Thursday 7 October 2021

लघुकथा श्रृंखला 42 --- " स्वागत उज्ज्वला का " बहादुर बेटी सरोज , "टीचर जी कीतीसरी सन्तान " ममता की तड़प,

 शीर्षक --"-स्वागत  उज्ज्वला का" (समानता की नई पहल)
        आज अंजना जी अपने पति  अमित अग्रवाल जी के साथ बुलन्द शहर से महाराष्ट्र के पुणे शहर के लिए रवाना हुई हैं । पति तो ऊपर  जाकर सो गए। अंजना की आंखों में दूर दूर तक नींद नहीं है । उनका गुजरा हुआ कल उनके सामने आ कर खड़ा हो गया । शादी के नौ साल हो गए ।आज भी उनकी गोद सूनी है । परिवार वालों और रिश्तेदारों के ताने सुन सुन कर हताश  हो गई थी। डॉक्टरी जांच से पता चला कि  --- वे माँ नहीँ बन सकती । पति दूसरी शादी के लिए तैयार नहीं हैं । किसी ने कहा  बच्चा गोद ले लो ।  किसी ने कहा  सेरोगेट मदर की सहायता ले लो । 
पर वे नहीँ मानें ।
    अमित जी ने कहा --  मुझे शादी के सात वचन अच्छी तरह याद हैं । विवाह के  हर सालगिरह के दिन हम दोनों उसे दोहराते हैं।
  हम एक दूसरे  के पूरक हैं । कुछ न कुछ कमी हर इंसान में होती है । हमे उन कमियों और खूबियों के साथ निभना है।
 शायद ईश्वर हमे सन्तान न देकर कुछ और अच्छा काम कराना चाहता है । उन्होंने अंजना से कहा --  हम ऐसा बच्चा गोद लेंगे,  जिसे समाज नहीँ स्वीकारता ।  लोग कुत्ते ,बिल्ली, खरगोश,कछुवा , बन्दर ,यहाँ तक कि सांप भी पालते हैं ।
 हम किन्नर बच्चा गोद लेंगे । उन्होंने गूगल सर्च में डाल रखा था ।अब जाकर उनकी प्रतीक्षा पूरी हुई है ।
 आज वो दिन आ गया है, कि हम ऐसी ही 4 माह की एक   को गोद लेने जा रहे हैं।  जिसे कोई अपनाने को तैयार नहीं है ।यहाँ तक ,कि सरकारी अनाथ आश्रम ने भी अपने यहाँ रखने से इनकार कर दिया है ।
             इस नवरात्रि में हमारे लिए इससे बड़ा उपहार क्या हो सकता  है?
उन्होंने  किन्नरों की ,लांछित ,प्रताड़ित ,उपेक्षित जिंदगी को बहुत करीब से देखा है। उनकी पीड़ा को पहचाना है। उनका एक मित्र किन्नर है । अमित जी भिलाई में मामा के घर मे रहकर  पढ़ाई करते थे। ट्रेन से रोज भिलाई से रायपुर कालेज पढ़ने जाया करते थे , तभी  उससे पहचान हुई । जो  दोस्ती में बदल गयी । उन्होंने  उसकी पढ़ाई में आर्थिक सहायता की  । बैंक से लोन दिलवाया । आज वो बड़े  दुकानदार हैं ।
               बुलन्दशहर में अमित जी के चचेरे भाई रहते हैं।
  वहां उनकी पुश्तैनी जमीन है।वो दोंनो मिलकर बुलन्दशहर में किन्नरों के लिए एक  धर्मशाला बनवाया है। जो भारत का इस तरह का पहला धर्म शाला है । पहले समाज से  चोरी छुपे मित्र  से मिलते ,उसकी सहायता  करते । अब बेटी को गोद लेने का फैसला करके,  बिना किसी हिचक के  इस काम को करने का बीड़ा उठाया है । अब तो इस काम में उनकी पत्नी भी समर्पित है ।
         अंजना जी ने  चेतना किन्नर कल्याण समिति बनाई है जिसमे उनकी तरह समर्पित भाव से काम करने वाली  सात महिलाएं और हैं। वे सातों   बच्ची के स्वागत में स्टेशन पर आने वाली हैं।  गोद पुत्री के  नामकरण संस्कार  पर बहुत बड़े जश्न का आयोजन  होने वाला है  । सबने मिलकर सोचा है कि  उसका नाम उज्ज्वला रखा  जायेगा ।  इसके बाद किन्नरों के लिए एक आवासीय स्कूल का भी  शिलान्यास  किया जाएगा।
डॉ चंद्रावती नागेश्वर 
 रायपुर   छ  .ग.
 6  '10  20 21
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 शीर्षक ---" बहादुर बेटी सरोज "
बस्तर के बीहड़ जंगल मे इंद्रावती नदी के किनारे बसे गांव सेन्द्रीपाली में परिवार के साथ रहती है।
मिट्टी का कच्चा घर है खेती किसानी करके दो जून का जुगाड़ हो जाता था। एक दिन कुछ नक्सली आये  और पिता को बाहर बुलाकर बात किया । पिता के इनकार करने पर पिता ,मां ,बड़े भाई सब को गोली से मार डाला।
उस दिन सरोज अपने मामा के घर गई हुई थी। उसकेबाद से वह अपने घर कभी नहीं लौटी ,आज दस साल बाद  पढ़ लिख कर नौकरी जॉइन करने पुलिस बनकर थाने में आई है।
   थाने दार एवम अन्य पुलिस कर्मियों ने बड़ी गर्म जोशी
से उसका स्वागत किया।
जब पुलिस विभाग में उसकी पोस्टिंग हुई तो कोंटा जिला मुख्यालय में पूछा गया - कि महिला है -नई नौकरी है-नई उमर की है । कुछ दिन  यहीं  अटेच कर देते हैं  । 
सरोज ने बड़ी विनम्रता से कहा -  मैं सेन्द्रीपाली एरिया में जाना चाहती हूं  । थानेदार ने ध्यान से उसे देखा ।फिर कहा - उस बीहड़ जंगल के नक्सली इलाके में पग पग पर
मौत का खतरा मंडराता रहता है ।
सरोज ने कहा -- मौत तो एक दिन आनी ही है सर,  मैं किसी मकसद से पुलिस विभाग में आई हूँ । मेरी मौत तो आज से दस साल पहले हो गई होती । ईश्वर ने मुझे मेरे माता , पिता भाई के कातिलों से बदला लेने ही जिन्दा रखा है। 
मैं खतरों से नहीं डरती  । बहादुरी  से उनका सामना करते हुए अपने लक्ष्य को पाना चाहती हूँ । 
  खुश होकर थानेदार ने उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा ---  सच कहती हो सरोज "   बहादुरी "  सिर्फ पुरुषों की
जागीर नहीं है  यह तो एक जज्बा है ,जुनून है।
ईश्वर तुम्हारी रक्षा करे ,कामयाबी दे  ।

  डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर ,छ ग
9 , 10 ,2021

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शीर्षक  ---  "तीसरी सन्तान"

                रमेश के पिता मोहित विश्वास  भोपाल के केंद्रीय विद्यालय में  T.G .T. हैं ।  आजकल वे अपने बेटे के कारण बहुत परेशान रहते हैं। रमेश  अभी नवमी ही पास किया है । रमेश शुरू से शान्त स्वभाव का, लेकिन पढ़ने में होशियार है । पर अब कुछ दिनों से स्कूल नहीं जाना चाहता, पढ़ने लिखने में उसका मन नहीं लगता। एक टीचर के लिए यह बड़े अफसोस की बात है। कि उसका खुद का बेटा पढ़ना
ही नहीं चाहता ।     
 वह स्कूल पिता के साथ ही जाता।पर असेम्बली के बाद  मौका  देख कर  स्कूल से गायब हो जाता । अकेला ही मन्दिर में,गार्डन में,नदी के किनारे, घण्टों बैठा रहता। मार पीट कर, सजा  देकर ,समझा कर देख लिया  कोई सुधार नही हुआ। 
उसे साइकोलॉजिस्ट को दिखाया गया, डॉक्टर ने परिवार की हिस्ट्री पूछी तो उन्होंने बताया -लक्ष्मी और ललिता  नाम की दो बेटियों के सात साल बाद बहुत मन्नतों के बाद उनके यहाँ  पुत्र जन्मा है। उनके दादा के नाम पर रमेश नाम रखा गया।उसे सबसे ज्यादा लाड़ दुलार मिलता है।
          जब डॉक्टर ने उससे अकेले  में कई बार बात किया। तो उसने बताया ,कि मेरे साथियों की दाढ़ी मूछ निकलने लगी है ।पर मुझमे इस तरह का कोई बदलाव नहीं आया। सब मुझे चिकनू  कहकर चिढ़ाते हैं । मेरे सीने में उभार आने लगा है । मेरे साथी मेरा मजाक बनाते हैं। डॉक्टर ने कहा कि --  वास्तव में रमेश लड़का नहीं लड़की है ।इस उम्र में हार्मोनल चेंज आते हैं ।ये चेंज स्पष्ट संकेत दे रहे हैं । इसे दिल्ली  एम्स हॉस्पिटल में दिखाना होगा। मोहित को सरकार की ओर से फ्री मेडिकल सुविधा मिलती है । दिल्ली में  सारी जांच हुई वहां पता चला ,कि वह  किन्नर है।उसके शरीर में मेल हार्मोन नहीं बन रहे हैं ।फिमेल हार्मोन ही विकसित हो रहे हैं। तमिल नाडु में सेक्स चेंज ऑपरेशन करवाना पड़ेगा। अविकसित बाह्य अंग को  हटा दिया जाएगा। ऑपरेशन के बाद वह सामान्य जिंदगी जीने लगेगा । मोहित सर ने अपना ट्रांसफर तमिलनाडु  में करवा लिया।     
    आपरेशन के बाद  रमेश रमा बन गई ।  रमा अपने इस नए रूप में बहुत खुश है।।डॉक्टरों ने बताया कि रमा की शादी हो सकती है ।वह सहज रूप से अपना दाम्पत्य जीवन जी सकती है। पर सन्तान को जन्म नहीं दे सकेगी।संसार में ऐसे कितने ही दम्पत्ति हैं जिनके सन्तान नहीं  हो पाते । रमा भी किसी अनाथ बच्चे को गोद ले सकती है । कोर्ट में  डॉक्टरी प्रमाण पत्र  देकर नाम परिवर्तन कराया गया ।
            तीन साल के अन्तराल के बाद रमा ने फिर से पढ़ाई शुरू की ।  होम ट्यूशन और कड़ी मेहनत के बाद बारहवीं बोर्ड की परीक्षा 75℅ अंको से पास किया। चेन्नई के ब्रिलिएंट कोचिंग सेंटर  मे P M Tकी तैयारी किया। पी .एम .टी  . में चयनित हुआ। कुछ दिनों बाद चेन्नई मेडिकल कालेज में उसका  एडमिशन होने वाला है । पांच साल बाद पढ़ाई से कतराने वाला वही बच्चा  डॉ रमा विश्वास बनकर किन्नरों के पुनर्वास हेतु काम करने के लिए कटिबद्ध है।
                      मोहित सर का पूरा परिवार उन दिनों  बड़े मानसिक तनाव को झेला। बड़े धैर्य और समझदारी से आसन्न परिस्थितियों का  सामना किया। आज उन्हें इस बात का गर्व है ,कि उनकी तीसरी  सन्तान  डॉक्टर बनने की राह पर चल पड़ी है। उसमें प्रतिभा,क्षमता  ,और इच्छा शक्ति की कोई कमी नहीं है । वे तो यह सोचकर खुश हैं, कि उनकी रमा समाज सेवा के क्षेत्र में नया आयाम गढ़ने वाली है ।
 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर   छ ग
दिनांक 14  ,10  ,2021

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शीर्षक --"तड़प नवजात के लिए " /ममता की तड़प

          आज कंचन के  नवजात पुत्र को गुजरे 10दिन हुआ है। आज नव प्रसूता को हास्पिटल से छुट्टी मिली है। वह किसी से बोलती भी नहीं ।खाना पीना सब त्याग दिया है।  दुखी मन से खिड़की के पास बैठी रहती  है ।   उसकी आँखों मे होलिका दहन की       धधकती ऊंची ऊंची लपटें  दिखाई देती हैं। उसके मनके अंदर भी इसी तरह की शोकाग्नि की लपटें उठती रहती है । आँखों से अविरल अश्रु प्रवाहित होते रहते हैं। अपने किस्मत को कोसती रहती थी। पति ने एक दिन की भी छुट्टी लेकर उसे ढ़ाढ़स नहीं बंधाया।
 उसके पति प्रकाश कालेज में पढ़ते थे तब किसी लड़की को पसन्द करते थे।  शादी  करना चाहते थे। किंतु प्रेमिका की शादी कहीं और हो गई। इसके तीन साल बाद कंचन से प्रकाश की शादी हो गई।  कंचन का सांसारिक जीवन   सामान्य किंतु  भावशून्य ही रहा।  ससुराल वाले समझाते हैं,धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा।
बच्चा कोख में आया तब से कंचन के मन में उम्मीद जागी कि उसे नहीं  तो अपने बच्चे को चाहेँगे। बच्चा दोनो को
जोड़ने की  कड़ी बनेगा।
          होली के दिन ही उसकी पहली संतान आलोक का जन्म हुआ ।पूरा हास्पिटल उसके रुदन की आवाज से गूंज उठा  था ।कस्बे का कुल40 बेड का प्राइवेट अस्पताल था 
कंचन की  हालत  ठीक नही थी ।वह दर्द से छटपटाती रही । ऑपरेशन के लिए ब्लड की जरूरत थी। पर वह अकेली है ।उसके पति तो हास्पिटल में भर्ती करके नाइट ड्यूटी पर चले गए ।तब फोन और मोबाइल का जमाना नहीं था । 
   रात में लाभग ड़ेढ़ बजे मरणांतक पीड़ा झेल कर बेटे को जन्म दिया । उसके बाद उसकी आंखे बंद होने लगी। वह अचेत हो गई । कुछ भी याद नहीं रहा।  सुबह 4 बजे उसकी मूर्च्छा टूटी । दोनो हाथ टेप से चिपके हुए थे बाटल लगा हुआ था । थोड़ी दूर पर नवजात बच्चे  के कार्ट में से लगातार रोने की आवाज उसे बेचैन कर रही थी। उसका मन कर रहा था ,कि बच्चे को उठा कर सीने से लगा ले पर वह करवट भी नहीं ले सकी।उसने शक्ति भर जोर लगा कर  आवाज लगाई सि..स्टर...सि...स्टर....
 दरवाजे पर ऊंघती सफाई कर्मी नर्स को बुला लाई । उसे स्टेचर पर दूसरे रूम में शिफ्ट किया गया । कंचन ने 
कहा ---सिस्टर मेरा बच्चा मुझे दे दो ---
 सिस्टर---अभी  नहीं । तुम्हारे पति के
आने के बाद।
           कंचन बडी बेसब्री से पति का इंतजार करने लगी ।उसे लग रहा था ,कि दीवार घड़ी का कांटा  जल्दी क्यों नहीं बढ़ रहा है। शाम को उसके पति आये साथ मे पास पड़ोस की5- 6 लेडिस भी मूक खड़ी हो गई । 
कंचन नेपति से पूछा -- हमारा बच्चा कहाँ है??? मेरे पास लाते क्यों नहीं???
मैं अभी आया कहकर पति बाहर निकल गए ।
 मोहल्ले वालों से पता चला कि --- उसका बच्चा सुबह 6बजे दम तोड़ चुका है। मुझे मेरा बच्चा चाहिए ..... 
चाहे मरा हुआ हो या जिंदा .....
एक बार तो उसे गोद मे लेने दो ....
सीने से लगाने दो ....  नौ महीने तक मैंने हर पल  अपनी हर धड़कन के साथ उसके हर  स्पंदन को महसूस किया है ।उसके जन्म के बाद मुझे मौत क्यों नहीं आई । अब मैं जी कर क्या करूंगी ??
  कभी वह ट्रक के सामने जाने की कोशिश करती।कभी उसे लगता कि घर के पास वाले तालाब में जाकर जान दे दे । 
  उसका पति ही उसे मरने के लिए हॉस्पिटल में छोड़ कर  चला गया । कैसा हृदयहीन  पिता है ,जिसे अपने रोते हुए नवजात बच्चे को गोद मे लेकर की चुप कराने की चाहत नहीं जागी। हॉस्पिटल के अनजान,बेगाने लोगों के बीच प्रसव पीड़ा से तड़पती पत्नी को छोड़ कर चला गया ।
 ऐसा बेदर्द औऱ  लापरवाह आदमी भी हो सकता है ।सामान्य इंसान के बारे में यह कल्पना नहीं की जा सकती। सकती। कंचन को  उसके  मायके वाले आकर ले गए । बड़ी मुश्किल से उसे सम्हाला।  वह  अपने पति के पास वापस आने को किसी भी तरह राजी नहीं हुई । पति नाम के रिश्ते से उसे नफरत हो गई । उसे लगता कि उसका बच्चा बदल दिया गया । पति वहाँ होता तो  उसका बच्चा नहीं मरता ।और यदि मान लो मरता भी तो पिता की बाहों में दम तोडता, उसे मृत बच्चे को क्यों नहीं दिखाया गया ??
  उस रात केवल कंचन की ही डिलेवरी हुई थी। हॉस्पिटल 
का रिकॉर्ड  में यही दिखाया गया।  जीवित मेल चाईल्ड 22 मार्च सन 1979 नार्मल डिलेवरी 5पौंड  कंचन सहाय पति।प्रकाश सहाय उम्र 26 वर्ष .......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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