Thursday, 10 January 2019

सार छन्द -- परिचय


भारतीय छंद विधान


सार छंद एक अत्यंत सरल, गीतात्मक एवं लोकप्रिय मात्रिक छंद है. पद के विषम या प्रथम चरण की कुल मात्रा १६ तथा सम या दूसरे चरण की कुल मात्रा १२ होती है. अर्थात, पदों की १६-१२ पर यति होती है.

पदों के दोनों चरणान्त गुरु-गुरु (ऽऽ, २२) या गुरु-लघु-लघु (ऽ।।, २११) या लघु-लघु-गुरु (।।ऽ, ११२) या लघु-लघु-लघु-लघु (।।।।, ११११) से होते हैं.

किन्तु गेयता के हिसाब से गुरु-गुरु से हुआ चरणान्त अत्युत्तम माना जाता है लेकिन ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं हुआ करती.

अलबत्ता यह अवश्य है, कि पदों के किसी चरणान्त में तगण (ऽऽ।, २२१), रगण (ऽ।ऽ, २१२), जगण (।ऽ।, १२१) का निर्माण न हो. 

उदाहरण


कोयल दीदी ! कोयल दीदी ! मन बसंत बौराया ।
सुरभित अलसित मधुमय मौसम, रसिक हृदय को भाया ॥


कोयल दीदी ! कोयल दीदी ! वन बसंत ले आयी ।
कूं कूं उसकी प्यारी बोली, हर जन-मन को भायी ॥     (श्री विंध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी ’विनय


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