Monday 22 June 2020

अनुभूति के आँगन मे -- गीतिका क्रमांक 1मन का मौसम, 2भूल गये ,3 नारी की व्यथा 4वस्त्र, 5 नभ पर बादल 6 जल प्रलय------------------------–- ---------- - -------------


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मन का मौसम आज यूं ही बदलने लगा है
साँसो की खुशबू का रंग सिमटने लगा है ।
     सांझ की बाहों में सूरज पिघलने लगा है 
    रात की रानी को देख चाँद चहकने लगा  है ।
फूलों के खिल ने  से उपवन महकने लगा  है 
उनके कदमों की आहट से  सरगम मचलने लगा है ।
        गीत कोई सुरमई अधरों पर थिरकने लगा  है 
        चुप्पी का दामन हौले से सरकने लगा है ।
आँगन का सूना कोना चहकने लगा  है 
संयम का शीशा दरक कर बिखरने लगा है ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग

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         22/06, 2020   ( 1:47 pm) Chandrawati Nageshwar:
 फल खाना बस याद रहा, पेड़ लगाना भूल गए 
काटे बांटे सब मिलकर ,फ़र्ज निभाना भूल गए ।

उजड़ गए वन उपवन सब,हरण किया चीर धरा का
खूब कमाया पढ़ लिख कर, कर्ज चुकाना भूल गए ।

दिया अन्न भर पेट इन्हें,  फूल कली पत्ते नोचें
सुविधा  पाना याद रहा ,मोल चुकाना भूल गए ।

खूब पिलाया जीवन रस,देह बनाया है सुंदर
पूत कपूत बहुत निकले ,धरती माँ को भूल  गए ।

खूब उड़ाया धूल धुंआ , पेड़ गिराया काट -काट
हक की बातें याद रहीं,कर्तव्य जरूरी भूल गए।

आंख दिखाया,खूब डराया, फिर भी चेत नहीं आया, 
मिला  जब दंड उनको तो  ,सारे तिकड़म भूल गए।

डॉ चंद्रावती नागेश्वर
राय पुर छ ग
22/6/2020
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फल खाना बस याद रहा, पेड़ लगाना भूल गए 
काटे बांटे सब मिलकर ,फ़र्ज निभाना भूल गए ।

उजड़ गए वन उपवन सब,हरण किया चीर धरा का
पूत कपूत बहुत निकले , कर्ज चुकाना भूल गए ।

  फूल कली पत्ते नोचे     ,पेड़ काट कर नष्ट किया
   सुविधा पाना याद रखा ,उपकार  सभी भूल गए।

   शायद सुधरो  आस बढ़ी ,  फिर से मीठे आम दिए
   शक्ति संचित कर हरी हुई, ममता मेरी भूल गए ।
      
   तन मन मेरे जख्म भरे ,फिर भी दिल में दुआ भरी
अंत निकट है चेत जरा , रब की महिमा भूल गए।
    
बारिश के इस मौसम में ,पेड़ लगा लो जी भर के
सबसे उत्तम मानव धर्म ,यही बात सब भूल गए ।

डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग

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नारी मन की व्यथा --लावणी छंद में--16  --14

नहीं किसी की मैं दुश्मन हूँ, नाम मिला मुझको नारी
  धरती धरा भूमि सी हूँ मैं,नाम मिला मुझको नारी ।

बंधी बंटी हूं मैं रिश्तों में,    पत्नी प्रिया मोहिनी हूँ
कभी कामिनी कभी कालिके, माँ बेटी बहन प्यारी।

मैं भी मनुज तुम्हारे जैसी, तन मन मेरा भी थकता
हार न मानी मैं गैरों से,   अपनों के छल से हारी ।


  अगणित रत्न कोख में पाले, बने संपोले से जो डसते
 अष्ट भुजी सी काम करुं मैं,   फिर भी बेबस बेचारी ।

 भोग वासना में डूबे जन  हा हा कार मचा मन में
जी लोगे यदि अहम छोड़ कर, रहूँ तुम्हारी आभारी।

कर अपमानित नारी को नर,खुद को बड़ा मन लेता
साँचा बनकर गढ़ती मानव, मुझ पर यह जिम्मेदारी ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
सिवनी
16 .6 .2020

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बादलों का सौंदर्य

नभ पर छाए  काले बादल  ,सबके मन को भाते हैं
दौड़ रहें हैं हिरना जैसे , जन मन को हर्षाते हैं ।

कभी विदूषक से लगते हैं ,नया रूप क्षण क्षण धरते
कभी शेर बन गरज गरज कर , सबको खूब डराते हैं।

भर भर सागर से गागर ये ,ले जाते हैं अम्बर में
भरे अंजुरी उसे उड़ेलें , जग की प्यास बुझाते हैं।

भीषण गर्मी जब पड़ती है ,बढ़ जाता है कोप सूर्य  का
आँचल में ढंकते दिनकर को, राहत हमें दिलाते हैं ।

रौद्र रूप लेचंचल बिजली , तमक तमक कर जब चमके
इसी चंचला बिजली को भी, गोद  लिए दुलराते हैं ।

कभी रूठना ना हमसे तुम ,सदा निवेदन यही करें
नील गगन के काले बादल , मन विश्वास जगाते हैं।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग

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मुक्तकलोक -319
“ शब्द लोक”
प्रदत्त शब्द- कपड़ा/ वसन/ वस्त्र / चीर....

   -मनुज सभ्यता की कथा,जग विकास सोपान
     जैसा हमने था सुना ,    उसका किया बखान।

   सभ्य बना मानव तभी, पहना जब से चीर 
   वन-वन में विचरण करे , बना बलिष्ठ शरीर।   

    अम्बर का परिधान था ,गुफा पेड़ पर वास
    जीव जंतु  का भक्षण करे ,    देवे    मौसम  पीर।

      बचने वर्षा धूप से   ,  वसन बना तब छाल
    फल अन्न की खोज किया,  भाया नदिया नीर।
    
       पशुपालन भी सीख वह ,   चाहे घर परिवार
       संग साथ अपने रहें ,      पाया  मन  में धीर।

         बोली भाषा सीख कर  , बदला जीवन रूप  
         सभ्यता  का सार यही , तन मन सुंदर चीर।

         डॉ चंद्रावती नागेश्वर
           रायपुर  छ ग
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    जल प्रलय :---
जल प्रलय सा दृश्य है ,जीवन हरता नीर
अति वर्षा से क्षति बहुत, फूटी है तकदीर।

जल थल नभ सब एक हैं, मुश्किल में है प्राण
वर्षा हो यदि अल्प तो,    बढ़ता  जीवन पीर ।

दूषित जल की वजह से , उपजे हैं  कई रोग                     निर्मल नीर मिले नहीं , मानव हुआ अधीर ।

जल रक्षण का प्रश्न अभी,  बना हुआ विकराल
व्यर्थ  बहे  न नीर  कभी , हालत  है गम्भीर ।

जल  संकट है विश्व  , बिन पानी सब सून
घटते जंगल देश के ,     बदले है तस्वीर ।


देता अम्बर जल बहुत , कीमत करें न लोग
जल संकट है विश्व में , हालत है गम्भीर ।

डॉ चंद्रावती नागेश्वर
दि22 7 2020
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है इंद्र धनुष सा मेरा मन
है इसके जैसा यह जीवन।

जीवन के होते कई रंग
सुख  दुख के इनमें खिलें सुमन।

कभी राह में कांटे चुभते
कभी नींद में दिखते मधु बन।

इन सपनो के इंद्र धनुष को
लिये गगन में उड़ता है मन।

चट्टानों से ये कभी डरे
या सीढ़ी सा कर चढ़े गगन।

कोमल मन करे कमाल यही
 स्वामी तन का जग करे नमन।

पाषाण ये काले बेडौल
कोमल से दिल का करें जतन।

नभ में उड़े जो दिल के रंग
बन के इंद्र धनुष मोहे मन ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
सेंटाक्लारा

आज एक गीतिका आप सभी के लिए
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अब छोड़ो भी तकरार प्रिये
क्यों नोंक झोंक हर बार प्रिये
.
खुशियों की बारिश में भीगो
गम से हो क्यूँ बेज़ार प्रिये 
..
ये धरती क्या ये अम्बर क्या 
अपना सारा संसार प्रिये 
..
औरों की बातें छोडो अब 
जी लो अपना किरदार प्रिये 
..
उम्मीदों की परवाज़ भरो 
हर स्वप्न करो साकार प्रिये 
..
हो त्याग समर्पण प्यार वफ़ा 
इस जीवन का आधार प्रिये 
..
जैसी करनी वैसी भरनी 
ये सत्य करो स्वीकार प्रिये 

रमा प्रवीर वर्मा .....

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