Friday, 30 November 2018

आल्हा छन्द --क्रमांक 2

1 बरसे आसमान से बादल, तन मन को शीतल कर जाय
सड़कें नदी ताल बन करके,भीगें ख्वाबों को सुलगाय।

2 यादों के पौधे उग आते , कोना कोना मन हरषाय
छोड़ उदासी धरती चहके,माटी का कण कण महाकाय।

3 बनकर मोर नाचता दिल है,आँखें जुगनू सी बन जाय
      झींगुर बनकर रातें गाती,  बूंदे मोती सी बन भाय ।

4 करवट बदले फिर कागज के,सीने पर मन भावन गीत
छुप छुप कर उनमें से झाँके,रह रह कर मन का वह मीत

5 पंछी देखो डाल डाल पर,गाते मीठे मोहक राग
ऋतु वसन्त का स्वागत करते ,वन उपवन फूलों के बाग

6  होता सुनकर दर्द बहुत है, बाग बने फूलों के खार
हंस ढूंढते जीवन यापन ,बनी जिंदगी उनकी भार ।

7  युवा पीढ़ी हो इस देश की,देह लगे जैसे इस्पात
विपुल शक्ति संकल्प भरा हो, नहीं चाहिए कोमल गात।

8  निर्बल तन और भीरु मन के,मिथ्या मोह छोड़ कर    
       जाग
धन्य जवानी उनकी जिनमे,जलती देश प्रेम की आग ।

9. अपने भाव समर्पित करके,करो दूर जन मन की पीर
पैनी कर लो धार कलम की,काटो रूढी की जंजीर ।
,रूढ़ियों की सभी जंजीर।

10  तुलसी आँगन में बैठी है,नीम द्वार का पहरेदार
जूही चमेली गेंदा खिलें ,है गुलाब सबका सरदार ।

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