आल्हा छन्द --क्रमांक - 1
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1 बेटी से घर रोशन होता,दोनो कुल फैले आलोक
घी के दीपक घर मे जलते ,दूर हुए हैं सबके शोक ।
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2 बेटा होता सोने जैसा, कहते रहते सारे लोग
बेटी भी है हीरे जैसी,मिलता प्रेम और सहयोग ।
3 मन करता है कुछ कहने को,कह लो अब तुम मन
की बात
खुशियाँ भरी बयार चली है, भरे मोद मन में बरसात ।
4 झूम रही है डाली डाली, नाच रहें हैं सारे पात
दादुर मोर पपीहा नाचें, भीगी भीगी है हर रात ।
5 है ये बाधा बहुत घनेरी, देखो कदम उठाना सोच
घिर कर आई रात अंधेरी ,आ न जाये पांव में मोच।
6 रघुकुल तिलक राम हैं आये,पूर्ण हुआ उनका वनवास
असुर निकंदन दशरथ नंदन,लाये हर्ष और विश्वास।
7 लंका जीते वापस लौटे,दीप जले हैं सबके द्वार
झूम उठी है आज अयोध्या,मनाते खुशियों का त्यौहार।
8 चिंता करो नहीँ तुम भैया,छत्तीसगढ़ के मीठे बोल
जो बोले हैं वे ही जाने,मिसरी देय कान में घोल।
9 अपनत्व प्यार के बिना लगे,जीवन बीते है अनमोल
आल्हा पढ़ कर लगता ऐसे, जैसे गूंज रहे हैं ढोल ।
10 वीर बहादुर छुपे कहाँ हो, भारत माता करे पुकार
त्राहि त्राहि जनता करती,बढ़ा खूब है अत्याचार ।
11 चुन चुन कर अब मारो इनको, शीष काट कर भूमि उतार
भार लगे है सबको जीवन,इनका कर दो तुम उद्धार ।
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