लघुकथा लोक- समारोह-09 (द्वितीय)
आदरणीय संचालक जी एवम मित्रों
1 *-नगर माता बिन्नीबाई *
अकेली ही रहती है ।ननद ,देवर और भाई बहन के पढ़ने वाले बच्चों के रहने रुकने के लिए उसका घर सुरक्षित आश्रय स्थल बना हुआ है । रिश्तेदार के बच्चे अपनेघर से जरूरत का चावल ,आटा ले आया करते हैं ऐसे ही जिंदगी चल रही है। अब वह सयानी हो गई है ।लगभग पैंसठ साल की ।एक दिन बैंक वाली मेडम से पूछी -मोर कतका पैसा जमा होइस हे। वोकर स्कूल खोलवाहूं।मेडम बाई मोर सब्बो पैसा धरके मोर संग स्कूल खोलवाथे तेन बड़का साहब करा चलव ।
मेडम के साथ वह ग्यारह लाख रुपये का चेक लेकर कलेक्टर आफिस में उनसे मिलने गई। उनसे
कहा -साहब मैं एको किलास नई पढ़े हंव ।बेटी माई ल
गांव गंवई म गरीबहा मन नई पढावंय । मैं तुम्हर ले बिनती करत हंव कि ये मोर जिनगी भर के कमई हवय ।येखर गरीबहा बेटी लोगन बर स्कूल खोल देवव। कलेक्टर साहब उसकी भावना से नतमस्तक हो गए।त्वरित कार्यवाही करते हुए
एक साल के भीतर बिन्नीबाई शासकीय कन्या शाला खुलवा दिया।
स्वतंत्रता दिवस के जलसे में मुख्यमंत्री के हाथों बिन्नी बाई को * नगरमाता * के सम्मान से सम्मानित किया गया ।रायपुर में बिन्नीबाई शास. उच्च. माध्य.कन्या
विद्यालय आज भी संचालित है
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग
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◆ लघुकथा समारोह:- 08/2 - 18 मार्च, 2020
*** - शीर्षक " कृति मंजूषा "
◆ संचालक:- श्रद्धेय मनोज मानव जी,
◆ संरक्षक:- परम श्रद्धेय ओम जी और लघुकथा-लोक समूह के सम्मान्य जनों के समक्ष समीक्षार्थ--
" कृति मंजूषा ""
आज पतिदेव घर पर नहीं है ।दो दिन के टूर पर नागपूर गए हैं । दोनो बेटियां इंदौर में इंजीनियरिंग कर रही हैं ।
घर पर शिखा का एक छत्र राज्य हैल पूरी शांति है खाना भी नहीं बनाना है। कल शाम को कोरियर वाला प्रकाशक द्वारा भेजी गया पार्सल छोड़ गया है ।आज इत्मीनान से उसे देख पाएगी। सुबह के काम निपटा कर खिचड़ी बना लिया । चाय और प्लेट में मठरी लेकर पार्सल खोल कर बैठ सोफे पर बैठ गई ।उसके हाथ में कृति मंजूषा की
प्रूफ कॉपी है । उनके सपनों का साकार स्वरूप -- बड़ी तल्लीन होकर एक एक पन्ने पलटती जा रहीं थी। लाल पेन से कहीं रेखांकन करती,कहीं यथोचित संशोधन करती जा रही हैं। इस काम में इतनी मशगूल हुईं कि
वक्त का पता ही नहीं चला और सुबह से शाम हो गई।
उनकी तो भूख और प्यास खत्म हो गई ।महरी ने आकर दरवाजा खटखटाया तब उनका ध्यान भंग हुआ।
खिचड़ी गर्म किया अचार से खाया। दरवाजा बंद कर लेट गई ।एक एक करके वो घटनाएं शिखा के दिमाग मे आने लगी। जब उसने इस शहर की महिलाओं को उसने अपनी तरह लेखन की ओर मोड़ना चाहा था । उन्हें वह एक अभिव्यक्ति मंच देना चाहती थी ।उनके पति पांच साल बाद रिटायर होने वाले हैं।
ये शहर छोड़ कर उन्हें बिलासपुर शिफ्ट होना है, यह शहर उनकी कर्मभूमि है।जाने से पहले इसके लिए कुछ तो करना है । इस मिट्टी का कर्ज चुकाना है। अपनी विरासत छोड़ जाना है।वे उस शहर की वरिष्ठ लेखिका हैं। पढ़ी लिखी महिलाओं को सिर्फ टी वी के फ़ालतू सीरियल देखते,सोकर दोपहर गुजारते, या निंदा रस में लिप्त देखती तो बड़ी कोफ्त होती।शिखा पास पड़ोस की महिलाओं के घर घर जाकर लेखन केलिए प्रेरित करती ।
पर्व ,त्यौहार, समयिक घटना पर उनसे एक -एक पेज लिखने कहती।
उसमे सुधार करके फोटो सहित स्थानीय अखबारों में छपवाती। वसन्त पंचमी के दिन- अपनी दोनो बेटी प्रकृति और सुकृति के नाम पर कृति नारी साहित्य का गठन किया ।
चार साल की अनवरत मेहनत के बाद 20 महिलाएं उनसे जुड़ गईं ।अब सबने मिलकर "कृति मंजूषा के प्रकाशन" का निर्णय लिया ।मेटर इकट्ठा किया,गोष्ठियों की प्रेस विज्ञप्तियों कतरन कविता ,कहानी आदि सब मिलकर पर्याप्त सामग्री मिली, चन्दा इकट्ठा किया गया कुछ संस्थाओं से विज्ञापन लेकर फंड जुटाया ,तब जाकर
कृतिमंजूषा छपकर तैयार हुई ।
वहां की एल्युमिनियम कम्पनी ने महिला दिवस को इसके जोरदार विमोचन का जिम्मा लिया है ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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लघुकथा समारोह 08 /1
शीर्षक - गांव की गनेशी
आदरणीय आचार्य ओम नीरव जी,संचालक महोदय एवम सम्माननीय मंच -
कार्तिक पूर्णिमा के दिन बैन गंगा और हिर्री नदी के संगमस्थल पर बड़ा मेला लगता है। आसपास के कई गांव के लोग संगम स्नान करने और मेला देखने आते हैं।
गनेशी पिपरिया में रहती है गांव के स्कूल में सातवीं में पढ़ती है।अपने परिवार और पास पडोस के लोगों साथ मेला देखने गई ।मेले में खूब भीड़ जुड़ती है।तरह -तरह के समान बिकने आते हैं । कुछ सहेलियां भी वहां मिल गई ।नदी किनारे में शिवजी जी के मंदिर में दर्शन किये खूब घूमे ।मन पसन्द टिकली ,किलिप, रिबन खरीदे।
शाम होने लगी थी।अपने परिवार के साथ नदी किनारे चादर बिछा के बैठे वे दोने में जलेबी खा रहे थे कि --बचाओ ---बचाओ--- की आवाज से वह चौंक गई। एक बच्चा पानी में डूब रहा था, वहाँ पर गहराई काफीथी।
आस पास भीड़ जमा हो गई किंतु उसे बचाने पानी मे जाने की हिम्मत किसी की नहीं हो पाई।
गनेशी दौड़ते हुए वहां पहुंची और नदी में छलांग लगा दिया । घर के पास तालाब है वह तैरना जानती है ।अब सूरज डूब चुका था, डूबते बच्चे का कपड़ा कभी थोड़ा सा दिखता कभी ओझल हो जाता ।
काफी प्रयत्नों के बाद बच्चे का पांव उसके हाथ आया । बड़ी मुश्किल से एक हाथ से तैरते हुए किनारे तक आते हुए वह निढाल हो गई। बच्चा बहुत पानी पी चुका था । उसके पेट से पानी निकाल कर डॉक्टरी सहायता से उसे बचा लिया गया।
इस बहादुरी के लिए दूसरे दिन स्कूल में गनेशी को सबके सामने बड़ी प्रशंसा मिली । उसका नाम राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए जिला कलेक्टर के माध्यम से भेजा गया । एक सप्ताह पहले ही सूचना मिली है कि इस बार गणतंत्र दिवस मेंअपने बापू और बड़े गुरुजी के साथ वह दिल्ली जायेगी । वहाँ उसे सम्मानित किया जाएगा ।सरपंच और गुरुजी ने चंदा करके उनके लिए कपड़े और आने जाने के टिकटों की व्यवस्था करने का जिम्मा लिया ।
उसके बापू गांव के तालाब से मछली पकड़ कर बेचते हैं परिवार का गुजारा मुश्किल से चलता है। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नही है ।किंतु छोटी सी उम्र में उसकी हिम्मत औरभलमनसाहत काबिले तारीफ है।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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