Monday, 11 May 2020

लघुकथा लेखन-- श्रृंखला - 7

लघुकथा समारोह ---07 /1
शीर्षक - "अनोखा निर्णय "
आदरणीय संचालक महोदय  एवम मंच को सादर ---
प्रमिला चौथी बार मां बनने वाली है। उसके पति शिवराम ने कहा--इस बार भी अगर लड़की हुई तो गले में पत्थर बांध कर बच्ची समेत किसी कुंए तालाब में कूद कर मर जाना 
पर इस घर में वापस मत आना ।  गांव में बुधराम की किराने की दुकान है ।अच्छी आय हो जाती है ।पर बेटे की आस में बेटियों की कतार लगने से पत्नी से बहुत रुष्ट है ।  
           इस बार प्रमिला की पूजा याचना मन्नते सफल हुईं उसे बेटा हुआ ।सास ने मोहल्ले भर में लड्डू बंटवाये ।खूब धूमधाम से छठी -बारसा मनाया गया । प्रमिला के  भाग्य में शायद खुशियाँ  ज्यादा नहीं थी।चार साल बाद
पता चला कि उसका बेटा दीपक मंदबुद्धि का है ।po
वह चलना बोलना दूसरे बच्चों की अपेक्षा बहुत देर से सीखा  उसका सारा समय बेटे की देख रेख में गुजरता है,
फिर भी  प्रमिला को ही दोषी ठहराया जाता है ।
 पति उससे खींचा खींचा सा रहता है। प्रमिला से उसे अरूचि  होने लगी ।
 एक गरीब घर की  लगभग 15 साल की लड़की  पर उसका दिल आ गया । उसकी माँ विधवा थी  ।कुछ घरों में बर्तन पोंछा करके गुजारा चलाती है ।उसको खूब पैसे देकर उसकी बेटी से मंदिर में शादी कर के  घर ले आया ।
                   जब प्रमिला  ने सजे धजे फूलमाला पहने पति को नई दुल्हन के साथ दरवाजे पर देखा  तो उसकी अस्मिता जाग उठी । दुख,अपमान  ,क्रोध और विवशता   के उन पलों में उसने एक अनोखा निर्णय ले लिया ।       दरवाजे पर उन्हें खड़े रहने कहा। आरती की थाल लेने के बहाने कमरे में गई  । एक धारदार  हँसिया लेकर निकली  बिजली गति से पति की गर्दन पर भरपूर वार किया । उसी के रक्त से उसका तिलक किया  और कहा --   बेटी के उम्र की लड़की से ब्याह करते तुझे शर्म नही  आई । मैंने बेटी जनी ,बेटा जना। दस सालों तक पूरी निष्ठा से  तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की सेवा की,  स्त्री धर्म का पालन किया । मेरी तो छोड़ो  अपनी इन बच्चियों के बारे में भी नहीं सोचा  । मेरी कर्तव्य निष्ठा का तुमने ये सिला -----
            मैं मजदूरी करके अपने बच्चों को पाल लूँगी पर 
  एक और लड़की की जिंदगी को बर्बाद नहीं करने दूँगी ।
रक्तरंजित हंसिये के साथ थाने में उसने आत्मसमर्पण कर दिया  ,,,,,,,,,,
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर  छ ग
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                           (  2  )

लघुकथा क्रमांक --06 / 2
शीर्षक  -    " वसन्त फिर लौट आया  "
  
         बेंगलोर में नई नौकरी ज्वाइनिंग के बाद सुहानी फ्लैट किराए पर लेकर माँ को भी साथ ले आई । 
 सुहानी उनकी इकलौती सन्तान है ।उमा जी तलाकशुदा है।  सुहानी ही उनके जीने का सहारा है ।
     एक साल के भीतर ही कम्पनी नेउसे एक अच्छे प्रोजेक्ट में काम करने जर्मनी जाने का ऑफर दिया ।
अब सुहानी मां को लेकर उलझन में पड़  गई।विदेश में मां को लेकर वह जा नहीं सकती थी ।और यहां अकेले छोड़ भी नहीं सकती थी। उसने सोचा अभी तो केरियर की शुरुआत हुई है मौक़े अनेक मिलेंगे।
               उनकी माँ छप्पन वर्ष की है।अब तक मां के बारे उसने सोचा ही नहीं था। नाना नानी के घर उनका बचपन बीता था  उसने मां को घर के कामों में ही जुटे हुये देखा था ।उन्हें ना अच्छा पहनते देखा ,न घूमते  फिरते देखा ।   बस जब वक्त मिलता टी वी देख लिया करती ।
        सुहानी ने सोचा क्यों न मां की दूसरी शादी करा दिया जाये । इस बारे में न तो नाना -नानी ने सोचा ,न ही
मामा ने सोचा । अब तो नाना -नानी रहे नहीं  और मां मेरी जिम्मेदारी है।
 क्यों न मैं पहल करूँ । उनके बुढ़ापे का सहारा लाइफ पार्टनर तो मिल ही सकता है।जवानी के बीते दिन तो वापस नहीं लाये जा सकते पर  सुखमय बुढ़ापे गुजरे, यह कोशिश तो की जा सकती है।शादी डॉट काम पर उसने विज्ञापन दिया । अपने उत्साही दोस्तों के साथ मिलकर 
इस काम को अंजाम देने में जुट गई । छः माह की मेहनत के बाद  3 अच्छे रिश्ते मिले । जिनमे  सभी रिटायर्ड सभ्रांत बुजुर्ग   --एकाकी जीवन से ऊब कर बुढ़ापे का साथी चाहते थे । सभी को सुगर ,बी पी जैसी सामान्य बीमारी थी।आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर थे।   किसी किसी को अर्थराइटिस , आस्थमा भी था। 
 बड़ी मुश्किल से मां को इसके लिए राजी किया गया ।
एक स्मार्ट हंसमुख जिंदादिल 65 वर्षीय रिटायर्ड आर्मी
 आफिसर   सबको बेहतर लगा ।वसन्त पंचमी के शुभ मुहूर्त में  हर्षोल्लास पूर्ण माहौल में उनकी कोर्टमेरिज  हुई ।उनके इस विवाह में  ज्यादातर युवा लड़के लड़कियां ही शामिल हुए शानदार पार्टी हुई। कैप्टनअरविंद सलूजा  जी विधुर है। राजस्थान सीमा परआतंकवादियों की गोली बारी में अपना एक पैर खो चुके थे।  उनका एक ही बेटा है जो अपने परिवार के साथ शिकागो में रहता है । 
  इस तरह उमा देवी और अरविंद जी के जीवन मे  वसन्त फिर से लौट आया ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर 
रायपुर छ ग
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                             (   3  )    
       लघुकथा समारोह 0 6  ( प्रथम )

शीर्षक--  " पुत्र दान
                   .......
    बेटे की धूम धाम से शादी हो रही थी । उनकी ननद ने उर्मिला से कहा --भाभी  बहू के परिवार  वालों के रंग ढंग ठीक नही हैं  । उसके पिता ने तो कन्या दान ही नहीं किया 
शादी में दोनो तरफ का खर्च सुधीर ने किया है । 
भाभी आज कल जमाना बदल गया है ।मुझे लगता है कि
सुधीर अब हमारे लिए पराया हो गया  आपने शादी में "पुत्र दान "  कर दिया है ।  
 आपने देखा नहीं सुधीर अपनी ,सलियों के साथ जाकर उनकी पसन्द के गहने कपड़े और एक एक चीज खरीद रहा था। एक बार भी तुमसे या हमसे नहीं पूछा ।
  शादी के बाद दीवाली -होली सारे त्यौहार सुधीर ससुराल में ही मनाता है । सुधीर ने मुंबई के पाश इलाके में बड़ा सा फ्लैट खरीद लिया ,कार खरीद ली, सास ससुर  दो सालियाँ  उसके साथ ही रहती हैं ।
                  उर्मिला देवि अब दिन रात उदास  बैठी 
चिंता में डूबी रहती  है ,कि बेटी सयानी हो गई उसकी शादी करनी है छोटा बेटा का इस साल दसवीं बोर्ड है।बारहवीं के बाद वह भी इंजीनियरिंग करना चाहता है कहाँ से पैसों का इंतजाम होगा ।बड़ी मुश्किलों से उसने अपने बच्चों को छोटी सी नौकरी करके पाला  है  20 साल पहले पति सड़क दुर्घटना में अपंग हो गए थे ।घर बेचकर उनका इलाज कराया तब कहीं उनकी जान बच पाई थी। बेटा सुधीर  B E करके इंफोसिस कम्पनी में  इंजीनियर बन गया। उन्हें लगा कि उसके दुख के दिन खत्म हो जाएंगे ।
उसने बेटे से पैसों के लिए कहा । बेटे ने कहा -मां मैं सिर से पैर तक कर्ज से लदा हुआ हूँ । मैं आपकी कोई सहायता नहीं कर पाऊंगा।मेरी अपनी गृहस्थी है
बड़े शहरों के बड़े खर्चे हैं ......

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर
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                               ( 4 )
लघुकथा समारोह 16 ( द्वितीय ).
शीर्षक --* मेरा सुनहरा भविष्य *

           माँ फोन पर तुम्हारी एक ही रट होती है । शादी करले .... बहुत से रिश्ते आ रहे हैं । तू कब घर आ रहा है ? मुम्बई जैसी जगह में मुझे सैटल होने में वक्त तो लगेगा न... 
    --   हाँ  तू सही है ,पर दो साल हो गए । ऐसी कैसी कम्पनी है ,कि बीमार बाप को देखने  दो दिन की छुट्टी भी नही देती ।
   बेटा कल ही डॉक्टर कह रहे थे, कि इनके पास अधिक समय नहीं है...रतनपुर छोटी सी जगह है , बेटा हमे भी अपने साथ  ले चल  न ..
मुंबई में तो बड़े-बड़े डॉकटर हैं वहाँ इलाज करा के देख शायद ठीक हो जावें ...इस बुढ़ापे में अकेले कहाँ कहाँ दौड़ लगाऊं ?  पैसा भी तो नहीं है। घर  भी गिरवी है।
-- अच्छा ठीक है  जल्दी ही कुछ करता हूँ । सप्ताहांत  में . छुट्टी  मिल जाये ये उम्मीद तो है  बॉस से बात हुई है...
         ये सुनकर कैंसर ग्रस्त वृद्ध पिता के चेहरे में खुशियां चमक  उठी।
माँ के थके पके  शरीर में नई स्फूर्ति का संचार होने लगा । घर की नए सिरे से सफाई की, अस्त व्यस्त कमरे दुल्हन की तरह सज उठे । बेटे की पसंद के व्यंजन,फल मिठाईयां मंगाई गई ।
 शनिवार की शाम तक बेटा इच्छित अपनी प्रेयसी हर्षिता  के साथ आया ।  भोजन के बाद बताया -- माँ  हम परसों सुबह हम वापस  चले जायेंगे 12 बजे की हमारी हमारी फ़्लाइट है ।
       ये तुम्हारी होने वाली बहू है । मेरा और हर्षिता का हमारी कम्पनी न्यूजरसी के प्रोजेक्ट  के लिए सेलेक्शन कर लिया है ।
  --बेटा इतनी जल्दी वा...प...स ।
पा..पा.. की त..बि..य..त..
 --  माँ  वो तो ठीक होने से रहे। पैसे चिंता मत करो। मैं  पैसे भेज दूंगा । (माँ समझ गई कि बेटा सब कुछ तय करके आया है। जिद्दी है , कुछ नही सुनेगा। )   
 कुछ सोच कर  माँ  ने सुझाव दिया --कल का समय  है ।कम से कम  कुछ लोगों को बुला कर  सादगी से अंगूठी रस्म तो कर लो ।आज कल सब रेडिमेड मिल जाता है। थोड़ी देर के लिए ही सही पापा अपनी शारीरिक पीड़ा को भुलाकर  अपने इकलौते बेटे की शादी की कल्पना में ख़ुशी के कुछ पल जी लेंगे।  तुम दोनों को आशीषों का कवच और इन्हें सपनों का महल तो मिल जाएगा ।
-- माँ  मेरी बात ध्यान से सुनो और समझने की कोशिश करो। तुम  सिर्फ अपना ही  सोचती हो।  
    मैं ये सब ढकोसले नहीं करूंगा। तुम समझती क्यों नहीं मेरी स्थिति को ?...
 हर्षिता और उसकी फेमिली वालों के भी  तो हमारी शादी को लेकर कई अरमान हैं  ।
 "पापा और तुम मेरा  गुजरा हुआ अतीत हो   --- हर्षिता  मेरा सुनहरा भविष्य है ...
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डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
 रायपुर छ ग
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