक्टरों के अलावा दूसरे डॉक्टर की पर्ची दिखा कर मेडिकल स्टोर से कोई दवा नहीँ ले सकते । निर्मला जी ने जिद पकड़ ली ,कि मुझे इंडिया वापस  जाना है यहां नहीं  रहना। यहां तो बिना इलाज के मर जाऊंगी।
       हम सुनते  हैं कि अमेरिका में गम्भीर से गम्भीर बीमारी का इलाज हो जाता है। पर  इलाज का खर्च  लाखों डॉलर में आता है। उसके लिए पहले से बीमा करना होता है। दूसरे देश वालों के लिए  वहां  वालों की अपेक्षा 4 -5 गुना पैसा लगता है, जो एडवांस में जमा करना जरूरी होता है।  इतना पैसा देना सामान्य नौकरी पेशा व्यक्ति के वश में नहीं होता। सामान्य सी सर्दी खांसी ,बुखार,या टिटनेस की  दवा भी  बिना डॉक्टर को दिखाए नहीं मिलती।  न कोई नर्स या कम्पाउंडर  घर में या अस्पताल में इंजेक्शन लगाता ।

                  वक्त -जरूरत पड़ने पर कोई अड़ोसी पड़ोसी  की सहायता नहीं मिलती ।  बहरहाल  अब कुछ शहरों में जहाँ जादा संख्या मेंभारतीय है , वहाँ भारतीयों के संगठन बन गए है,  जहां  वीकेंड में भारतीय डॉक्टर निः शुल्क आपात चिकित्सा सेवा देते हैं, किंतु वहां के कानून के हद में रह कर ही ।   
          चार महिने गुजर  ही गए। वहां की कानून व्यवस्था ,साफ सफाई तो काबिले तारीफ है । बच्चों को बचपन से ही नागरिक कर्तव्य घुट्टी में घोल कर पिलाये जाते हैं।
          इन चार महीनों में ही उस स्वर्ग जैसे सुंदर देश मे रहकर निर्मला जी  अपने देश के आबोहवा के लिए और अपनत्व के लिए तड़प उठी। निर्मला जी अपने अड़ोसी ,पड़ोसी  स्टाफ वालों के लिए छोटे  छोटे गिफ्ट खरीदना चाहती है  सबने कहा था , उनके लिए वहाँ से कोई निशानी लाना । पेन,की रिंग,स्प्रे, छोटे छोटे खिलौने, परफ्यूम लिपस्टिक  आदि का दाम कम से कम दस डॉलर से शुरू   हो कर बीस पच्चीस डॉलर में था । उसके पास डॉलर थे भी नहीं और  बहू से बोलने में बड़ा संकोच हुआ ।  उसने मन ही मन हिसाब लगाया  तीन चार सौ डॉलर लगते । उसने कुछ नहीं बोला।  मन में सोचा कि वापसी में जाते समय शायद बेटा  हजार पांचसौ डॉलर तो हाथ मे पकड़ा ही देगा ।
                          हाय रे किस्मत !  बेटे  बहू में से किसी ने  सौ डॉलर भी हाथ मे नहीं दिया । जबकि जब भी बेटा या बहू  उसके घर आते दस  बीस हजार  ऐसे ही  शॉपिग करने दे देती ।  
  वापसी में टिकिट लेकर  बेटा टैक्सी से एयरपोर्ट तक पहुंचा  दिया ।   वेंटिंग हाल से आगे जाने पर प्रतिबन्ध था।   चेक इन से लेकर प्लेन में बैठने तक का काम उन्हें खुद ही करना है ।  कहाँ क्या करना है ? क्या  बोलना है ,अमन ने  समझा कर तोते की तरह  बार बाररटवा दिया था । पर जैसे ही बेटा  वापस जाने के लिए पीछे मुड़ा।
         रुलाई  के साथ ही घबराहट भी  इतनी हो रही थी  ,कि सब भूल गई।दूर से एक भारतीय महिला सारा नजारा देख रही थी । पास आकर   समझाया और  प्लेन में बैठने तक साथ रही । मन ही मन जैसे वह कह रही हो --आ हम लौट चलें   वतन को   ..........
    डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
    रायपुर छ ग
दिनांक 9  ,4 , 2021 
 
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लोक लाज की रक्षा
 

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