शीर्षक -* भिखारी मुक्ति का लक्ष्य*
श्रुति छत्तीसगढ़ के प्रसून नगर के लोकप्रिय विधायक प्रसेनजीत की इकलौती सन्तान है ।
विधायक जी सुशिक्षित उच्च कोटि के चिंतक ,मृदुभाषी,सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले व्यक्ति हैं । अपना सारा समय लोकहित और नगर की उन्नति में लगाते हैं
उनकी बेटी श्रुति छै साल की थी, तभी उसकी माँ का केंसर निधन हो गया । विधायक जी ने दूसरी शादी नहीं की। बेटी को अपने सांचे में ढालना चाहते हैं।
अत्यधिक व्यस्त होने के बावजूद भी प्रतिदिन बेटी के साथ दो घण्टे क्वालिटी टाईम बिताने का प्रण लिया है । घर में नौकर चाकर की कमी नहीं है। विधायक जी की माताजी अभी जीवित हैं । वे श्रुति के आहार, विहार के प्रति बहुत सजग रहती हैं।रोज रात को उसे पुराणों की छोटी छोटी प्रेरक नीति कथाएं जरूर सुनाती हैं ।
इस तरह अनुभव समृद्ध दादी औऱ कुशल राजनीतिज्ञ पिता की छत्र छाया के सांचे में उसका व्यक्तित्व निखरने लगा । श्रुति के पिता जब दिल्ली या भोपाल के दौरे पर जाते तब भी अपने व्यस्ततम शेडयूल में से वक्त निकाल कर घण्टे भर तक बेटी से बात करने का समय निकाल ही लेते । जब शहर में होते तो अक्सर पिता पुत्री कार में बैठ कर लांग ड्राइव पर जाते । स्कूल की पढ़ाई से लेकर विद्यालय के व्यवस्था की कमियों पर,मोहल्ले पड़ोस, सखियां, मित्रों ,उनकी पसन्द नापसन्द पर भी चर्चा होती । इसी में से बच्चों के विकास के लिए क्या बेहतर किया जा सकता है ?उस पर चिंतन मनन किया करते ।
विधायक जी ने बेटी को किसी बड़े पब्लिक स्कूल या प्राइवेट स्कूल में पढ़ने नहीं भेजा । सरकारी स्कूल में में ही पढ़ाया ।उनका विचार है कि अगर उनकी बेटी हीरा है तो कहीं भी चमकेगी । जन सामान्य के साथ में रहकर जमीनी समस्यों,परेशानियों को समझकर उनका समाधान निकलना सीखेगी ।सरकारी स्कूल और सरकारी कालेज में श्रुति की पढ़ाई होने से वहां की व्यवस्थाएं बदल गई ।सब विषय के शिक्षक आ गये ।पढ़ाई की क्वालिटी सुधर गई बोर्ड के रिजल्ट सुधर गए । बड़े बड़े अधिकारियों ,धनपतियों के बच्चे अब सरकारी स्कूलों में पढ़ने लगे हैं ।
श्रुति अब बी एस सी के अंतिम वर्ष में है वह सोशल एक्टिविटी में सक्रिय है।पर्व त्योहारों में जगह जगह
भिखारियों की बढ़ती संख्या को देख उसके मन में अपने शहर को भिखारीमुक्त बनाने का विचार आया।
वहां माँ सर्वेश्वरी माता का भव्य मन्दिर है ,संजीवनी बूटी लिए आकाश में उड़ते हुए हनुमान जी की मूर्ति है, रणचंडी माता की मूर्ति है,लाल, सफेद,और नीले कमलों का भव्य सरोवर है ।अरूणा नदी के किनारे अनेक शिवालय हैं । इन मंदिरों के द्वार पर रेलवेस्टेशन के बाहर,बसस्टैण्ड के किनारे आए दिन भिखारियों का जमघट लगा रहता है, जो इस सुन्दर शहर के लिए अभिशाप बने हुए हैं ।
श्रुति कुछ युवा साथियों की टीम के साथ प्लान बना कर इस काम में जुट गई । उसने लोकल टी वी चैनल,समाचार पत्रों ,बड़े बड़े बैनरों होर्डिंग्स के माध्यम से नगर वासियों से अपील किया कि -भूखों को भोजन जरूर दीजिए ,प्यासे को पानी, वस्त्रहीन को कपड़े, लेकिन भिखरियों को नगद पैसे भूल कर भी ना देवें ।
दान देना पुण्य का काम है , लेकिन नगदी रुपये ,पैसे देने से ये भिखारी नशेड़ी,गंजेड़ी बन रहे हैँ, ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि अनेक बाबाओं, साधुवेशियों के लाखों रुपये बैंक में जमा हैं । बड़े बड़े व्यवसायियों को ब्याज में पैसा उधार देते हैं,
कुछ समाज सेवी संस्थाओं ने भी जगह जगह शिविरों के माध्यम से गरीबों ,बीमारों भिखारियों के लिये व्यापक रूप से भोजन व्यवस्था करवाया ,स्वच्छता अभियान चलाया जो काफी हद तक सफल भी हुआहै।
अब दान दाताओं को दान का स्वरूप बदलना होगा । अगर हमारे दान केपैसे से कोई शराब पीता है,ब्याजू धंधा करता है, भिक्षा को व्यवसाय बनाता है,छोटे बच्चों का अपहरण कर उन्हें लँगड़ा लूला बना के भीख मंगवाता है। तो दानदाता घोर नरक में जाएंगे । समाज में अव्यवस्था , हिंसा ,आलस्य , बढ़ेगा ।
समाज के जागरूक बनाना हमारा लक्ष्य है
श्रुति की टीम ने एक नेक काम बीड़ा उठाया हैं हमारी शुभकामनाएं उनके साथ हैं........
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर। छ ग
दिनांक 28 ,6 2021
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शीर्षक -- "जातीय रिवाज --जात मिलाई "
जतिन और दीपा दोनोँ बचपन के मित्र और सहपाठी हैं ।दोनो एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं । उनका घर भी एक ही मोहल्ले में है। दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते हैं। पर दोनोँ की जाति अलग अलग है । इसीलिए दोनो के परिवार इस शादी के खिलाफ हैं। दोनो ने अपने घरवालों को मनाने का बहुत प्रयास किया । पर असफल रहे । अंततः दोनो ने आर्यसमाज मन्दिर में जाकर अपने मित्रों की उपस्थिति में विधि विधान से शादी कर ली । एक छोटी सी पार्टी भी हुई ।
दोनो बालिग हैं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी हैं । अपने माता पिता के घर से दूर आफिस के पास ही किराये से दो कमरे का मकान लिया,घरगृहस्थी का सामान खरीदा और सपनों का आशियाना सजा लिया। दोनों की आमदनी ज्यादा तो नहीं है ,पर एक दूसरे के साथ बहुत खुश हैं ।
उनके माता पिता बहुत नाराज हो गए । अपने घर आने जाने पर कड़ी पाबन्दी लगा दी ।
उनसे रिश्ता तोड़ लिया। अब दीपा कुछ दिनों से बीमार है ।बहुत चककर आते हैं ।उल्टियों के कारण बहुत ही कमजोर हो गई है ।डॉ ने बताया वह माँ बनने वाली है । खर्चे बढ़ने लगे ।उनकी जाति वालों ने उन्हें अपनी जाति से बहिष्कृत कर दिया ।
समाज के मुखिया जाति वालों और रिश्तेदारों ने शादी,छ्ठी, बारसा,अंत्येष्टि,तेरही,बरसी सम्बधी कोई भी समाजिक कार्यक्रम में जतिन और दीपा के साथ उनके माता पिता भाई बहन सबको न बुलाने का फरमान जारी कर दिया -अब दीपा -जतिन को सामाजिक बैठक में जाकर अर्थदण्ड की 51000 हजार रु नगद देना होगा ,साथ ही उस शहर के निवासी स्वजातीय परिवार के लोगों को भोजन कराना होगा ।
इतने नगद रुपये जुर्माने के भरना , और सबको भोजन कराना छोटी सी नौकरी में महा मुश्किल काम है।अभी अभी ही गृहस्थी का सामान खरीदा है, दीपा के इलाज में नजाने कितने रुपये लगेंगे। फिर प्रसव का खर्च बिना माँ के आये दीपा की देखभाल कौन करेगा ? ऊपर से कोरोना महामारी और अनिश्चित कालीन लॉक डाउन को देखते हुए जतिन का दिमाग काम नहीं कर रहा है।
ये प्यार वाली शादी ने उनका सुख चैन ही छीन लिया।
जतिन अमेजान कम्पनी में डिलेवरी वैन चलाता है। दीपा च्वाइस सेंटर में कम्प्यूटर का काम देखती है । शादी के लिये जो चैन अंगूठी खरीदी थी उसे बेचकर जुर्माने के 51000 भरे । पर्सनल लोन लेकर जातीय ब न्धुओं को खाना खिलाया ।लॉक डाउन के कारण 50 लोगों को ही बुलाया गया। इस तरह उनकी जात मिलाई का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ । उनको यह शपथ दिलवाया गया कि आगे से जातीय नियमों का ईमानदारी से पालन करेंगे ।
इस प्रथा से एक ओर जातीय अनुशासन बना रहता है ।एकता भी बनी रहती है । लेकिन समाज के मुखिया निरंकुश हो गए है।जात मिलाई का अर्थदण्ड उनकी कमाई और ऐश का साधन बन गया है हर साल लाखों रु
जमा होते हैं। जिसका कोई हिसाब किताब नहीं होता । सरकार की इसपर कार्यवाही करनी चाहिए ......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर। छ ग
दिनांक 30 ,6 ,2021
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"करिश्मा मंगल का"
कल 9 जुलाई है अवधेश और देवकी की बेटी के विवाह दिवस की रजत जयंती है। उसमें शामिल होने दोनो
पति-पत्नी विन्ध्य नगर जा रहे हैं । दोनो AC 2 में बैठे रत्ना की शादी के शुरुआती दौर को याद कर रहे थे।
अवधेश जी ने पत्नी से कहा था -- रत्ना की माँ मैं आफिस जा रहा हूँ जल्दी आ जाउँगा ।विंध्य नगर वाले रत्ना को देखने आने वाले हैं । तापसी को बुला लेना उसके साथ सारी तैयारी कर लेना । रत्ना को अच्छी सी ड्रेस पहनने कह देना ।
रत्ना की माँ -- जी आप यहाँ की चिंता मत करिए मैं सब सम्हाल लूँगी । रत्ना को भी समझा दूंगी ।
शाम को धीरज अपने परिवार के साथ आया बड़ा ही स्मार्ट होनहार मितभाषी लड़का है NTPC में असिस्टेंट मैनेजर है । वे दहेज विरोधी विचार वाले हैं गुणी ,सुंदर संस्कारी लड़की चाहते हैं । रत्ना नेभी Bsc के बाद इंटीरियर डेकोरेशन का कोर्स किया है। कुकिंग का भी शौक है ।
अवधेश -- उन्हें रत्ना पसन्द आ गई है उन्होंने इसकी कुंडली मांगी है। हमे तो ज्योतिषियों और कुंडली पर विश्वास नहीं है । चलो उनकी तसल्ली के लिए कम्प्यूटर बाबा से कुंडली बनवा कर भेज देंगे ।
रत्ना की माँ देवकी ने भी पति की हाँ में हाँ मिलाई ।
धीरज की कुंडली मे महामंगल है । जो पत्नी के मारक घर का स्वामी है । यह बात लड़के वालों जानते थे। लेकिन लड़की वालों को यह बताने की जरूरत भी नहीं समझी ।
रत्ना के माता पिता ने वर -कन्या की कुंडली मिलती है या नहीं ,दोनो के कितने गुण मिलते है ?अपनी तरफ से जानने की कोशिश भी नहीं की। तिलक दहेज का लफड़ा भी नहीं है । अपनी हैसियत के हिसाब से बेटी को उस्की पसन्द के सभी गहने,कपड़े, ससुराल वालों का नेंग सब की तैयारी कर ली ।चट मंगनी पट शादी की पूरी प्लानिंग हो गई ।
इस बीच रत्ना के फूफा जी को धीरज के मंगली होने का पता चल गया । उनकी बहन भैरवी की कुंडली में मंगल योग है और उन्हें मन मुताबिक लड़का नहीं वे इस अवसर का फायदा उठाना चाहते हैं। घर का दामाद होने के हक से उन्होंने ने इस शादी को रोकने की पुरजोर कोशिश की।
रत्ना के वैवाहिक जीवन के अवरोधों पर चिन्ता जताई ।
पहुंचे हुए नामी ज्योतिषियों को साथ लेकर आये।
रत्ना की आसन्न मृत्यु का हवाला दिया , सम्भावित तलाक की आशंका जताई , पति -पत्नी के बीच हमेशा कलह अनबन का भय दिखाया ,लेकिन अवधेश जी ने अपना निर्णय नहीं बदला । उन्होंने कहा -- अगर विधाता का लिखा भाग्य अटल है ,तो किसी भी उपाय से उसे बदलना सम्भव नहीं है ।
भाग्य में दुख है तो उसे झेलना ही पड़ेगा । सुख है तो वह भी जीवन मे किसी न किसी दरवाजे से प्रवेश करेगा ही ।
भगवान राम सीता की कुंडली भी तो विशेषज्ञ ऋषि मुनियों ने बनाई थी उनका पूरा जीवन संघर्षों से जूझते हुए बीता । हम तो साधारण इंसान हैं। पति -पत्नी के बीच आपसी प्रेम प्रगाढ़ हो,और तालमेल सही हो तो जीवन हंसी खुशी गुजर जाता है। मुझे अपनी बेटी के आत्म विश्वास और विवेक पर पूरा भरोसा है ।
शुभ मुहूर्त में रत्ना और धीरज का पाणिग्रहण हुआ। आज दोनो के एक बेटी और एक बेटा है - 22 साल की बेटी मेडिकल कालेज में पढ़ रही है ।उनका 17साल का बेटा वायु सेना में जाने की तैयारी कर रहा है ।
मंगल किसी का अमंगल कभी नहीं करता। मंगल दोष,कालसर्प योग ,शनिकी साढ़ेसाती ये सब ज्योतिषियों की कमाई के हथकंडे हैं।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दिनांक 8 ,7,2021
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": बिटिया अल्पायु है"
वर्तिका मन्दिर के पुजारी की पोती है । चार बेटे के बाद जन्मी है । घर आंगन जगमगा उठा। ढोलक की थाप पर पड़ोस की रज्जो चाची के खनकते स्वर में सोहर गीतों से दूर तक अजवाइन हल्दी और सोंठ की खुशबू बिखर गई । तो पता चला कि छट्ठी भी हो गई । बारह दिन में बारसा भी पूरे पारम्परिक ढंग से मनाया गया । सवा महीने में नामकरण के लिए ज्योतिषी जी को बुलाया गया व अक्षर से नाम निकला तो वर्तिका नाम रखा गया । पुकारने का नाम मिला वीरा .... यह कहानी बड़ी नानी याने वीरा की बुआ उसकी पोती श्रद्धा से बता रही है ।
दादी ने ज्योतिषी जी से वीरा के भविष्य क बारे में पूछने पर बताया --- कन्या बड़ी भाग्यवान है । अच्छे घर वर का योग है बस जीवन की अवधि बहुत कम बता रहा है। कुल मिला कर कन्या अल्पायु है।
ये तो हमने ग्रह नक्षत्रों की गणना केआधार पर बताया है । हस्तरेखा विज्ञानी जो ज्योतिषी के बहनोई लगते थे, उन्होंने ने
भी आठ साल की वीरा का हाथ देख कर बताया - कि उसकी जीवन रेखा बहुत छोटी और कटी हुई है ।
अल्पायु योग के कारण दादा दादी की जिद से मात्र तेरह बरस की उम्र में ही गांव के सुसम्पन्न पुरोहित जी के पन्द्रह वर्षीय बेटे नीलमणि से वीरा की शादी कर दी गई।नीलमणि के वृद्ध दादा - दादी की भी उत्कट इच्छा है- कि परपोते का मुंह देख लें तो सोने की सीढ़ी चढ़ कर स्वर्ग जाएंगे । दो साल बाद वीरा का गौना करा दिया गया । वीरा की शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई थी। बाईस की उम्र होते तक वह चार बच्चों की माँ बन गई । लातूर नामक शहर के पास ही वीरा का ससुराल था। दैवयोग से लातूर में महा विनाशकारी भूकंम्प आया । वीरा उस समय अपने दो छोटे बच्चों को साथ लेकर रक्षाबन्धन पर्व पर अपने भाइयों को राखी बांधने पीहर आई हुई थी । इधर भूकंम्प में उसके ससुराल में पूरा गांव का गांव जमीन के अंदर धंस गया । घर मकान परिवार वाले कोई भी नहीं बच पाये।
वीरा की दुनियां ही उजड़ गई । उसे सामान्य होने में चार साल लगे ।धन्नो बुआ की एक ही बेटी है शादी के बाद से ससुराल चली गई है ।बुआ के पास खाने पहनने की कमी नही है।अकेली रहती हैं भाई से कहकर वीरा को अपने पास ले आई । वक्त गुजरा ,माहौल बदला , अब उसे अपने बच्चों के भविष्य की चिंता होने लगी। उसे ये बात समझ मे आने लगी कि माँ बाप के जीवित रहते तक ही मायके में पूछ-परख रहती है । वह भाइयों पर बोझ नही बनना चाहती है। बुआ के घर किराये में स्कूल की मेडम रहती है । उसने वीरा को सर्वशिक्षा अभियान से जोड़ा ,वयस्क शिक्षा के बारे में बताया । उसने बड़ी मेहनत से पढ़ाई की ।
मेडम के मार्गदर्शन में दसवीं ,बारहवीं की परीक्षा पास कर ली। अब तो उसके दोनों बेटे भी सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। उसे आंगनबाड़ी में ग्राम सहायिका की नौकरी मिल गई । बुआ ने आसरा दिया । शिक्षाऔर नौकरी ने आत्मविश्वास दिया । पिता ने दो एकड़ खेती बेटी के नाम कर दी । जब वीरा के बेटे भी कमाने लगे तो उसने सही उम्र में उनकी शादी करवा दिया गया।
ज्योतिषी जिसे अल्पायु बताया करते थे। अब वही वीरा 65 साल की हो गई है। वह समाजसेवा से जुड़ कर सेवा और सहायता का ऋण उतार रही है ।
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दिनांक 11, 7, 2021
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