" आधी अधूरी रोशनी "
अभिमत डॉ इंदुमती मिश्रा
चन्द्रावती नागेश्वर छत्तीसगढ़ की सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार हैं। लेखन की सभी विधाओं पर उन्होंने अपना जौहर दिखाया है। बरसों तक नवभारत के सुरुचि पृष्ठ,दैनिकभास्कर के मधुरिमा ,अमृत सन्देश ,हरिभूमि पत्रिका में प्रकाशित पाठकों को लुभाती रहीं है ।
कुछ बरस तक मैं उसी विद्यालय की प्राचार्या रही , हूँ जहाँ वे अध्यापिका रहीं हैं । वैसे तोअखबारों में उनकी कहानियां ,आलेख पढ़ती आई थी, पर सेवानिवृत्ति के समय अपनी 15प्रकाशित पुस्तकें उपहार स्वरूप विद्यालय के पुस्तकालय को दिया।तब कुछ कहानी संग्रह पढ़े ।
अब जब उन्होंने अपनी आगामी पुस्तक "आधी अधूरी रोशनी" के लिए अपना अभिमत लिखने हेतु अपनी 51 लघुकथाएं भेजी हैं। मैं सोचती रही कि कहाँ से शुरू करूँ ??
अपनी व्यस्तताओं के बीच भी एक बार पढ़ना शुरू करती तो 3 -4 कहानियां पढ़ लेती । ये कहानियां इतनी रोचक,प्रभावी और उद्देश्यपूर्ण हैं ,कि अधूरा छोड़ने का मन ही नहीं होता ।
भारतीय संस्कृति और लुप्त होती परम्पराओं,रीति रिवाजों का परचम थामे समसामयिक समस्याओं, घटनाओं और परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए पाठकों के सुप्त चिंतन को झकझोर देती हैं । पुस्तक की कुछ कहानियां
विशेष प्रभावी हैं जैसे :--"अभिवादन "की परंपरा चिर प्राचीन होते हुए भी मनोवैज्ञानिक और सदा प्रासंगिक रहेगी।वास्तव में यह मानव का अदृश्य पहचान पत्र ही है ।
"नामकरण वंदिता का,,,,संस्कारों को जीवित रखने की प्रथा को प्रसंगानुसार भली भांति सजाया गया है लघु कथा के माध्यम से ,,,,,अंत में नामकरण विधि ने मानो चित्रांकित ही कर दिया हो पूरे कथा प्रसंग को।
"शादी की अनोखी..."...मुख्य अंश गृहस्थ जीवन एक तरह का प्रजातंत्र है इसमें तानाशाही की कोई गुंजाइश नहीं* के माध्यम से कथा जीवंत और सुंदर बन गई है।" करिश्मा मंगल का..."...कथा के माध्यम से विवाह पूर्व जन्मपत्री मिलान आदि औपचारिकता के विरोध में आवाज उठाई है, सही ही है प्रेम विवाह में कहाँ कुछ देखा जाता है पर पति पत्नी भली भांति ही घर की व्यवस्था संभालते हैं।सुंदर संदेश है। "मास्टर जी की पारखी नजर" में बालिका शिक्षा की अलख जलाई गई है वहीं वधू पक्ष के अपमान में भी एक सुदृढ संदेश महिलाओं हेतु निहित है।
" जन्मदिन हरीश का " कहानी के माध्यम से भारत में जन्मदिन मनाने का तरीका बताया गया । कबाड़ बीनने वाले बच्चे कौतुहल वश भीड़ देखकर भंडारे में खाने के लोभ से मंदिर पहुंच जाते हैं । वहाँ एक सभ्रान्त परिवार उनके हम उम्र बच्चे का जन्मदिन मना रहे थे। जहां न केक काटा गया
न बैलून सजा।सबने उसे तिलक लगाया आरती उतारी, फूल अक्षत बरसा कर लंबी उम्र का आशीष दिया ।
"तलाक आत्मसम्मान के लिए "कथा मे ग्राफ एक बार पूरा नीचे जाकर उठ रहा है गजब के लोच के साथ कथा संदेश दे रही नारी जाति व समाज को।" रेतीले रिश्ते" अद्भुत!अदम्य साहस का और गहन धैर्य परिचय देता हुआ चरित्र सास व बहू का ,,,,।बिन माँ के मायके के सुख में "एक सुखद चित्रण है।जिसमे मानसी नाम से चिन्हित महिला जो अपने लिए वांछित व्यवहार को ढूंढ निकालती है।
"पौरुष का अहम" नारी कितनी भी पढी लिखी क्यो न हो पुरुष प्रधानता समाज में आज भी हावी है।
" इंद्रप्रभा "भी सोच व लेखन के आयामों का परिचय दे रही है काश !यह सच होता और ऐसे समाजोद्धारक और भी होते......! "आत्म सम्मान दुल्हन का " नारी अस्मिता की
पराकाष्ठा को रेखांकित करती है ।
कुल मिला कर इस संग्रह की छोटी छोटी कहानियाँ प्रेरक प्रभावी और पठनीय हैं ।इसकी भाषा
सहज सहज ,सरल बोधगम्य है । समाज और परिवार के लिए दिशाबोधक और सुखांत हैं । लेखिका अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल हैं।
मेरी तरफ से हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं... 🙏🏻🙏🏻
डॉ इन्दुमति मिश्रा
प्राचार्य शासकीय हायर सेकंडरी स्कूल खैरझीटी राजनांदगांव
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डॉ विनय पाठक
भूमिका
" आधी अधूरी रोशनी "
डॉ चंद्रावती नागेश्वर का अवदान सृजन ,समीक्षा और शोध की त्रिवेणी का संधारण करता है।इनके द्वारा 51 लघुकथाओं का संग्रह * आधी अधूरी रोशनी * आपके हाथ में है ।इनमे लघुकथाओं के तत्व भी सन्निहित हैं और एक सार्थक सन्देश संप्रेषित करने का कौशल है। ये यथार्थ से जुड़े भी हैं और आदर्श की ओर भी मुड़े हैं ।इनमे परम्परा भी है और प्रगतिशीलता का प्रस्तावन भी । इनमें समकालीन की जाँच भी हैऔर आधुनिकता की आँच भी।गागर में सागर या बूँद में समुंद के दिग्गदर्शन की तरह ये लघु कथाएं सार - सार में सारे संसार का संदर्शन करा जाती हैं ।
" आधी अधूरी रोशनी " इस कृति का भी शीर्षक है और इस कृति में संग्रहित एक लघु कथा भी "आधी अधूरी रोशनी " जीवन का भी एक प्रतीकात्मक अभिधान है । " और किन्नर विमर्श का भी गन्तव्य -मन्तव्य है । प्रकारांतर से यह लघु कथा किन्नर विमर्श के प्रादर्श को भी प्रस्तुत करती है। इसी तरह "जिंदगी के फैसले " लघु कथा में स्त्री विमर्श के बीज दृग्गत हैं ।एक शिक्षित और संस्कारी स्त्री एक छोटी सी बात से टूटते रिश्ते को किस कौशल से संरक्षित करती है।उसकी व्यवस्थित विवेचना है।
नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को नजरअंदाज करके व्यवहार और संस्कार से कैसे व्यवहार और संस्कार से कैसे कट रही है इसका निरूपण करते हुए सही दिशा की ओर दिगदर्शन लघुकथा 'हमारी पहिचान' का संदेश है ।इसी तरह " माँ का पूर्वाग्रह शीर्षक लघुकथा में संस्कारी , सुशिक्षित ,सौम्य बहू की उपेक्षा करनेवाली पूर्वाग्रह ग्रस्त सास के पश्चाताप का निदर्शन है । "तौर तरीकों का प्रभाव"और "रेतीले रिश्ते " शीर्षक भी सार्थकता को सिद्ध करते हैं । "बिन माँ के भी मायके का सुख " शीर्षक लघु कथा इस भ्रम को को तोड़ता है कि माँ के स्वर्गवास के बाद मायके का मोह नहीं रह जाता। यह ठीक है कि माँ का घर सास का कहलाता है ,लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं कि भाई भाभी से उसका नाता नहीं रह जाता। प्रेम और व्यवहार से रिश्तों में ताजगी बनी रहती है। इस तथ्य को यहां पुष्ट किया गया है ।
"लोग क्या कहेंगे "?और "सेवा सम्मान से सन्तुष्टि "विषयक दोनो लघु कथाएं वृद्ध विमर्श के वितान को विनिर्मित करती हैं ।यदि विधुर वृद्धावस्था में विवाह करता है ,तो उसे एक साथी सहयोगी की आवश्यकता के कारण । लेकिन वहओ समाज और परिवार के आलोचना की परवाह नहीं करता । क्योंकि उसकी समस्या का समाधान उसके पास है । समाज और परिवार के पास नहीं। ऐसे अवसर पर समाज और परिवार की उपस्थिति तमाशबीन के अतिरिक्त और कुछ नहीं होती ।
सेवा सम्मान और संतुष्टि वृद्धाश्रम को केन्द्रस्थ करके लिखी गई है । इस तरह नव्य विमर्श के साथ वर्तमान विषय को विवेचित करके ,कोरोना- काल के कहर से परिचित करा कर के और दैनन्दिन की घटनाओं में से तथ्य को कथ्य का स्वरूप देकर जो तन बाना संजोया है ,वह महत्व पूर्ण है ।
इसकी भाषा सहज,सरल ,सुगम और सुबोध है तथा मुहावरों, कहावतों के यत्किंचित प्रयोग से प्रभावोत्पादक भी बन पड़ी है। इस महत्वपूर्ण रचना के लिए डॉ नागेश्वर बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ....... डॉ विनय पाठक
पता :-
. पी एच.डी. ,डी लिट् ( हिंदी)
पता :- एम .ए . पी एच.डी.,डी लिट्(हिंदी)
C/62
अज्ञेय नगर
बिलासपुर पी एच.डी. ,डी लिट् (भाषा विज्ञान निदेशक -प्रयास प्रकाशन
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अभिमत
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जमीन से जुडी कथाकार हैं डॉ . चन्द्रावती नागेश्वर
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* आधी अधूरी रोशनी *
कथा- कहानी - किस्से हमेशा कल्पना की उड़ान माने जाते रहे हैं , बहुत थोड़े से कथाकार ऐसे होते हैं जिनकी कहानियाँ संस्मरणात्मक बोध कराती हैं । कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद एक मात्र ऐसे कथाकार हुए हैं जिनकी कहानियों को पढ़कर कभी नहीं लगा कि जो कुछ भी पढ़ा जा रहा है वह कल्पना है , उनकी कहानियों के पात्र , उनकी संवाद शैली और वर्णनात्मक कहन पाठक को जमीन से जोड़ देती है । आज समय बदल गया है , बड़े आकार और कलेवर की कहानियाँ नहीं लिखी जातीं। न पाठकों के पास समय है और न कथाकार के पास धैर्य ! सबकुछ लघु से लघुतर होता जा रहा है । हमारे कथाकारों का रुझान लघु कथाओं की ओर बड़ी तेजी से हुआ है । कविताओं में जिस तरह क्षणिकाएँ या लघु कविताएँ होती हैं ,लगभग वैसी ही स्थिति अब इन मिनी कहानियों की है। ऐसी स्थिति में लघु कथाकार कल्पना के पंखों पर किसी कवि की तरह विचरते देखे जा रहे हैं । कथाकार डॉ. चंद्रावती नागेश्वर जी की कहानियाँ इसका अपवाद हैं । वे कल्पना की ऊँची उड़ान नहीं भरतीं वरन सच की जमीन पर अपनी कहानियों को रचती हैं । उनके पात्र हमें अपने आस-पास के ही नजर आते हैं । ऐसा लगता है वे अपनी स्मृति वीथिका से कतिपय सुन्दर और सार्थक संस्मरण लिख रही हैं ।
उनकी "आधी अधूरी " लघु कथा कृति की पांडुलिपि का अध्ययन करने का सौभाग्य मुझे मिला है।
कहानियों को गढ़ने की उनकी अभिनव शैली की कहन, वर्णनात्मक और सहज प्रस्तुति आकर्षित करती है। आज के युग में जब आभासीय डिजिटल लेखन के आगे मुद्रित प्रकाशन से लोग धीरे धीरे दूर होते जा रहे हैं, उनका कथा संसार चमत्कार से कम नहीं है । एक बार उनकी इन लघु कथाओं को पढ़ना शुरू करने के पश्चात पाठक अंत तक जिज्ञासु बना रहता है इसलिए बिना समाप्त किये पढ़ना बीच में नही छोड़ता ।
अब बात चाहे स्त्री विमर्श की हो , किन्नर विमर्श की या सामान्य जीवन में घरों में कार्यरत पात्रों की उनकी प्रत्येक कहानी तथ्यपरक सन्दर्भों ,घटनाओं और सहज कथ्य में पिरोई हुई लगती है । एक सार्थक सन्देश होता है ।उनकी हर कथा में , उदाहरणार्थ एक लघु कथा " तौर तरीकों का प्रभाव " को लेते हैं जो विदेश में रह रहे बेटा-बहू और उनके छोटे से बच्चे को लेकर लिखी गई है -
"अनिरुद्ध की माँ आज ही भारत से अमेरिका आई है। बेटा -बहू केलिफोर्निया में नौकरी करते हैं। तीन माह के पोते ऋत्विक को उसे सम्हालना है। उसके बेटा बहू दोनो एक मल्टी नेशनल कम्पनी में जॉब करते हैं। रात के डिनर के बाद जब वह सोने जा रही थी , तब उसने देखा कि अनिरुध्द ऋत्विक को सुला रहा है । औऱ वह बच्चा लगातार रोये जा रहा है,तब जमुना देवी ने बहू से कहा--स्वीटी बेटा देखो तो बच्चा बहुत रो रहा है ।शायद सोना चाहता है या फिर भूखा है ...
--जी मम्मी .... उस दिन तो बहू ने उसे सुला दिया।
फिर दूसरे दिन वही क्रम दुहराया गया। बच्चे को पिता सम्हालता रहा और वह घण्टों रोता रहा ..
.तीसरे दिन भी बच्चा अलग कमरे में रोता रहा .......
अब चौथे दिन जमुना देवी से नहीं रहा गया । उसने कहा--- तुम लोग बच्चे को रोज रात में इतना क्यों रोता है ?
रोज ही रात को स्वीटी काम लेकर बैठ जाती है। अनिरुद्ध से बच्चा सम्हलता नहीं है रोता रहता है। मुझे भी गोद मे लेने से या चुप कराने से मना करते हों।आखिर क्यों ????
स्वीटी ने कहा --- मम्मी जी ये इंडिया नहीं अमेरिका है। यहाँ बच्चों को पालने औऱ रहन, सहन के तौर- तरीके बहुत अलग हैं। अब हमें अमेरिका में ही रहना है ,तो यहां के तौर तरीके से अपने बच्चे पालने हैं।
जमुना जी -- स्वीटी तुम भी भारत में जन्मी,पली,बढ़ी हो। अनिरुध्द भी वहीं के तौर -तरीके से पला बढा है। उसमे क्या कमी है ?ये तो बताओ...
स्वीटी- यहां के स्पेशलिस्ट डॉक्टरों कहना है, कि छोटे बच्चों को पैदा होने का बाद जितनी जल्दी हो सके या एक महीने के भीतर ही माँ से अलग दूसरे कमरे में अकेले सोने की आदत डालनी चाहिए । इससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास तीव्र गति से होता है। उनकी नींद डिस्टर्ब नहीं होती । वे जल्दी आत्मनिर्भर बनते हैं स्वस्थ रहते हैं। । पति भी शिशुपालन में प्रतिदिन सक्रिय भूमिका निभाये यह अनिवार्य है।"
अनिरुद्ध की माँ समझाती है कि बच्चे को उसकी माँ के पास ही सुलाना चाहिए ।
" बिन माँ के भी मायके का सुख " एक बहुत सुन्दर किन्तु भाव-प्रवण कहानी है , भाभी का किरदार सचमुच अनुकरणीय है । इन्द्रप्रभा , शहीद की पिता अगवानी ,पढ़ा लिखा होता तो, पौरुष का अहम् , दोस्ती ऐसी भी , लोग क्या कहेंगे - कई कहानियां हैं जो प्रभावित करती हैं । बहू के पुनर्विवाह का निर्णय -सामाजिक बदलाव की सुखद बयार है । अनुकम्पा नौकरी , ऐसी है निर्मला बहू, हौसला जैसी 51 लघु कहानियों की इस माला में अद्भुत आभा से दमकते मोती पिरोये गए हैं । श्रेष्ठ कथाओं का सुष्ठु सृजन करने के लिए डॉ. चन्द्रावती नागेश्वर जी को हार्दिक बधाई देते हुए मेरा विश्वास है कि इस श्लाघनीय कृति को सुविज्ञ पाठक हाथो हाथ लेंगे । शुभमस्तु
------ प्रो.विश्वम्भर शुक्ल (अवकाश प्राप्त प्राचार्य , लखनऊ विश्वविद्यालय सम्बद्ध पोस्ट ग्रेजुएट कालेज ,गोलागोकर्णनाथ, खीरी )
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सम्प्रति निवास - 538 क/ 90 त्रिवेणी नगर प्रथम
लखनऊ - 226020
चलभाष - 9453618200
ईमेल- vdshukla01@gmail.com
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कहानी का लघुस्वरूप जिसमे कथा के सभी तत्व समाहित हों यह जरूरी नहीं है, पर जो भी तत्व आते हों इसके वैशिष्ट्य को बखूबी निभाते हैं ,इसीलिए कहानी का संक्षिप्त संस्करण भी नहीं है । इसका शिल्प अलग ही है।(1) यह" गागर में सागर"को सँजोता है यह सार-सार में सारे संसार को समेट लेता है ।(2) बिना एकांगी विस्तार के लक्ष्य सिद्ध करता है(3)औत्सुक्य के साथ कथा प्रवाह भी है।लक्ष्य भेदन की क्षमता भी है कल्पना से अधिक वास्तविकता में विश्वास करती है।वास्तविकता का ऐसा वितान बनाती है, जिसमे समाज,परिवार की मानसिक राजनैतिक,आर्थिक सांस्कृतिक परस्थितियां पृष्ठभूमि के रूप में स्थापित हो जाती हैं । (4) वामन में विराट का भान कराने वाली होती हैं। प्रतीकों का प्रयोग, संकेतों के उपयोग के साथ अप्रत्यक्ष कथन के सहयोग से पूरित होती है ।कल्पना वहीँ तक ग्राह्य है,जो यथार्थ को स्पर्श करे ,संवेदना वहीं तक मान्य है जो ,बुद्धि को परामर्श दे । यहां प्राचीन में नवीन का उन्मेष निरखता है ।(5) लघु कथाकार इतिहास ओर पुराण को वीथियों में खो नहीं जाता वरन उसके "प्राचीन कथ्य " को आज के " तथ्य " से सामंजस्य बिठा कर उसे इस तरह प्रस्तुत करता है कि वह सजीव और सप्राण हो जाता है । इतिहास दुहराया जाता है पुराण का पुनः पारायण किया जाता है । (6)लघु कथा एक ध्येय ओर पाथेय पर प्रस्थित है। समय -सत्य को शाश्वत सिद्ध करना इसकी विशेषता है
कल्पना से अधिक वास्तविकता में विश्वास करती है। समय -सत्य को शाश्वत सिद्ध करना इसकी विशेषता है।
लघु कथा में स्वतंत्र शैली के साथ ही विषय के अनुरुप व्यंगात्मक ,पत्रात्मक,संस्मरणात्मक ,संवादात्मक शैली को भी अपनाती है ।
सूत्रात्मक भाषा,सामासिक शब्दप्रयोग, सार्थक मुहावरे और लोकोक्तियों के योग से भाषा जहां कारगर बनती है ,वहीं समग्रता को समेटकर अर्थवत्ता को सहेजती भविष्य के सांचे में ढलकर ,संवाद के पिंजर में पलकर जानदार बनती है। लघु कथा लघु विश्व दर्शन का लोकप्रिय ललित माध्यम है ।
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