Monday, 11 May 2020

लघुकथा लेखन -श्रृंखला 5

लघुकथा समारोह 11 ( द्वितीय)
सम्माननीय संचालक महोदय स्नेही मित्रों एवम मंच --
शीर्षक -- *  सैनिक  मित्र *
            जयंत आर्मी में है इस  बार छुट्टियों में अपने गांव आया  तो अपने बचपन के मित्र महेश से मिलने गया ।घूमते हुए दोनों मंदिर गए ।वहीं  बैठ कर बातें करने लगे।महेश - जयंत तुम पर मुझे गर्व है  तुम बहुत भाग्यवान होJ मेरे दोस्त। प्रहरी बनकर देश को दुश्मन से बचाते हो।
 यार मुझे भी आर्मी में जाने की बड़ी इच्छा रही है ।पर
ऐसा हो नहीं सका ।
जयंत --अरे भाई  बीती बात को छोड़ो  न। अब हम जो हैं ,जैसे हैं,इन हालात में क्या कर सकते हैं ? ये ही सोचो  और करो ।
महेश --क्या करूँ ?सैनिक बनकर सीमा पर दुश्मन से लड़ने की लालसा तो अब भी मुझे बेचैन कर देती  है  --अपने पिता की मैं इकलौती सन्तान हूँ। सेना में जाने की ललक को देख कर मेरे पिता  ने जब मैं ग्यारहवीं में था, तभी मेरी शादी कर दी ।अब मेरी 2 बेटियां और एक बेटा है । टीचर की नौकरी मिल गई है।  बस जिंदगी चल रही है 
--- मैं सोचता हूँ कि मैं तो सेना में नहीं जा पाया ,पर मेरा एक बेटा और हो जाये तो उसे सेना में  जरूर भेज दूंगा।
 जयंत -  देख महेश  ये जरूरी नहीं कि सेना में जाने वाला ही देशसेवी या सच्चा देशभक्त होता है। 
मेरे विचार से तो देश का हर नागरिक इस देश का एक सैनिक है ।मन में देशभक्ति का जज्बा हो, 
कर्तव्य पालन की दृढ़ता हो,साहस हो,समस्याओं से जूझनेकीक्षमता हो तो भी  देश को हम पर गर्व  होगा। 
हम अगर अपने बच्चों को स्वस्थ, बलिष्ठ, शिक्षित, सुसभ्य ईमानदार ,चरित्रवान  अनुशासित नागरिक बनादें तो यह भी बड़ी देशसेवा है । 
महेश -- सच कहा मेरे दोस्त अब मेरी आँखें खुल गई । अब तक मैं  बिना उद्देश्य के भीड़ का हिस्सा बनकर जी रहा था।जो मन का नही हो पाया उसके लिए दूसरों को
दोष देता रहता था ।
 जयंत --  गुड यार गुड़ ,शाबास  मेरे दोस्त ।
 महेश --अब अगले बेटे की  जरूरत नहीं । मेरी बेटियों की शादी सैनिक से हो, इसके लिए पूरा प्रयास करूंगा, सैनिक की बेटी को बहू बनाऊंगा। अपने स्कूल के बच्चों को और अपने बच्चों को अनुशासित रखूँगा । अच्छा नागरिक बनने को प्रेरित करूंगा ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर 
रायपुर  छ ग
 9425584403
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                                 (2 )
लघुकथा समारोह 11(प्रथम)
आदरणीय संचालक महोदय स्नेहिमित्रों एवम मंच
शीर्षक --* शतपुत्रा * 
          
निर्धन परिवार की शांता बाई बहुत मेहनती और समझदार है  शादी को 12 साल हो गये बच्चे नहीं हुए ।पति ने दूसरी शादी करली । उसे मारपीट कर घर से निकाल दिया गया । वह घर से पैदल चलते हुए ही 12 कोस चलकर धामन पुर स्टेशन पहुंची।
ट्रैन छूटने ही वाली थी आखरी डिब्बे में किसी तरह चढ़ गई।  शौचालय के पास ही हाथ पांव सिकोड़ कर बैठ गई। थकान और भूख  उसे पस्त थी  रात हो गई , ट्रेन के हिलने से उसे नींद आ गई।
 नींद में ही  एक 4-5 साल की एक बच्ची  पता नहीं कब से उससे सट कर सो रही थी ।
सुबह  ट्रेन पूना पहुंची पूरा डिब्बा खाली हो चुका था।ट्रेन अब आगे नहीं जाएगी।जब वह स्टेशन पर उतरी तो बच्ची भी उसके साथ उतरकर आई आई कहती हुई उसके पीछे चलने लगी । आई भूख लगी है ।पता नहीं कहाँ से भटकते हुए उसके साथ लग गई रूखे उलझे बाल ,फ़टे कपड़े,हाथपांव में मैल की परत । उसने उसे सीने से लगा लिया ।अपना नाम मुनिया बताया ।माता पिता के बारे में कुछ नहीं बता पाई।  स्टेशन के बाहर एक होटल में बर्तन मांजने के बदले खाना मिल गया।  अब उसे जीने का मकसद मिल गया ।
 नन्ही मुनिया ही उसकी दुनियां है ।कुछ दिन बाद वहां से दूर एक भोजनालय में 100 रु महीना और खाना के साथ रात में सोने की जगह भी मिल गयी । छै महीने  के बाद नुक्कड़ में पेड़ के नीचे चाय पकोड़े की दुकान लगा लिया ।वहीं टीन टप्पर डाल कर सोने लायक जगह बन गई । पास ही में थाना है एक दिन एक दुधमुंही बच्ची किसी को कुढ़े के ढेर में मिली जिसे थाने में लाया गया ।शांताबाई ने अनुनय विनय कर बच्ची की देखरेख करने घर ले आई  इस तरह साल भर में वह दो बच्चियों की माँ बन गई  ।पुलिस वालों से पहचान बन गई।अबतोअबोध,गुमशुदा ,अनाथ बच्चों  की माँ,आश्रयदाता बन चुकी है । उसके बच्चे शहर के सरकारी  स्कूल में पढ़ते हैं।शहर के कुछ समाजसेवी संस्थाए उनसे जुड़ गई हैं । एक दानदाता सेठ ने छै कमरों का मकान -शांता बाई मातृ छाया के नाम कर दिया है । 
अब तक 68 वर्षीया शांता बाई की ममता की छाया में100 से अधिक बच्चे पल चुके हैं धन्य है वह मां ......
.डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
     रायपुर   छ ग
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                              ( 3 ) 

           लघुकथा समारोह 10 (कथा द्वितीय)
सम्माननीय संचालक महोदय- आदरणीय मित्रों एवम मंच -
शीर्षक --  * स्वयंसिद्धा *
 पूर्णिमा का यह पचासवां जन्म दिन है ,सुबह सुबह उसकी प्रिय सखी  मधुलता फोन पर कहा- पुन्नी डियर डबल बधाई.....
------ इस जन्म दिन में तुम्हारा  चिर संचित सपना पूरा हो गया  आज के अखबार में पीएच,डी अवार्ड लिस्ट में तुम्हारा नाम छठवें नम्बर पर लिखा है । अब  तो  जोरदार पार्टी होनी चाहिए ।
      मातृ हीना पूर्णिमा के विद्यार्थी काल की यह प्रबल इच्छा रही है कि डॉक्टर बने । मात्र चार साल की उम्र में मां का स्वर्गवास हो गया ।उसके एक साल बाद नई मां आ गई ।नौ बरस की उम्र में पालनहार नानी गुजर गई। तभी से   वह अपने छोटे छोटे भाई बहनों की नन्ही आया बना दी गई ।उसकी नई मां  बर्तन पोंछा कपड़ा का सभी काम उससे ही करवाती थी ।बचपन क्या होता है? वह जानती नहीं ।किस्मत से घर के पास ही स्कूल था वह भी सुबह की पाली में लगता था तो उसकी बुआ ने उसका नाम लिखा दिया । बुआ के बच्चों की उतरन पहन लेती उनकी
पुरानी कॉपी किताबों से काम चला लेती ।
               उसे पढ़ाई करना बहुत अच्छा लगता था।  जैसे  तैसे उसने दसवीं बोर्ड पास कर ही लिया।  उसकी पक्की सहेली शशि गुप्ता डॉक्टर बनना चाहती थी । दोनो पास पास बैठते थे ।उसी की संगत का असर है कि  पुन्नी भी डॉक्टर बनने का सपना देखने लगी ।  दसवीं के बाद उसका स्कूल जाना बंद करा दिया गया ।दो साल बाद  नई मां के रिश्ते के निकम्मे भतीजे से उसकी शादी करा दी गई।   
बुआ की सहायता से उसने बारहवीं बोर्ड की परीक्षा गुड सेकेंड डिवीजन से निकाल लिया  । उसका पति राकेश
किसी ठेकेदार के पास मुंशी का काम करता । मदिरा सेवी भी था । घर खर्च बड़ी मुश्किल से चलता ।  पूर्णिमा ने सिलाई क्लास ज्वाइन किया । और लोन पर सिलाई मशीन खरीद कर सिलाई शुरू किया । उसका काम अच्छा चलने लगा । इस बीच वह दो बच्चो की माँ बन गई।, रुचि और मयंक  के आने से खुशियों के साथ नई जिम्मेदारी भी आ गई।उसका सारा ध्यान अपने बच्चों  की
पढ़ाई के साथ उनका भविष्य संवारने में लग गया। इसी तरह जीवन चलता रहा । जब बच्चे थोड़े बड़े हुए तो उसने एक प्राइवेट  स्कूल में नौकरी ज्वाइन कर लिया।
वहां उसे पढ़ाई का अच्छा माहौल मिला ।अधिकतर टीचर अपना क्वलिफिकेशन बढ़ाने में लगे रहते हैं।
               समय पंख लगा कर उड़ने लगा । उसके दोनों
बच्चे पढ़ने में बहुत होशियार हैं ।मयंक बी काम करके एम बी ए  करने रायपुर चला गया, बेटी अभी ग्यारहवीं में है । उसे अब बच्चों का पूरा सहयोग मिलने लगा।  इसके साथ ही पुनः उसके सोये सपने जाग उठे ।  एम  .ए . का प्राइवेट फॉर्म भर दिया । बेटी अपनी परीक्षा की तैयारी करती ।माँ अपनी तैयारी करती । उसने पैंतालीस साल की उम्र में 57% अंक लेकर  समाजशास्त्र में एम .ए भी पास कर  लिया ।
बच्चे समझदार हैं, कमाने लगे हैं  माँ की मेहनत और पढ़ाई के प्रति लगन देखकर उन्हें बड़ा गर्व होता । बेटा तो 
मां की हर सम्भव सहायता करता ।उनका उत्साह बढ़ाता । मधु की चचेरी बहन डिग्री कालेज में समाज शास्त्र की प्रोफेसर है ।जो पूर्णिमा की लगन, मेहनत ,   उत्साह देखकर उसे अपने गाइडेंस पी एच . डी . कराने सहर्ष स्वीकृति  दे दी ।इस तरह उसके लगन के अगन की आभा 
 से सारा शहर जगमगा उठा ।
              "स्वयमसिद्धा  "  शीर्षक से  दूसरे दिन के अखबार में पूर्णिमा   का इंटररव्यू प्रकाशित हुआ ।
सब तरफ से बधाइयों का तांता लग गया ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर 
रायपुर छ ग  
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                                    ( 4  )
    लघुकथा लोक समारोह 10 --प्रथम
सम्माननीय संचालक महोदय एवम मित्रों एवम मंच
लघुकथा शीर्षक -,,*आस की एक किरण *
       
   कोरोना महामारी के कारण देश के  सभी  प्रान्त,जिले शहर में नाकाबंदी हो गई है। दुकानें बंद ,
रेल,बस जीप,मेटाडोर कार सब बंद है।
तीन हफ्तों के लिये दिहाड़ी का काम भी बंद । पूरे देश मे कर्फ्यू लगा है ।लल्लन,मदन,राजू ,बसन्त,रोशन सब मध्यप्रदेश के सुदूर गांवों से विगत  तीन साल से दीवाली के बाद  पूना ,नागपुर, भंडारा में ईंट , सड़क,पुल, बिल्डिंग निर्माण कार्य हेतु ठेकेदारों के पास आ जाते हैं फिर बरसात  के पहले अपने गांव लौट जाते है।इनके बुजुर्ग, और 
बड़ी क्लास में पढ़ने वाले बच्चे गांव में ही रहते हैं । ये लोग पत्नी के साथ जो छोटे बच्चे मां बिना नहीं रह सकते उन्हें भी लेकर मजदूरी के लिए  आ जाते हैं । 
            ये 3 हफ्तों की कर्फ्यू ने तो बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है । ठेकेदारों ने काम बंद कर दिया है।
कब तक कामबंद रहेगा कुछ नहीं बताते । किसी के पास 4 -5 दिनों से अधिक का राशन नही है , पैसा भी नहीं ।यहां परदेश में  अनजान लोगों के बीच भूखों मरने से तो अच्छा है कि अपने गांव-घर के लिये पैदल ही  वापस लौट चलें ।   किस्मत ने साथ दिया तो अपने घर पहुंच कर अपनों के साथ रहेंगे।अब आगे जो होगा देखा जाएगा ।यह सोच कर आपस में सलाह करके सब आस पास के गांव के संगी साथी  अपने बीबी बच्चों के साथजरूरी सामान सहित चल पड़े हैं। आज तीसरा दिन है । रात होने पहले किसी गांव के पास मन्दिर, या सराय के पास या सुरक्षित सी जगह ढूंढ़ कर या सड़क में ही सो लेते हैं।पुरुष वर्ग
बारी बारी से जाग कर पहरा देते हैं ।
         इनके मन मे कहीं न कहीं एक उम्मीद की किरण भी है कि हमारी सरकार विदेशों से हमारे देश के लोगों को हवाई जहाज से अपने देश ले कर आई है ,तो हम गरीबों और मुसीबत के मारों के लिए भी जरूर कुछ न कुछ करेगी।
 
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
      रायपुर
9425588403

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