Friday, 25 January 2019

सार छन्द - क्रमांक- 10


1      रात चाँद के स्वागत मेंजब,सजी चांदनी आयी
  मोहक लगती धरती अपनी,जन जन के मन भायी।

2      भारत भू पर कृष्ण सुदामा,कुंभ नहाने आए
      पकड़ हाथ एक दूजे के वे,गंगा खूब नहाए ।

3         अचरज में भर मेला घूमे, खेल तमाशा भाए
         गये कलेवा करने जब वे,दधि माखन ना पाए।

4         कई रूप में कंस दिखे हैं,लोग दुखी हैं भारी
            सूट बूट  में गोप गोपियाँ,सन्त मुख़ौटा धारी ।

5   स्वेद कणों में घिस कर चंदन, माथे तिलक लगाया
तज आलस  के बन्धन को अब,खुद को मीत बनाया।

6       जाना दूर बहुत है हमको , छोटे कदम बढ़ाना
   सोच समझ कर चलना होगा,मंजिल को है पाना ।

7   सदा सोचते हैं हम मन में, मुख से बोल न पाए
     आंधी तूफानों को झेले , तनिक  नहीं घबराए ।

8       हर बेटा तो राम नहीं है,भाई भरत न होता
    हर मन के भीतर कौशल्या,जो धीरज न खोता ।

9    दोस्ती का है मान तुमसे ,गर्व सभी तो करते
तुम सा मीत मिले अगर तो, सारे मिल के रहते।

10    करतूत देख नेताओं की, दुख से जनता रोती
      चाल देख टेढ़ी इनकी तो, धीरज अपना खोती ।

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