Sunday 12 September 2021

लघुकथा श्रृंखला 41--- नया अध्याय ,बुढ़ापे का सहारा ,जिम्मेदारी अपनी अपनी,प्रायश्चित की चाह

 शीर्षक-- नया अध्याय
   नागपुर स्टेशन में ट्रैन की टिकिट लेकर रेलवे ब्रिज के ऊपर  से प्लेट फॉर्म न.2 की ओर जा रही थी । अचानक पीछे से किसी ने उसे पुकारा --  रंजना दीदी रुकिए ....
    उसने पूछा - कौन हो तुम ?? 
 उत्तर मिला -- मैं मीना गुरुंग बलौदा  ...  बोलते हुए चेहरे सेे चुन्नी हटा लिया । 
रंजना ने कहा -- ट्रेन आ चुकी है ,तुम किसी भी डिब्बे में चढ़ जाओ अमरावती  में मेन गेट के बाहर मिलना ।
       इतना कहते हुए रंजना तेजी से आगे बढ़ गयी ।नागपुर से अमरावती की वह लोकल ट्रेन है,2घण्टे में पहुँच जायेगी ।रंजना के पति रेलवे में गार्ड हैं। अमरावती में ससुराल पूरा परिवार है ।जहां हप्ता -पंद्रह दिन में जाती रहती है ।
        रंजना रास्ते भर मीना के बारे में सोचती रही । मीना बलौदा में उनके घर के पीछे में रहती थी । उसके पिता बैंक में गार्ड का काम करते थे  4 बहनें ,दो भाई का बड़ा परिवार था।  मीना की माँ हमारे घर बर्तन पोछा का काम करती । मीना दसवीं में पढ़ती  अपनी माँ के साथ सहायता के लिए आ जाती। कभी पढ़ाई की समस्या लेकर आती  ।उसका ज्यादातर समय हमारे घर मे बीतता था ।  बारहवीं के बाद वह नर्सिंग ट्रेनिग करने चली गई। उसके पहले मेरी शादी हो गई  मैं नागपुर आ गई ।  आज इतने साल बाद मीना को इतनी बुरी हालत में  यहां देखा  है । तो उसे बड़ा दुख हुआ ।
                  अमरावती गेट के पास मीना उसे मिल गई ।उसे पहले वहीं केंटीन में नाश्ता करवाया ।  फिर पूछा ---कैसी हालत बना रखी है अपनी ?  
 मीना रोने लगी, बोली --- सब किस्मत का खेल है  दीदी।  
रंजना -- मैंने सुना था तुम नर्स बन गई हो ।
 मीना -   ट्रेनिंग कर रही थी।आप तो जानते  हैं ।हम बहुत गरीब  हैं । मेरी फीस के पैसे  के लिये एक रिश्तेदार ने सहायता की थी । उसी के बेरोजगार बेटे से मेरी ट्रेनिंग पूरी होने के पहले ही माँ पर दबाव डाल कर मेरी शादी करा दी 
मेरा पति  नपुंसक था । ससुराल  वाले पैसा देना बंद कर दिए।  मैं फाइनल एग्जाम नही दे पाई । मुझसे हर दिन  मार पीट करते ।  मुझसे कहते   ---- तेरी पढ़ाई में इतना पैसा लगाए हैं,ब्याज सहित सब  वसूल करेंगे। मेरे सास ससुर  मेरी देह का सौदा करने  के लिए विवश करने लगे । कहते शादी के बाद यही सब तो पति करता है ।इसमें   गलत क्या है ?  तू तो हमारे  लिए काम की न काज की पसेरी भर अनाज की ।तेरे खाने रहने का पैसा कहाँ से आएगा ?  वो लोग मेरा जीवन नर्क बनाने  में कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहते थे । 
               एक दिन मौका देख कर मैं भाग निकली। और छिपते छिपाते इतवारी पहुंच गई । घर के बाहर की दुनियां ओरतों के लिए बिल्कुल सुरक्षित नहीं  है । जान बूझकर मैं सफाई से नहीं रहती । भिखारिन की तरह रहती हूं ,ताकि इज्जत बची रहे । स्टेशन से कुछ दूर गुरुद्वारे के लंगर में खाना खाती हूँ । दिन भर  बर्तन साफ सफाई कर देती हूं ।जंहा जगह मिले सो जाती हूँ।
        रंजना ने अपने बैग से उसे एक जोड़ी कपड़े और कुछ पैसे दिए और अपना एड्रेस देते हुए  बोली --- साबुन खरीद कर नहा कर साफ सुथरी होकर चार बजे तक ऑटो से यहां आ जाना।
 आज से तेरी जिंदगी का नया अध्याय शुरू होगा ।
               रंजना के ससुर  रिटायरमेंट के बाद छोटे बच्चों का नर्सरी स्कूल चलाते हैं । उनसे मीना के बारे में बताया ।  उसे प्यून की नौकरी देने की सिफारिश की । वह बड़ी ईमानदारी और समर्पित  भाव से काम करती । घर मे सासू माँ  की सहायता करती। कुछ महीने बाद उसी स्कूल के चोकीदार से
उसकी शादी हो गई ।चौकीदार की पत्नी एक्सीडेंट में पिछले साल खतम  हो गई थी ,उसकी  दो साल की एक बच्ची है।
  डॉ चंद्रावती नागेश्वर
 रायपुर   छ ग 
 दिनांक 12 ,09 ,2021
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" शीर्षक"  -बुढ़ापे का सहारा
       कल्पना --  हलो कामिनी --  सुनो  सुशील का एक्सीडेंट हो गया है । उन्हें   सेक्टर 9 हास्पिटल में  ले जा रहे हैं... 
 कामिनी पति के साथ आधे घण्टे में  हॉस्पिटल पँहुची । कल्पना ने बताया --  कोई नौसिखिया कार चालक  मोड़ पर सुशील की स्कूटर को टक्कर मार कर  फरार हो गया। सुशील छै माह तक हॉस्पिटल में रहा, उन्हें दिल्ली,वेलूर भी रेफर किया गया।हर जगह कामिनी के पति गिरधर जी भी साथ गए। कामिनी ने  घर पर उनकी बेटियों को सम्हाला।  कामिनी  बोली - दीदी इन बेटियों की बिल्कुल चिंता मत करना पहले मेरी एक बेटी थी अब दो हो गईं।
 कामिनी का एक ही बेटा है, तुषार जो भोपाल  में B. E . कर रहा है। उसके  जाने के बाद कामिनी बहुत रोती रहती थी । तो तान्या को घर में ले जा कर रख लेती। कल्पना और  कामिनी चचेरी बहन हैं ।दोनो साथ पढ़ी हैं । दोनो की 
  आपस में खूब बनती है ,तो सहेली भी हैं । 
       सुशील के रीढ़ की हड्डी में ऐसी चोट  आई, कि लंबे इलाज के बाद भी पूरी तरह ठीक न हो पाए । उनके कमर से  नीचे का हिस्सा सुन्न हो गया। व्हील चेयर पर घर लौटे । 
       घर की आर्थिक व्यवस्था  चरमरा गई । उनके इलाज में कल्पना के गहने बिक गए।सुशील की नौकरी छूट गई। भिलाई में प्राइवेट ठेकेदार के पास  सुशील काम करते थे। किश्तों में दो कमरों का घर खरीद लिया था ,तो सिर पर छत बनी रही।कल्पना की  बड़ी बेटी तान्या दसवीं में, छोटी सौम्या आठवी में है।तान्या बचपन से कामिनी की लाडली है।बेटे के भोपाल चले जाने से घर सूना हो गया। तब से तान्या को गोद लेना चाहते हैं । अब दोनो परिवारों की आपसी सहमति से कानून वह उनकी बेटी बन गई । इस दुर्घटना के बाद तो उन्हें एक नहीं दो  बेटियां मिल गईं । 
          तुषार भैया पढ़ाई के कारण होली -दिवाली पर ही घर आते थे । B. E. के बाद M .B.A.  फिर नौकरी मिली तो मुम्बई चले गए । वहां से जर्मनी  के लिए चयनित हुए।वहां अपनी कलिग से शादी कर लिए।      
       तान्या भिलाई में ही रह कर बी कॉम करके C. A . की तैयारी करने की ओर अग्रसर है ।
          कल्पना ने  पति की देखभाल करते हुए,  टिफिन बनाने का काम शुरू किया । सौम्या बी .एस .सी. के बाद  गिरधर जी के बिजनेस में हाथ  
  बंटाने लगी। उनका बिल्डिंग मटेरियल का बिजनेस है।उनकी तबीयत अब ठीक नहीं रहती । हार्ट पेशेंट हैं।बेटे को बार बार वापस बुलाने की मिन्नतें करते।पर वह भारत आकर   रहना नहीं चाहता।
तुषार पहले तो दो -तीन साल में  माँ पापा से मिलने आ जाता ।अब आना तो दूर  उनसे बात भी नहीं हो पाती । कल्पना कहती -  ठीक है बेटा तेरी खुशी में अब हमारी खुशी है । भगवान को लाख लाख धन्यवाद कि समय रहते हमे सद्बबुद्धि दी और हमने बेटी गोद ले लिया । हमें बुढापे का सहारा मिल गया ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर   छ ग
दिनांक 15,  9 ,2021

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शीर्षक "जिम्मेदारी अपनी अपनी "
       आज वसुधा बहुत उदास बैठी है। शाम के सात बजे गए  हैं  न दिया बत्ती की, न लाईट जलाई । उसकी पड़ोसन  विमला ने  पास जाकर पूछा -- क्या हुआ ??? कमरे की लाईट भी नहीं जलाई। भाई साहब की तबियत ज्यादा बिगड़ गई क्या ?  
आंसू पोछते हुये वसुधा बोली --  क्या कहूँ बहन? नीरज       आज  शाम को ही बंगलोर चला गया ... 
 ये हॉस्पिटल में हैं। इन्हें हार्टअटैक आया है,अब खतरे  से बाहर हैं।हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो जाते तब जाता।इन्हें छोड़ कर चला गया। बोला  --  अब हालात पहले से बेहतर है । हॉस्पिटल में  अच्छे डॉक्टरों से इलाज हो रहा  है । माँ मुझे जाना होगा।मेरे लिए ये गोल्डन चांस है ।मेरे भविष्य का सवाल है। मैं नहीं रुक सकता। सोनल है न यहां सब कुछ सम्हाल लिया है उसने । तभी तो मैं निश्चिंत होकर जा रहा हूँ।
               मैं यू . एस .जाकर वहाँ अच्छे से अच्छे इलाज की व्यवस्था करवाऊंगा।आप चिंता क्यों करती हो ? पापा जल्दी ठीक हो जाएंगे ।बस थोड़े दिनों की बात है ।
   बारहवीं के बाद से नीरज B E, M.B.A फिर नौकरी के चलते 7 साल से बाहर ही है।अब तो परदेश जा रहा है ।अभी तक तो होली ,दिवाली,राखी  में घर आ जाता था ।   
 विमला - तुम्हारी सोनल तो बेटे से कम नहीं है । घर -बाहर के सब काम के साथ पढ़ाई में भी तो बहुत तेज है। इस साल  कालेज के फाइनल है न ?
  वसुधा --हां बहन सोनल ने रेस्टोरेंट का काम भी सम्हाल लिया है।अब  उसकी परीक्षाएं पास आ रही हैं पढ़ने के लिए जरा भी समय नहीं मिलता उसे। 
  सप्ताह भर बाद पति घर गए।डॉक्टर  ने  रेस्ट के लिए बोला है ।नीरज को फोन पर बताया - ओपन हार्ट सर्जरी करवानी पड़ेगी । तू वापस आ जा बेटा।छुट्टी नहीं मिलती तो नौकरी छोड़ के आजा ।  प....र....
 सोनल बोली- भैया ने तो मना कर दिया ... कहता है 3 साल का बॉण्ड है।नौकरी नहीं छोड़ सकता। नई नौकरी है तो7 दिन से ज्यादा छुट्टी नहीं मिल सकती । क्या करें ? समझ मे नही आता ।
     वसुधा ने अपने भाई को बुलवाया  मकान और रेस्टोरेंट गिरवी रख, वेलूर ले जा कर पति का इलाज करवाया । सोनल की परीक्षा की तैयारी नहीं हो पाई, ड्राप ले लिया।
        साल भर के बाद नीरज वापस भारत आया साथ में  अपने माता पिता के लिए अमेरिकन बीबी तोहफे में लाया ।
         आते ही बोला-  माँ पापा  शायद सो रहे हैं। मैं आप लोगों को साथ ले जाने का पक्का इंतजाम करके आया हूँ । आप तीनो के लिये  ऑन लाइन पासपोर्ट का फॉर्म भर कर एजेंट को लगा दिया था।देखो मैं साथ मे लेकर आया हूँ ।अब तीनों को अगले हप्ता वीजा इंटरव्यू देने  दिल्ली चलना  है । माँ  अब आप लोगों को कोई शिकायत का मौका नही दूंगा ।       डार्थी से शादी किया ,तो  मुझे महीने भर में ही वहां की नागरिकता मिल गई  है । हम कभी भी यहाँ आ जा सकते हैँ।महीने भर की छुट्टी मिली है ।मकान ,रेस्टोरेंट सब बेचकर हम चैन से वहीं रहेंगे। सोनल के लिए भी वहीं कोई इंडियन लड़का देख कर शादी कर देंगे।
  सोनल बोली--बस करो भैया।अपनी ही बोलते रहोगे कि हमारी भी कुछ सुनोगे ? जब से आये हो ,पापा के क्या हाल हैं, ये तो तुमने पूछा ही नही? हमने ये कठिन वक्त कैसे काटा ये जानने की जरूरत भी नहीं समझी ।
 अब वसुधा बोली - घर और रेस्टोरेंट बैंक में गिरवी हैं।वो    बिक नहीं सकता।सोनल की पढ़ाई,शादी,और कर्ज भी है।
नीरज --तो ठीक है ।पापा और सोनल  को बाद में ले जाऊंगा।पर माँ आपको तो मेरे साथ चलना ही पड़ेगा।वो कहते हैं न, कि बेटी -बेटे से ज्यादा नाती पोते प्यारे होते हैं ? तो आप भी दादी बनने वाली हो।आपकी बहू नौकरी करती 
है, बच्चा देखने वाला दादी से बढ़कर कौन हो सकता है ?
वसुधा --- बेटा तुझे हमसे अक्सर शिकायत रहती थी, कि हमने  तुम्हें   पब्लिक स्कूल में, नहीं सरकारी स्कूल में पढ़ाया। बहुत अनुशासन में रखा । तो बेटा जैसी हमारी हैसियत और समझ थी। उसमे जो बेहतर लगा वैसे पाला । अब तुम अपने अनुसार अपने बच्चों की परवरिश करो । यहां  हमे हमारे  हाल पर छोड़ दो ।अभी सोनल  की शादी की बड़ी जिम्मेदारी बची है । उसे हम अपने अनुसार  और उसकी इच्छा केअनुरूप पूरी करना चाहते हैं , फिर आगे की बाद में सोचेंगे । तुम खुश जहां रहो खुश रहो.....
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
 दिनांक 20 ,9  2021
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 शीर्षक  --- " प्रायश्चित की अधूरी चाह"
     चार साल से रोग शैया में पड़े M N D नामक पीड़ादायी असाध्य रोग से पीड़ित भानुदास  वर्मा पल -पल मौत को अपनी तरफ कदम बढ़ाते देख मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करते हुए एक दिन सोचे कि मोबाईल में अपने मन की बात को वॉइस रिकार्ड करवा लूं ।उन्होंने अपने भतीजे के 12 वर्षीय बेटे से कहा -  मैं अपनी आवाज में कुछ रिकार्ड कराना चाहता हूँ तुम कर पाओगे । अभय ने कहा -हाँ .... मैं ऑन करता हूँ  आप बोलिये -- हे भगवान कहते हैं कि - सच्चे मन से की गई प्रार्थना  में बड़ी शक्ति होती है । कुछ भी चमत्कार हो सकता है ।हे प्रभु -हे दया निधान ,दीनानाथ --
 मैं इतनी जल्दी मरना नहीं चाहता।बस ज्यादा नहीं तो पांच  साल  तो की जिंदगी तो मुझे दो। मेरे बच्चों को वो प्यार ,दुलार नहीं दे पाया जो मुझे देना था ।अपने कपड़ों की क्रीज खराब होने के डर से ,सू सू पॉटी के भय से कभी हुलस कर गोद में नहीं  उठाया । इस गलती को सुधारना चाहता हूँ , उनके बच्चों को  खूब दुलार करूँगा । सीधे साधे हीरे जैसे मेरे बच्चे उन्होंने सब जगह मेरा नाम ऊंचा किया । मैं उनका बचपन तो नहीं लौटा सकता पर   मन ही मन खुद को अपराधी मानता हूं ।अब अपने नाती पोते खिला कर ,उनके साथ खेल कर सारी कसर पूरी करना चाहता हूं । 
                मैं बेटों के जन्म पर अपनी अकड़ में रहकर कोई खुशी नहीं मनाया ,कोई पार्टी नहीं दिया । दोस्त, यार ,पड़ोसी सब उलाहना देते रह गए  और मैं टालता रहा । दरअसल मुझे बच्चे ,उनकी जिम्मेदारी बहुत बेकार लगते थे । मैं किसी मित्र, पड़ोसी ,रिश्तेदार के बच्चों को कभी गोद में नहीं लेता था।अब बच्चों की धूमधाम से शादी करूँगा । ऐसी पार्टी करूँगा कि लोग देखते रह जाएंगे । 
            भगवान मेरी प्रार्थना सुनले प्रभु ....अगर  पांच साल नहीं तो तीन साल तो दे दो मुझे।अपनी पत्नी पर जो शादी के बाद से तीस साल तक अत्याचार करता रहा हूँ । उसका तो प्रायश्चित कर लूँ । उसे खूब खुश कर लूँ । उसकी कमाई के पैसों से जिंदगी भर ऐश किया। दोस्तों के साथ खूब सैर सपाटे किया,कोई नई मूवी नहीं छूटती।
मँहगे मँहगे कपड़े पहने, होटलों में खूब खाया ,दोस्तों को और रिश्तेदारों को खिलाया । खूब वाहवाही लूटी।दरअसल मैं बहुत गरीबी  और अभावों में पला हूँ ।  खाने,पहनने को तरसा हूँ ।तो खाओ -पीओ और मौज करो ही मेरी जिंदगी का मकसद था।
 मेरी पत्नी  मुझसे ज्यादा पढ़ी,अच्छे परिवार की समझदार है, साथ ही कमाऊ भी ।घर ,बाहर अपने अच्छे व्यवहार के कारण उसकी तारीफ सुन सुन कर  मेरे मन में उसके प्रति ईर्ष्या और कुंठा पनपने लगी । मैं उसे नीचा दिखाने की कोशिश में बुरा बर्ताव करने लगा। वो जिस काम के लिए मुझे रोकती- टोकतीमैं जान बूझकर उसे तंग करने के लिए वही करता। गलत खान-पान ,आलसी- पन के कारण धीरे धीरे सुगर,बी पी,अस्थमा रोग की गिरफ्त में आ गया ।
 मैंने  घर के बाहर पैदल चलना लगभग बन्द कर दिया।मुझे लगता था। अब मेरा बेटा  दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल डॉक्टर में बन गया है, और मेरी सारी बीमारी का ईलाज हो जाएगा ।लेकिन जब एम्स में  मेरी MND विरल और अनोखी लाईलाज बीमारी के बारे में पता चला  कि पूरे विश्व में इसकी दवा नहीं है । तब भी मुझे विश्वास नहीं हुआ । पत्नी ने कहा- हो सकता है एलोपैथी में ईलाज न हो ।हम आयुर्वेदिक ईलाज के लिए केरल के कोटक्कल के सबसे बड़े अस्पतालआर्यवैद्यशाला में एक महीने तक  भर्ती रह कर सुपर स्पेशलिस्ट  डॉक्टरों द्वारा इलाज हुआ  उन्होंने भी  हाथ खड़े कर दिए ,एम्स हॉस्पिटल के सुविख्यात भूतपूर्व  डॉ. अग्रवाल जो जर्मनी से अध्ययन करके लौटे थे उनका इलाज कराया । उसके बाद तंत्र मंत्र विशेषज्ञ को बुलवाए ,पूजा पाठ,गृहशांति पूजन सब करवाया अब तो कोई उपाय ही नहीं बचा। हे प्रभु-- अब तू ही कोई चमत्कार कर सकता है ।  विगत तीन साल से दोनो हाथ और दोनों पैरों ने काम करना एकदम बन्द कर दिया है अपने सभी दैनिक कार्यों के लिए पत्नी पर आश्रित हो गया हूँ ।  बस दिमाग काम कर रहा है  देखने और सुनने की शक्ति ,सोचने समझने की शक्ति ,स्मरण शक्ति , बोलने की शक्ति अच्छे से काम कर रही है । मेरी पत्नी  पूरे मनोयोग से दिन रात मेरी सेवा में लगी रहती है।  मेरे मित्र ,परिचित,पड़ोसी ,रिश्तेदार सभी अंतिम दर्शन करके चले गए हैं। अब  बिस्तर में पड़े पड़े सोचता रहता हूँ --- कि  मैंने जीवन भर अपनी इसी पत्नी की जीवन भर घोर उपेक्षा की है। उसकी बीमारी, कमजोरी ,थकान, की कभी परवाह नहीं किया। यहां तक कि गर्भावस्था में भी कोई नौकर नहीं रखा ,न कभी घरेलू काम में कोई हेल्प नहीं
  किया ।ऐसा करना  मुझे बीबी की गुलामी करना लगता था।जो मेरे पौरुष की तौहीनी थी। पांच बार उसने गर्भ धारण  किया । तीन पूरे और दो अधूरे बच्चे हुए । मैं प्रसव काल में कभी हॉस्पिटल में नहीं रहा ।पहला बच्चा पैदा होने के 15 घण्टे बाद खत्म हो गया ।  आस पास के बेड वाले बताए। बच्चा रात भर रोता रहा सुबह  9 बजे जब मैं गया तो नर्स ने  बच्चे को मृत बताया ।  वह तो बेहोश थी । होश आने पर अडोस पड़ोस के लोगों ने उसे बताया।  मैं तो उसके सामने जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया ।  उसके मायके वाले उसेअपने साथ ले गए ।दूसरे ,तीसरे  प्रसव के समय कुछ दिन कोई आ जाता। अब भी मेरे स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया ।बीबी के पैसे उड़ाने का नशा छा गया था ।
    मेरे दिमाग मे ये बात भरी हुई थी कि घर का काम और बच्चे पालना  औरतों की जिम्मेदारी होती है ।
 बाहर का काम मर्दों का होता है, जो मैं बहुत अच्छे से कर रहा था ।मुझे उसका नौकरी करना पसंद नहीं था । वो अपने शौक के लिए कर रही थी । मेरी प्राइवेट कम्पनी में नौकरी थी ।उसकी सरकारी  ये भी  मेरे लिये कुंठा का कारण था। बार बार नौकरी छोड़ने कहता ।उसने कहा---मैं वचन देती हूं
--- मेरी नौकरीऔर कमाई के पैसे को कभी हमारी गृहस्थी में विवाद का कारण नहीं बनने दूंगी । मैं सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चों की पढ़ाई और उन्हें काबिल बनाने के लिए  है ।  
मेरी तो मौज हो गई।उसके पैसों पर कब्जा बना के रखा था। बैंक एकाउंट में उसे औऱ बच्चों को नॉमिनी तक नहीं बनाया । उसे मैं असहाय बनाये रखना चाहता था । जब तक बच्चे छोटे थे वह 3 -3 महीने में दो तीन दिन ब्रेक करके अवैतनिक अवकाश में  रही। जब स्कूल जाने लगे ड्यूटी जाने लगी ।  बच्चों  की पढ़ाई भी सरकारी स्कूल में हुई । अब उसने मुझे रोकना -टोकना बन्द कर दिया । उसकी जिंदगी का मकसद बच्चों को काबिल बनाना था । 
 बच्चों को बड़े अनुशासन में रखती। उनके टीचर से मिलकर पूरी जानकारी लेती। घर में पढ़ाती, ।सिर्फ  11th और 12th में ,मेथ्स,  फिजिक्स का टीचर नही था, तो ट्यूशन जाते। उसी की मेहनत से बच्चे  बड़े होनहार और टॉपर निकले ।इसका पूरा श्रेय मेरी पत्नी को जाता है।  
        मैं सोचता रहता हूँ,  मुझसे शादी करके उसे सिर्फ परेशानी  और कष्ट ही पाया। मैं उसके लिए कभी गहने और अच्छे कपड़े नहीं खरीदा । जब भी बोलती अभी पैसे नही है बाद में .... कहकर टाल देता । उस समय रसोई गैस नहीं था ,कोयला या लकड़ी जलाते ।बच्चेआठवी पढ़ने लगे तब गैसआया, 1995 में टीवी आया। वाशिंग मशीन तो बहुत बाद में खरीदा। मुझे नई बाइक का शौक था  , हर  दो साल बाद बाइक बदलता ।  मैं पत्नी की कभी तारीफ नहीं करता । उसकेअपने कोई खर्च नहीं थे।  हाथ मे दो दो चूड़ियां, बिंदी ओर पोंड्स पावडर यही उसका सिंगार था । वह स्वयं नौकरी कर रही थी ।वह चाहती तो मुझसे तलाक ले सकती थी । पर बड़ी सिद्धांत वादी और समझौता वादी है।सिलाई,बुनाई,कशीदाकारी में एक्सपर्ट है।  
      एम्स के डॉक्टरों ने बता दिया था कि मेरेपासअधिकतम 2साल की ही जिंदगी है ।पर पत्नी की सेवा की बदौलत  चार साल हो गए अभी तक जिंदा हूँ।
अब बीमारी अंदर की तरफ बढ़ गई है। बोलने में जबान लड़खड़ाती है,निगलने में परेशानी होती है । इस समय दिन रात ईश्वर से यही विनती करता हूँ ---
कि  बुढ़ापे  में उसे कोई दुख न देना। हे प्रभु  अगर जीवन में कभी कुछ अच्छा काम किया  हूँ तो  उसका जो भी पुण्य फल होगा ।मीना को देना ......आज मैं तेरे सामने स्वीकारता हूँ ,कि स्वर्ग और नरक  सबको यहीं भोगना पड़ता है। जिस घर को छोटी छोटी खुशियों से मैं स्वर्ग बना सकता था।मैंने उसके लिए यातना स्थल बना दिया ।बीमारी में इन चार सालों में जो मैंने जो तकलीफ झेला।  रौरव नरक से कम नहीं है । मेरी मीना  जैसी पत्नी सबको देना ,लेकिन मेरे जैसा पति किसी को मत देना ......... विदा   ...विदा  ....खुश रहना ....
 प्रस्तुति :---
 डॉ चंद्रावती  नागेश्वर
 22  -9--2021

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