Sunday 15 August 2021

लघुकथा श्रृंखला :---(40 ) मायके का सुख बिन माँ के , रिश्तों का अंकुरण, राखी का अटूट बन्धन ,देह हमारी अधिकार पराया

     "बिन माँ के भी मायके का सुख"
          छोटे भाई  शिवेश के बेटे  रौनक का विवाह है।  कई बरस के बाद  मानसी  भाई के घर आई है। ये भी तो   मायके का  वही घर  है । जो दो हिस्सों में बंट गया है ।अपने इस  मायके में  मानसी को माँ की कमी बहुत खल रही है ।
लगभग  दस साल पहले ही हार्ट अटैक से माँ स्वर्ग सिधार गई थी। तब बुआ ने कहा  था  --  बिट्टो अब तो तेरा मायके से नाता ही टूट गया । सच ही कहा था उन्होंने --  माँ के रहते ही  मायका होता है ।
       उसके बड़े भैया  मुकेश और भाभी  अपनी दुनियां  में मगन रहे  ।  मानसी को दोनो में से किसी ने कभी तीज -त्यौहार में नहीं बुलाया ।
        पिता जब तक जिंदा थे ,सिंघोरा लेकर खुद उसके ससुराल जाते  और मिल कर आ जाते । माँ के जाने के  चार साल बाद  वो भी इस दुनियां से विदा हो गए ।  
     अपने ससुराल में बेटी चाहे कितनी सुखी रहे । पर माँ - पिता की ममता  के छांव तले  उसका बचपन जी उठता है । यहां के हर गली चौराहे  से ,अपने घर आंगन की दीवारों से  एक आंतरिक लगाव की अनुभूति होती है। यहाँ आकर  वह दादी की लाड़ो, अम्माँ की बिट्टो, पिता की राजकुमारी, दादू की सोन चिरैया , चाची की गुड़िया , साखियों की मानी  बन जाती।बचपन मे कोई ,चोटी गूंथ देता ,   कोई फूलों की  वेणी सजा  देता ।      यहीं आकर तो  ससुराली रिश्तों की जिम्मेदारी से मुक्त होकर  खुली हवा में सांस ले पाती थी वह । बिना रोक टोक के खिलखिलाकर कर अपनी  बचपन सखियों के साथ हँस पाती । 
                   ससुराल में तो मान -मर्यादाओं का आँचल सिर पर ओढ़े गर्दन झुकाये  पल में बहू ,पल में चाची ,पल में भाभी ,पल में  मम्मी के रिश्तों में सिमटी ,अनेक वर्जनाओं में बंधी कठपुतली सी डोलती  अपने अस्तित्व को ढूंढती रह जाती  है ।
                             बेटियाँ इतनी सहज ,इतनी सरस और निश्चिंत होकर  अपने आप से मायके में ही मिल पाती हैं। प्यार ,मान और  लाड़ ,दुलार की संजीवनी पाकर  यादों की अनमोल  सौगात लिये वह नम आंखों से  मायके से विदा होकर अपनी  गृहस्थी में  खो जाती है । 
             मानसी की बड़े भाई की बेटी  जयश्री  की शादी में वह  अपने सास की बीमारी के कारण नहीं आ पाई थी   जयश्री  अपने दो बच्चों के साथ शादी में आई है । बुआ  से लंबे समय बाद वह मिल रही है । रेल दुर्घटना में  बड़े भाई  के निधन के बाद से रमा भाभी   मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गई  है, तब से  जय श्री अपने पति अनूप के साथ  अपने मायके में स्थायी रूप से रहने लगी है। उसके पति  यहीं रेडी मेड कपड़ों का बिज़नेस करते हैं।
            शादी  के कार्यक्रम समाप्त होने के बाद  जयश्री बड़े मनुहार से अपनी बुआ को  बोली -- बुआ चलो हमारे साथ अपने बड़े भाई के घर कुछ  दिन रह लो।मेरे बच्चे आपके सानिध्य  
 में कुछ सीख जावें ।                        
            अब फूफा जी भी नहीं रहे । आपके बेटा बहू तो महानगरों में रहते हैं । आप भिलाई में अकेली  ही रहती हो । कहा जाता है कि बेटियों को अपने मायके से  बहुत लगाव होता है।बुआ चलो न मेरे साथ।
आपका मायका आपको बुला रहा है। मानसी बोली --- मेरा मायका तो माँ के शरीर छोड़ते ही छूट गया । अब कौन है वहाँ । भाई तो अपने जिंदा रहते  रिश्ता नहीं निभा पाया तो अब वहां क्या बचा  है  मेरे लिये ? 
 जयश्री --  आपके माँ पिता का घर तो है ,उसके छत की छांव में आपका भी तो हक  है । वो घर तो मेरे भी पिता काऔर उससे पहले  आपके पिता  का है । मैं भी अपने पिता के घर  याने अपने मायके में रहती हूं और आप  भी अपने भाई के घर याने  मायके में  जब तक मर्जी चाहे रह लेना । 
             बेटी ही बेटी  के मन की भावनाओं को समझ सकती है यह सोचकर मानसी ने अपनी भतीजी को गले लगा लिया । दिल से ढेर सारी दुआएँ  देती रही । उसका मन रखने  उसके साथ भी  भी गई । मनको बड़ा सुकून भी मिला । सप्ताह भर रह कर वापस जाने की बात कही तो  जयश्री बोली अभी पांच दिन बाद होली है । इस बार  हमारे साथ होली मना के  जाना। अपनी शादी के बाद मैं हप्ता भर से ज्यादा अपने मायके में रहने  का मौका ही नहीं   मिला। 
  होली के   बाद से  कोरोना बीमारी फैलने के कारण   राष्ट्र व्यापी लॉक डाउन लग गया । आवागमन के साधन बन्द हो गए।घरों  में सब कैद हो गए । मानसी के मन में संकोच बढ़ने लगा ,कि  उसके कारण राशन खर्च का बोझ बढ़ रहा है । पुराने लोग बेटी के घर  पानी भी नहीं पीते । और मैं चार महीने हो गए बैठे बैठे आराम से खा रही हूं ।
 उसके मन का संकोच दूर करते हुए जयश्री  अपनी बुआ को बार बार याद दिलाया करती -- बुआ आप  खर्चे की चिंता बिल्कुल  मत करना । क्योंकि  हर महीने मेरी मम्मी को पापा की  अच्छी खासी पेंशन मिलती है ।वे रेलवे में ए ग्रेड ड्राइवर थे ये जानती हैं न ?? आप अपने भाई के घर की मेहमान हैं। बड़े भाई पर आपका हक बनता है ।
              लॉक डाउन के बाद  जयश्री के पति पूरे मान सम्मान के साथ  ब्यौहार देकर मानसी को भिलाई पहुंचा कर वापस गए ।जाते समय कह गए -- बुआ मुझे दामाद नहीं अपना तीसरा बेटा ही समझना।जब भी जरूरत हो बुला लेना ।
 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
 रायपुर  छ ग 
दिनांक 12 ,8,2021
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" नए रिश्तों का अंकुरण"

    निशा के 11और 9 वर्षीय  बेटे तन्मय और चिन्मय ने राखी के दिन सुबह सुबह  अपनी माँ से पूछा -- 
  माँ आज राखी का त्यौहार है न?
 निशा --- हाँ तुम दोनों जल्दी से तैयार हो जाओ  अभी 1घण्टे बाद पड़ोस की  नित्या और नायरा  तुम दोनों को राखी बांधने आएंगी।
तन्मय :- नायरा तो अमान की और नित्या सक्षम की बहन हैं ।हम उनसे राखी कैसे बन्धवाएँगे ?? 
 चिन्मय भी बोला :- हमें तो हमारी बहन चाहिए।  हमे तो उसी से राखी बंधवाना है ।
 माँ --- बेटा इस दुनियां में  भगवान सबको सब कुछ नहीं देता । हर घर में,  हर परिवार में,हर व्यक्ति में कुछ न कुछ कमी छोड़ देता है । ताकि हम लोग अपने विवेक और प्रयास से  उस कमी को पूरा करके खुश रहना सीखें। 
  किसी के घर बेटा ही बेटाहै तो  किसी के बेटी  ही बेटी ,किसी के पास  धन है तो जन नहीं, कहीं जन है तो धन नहीं 
         चिन्मय  -- अच्छा चलो ठीक है ,पर माँ उन्हें बदले में गिफ्ट भी तो देना पड़ेगा ...  
 माँ -- हां बेटा दुनियां लेन -देन से ही गतिमान बनती है। जब कोई व्यक्ति हमको किसी भी रूप में कुछ भी देता है ।तो उसके उपकार के बदले कुछ न कुछ उपहार अवश्य देना चाहिए । तभी सम्बन्ध प्रगाढ़ होते हैं  लंबे समय तक चलते  हैं ।  
 प्रेम का बदला प्रेम से, सेवा  का बदला सेवा से ही  चुकाया जाता है । सेवा ,प्यार और त्याग की कीमत पैसों से नहीं चुकाई जा सकती ।
      चलो बातें बहुत हो गई। नित्या और नायरा आती ही होंगी।  तन्मय बोला -- माँ मैं अपना गुल्लक  तोड़कर   उनके लिए   चॉकलेटऔर हेयर क्लिप  खरीदकर ले  आता हूँ । मैं गिफ्ट के लिए आपसे पैसे नहीं लूंगा।
 चिन्मय -- माँ मेरे पास नई वाली पेंसिल बॉक्स है उसे दे दूँगा       नित्या और नायरा अपनी अपनी मम्मी के साथ आई ।  दोनो भाइयों को पटे पर बैठा कर आरती थाली में दीप जलाकर ,कुमकुम अक्षत से तिलक लगाया ,राखी बांधी,  आरती उतारी । माँ ने कहा ---   आज से आप लोग भाई बहन  बने । एक दूसरे से प्रेम पूर्वक व्यवहार करोगे ,एक दूसरे की रक्षा करोगे ।  
इस तरह  उन बच्चों के मन में  राखी के धागों के माध्यम सेभाई बहन के रिश्ते का बीज  अंकुरित हुआ । हर साल राखी के दिन का उन्हें इंतजार रहेगा । यह पर्व उनके रिश्तों का नवीनीकरण करता रहेगा।
     नित्या की माँ  ने बताया--- कुछ रिश्ते जन्मजात होते हैं कुछ  कर्मजात होते हैं ,जो दसमय ,उम्र,जरूरत  के अनुरूप बनाये जाते है ये मनः जात होते हैं । विवाह के बाद पति -पत्नी का रिश्ता भी  मन की भूमि पर  बोया जाता है । हर तरह के रिश्तों में स्वार्थ,  लोभ और अपेक्षा नहो तो आजीवन  खुशी देते रहते हैं ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग 
20,  8,2021 

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 शीर्षक। -   " राखी का अटूट बन्धन"
आज  शाम को खुशी खुशी शुचि  ने अपने पति ब्रजेश को बताया--    आज विनोद भैया का फोन आया था कि नारायण पुर से अपना का पूरा करके  दो दिन बाद मुझे लेने आएंगे ।
  ब्रजेश -- कितनी उतावली हो रही हो मायके जाने के लिए। तुमने ये भी नहीं सोचा कि  तुम्हारे बिना मैं कितना अकेला हो जाऊंगा।शुचि -- आप भी तोअपने मायके जाने वाले हो।          अपनी बहन से राखी बंधवाने । मैं इतनी जल्दी वापस नहीं आऊंगी । मैं तो तीज के बाद ही आउंगी और पता है , भैया के साथ उनके मित्र विशाल भी आएंगे मुझे लिवाने।उनकी कोई बहन नहीं है न ,तो मैं बचपन से ही उनको भी राखी बांधती हूँ। 
  दूसरे दिन सुबह ब्रजेश चाय पीते हुए नवभारत पेपर की हेडलाइन देख ही रहे थे , कि दिल धक.... से हो गया  -- लिखा था  नारायनपुर एरिया में विशेष सर्च आपरेशन  से लौटते  समय बारूदी सुरंग में विस्फोट से आई टी बी पी के जवानों को लेकर आ रही जीप परखच्चे उड़ गए । जीप में सवार ए एस आई विनोद शुक्ला सहित  3 जवान शहीद हो गए । उन चारों की तस्वीरें भी छपी थी ।  ब्रजेश ने शुचि से कहा--शुचि अभी तुम्हारी दीदी  ने फोन पर बताया है कि-- -तुम्हारी माँ की तबियतअचानक खराब हो गई है ।तो मैं तुम्हें और उन्हें अभी  तुम्हारे  मायके छोड़ आऊं ।
    तुम जल्दी पैकिंग कर लो ।मैं  गाड़ी निकालता हूँ ।ब्रजेश दोनो को लेकर तीन धण्टे  में ससुराल पहुंच गए । वहां का सन्नाटा देख कर दोनों बहनें सकते  में आ गयी ।  पास पड़ोस के लोग धीरे धीरे आने लगे थे।पर कोई किसी के कुछ बोल नहीं रहा था । ब्रजेश ने ससुर जी को पेपर दिखाया उनको धीरज बंधाया।  खबर सुन कर माँ तो चीख कर अचेत हो गई । माहौल गमगीन हो गया । रोना धोना मच गया। पल भर में  भीड़ जमा हो गई।     विशाल भैया तो पहले से आगये थे पर किसी को कुछ बताने की हिम्मत नहीं
कर पाए थे ।
उन्होंने  हेडक्वाटर से  यह पता कर लिया  था -- कि  विनोद को  कल घर लाया जाएगा । पुलिस गाड़ी  में उनके साथ पुलिस टुकड़ी भी आई ।पूरे  सम्मान  के साथ  उनकी अंत्येष्टि हुई ।
           विशाल ने सबके सामने  दोनो बहनो के सिर पर हाथ रखकर  शपथ  ली -- कि आज के बाद सें विनोद की जगह मैं भाई के सारे फर्ज निभाउंगा ।  अंकल आंटी की देखभाल भी करूँगा .
 मैं बहुत छोटा था तब से मेरे पिता का स्वर्गवास हो गया है।अब आप मेरे  ताऊ और ताई  हैं । मेरी माँ  का अकेलापन दूर होगा । माँ के साथ मिलकर मेरी शादी भी तो आप लोगों को  करानी हैं। .....
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर     छ ग
 22 ,8  ,2021

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"श्रावणी पूर्णिमा का पर्व रक्षा बंधन"
      सावन के महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह पुण्य पर्व कई मायनों में जीवन की पूर्णता का प्रतीक है।             आषाढ़  के मतवाले मेघ  घुमड़ घुमड़ कर जब  बरसते हैं। तब गीली धरती की कोख  में सुप्त बीजों का अंकुरण होता है।    
          वनस्पति जगत अंगड़ाई ले कर उठ खड़ा होता है  धरती माँ का ममता भरा स्पर्श पाकर  वह मृग छौनों की तरह चौकड़ी भरने लगता है।सावन के आते तक वसुन्धरा हरी चुनरी लहराती हुई पुरवा हवा के साथ झूमती नजर आने लगती है । धरती की हरियाली से जन जीवन में खुशियाली छा जाती है । मानव मन  भी प्रकृति को देख के झूमने लगता है खुशी मनाना चाहता है ।परिजनों के साथ खुशियां बांटना चाहता है ।

  इसी कड़ी में भाई  बहन  के आपसी प्रेम को चिरजीवी बनाने ,सामाजिक सद्भाव को विस्तार देने के लिए रक्षा बंधन का पर्व  मनाया जाने लगा।
कहा जाता है ,कि द्वापर युग में एक बार कृष्ण की कलाई में चोट लग गई, तब द्रौपदी ने उनके बहते रक्त को रोकने तुरन्त अपनी  रेशमी साड़ी का पल्ला फाड़ कर उनके हाथ  में पट्टी बांध दी।
कृष्ण ने उसी समय द्रौपदी से कहा -- बहन आज से मैं तुम्हारा 
 ऋणी हूँ । मैं तुम्हें वचन देता हूँ ,कि  विपत्ति के समय जब भी तुम्हे मेरी जरूरत पड़ेगी मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा । वह श्रावणी पूर्णिमा का दिन था । तब  से रक्षा बन्धन मनाया जाने लगा।
          यह भाई बहन  के प्यार का, कर्तव्य बोध का, सद्भाव का,मेल मिलाप का और  खुशियों का त्योहार है  ।
         हर मानव अपने जीवन में खुश रहना चाहता है ।उसकी जिंदगी का मकसद ही  आनन्द की खोज है। 
                    इस भौतिक जगत में  ईश्वर ने सबको सब कुछ नहीं दिया है। कुछ न कुछ कमी छोड़ रखा है । ताकि  इस कर्ममय संसार में मानव  सतत कर्मशील बना रहे ।  अपनी बुद्धि,विवेक ,  युक्ति  से ईश्वर द्वारा दी गई कमी को पूरा करने का मार्ग ढूंढ कर खुश रह सके ।  पारिवारिक और सामाजिक    समन्वय के लिए भी यह जरूरी है ।
         बिना रिश्तों के व्यक्ति खुश नहीँ रह सकता है। कुछ रिश्ते  जन्म से ही बन जाते हैं। इन्हें जन्म के रिश्ते या खून के रिश्ते कहते हैं । कुछ कर्म के रिश्ते होते हैं जो जरूरत,उम्र ,परिस्थिति  केअनुसार बनाये जाते हैं। ये कर्म के रिश्ते या मन के रिश्ते या माने हुये रिश्ते कहलाते हैं।
             जिनके  भाई या बहन नही होते  वे राखी- बंध भाई या बहन का रिश्ता बनाते और निभाते भी हैं । यह रिश्ता सबसे पावन रिश्ता होता है ,मित्र या दोस्त का रिश्ता, सन्तान हीन दम्पत्ति  बच्चा गोद लेकर गोद पुत्र या गोदपुत्री का रिश्ता बनाते हैं।
   सात फेरे लेकर,या मंगलसूत्र पहना कर , मांग में सिंदूर भरके 
पति -पत्नी का रिश्ता बनता है ।
जीवन में पूर्णता पाने और खुशी पाने रिश्ता बनता है या बनाया जाता है।  उम्र ,परिस्थिति,अनुभव और समझ में बदलाव भी आता है तब रिश्तों में टकराव भी आता है ।व्यक्ति की जब  किसी से उम्मीदें,अपेक्षाएं बढ़ने लगती है तो रिश्तों में दरार आने लगता है । 
      हमे यह ध्यान रखना चाहिए ,कि  रिश्ते खुशी पाने के लिए होते हैं ,खुशी निचोड़ने के लिए नहीं । हर तरह के रिश्तों को स्नेह रस से सींचते रहना चाहिए । सम +बंध= सम्बंध  --समान  रूप से बंधे रिश्ते ही दीर्घकालीन होते हैं 
 डॉ चंद्रावती नागेश्वर 
 रायपुर। छ ग 
22  ,08  ,2021
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 शीर्षक --"देह हमारी -अधिकार पराया "
 

               मालती और रश्मि  दोनो अपने उम्र के सातवें दशक में हैं ।  दोनो हम उम्र  सहेलियों  में लगभग तेरह की उमर से ही पक्की दोस्ती है । तब वे आठवी कक्षा में पढ़ती थीं ।मालती की बेटी अर्पिता ने बताया कि आज रश्मि मौसी आने वाली है । दोनो आज दिन भर आज  साथ खएँगी ।  ऊपर कमरे में  दरवाजा बंद कर के   खूब बातें करेंगी । शाम को बम्लेश्वरी मंदिर में दर्शन के बाद पीछे चबूतरे में बैठ कर घण्टों बात करेंगी ।
देखो मालती मौसी का ही कॉल है -   कैसी हो रश्मि ? बच्चे कैसे हैं ? बहुत दिनों तुम्हारी कोई खबर नहीं मिली ?
 रश्मि - ठीक हूँ ।दोनो अपनी गृहस्थी में खुश  हैं। तू अपनी बता  कैसी है ? इस बार काफी दिनों बाद आने की 
 फुरसत मिली ।
रश्मि--   मैं अच्छी हूँ । इस कोरोना और लॉक डाउन ने तो जिंदगी में बहुत उथल पुथल मचा रखी  है। सबके मन में एक दहशत भर गया है।  अच्छा मालती सुन तुम्हें एक बात बतानी है । मैंने  मृत्यु उपरांत अपना देहदान करने का निश्चय कर लिया है। देहदान के फॉर्म में गवाह में तेरा सिग्नेचर लेना है ।इसीलिये आ रही हूं ।
 मालती - तुम ऐसा कैसे कर सकती हो ?
          तुम्हारे दोनो बेटे  बड़े समझदार और संस्कारी हैं।उनके रहते देहदान तुमने सोच भी कैसे लिया ???
  रश्मि --   क्यों नहीं सोच सकती ???  ये देह मेरी है  इसके द्वारा किये गए पाप -पुण्य मेरे कर्म लेख के खाते में   लिखे  जाते हैं । तो इस शरीर  को दान करके पुण्य कमाने  का अधिकार मेरा अपना निर्णय होना चाहिए न???  मालती --- हाँ  बात तो सही है पर  ......
  मृत्यु के बाद अंतिम ... क्रिया ...  का.. ह ...क तो बेटा या पति  का है।बेटा न हो तो बेटी या गोत्रज रिश्तेदार का। 
 रश्मि --- समय -परिस्थिति ,जरूरत के अनुसार मान्यताएं बदलती हैं। शैशव काल में  इस शरीर की देखभाल और जरूरतों का खयाल माता -पिता /अभिभावक रखते हैं । उसके बाद हमारी शादी होती है - ये  हक पति / सन्तान  को मिल जाता है ।  हमारे शरीर पर ,मन पर,इच्छाओं पर  कभी हमारा अधिकार होता ही नहीं ??? यहां तक कि मरने के बाद भी  क्यों    न .. हीं...
        मैने तो देहदान के बारे में निश्चय भी कर लिया.... 
  रश्मि --- अरे बहन वो कहावत है- शुभस्य शीघ्रम और
तुरत दान महा कल्यान ...भई  हम तोजीवन में कोई बड़ा दान कर नहीं सके।घर गृहस्थी ,बच्चों के पालन -पोषण पढ़ाई- लिखाई के चक्कर में ही रह गये,और किसी भी तरह के दान नहीं  कर पाये ...  जो किया वह पति ,पिता , भाई, बेटे  बेटी की कमाई का हिस्सा था... तो  पुण्य  उनको ही मिलेगा न??
 दान कई तरह का होता है ।जैसे :--धन,वस्त्र,सुवर्ण,रजत,तांबा ,विद्या,रक्तदान ,अंगदान ,प्राणदान,तो नहीं कर पाये, लेकिन मरने के बाद देहदान  तो कर ही सकती हूं न ??? जिससे मन को कुछ  तो सन्तुष्टि मिल सके......वे देह मेरी है तो इसे दान करके 
 इससे पुण्य पाने का हक मेरा बनता है न???.
  मालती तुरन्त बोली --- पर  शास्त्रों में लिखा से मरने के बाद शरीर के सभी अंग सहित अंत्येष्टि किया जाना चाहिए तभी आत्मा को शांति ---- ???
मालती ---किस युग में जी रही हो तुम  ??जानती  हो कुछ बीमारियों में जिंदा  रखने के लिए ऑपरेशन से कुछ अंगों को निकाल देते हैं,एक्सीडेंट में भी अंगभंग हो जाता है। तब....क्या  ???  करना चाहिए बताओ तो ..... मैं तुमसे पूछती हूँ कि वर्तमान की जिंदगी ज्यादा जरूरी है या। मौत के बाद का तथाकथित पुनर्जन्म?
   मेरी प्यारी सखी  रश्मि मरने के बाद  अगले जन्म में
 हमे इस जन्म के कर्मानुसार जन्म मिलेगा ठीक है न?
हमने दो दिन पहले क्या खाया?क्या पहना यह याद नही रहता,तो पूरी जिंदगी भर,क्या -क्या पुण्य या पाप किये  कैसे याद रख सकते हैं -?
 * जो बीत गई सो बात गई अतः जब  जागे तभी सबेरा *
                2020 से 2021के बीच वैश्विक महामारी में हमारे  अनेक रिश्तेदार,मित्र ,बेटे,बेटियां,परिचित ,पड़ोसी मृत्यु के भेंट चढ़ गए ,जिनकी बॉडी तक नहीं मिली। क्या बूढ़े क्या जवान सभी काल के गाल में समा गए।
    मालती सुन ध्यान से  ---  पिछले कुछ दिनों से सुबह शाम मेरी आत्मा मुझसे कहती है --जाग रश्मि जाग  अगर अब भी कुछ  परोपकार -दान नहीं कर पाई तो कब करेगी ? जीवन के सन्ध्या काल में भी जग हित के लिए कुछ तो कर लें ...  इतनी शिक्षा और समझदारी पर लानत है ....यदि अब भी कुछ न कर पाई तो ......
 बुद्धजीवी कहलाती हो , इतनी भयंकर महामारी में भी 65 की उमर में  ईश्वर ने शायद इसीलिये स्वस्थ रखा है कि अब कुछ ऐसा कर लो कि अंत काल में पछताना न पड़े  .......
                 अपने जन्म  को नहीं तो मरण को तो  सार्थंक  करती... जा .....  ओ  .....
          बस उसी आवाज से प्रेरित हो कर प्रतिपदा यानी
भारतीय नव वर्ष को ही विक्रम संवत आरम्भ के शुभ दिन 
में देहदान का फार्म जमा करूंगी ।अब तुझे जो समझना है वो समझ ले .......
 मालती ---- रश्मि तूने मेरी आँखें खोल दी । मेरे लिए भी एक फार्म लेती आना  । हम दोनों एक साथ  एक साथ देहदान का फॉर्म जमा करंगे ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग

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