1 चादर ओढ़ के कोहरे की,कांप रही है भोर
ओढ़ दुशाला सोये रवि भी, पंछी करें न शोर ।
2 जब जब शिवता मौन रहे , मनुज काम का दास
रीति नीति को भूल रहे हैं,छल बल आये रास ।
3 सबके हित की करें साधना,करें विघ्न का नाश
देश हित में स्वार्थ त्याग दें,होवे पुण्य प्रकाश ।
4 बच्चे बनते तभी गुनी हैं, मिले सही जब ज्ञान
सद्भाव का -सत्कर्म का भी, मन में हो अरमान ।
5 सुख साधन के संग आचरण ,का भी दीजे ज्ञान
प्रेम और सहयोग सदा हो,साथ में स्वाभिमान।
6 धर्म जाति से ऊंचे उठ कर,मानवता कर मान
सच्चे मानव बनकर तब ही,करें जगत कल्यान।
7 परहित से बढ़कर धर्म नहीं , है धर्मों का सार
पर पीड़न तो पाप बड़ा है,करना सबसे प्यार ।
8 भाग बनाते जो खुद का,रखें अलग पहचान
कर्मनिष्ठ जो होते जग में वो सच्चे इंसान ।
9 : कुछ लोग हमारी दुनियां में,आते हैं हर रोज
रहते हैं खुशबू के जैसे ,मन में भरते ओज ।
10 बेटी की जब हुई विदाई,मां रोवे दिन रैन
भीतर भीतर रोये मन में ,पिता रहे बेचैन ।
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