Thursday, 29 November 2018

आल्हा छन्द - 1क्रमांक


आल्हा छन्द --क्रमांक - 1
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1     बेटी से घर रोशन होता,दोनो कुल फैले आलोक
    घी के दीपक घर मे जलते ,दूर हुए हैं  सबके शोक ।

2        बेटा होता सोने जैसा, कहते रहते सारे लोग
      बेटी भी है हीरे जैसी,मिलता प्रेम और सहयोग ।

3  मन करता है कुछ कहने को,कह लो अब तुम मन
     की बात
   खुशियाँ भरी बयार चली है, भरे मोद मन में बरसात । 

    4   झूम रही है डाली डाली, नाच रहें हैं सारे पात
    दादुर मोर पपीहा नाचें,  भीगी भीगी है हर रात ।

5  है ये बाधा बहुत घनेरी, देखो कदम उठाना सोच
   घिर कर आई रात अंधेरी ,आ न जाये पांव में मोच।

6 रघुकुल तिलक राम हैं आये,पूर्ण हुआ उनका वनवास
   असुर निकंदन दशरथ नंदन,लाये हर्ष और विश्वास।

7  लंका जीते वापस लौटे,दीप जले हैं सबके द्वार
झूम उठी है आज अयोध्या,मनाते खुशियों का त्यौहार।

8  चिंता करो नहीँ तुम भैया,छत्तीसगढ़ के मीठे बोल
       जो बोले हैं वे ही जाने,मिसरी देय कान में घोल।

9   अपनत्व प्यार के बिना लगे,जीवन बीते है अनमोल
       आल्हा पढ़ कर लगता ऐसे, जैसे गूंज रहे हैं ढोल ।

10   वीर बहादुर छुपे कहाँ हो, भारत माता करे पुकार
        त्राहि त्राहि जनता करती,बढ़ा खूब है अत्याचार ।

11 चुन चुन कर अब मारो इनको, शीष काट कर भूमि उतार
  भार लगे है सबको जीवन,इनका कर दो तुम उद्धार ।

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