Thursday 13 December 2018

आल्हा छन्द --क्रमांक 10

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1 बहुत गई थोड़ी है बाकी,कर लो अब भी खूब विचार
   भावी पीढ़ी की भी सोचो,कर लो दिल से दूर विकार

2  कितने हैं मक्कार लोग भी, रचते झूठ फेंकते जाल
हित परहित -ईमान न देखें ,बन जाते फिर मालामाल।
(करें देश का बदतर हाल ।)

3 चारों ओर प्रदूषण फैला फिरभी करते नहीं विचार
अब भी जागो देश वासियों,करो प्रदूषण का उपचार ।

4 कोहरा पड़ा है बहुत घना,  सूझे नही हाथ को हाथ
ठिठुर रही बेचारी किरणें,छूट गया है रवि का साथ ।

5    धुंआ उगलती चिमनियां हैं ,फैला है रोगों का जाल
जल थल वायु हुई हैं दूषित, ,सबका बहुत बुरा है हाल।

6  मिले नहीं प्यासे को पानी,  बॉटल में सिमटी है धार
  वो भी दिन अब दूर नहीं, मात पिता भी मिलें उधार ।

7  खुशबू बनकर तुम रहते हो ,जैसे फूलों का हो बाग
   जाती नहीं है दिल से याद,प्रीत मिला है जागे भाग ।

8 चलो सदा ही वक्त देख कर,गिरवी रखना नहीं जमीर
वक्त परखता रहता सबको,कुछ दिन होना नहीं अधीर ।

9 कांटों के साये में पलते ,खूब महकते सुन्दर फूल
कष्ट उठाने वालों को ही,मिलते फल अपनेअनुकूल।

10 जीवन का सौंदर्य बढ़ाते, शील सादगी शिष्टाचार
काम क्रोध मद लोभ सभी से,जीवन बन जाता दुश्वार।

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