1 : कुंदन सी निखरती रहूँ ,है यही तो कामना
शूल पथ रोकें अगर तो,पल पल करुण सामना।
काम आऊं देश के मैं,है यही मन भावना
राह से भटकूं कभी तो,हे प्रभो तुम थामना।
2 पूछता मन सूर्य से है,क्या कभी थकतेनहीं
रात दिन यूँ ही फिरे हो, क्या ठिकाना है कहीं।
काम करते रात दिन तुम,क्या बड़ा परिवार है
सोचते उनके लिए ही, बहुत जिनसे प्यार है।
3 लक्ष्य पाते हैं वही तो,माने नहीं जो हार हैं
चोटियों पर जो चढ़ा गिरता, वही सौ बार है ।
लक्ष्य पाने के लिये वो,दे उसी पर ध्यान है
जिंदगी भी जंग होती,जीत देती शान है ।
4 उड़ रहा है मन पतँग बन ,बादलों की ओर है
ये गिरेगा भूमि पर जब ,टूटती यदि डोर है।
देह बल पर झूमता नर, हीन बल होता तभी
सोचता होकर दुखी वह,चैन खो देता सभी ।
5 झांकती मन के झरोखे ,से सदा हँसती हुई
देह माता से मिली है, नेह में भीगी रुई ।
नीर तुलसी में चढ़ाती,शाम रखती दीप है
सौम्य छवि उसकी कहे ये,हृदय ही तो सीप है।
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