Friday 18 January 2019

सार छन्द -क्रमांक -7


1   जग का रूप वही दिखता है, जो नजरों ने पाया
   जीवन में वही मिला सबको,जैसा कभी कमाया ।

2     प्रेम सार है इस जीवन का,प्रेम बड़ा है सबसे
    भरे त्याग का भाव यही तो, मन मे आता तब से।

3       शाम ढली तो निशा सुहानी, नभ में तारे आये
   चाँद चांदनी दोनो मिलकर ,प्रीत कलश छलकाये ।

4   कागज के वह पंख बना कर,डोर संग वह रहती
         मन के भाव हवा जैसे हैं ,बड़े मौज से उड़ती ।

5      देश द्रोह के अपराधी सब,गीदड़ बन के आये
      सुभाष की पावन धरती पर,हुआ हुआ ही गाये।

6         मिले हुए हैं सारे  गीदड़ ,एक शेर से लड़ने
        हिम्मत होती नहीं अकेले ,कभी सामना करने ।

   

7    भाग दौड़ के जीवन में जग, चैन सदा ही खोता
 करें काम हम समझ बूझ कर, अमन चैन मन होता।

8      सारे कर्म करें अच्छे हम,किस्मत होगी दासी
       नियत सबकी हो अच्छी तो,रहती दूर उदासी।

9    मिला नहीं मन मीत हमें तो,जीते रहे अकेले
           उम्मीदों की चादर लेकर,ओढ़े रहे झमेले ।
    

10      हमने हार नहीं मानी जब, दुख ने घुटने टेके
         तरह तरह से हमें लुभाने,जाल हमीं पर फेंके।

    

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