Saturday 15 December 2018

सरसी छन्द क्रमांक- 1

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1         पंथ निहारूँ तेरा कब से ,थकित हुए हैं नैन
           भेजो पाती सजना मेरे ,आ जाए मन चैन ।

2         मैं तो हुई बावरी साजन,ना चिट्ठी न संदेश
           बैरी हो गए ये दिन रैन, बैठे तुम परदेश ।

3         नारी पुरुष बनें सहयोगी,रचते नव संसार
मिल जुल कर सब काम करें तो, आपस में हो प्यार

4    मन में प्यार उमड़ता है तब ,पांव पड़े जंजीर
   दुश्मन उनका जग बनता है ,मन में बढ़ता पीर।

5         काम जो करते देश का हैं होते हैं वो  नेक
       सहज नहीं होता पथ उनका,रोकें राह अनेक ।

6       चिंता में दिन कटते उनके,मन में हुए हताश
    पाक साफ छवि देकर भी तो, जनता करे निराश ।

7    प्रेम हृदय में बसता है जब, मन बढ़ता विश्वास
      बिना प्रेम के रिश्तों में भी,आती बहुत खटास  ।

8          मीठे मीठे वादे करते ,   झूठे झूठे लोग
       आलस बैठा है नस नस में,लाइलाज यह रोग ।

9       बेवफा बना है मौसम भी,करे शीत से प्यार
       देख के चंचल हवा  तुरंत, बदले है व्यवहार ।

10   दृढ़ संकल्प करो मन में अब,बदलो तुम इतिहास
          अहंकार की राह न जाना,जीतो फिर विश्वास ।

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