Saturday, 15 September 2018

हरि गीतिका - क्रमांक 10

1       शुभ आगमन है सूर्य का,अब भोर वंदन हम करें
        दिनकी करें शुरुआत अब,आभार से शुभता भरें।
    तालाब में खिलते कमल,शीतल पवन सुखकर लगे
          होती सुबह की सैर तो,सेहत मिले मंजिल जगे।

2  गहरी निशा छाया तिमिर,रवि  किरण ही सब दुख हरे
       भेद कर तम दिन मान हो,नव सूर्य का अर्चन करें ।
              कोई जन्म लेता कहीं,कोई गमन करता यहीं
         कुछ फैसले भगवान ही ,करते यहां जो हम नहीं।

 
  3.     क्रम है चले जीवन मरण,कोई अमर रहता नही
        फल कर्म का पाते सभी,सबका रहे खाता बही ।
      माफी यहाँ मिलती नही,यह है नियम जग के लिये
       मानव करे सत्कर्म तो,सुखकर धरा सब के लिये .

4   हम नारियां मन में सदा,करती दुआ सब केलिये ।
   खुद सरित सी बहती रही, मिटती रही जग के लिये।
   रहती तृषित इनकी तृषा,पथ तृप्ति का जग के लिये
      यह दूब सी रहती अमर,बनके हरी जड़ को लिये ।

5    
[17/09, 09:50] डॉ चंद्रावती नागेश्वर: वह कारवां बढ़ता रहा,यह जिंदगी ढलती रहीं
मन कामना बन रेत कण ,वह खो गई तब से यहीं।
मन टूटते पथ छूटते,पर आस तो छूटे नहीं
बिखरे रहे उठ के हमीं,पहुंचे जहाँ  मंजिल  वहीं।

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