Thursday, 2 August 2018

हरि गीतिका --क्रमांक 1

1     जब जान के गलती हुई, उसमें सजा हमको मिले
     मन मान ले परिणाम से, मन भावना उसकी खिले।
        अब सोचलें हम भूल पर,कुछ ध्यान दें आगे चलें
      इक दूसरे को समझ लें, अब तो रहें मिल के गले ।

2        यह प्रीत का संसार है,दिल मे बसा कर देखिये
      यह प्रीत तो अद्भुत मगर, सोचकर ही अपनाइये।
      मुख देखते सब गैर के,खुद पहल क्यों करते नही
   मिल कर करें तब ही मिले,हल खोज लें पहले सही ।

3         यह श्रावणी मन भावनी,शिव अर्चना       कर लीजिये
अति पावनी सुखदायिनी,शुभ काम तो कुछ कीजिये।
  इस माह में नव पौध रो,पण की शपथ अब लीजिये
      इस भूमि में सहभागिता,सुख संपदा भी पाइये ।

4: मन कामना हो फलित अब,प्रभुवंदना नित कीजिये
   सब हो सुखी जीवन सहज ,अब पथ यही अपनाइये।
     हो पावनी मन भावना,कुछ पुण्य संचित कीजिये
अनमोल है जीवन समझ ,कुछ सोच तो अब लीजिये ।
 

5       कटते रहे वन हरित तो,श्री हीन जग हो जायगा
         धरती यही कहती सदा, रे मनुज फिर पछतायगा।            करवट बदल मन आज जागा, स्वागतम इसका 
       करें ।
   सुख अगर कुछ दे सकें तो हम, भूमि  की पीड़ा हरें ।
  

  

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