"लघु कथा लोक समारोह 72 /प्रथम
दिनांक 8, 6 ,2021
लघुकथा प्रेमी स्नेही मित्रों को सादर ......
शीर्षक -- * मातृ ऋण ऐसे चुकाया*
लोपा मुद्रा अक्सर सोचती रहती है ,कि मेरा पूरा वजूद पिता,पति बच्चों में ही गुम हो गया।अच्छी बेटी , अच्छी बहन,अच्छी बहू,अच्छीपत्नी, अच्छी माँ बनने में ही मेरा वजूद लुप्त हो गया ।
मेरे जन्म पर दादा जी बहुत खुश थे कि उनकी तीसरी पीढ़ी में पहली बेटी के रूप में उनके परिवार में मेरा आगमन हुआ।मेरे नाम करण उत्सव में पूरे गांव में लड्डू बांटे गए।
कहते हैं कि नाम का बहुत असर व्यक्ति का व्यक्तित्व पर पड़ता है। पहले जमाने में अधिकतर लोग अपने बच्चों के नाम या तो किसी राजा रानी के नाम पर रखते हैं या देवी
देवता के नाम पर रखते ताकि उनका व्यक्तित्व महान बने ,पर मैं कुछ भी नहीं पाई, मात्र चालीस साल की उम्र में पति की ब्लड कैंसर से मृत्यु हो गई।तब मेरा बेटा रोहन सात साल का था। मुझे पति के बैंक में अनुकम्पा नियुक्ति मिल रही थी , पर अपने आप को परखने के एक अवसर मुझे मिला है ।
इसे मैं गंवाना नहीं चाहती। कालेज में सहायक प्राध्यापक के पद की वैकेंसी निकली।मैंने दर्शनशास्त्र में एम .ए. किया था । मैंने साक्षात्कार की जम कर तैयारी किया । पूरे आत्मविश्वास से इंटरव्यू दिया और मुझे नौकरी मिल गई। यहां से जीवन का दूसरा अध्याय प्रारम्भ हुआ । बेटे को अपनी निगरानी में पढ़ाना शुरू किया । उसकी इच्छा वायुसेना के क्षेत्र में जाने की थी दिल्ली के सैनिक स्कूल का एंट्रेंस एग्जाम दिलवाया ।वह होस्टल चला गया वहां से बारहवीं करने के बाद वह अपने आप अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता गया ।
बेटे के सैनिक स्कूल में जाने के बाद उतरा खण्ड में बादल फटने की त्रासदी में अनाथ हुई एक परिवार की 5 और सात साल की दो बेटियों को गोद ले लिया । अब लोपामुद्रा अवस्थी के नाम से समाज में मेरी अलग पहचान बनी । रोहन अवस्थी फ़्लाइट लेफ्टिनेंट बनकर भारत चीन सीमा पर ड्यूटी पर जाने मुझसे विदा लेने आया तो मुझे समझ मे नहीं आ रहा था, कि उसके आने की खुशी मनाऊँ या सीमा पर भेजने का गम ।
मैंने बस इतना किया कि अपने देहदान के पेपर पर पहला गवाह बनाया। यह कहकर बेटे से सिग्नेचर लिया कि भारत माता की सेवा मातृ सेवा से बढ़कर है।तुझे तेरी माँ मातृ ऋण से मुक्त करती है। निश्चिंत होकर जा .....
मेरी बड़ी बेटी कनक लोपा अवस्थी डॉक्टर बनी और पलक लोपा अवस्थी भाभा परमाणु संस्थान में साइंटिस्ट बनने की ओर कदम बढ़ा चुकी है ...
बेटी के बिना मेरा परिवार अधूरा था ।मुझे मातृ ऋण भी तो चुकाना था । मेरे दादा जी कहा करते थे -- सिर्फ़ माता की सेवा करने से ही जन्मदायिनी का ऋण
नहीं चुकाया जा सकता। परिवार और समाज को कन्या
के रूप में भावी माँ देकर चुकाया जा सकता है ....
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
9, 6, 2021
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शीर्षक-- "माँ का पूर्वाग्रह"
शशी के मन में ये बात पहले से बैठ गई थी ,कि शादी के बाद लड़के जोरू के गुलाम बन जाते हैं।और लड़की उनके पसन्द की हो तो माँ की फ़जीहत सुनिश्चित है। बेटे प्रणव अपने मित्र की बहन मीतू (सुमिता)से शादी करना चाहता है।
बेटे के जिद के आगे माँ को झुकना पड़ा ,और मीतू उसके घर की बहू बन कर आ गई ।मीतू बहुत ही सुशील, सुंदर समझदार लड़की है ।वह अपनी सास शशी का बहुत सम्मान करती है।
लेकिन शशी हर काम में उसकी कमी निकालती ही रहती है। कभी बहू से खुश नहीं रहती ।घुटने दर्द के बहाने मीतू से मालिश करवाती देर रात तक अपने कमरे रोके रखती। बहू के आते ही घरेलू नौकरानी की छुट्टी कर दी, बहू को सारे काम फटा फट निपटा कर जब गाने सुनना या टीवी देखना चाहती तो रिमोट अपने हाथ में रखती। प्रणव ने एक छोटा टीवी अपने कमरे के लिए खरीद दिया ।प्रणव को शादी में नई मोटर साइकिल मिली थी। उसने अपनी पुरानी बाइक के बदले स्वीटी के लिए स्कूटी खरीद दी ।स्वीटी सासू को रोज मंदिर छोड़ने , कभी शॉपिंग कराने कभी हॉस्पिटल ले जाती सासु के मन पसन्द खाना बनाती बड़े प्यार से खिलाती ।
स्वीटी सासू का दिल जीतने का हर प्रयास करती ।फिर भी वह कभी स्वीटी की तारीफ नहीं करती ।
अब स्वीटी की तबीयत खराब रहने लगी है । मॉर्निंग सिकनेस बढ़ गई । उल्टियां होने लगी । पहले की
तरह सासू का ध्यान नहीं रख पाती। वह बहू को ताने देने से नहीं चूकती।
कहती --ये आजकल की लड़कियों के चोचले हैं -- हमने भी तो बच्चे पैदा किये हैं । प्रणव उसकी तबियत को देखते हुये कुछ दिन के लिए स्वीटी को मायके छोड़ आया ।
बहू के न रहने पर उसे अपने हाथ से सारे काम करने पड़े ।उनकी भजन मण्डली,मंदिर जाना सब्जी लेने जाना बन ठन रहना सब छूट गया ।
तब बहू की कीमत समझ में आई ।उनकी बेटी रीतू को टाइफाइड हो गया।रीतू भी उसी शहर में रहती है। वह माँ के पास चली आई । शहर में कोरोना की नई बीमारी फैल रही है। कोई सही बात नहीं बताता।शुरू में उसे वायरल फीवर निमोनियाँ, ही बताते हैं।
शशी के लिए दोहरा संकट बढ़ गया ।क्योंकि बहू के आने के बाद साल भर से काम की आदत छूट गई थी, कोई सर्वेंट नहीं मिल रहे थे, बीमार बेटी के लिए समय पर दवा दलिया , खिचड़ी अलग से बनाना साफ सफाई का ध्यान रखना भारी पड़ने लगा।
शशी ने बेटे से कहा --स्वीटी को जाकर ले आओ मुझसे बुढ़ापे में काम नहीं होता ।
प्रणव ने कहा -माँ उसकी भी तो तबियत ठीक नहीं है ।उसे आराम की जरूरत हैं। वह मायके में ही ठीक है ।
शशी ने कहा-- वाह रे जोरू के गुलाम ।यहां बीमार बहन बूढ़ी माँ की तकलीफ तुझे दिखाई नहीं देती । क्या फायदा ऐसी बहू के होने से जो वक्त में हमारे काम न आये?
प्रणव ---माँ स्वीटी इस घर की बहू है नौकरानी नहीं ।इस समय उसे आपके प्यार,देखभाल और आराम की जादा जरूरत थी।दीदी तो ससुराल जाने के छः महीने बाद ही आपके भड़काने पर अपने सास ससुर से अलग हो गई ।
स्वीटी आपका कितना ध्यान रखती है । कितना मान करती है ? आपको फिर भी हमेशा उसमें कमी ही नजर आती रही।बचपन में ही उसकी माँ का निधन हो गया ।वह आप
में अपनी माँ की छवि ढूंढती रही ।आप उसकी उपेक्षा करती रही । चूंकि वह इस घर में मेरी पसन्द से आई है , इसीलिए उसमे आपको उसकी कोई अच्छाई नहीं दिखी ----
ये कैसा पूर्वाग्रह है आपका -- कि मेरे होने वाले बच्चे की माँ के रूप में भी उस अपने दिल में जगह नहीँ दिया.....
अब तो मैं भी ससुराल में ही जाकर रहने की सोच रहा हूँ।
दीदी तो यहां आ ही गई है जीजाजी को भी बुलवा लेता हूँ।
नहीं--नहीं बेटा मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई । जो मैं स्वीटी जैसी बहू की कदर नहीं पाई अब आगे से ऐसा नहीं होगा ...... तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
11, 6 ,2021
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लघुकथा प्रेमी स्नेही जनों को सादर प्रस्तुत है ----
* सौतेला बेटा *
ग्यारह साल का प्रतीक एक दिन शाम को अपने घर के सामने वाले मैदान में अपने दोस्तों के साथ साइकिल चला रहा था । सामने से दो सांड लड़ते हुए आये । वह घबराकर सायकल से नीचे उतरा ही था तभी गुस्से में भरा सांड ने सींगों से उठा कर उसे दूर फेंक दिया।वहअचेत हो गया। पास पड़ोस के लोगों ने उसे उठाया । उसकी माँ को बताया । माँ घबरा कर दौड़ते हुए आई । प्रतीक को हॉस्पिटल ले जाया गया।
प्रतीक के कमर की हड्डी में चोट आई थी । वह उठ बैठ नहीं सकता था,चल फिर नहीं सकता था ।
तब माँ ने उसकी जी जान से सेवा की थी। वह महीनों तक बिस्तर पर ही उसका सारा काम निपटता । डॉक्टरों ने कहा था --बालक ठीक तो हो जाएगा, लेकिन लम्बा समय लगेगा।
प्रतीक बिस्तर पर ही पड़ा रहता । उसे देखने उसकी सुमन बुआ आई,गांव से दादी भीआई प्रायः आपस में दोनो गुपचुप में बातें करती.....
प्रतीक कमरे में लेटा रहता उसके कानों उनकी बातें सुनाई देती रहती .......
दादी -- अरे लड़के पर ठीक से ध्यान दिया होता तो, ये दुर्घटना ही नहीं हुई होती । बेचारा बिना माँ का बेटा ...
सुमन -नहीं माँ ऐसा क्यों कहती हो ?
भाभी प्रतीक का बहुत ध्यान रखती है । बहुत प्यार से रखती है।
वहाँ तो और बच्चे भी तो थे न? सब तो हमेशा हर शाम ,छुट्टी के दिन वहीं खेलते हैं ।दुर्घटना तो अचानक घट जाती है । उस दिन तो दादी चुप रह गई ।
लेकिन उनका मन इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि कोई सौतेली माँ पराये बच्चे को दिल से अपना सकती है।
बड़ी बुआ और छोटी दादी आई तो वही बातें खुसुर पुसुर करके दोहराई जाती - कि वो मेरी सगी माँ नहीं है । मेहमानों के सामने सगी माँ बनने का नाटक करती हैं।
प्रतीक को मालूम है कि मम्मी उससे बहुत प्यार करती हैं । इन लोगों को मम्मी के बारे में गलत सलत नहीं बोलना चाहिए।
धीरे धीरे छै माह बीत गए ।
उसकी मम्मी मनपसन्द खाना खिलाती ,कहानी सुनाती लूडो खेलती प्रतीक का वजन बढ़ने लगा । डॉक्टर ने कहा - वजन बढ़ने से इसे ठीक होने में और ज्यादा वक्त लगेगा।
डाइट चार्ट दिया गया । फिजियोथेरेपिस्ट आते,एक्सरसाइज करवाते । दादी चुपके से प्रतीक को मनपसन्द चीजें खिला देती । मम्मी ने एक दिन देख लिया । फिर तो घर में हंगामा मच गया।
मम्मी जी दादी के ऊपर बहुत नाराज होकर बोली --
माँ जी प्रतीक को डॉक्टर के बताए चार्ट के अनुसार ही दवाई और खाना ,नाश्ता देना है ।तभी जल्दी ठीक हो
सकेगा । आप जो बाजार के समोसे,पकौड़े जलेबियां खिलाती हैं। वो ठीक नहीं है ।आप ऐसा मत मत करिए।
दादी --बहू तेरा सगा बेटा होता तो क्या खाने पीने को ऐसे तरसाती क्या ?
उसी समय पापा आ गए दादी से बोले-- माँ जन्म देने से ही कोई सगा हो जाता है क्या ?ढाई साल का था प्रतीक जब शोभा इस घर में शादी होकर आई।उस समय मात्र बीस साल की थी वह। उसके मन में भी शादी ,नई गृहस्थी को लेकर कई अरमान थे । प्रतीक का मासूम चेहरा देखकर उसने उसे सीने से लगा लिया । अपने बच्चे की तरह ही पाला। चार महीने बाद ही उसकी कोख में बच्चा आया । अपने बच्चे के आने से मन में कहीं दूजा भाव न उपजे ।यही सोचकर उसने उसे इस दुनियां में ही नहीं आने दिया। और टी टी ऑपरेशन भी करवा लिया।उसको तुम कुछ भी बोलती रहती हो।
प्रतीक ने भी कहा -पापा दादी मम्मी को सौतेली माँ कहती है।सौतेली माँ तो गन्दी होती है न पापा ? मेरी मम्मी तो बहुत अच्छी है। आई लव माई मॉम ......
साल भर बाद प्रतीक चलने लगा। आगे चलकर प्रतीक
M sc करके कालेज में प्रोफेसर बना। अपनी माँ और पिता के बुढ़ापे का सहारा बना ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
------++-------+-----------+.-----------------+---------+----// शीर्षक -- "उफ्फ सही नहीं जाती ये चुप्पी "
कांति - आशा कैसी हो तुम ? जीजू की तबियत कैसी है ?
आशा - क्या बताऊँ बहन मैं तो थक गयी इनका इलाज कराते कराते पूरे पांच साल हो गये बिस्तर पर। लाखों रुपये खर्च हो गए मेरी भी तो उमर हो गई है अब...
कांति - हाँ बहन पिछले जन्म का कर्ज है तुम पर ,जो
इस तरह वसूल कर रहे हैं । जबसे शादी हुई है बीमार ही बीमार रहते हैं, पहले दमा ,फिर सुगर ,बी पी
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मंगली लड़की ज्योतिषी की कुंडली
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भिखारी को दान
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: शीर्षक --- " लकीर के फकीर "
शहर की रहने वाली ग्रेजुएट मीनू की शादी सुदूरवर्ती गांव मनकापुर के अत्यंत साधारण परिवार में हुआ है। उसका पति परेश नरसिंग पुर में रेलवे में क्लर्क है विदाई के बाद पहली बार मीनू ससुराल आई। उसकी बड़ी बुआ और छोटी नानी को उसके साथ इसलिए भेजा गया क्योंकि वे मनकापुर के पास आमगांव और परसा टोला की रहने वाली हैं। वे दोनों गांव के रीति रिवाज की अच्छी जानकार और मीनू के ससुराल एवम मायके पक्ष के रिश्तेदारों को भी जानती हैं।
दूल्हा दुल्हन की आरती उतारने के बाद दोनों को देवकक्ष में माथा टेकने ले गये फिर पंडाल में सारे रिश्तेदारों से दुल्हन का परिचय कराने की रस्म के लिए एक तरफ बच्चे किशोर दूसरी तरफ बड़े बुजुर्ग लोग खड़े थे । बुआ ने क्रमशःबताया मीनू ये तुम्हारे सास ससुर, बड़ी सास ,बड़े ससुर ,काका ससुर काकी सास ,जेठ जेठानी हैं ।तुम्हें
इनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना है।
मीनू ने सभी के पांव छू कर सबके आशीर्वाद लिए ।उसके बाद बच्चों में ननद ,देवर भांजा,भांजी,जेठ बेटा , जेठ बेटी के पांव छूने को कहा गया । मीनू ने उन सबके पैर छूने से साफ इनकार कर दिया ।
नई दुल्हन के ये तेवर देखकर क्षण भर के लिए सब सकते में आ गये । नारी वर्ग में सास,डेढ़ सास, फुआसास
दादी सास सभी ने तुरंत तीखी प्रतिक्रिया दी। नववधू और उसके मायके पक्ष वालों पर तंज कसे जाने लगे कि - दुल्हन को मर्यादा नहीं सिखाया गया, किसी ने कहा -आज तक ऐसा नहीं हुआ कि - कोई दुल्हन ससुराल में कदम रखते ही वहां के रीति रिवाज मानने से ऐसे इनकार किया हो-- हमारे परिवार में पहली ग्रेजुएट बहू आई है। अब देख लो लड़कियों को जादा पढ़ाने का नतीजा।
मीनू के जेठ ने कहा -- ये तो घर का माहौल ही बिगाड़ देगी। ऐसा करो कि पगफेरे में चार दिन बाद इसके मायके वाले आने वाले हैं तब उनकी अच्छी खबर ली जाएगी । इसे मायके से तभी वापस लाया जाएगा, जब यहां के सारे रीति रिवाज सीख ले और उसे मानने के लिए
कसम खाए।
मीनू ने सबके सामने हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से कहा - मैं आप सबके सामने अपने कुल देवता की शपथ लेकर कहती हूँ कि मैं यहां के रीति रिवाजों और मान मर्यादा का पालन अवश्य करूँगी । आब तो यही मेरा घर है। किंतु मेरे
मन में जो दुविधा है , उसे पहले दूर कर दीजिए ।
उसने कहा ---- बड़ों के चरण स्पर्श करकेआशीर्वाद
लेने से आत्मविश्वास बढ़ता है न ? बिगड़ेकाम भी बनते हैं, सकारात्मक ऊर्जा आती है ।
लेकिन जो उम्र में छोटे हैं, उन्हें ज्ञान और अनुभव तो दूर की बात है ठीक से कपड़ा पहनना नहीं आता यहां तक की नाक साफ करना भी नहीं आता और रिश्ते में बेटा बेटी की तरह हैं । उनसे किस आशीर्वाद की उम्मीद रखूँ मैं ???
मैं इन बच्चों में से किसी की मैं चाची किसी की मामी, किसी की ताई,,किसी की भाभी हूँ ।होना तो ये चाहिए कि ये अपने से बड़ों का पांव छू कर आशीर्वाद लें । रामायण महाभारत जैसे ज्ञान ग्रंथो में भी तो यही लिखा है। अब भी आप लोग कहोगे तो बेमन से आपकी बात मान तो लूँगी ---
आप लोग नीति विरुद्ध काम करने मुझे मजबूर किया इसके लिए ज्ञानी मुनि लोग आप लोगों को माफ नहीं करेंगे। जेठजी,दादाससुर जी ने कहा -- बहू ठीक कहती है ।आज तक हमने इस बात कीओर ध्यान ही नहीं दिया।बस लकीर के फकीर बनकर लकीर ही पीटते रहे ।आओ सभी बच्चा पार्टी अपनी चाची ,मामी, ताई के चरण छूकर आशीर्वाद लो.....
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दिनांक 25 ,6 2021
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