Saturday 15 December 2018

सरसी --छन्द क्रमांक --2

1       चादर ओढ़ के कोहरे की,कांप रही है भोर
      ओढ़ दुशाला सोये रवि भी, पंछी करें न शोर ।

2  जब जब शिवता मौन रहे , मनुज काम का दास
      रीति नीति को भूल रहे हैं,छल बल आये रास ।

3   सबके हित की करें साधना,करें विघ्न का नाश
      देश हित में स्वार्थ त्याग दें,होवे पुण्य प्रकाश ।

4    बच्चे बनते तभी गुनी हैं, मिले सही जब ज्ञान
  सद्भाव का -सत्कर्म का भी, मन में हो अरमान ।

5   सुख साधन के संग आचरण ,का भी दीजे ज्ञान
   प्रेम और सहयोग सदा हो,साथ में स्वाभिमान।

6      धर्म जाति से ऊंचे उठ कर,मानवता कर मान
     सच्चे मानव बनकर तब ही,करें जगत कल्यान।

7       परहित से बढ़कर धर्म नहीं , है धर्मों का सार
       पर पीड़न तो पाप बड़ा है,करना सबसे प्यार ।

8       भाग बनाते जो खुद का,रखें अलग पहचान
           कर्मनिष्ठ जो होते जग में  वो सच्चे इंसान ।

9   :  कुछ लोग हमारी दुनियां में,आते हैं हर रोज
         रहते हैं खुशबू के जैसे ,मन में भरते ओज ।

   
10   बेटी की जब हुई विदाई,मां रोवे दिन रैन
        भीतर भीतर रोये मन में ,पिता रहे बेचैन ।

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