Saturday, 1 December 2018

आल्हा छन्द --- क्रमांक 3


1 बीत गई है रात अंधेरी,पूरब में आया है भोर
मन आँगन में चहके पंछी,देख हुआ आनंद विभोर ।

2 डाल दिया नौका सरिता में,जल में उठने लगी हिलोर
खिलने लगे फूल भी देखो,बिखरी खुशियाँ चारों ओर।

3 होती कवि की सुन्दर रचना, सबके मन भरता आनंद
      सारे श्रोता सुनते रहते,तरह तरह के मुक्तक छन्द ।
  

4 मन्त्र मुग्ध रह जाते सब ही, करते काव्य- सुधा रस पान
कविता का यह धर्म सदा ही, करता है सबका कल्यान ।        
  
5  देश की भाषा दिल से बोल, बढ़ जाएगा गौरव मान
ज्ञान सुधा से रहे लबालब, अपने पन का होता भान ।

6 हैं सपूत हम भारत मां के, करना है इसका सम्मान
इसका विकास कर लो पहले,फिर दूजे की भाषा जान।

7  दीन दुखी की सेवा कर लो,दीन बन्धु है उनका काम
       यही सुदामा के हैं श्याम,शबरी के भी ये ही राम ।

8  देव पास के जो हैं पूजो,सच मुच जिनका रूप विराट
         सोये रहते देव दूर के ,    काहे देखें मिथ्या बाट।

9   दीवाली  में दीप जलाएं, उनके सिर पर रख दें हाथ
बुझ गये जिनके घर के दीप,कठिन घड़ी है देना साथ ।

10 सरहद पर जिनके बेटों ने,किया जान अपनी कुर्बान
उन बहनों की भी तुम सोचो,करती जो सुहाग का दान ।
   

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