लघुकथा लोक समारोह- 13-( प्रथम )
आदरणीय संचालक महोदय एवम स्नेही मित्रों प्रस्तुत
है ---
लघु कथा ---* शिवा का सपना *
शिवा और शिवानी की दादी अब बहुत बूढ़ी हो गई हैं।
घर के पास रोड पर एक ठेला किराए पर लेकर पान का ठेला चलाती हैं । दादी बताती पढ़ी लिखी नहीं है ।हमारे माता पिता का एक रोड एक्सीडेंट में देहांत हो ने बाद के अपने छोटी -छोटे पोता और पोती की जिम्मेदारी उठाई ।चाची नागपुर में रहते थे । उन्होंने घर बेचकर हम तीनों को नागपुर ले जाने का सुझाव दिया । चाची कहने लगी -इस मंहगाई में हम चार और ये तीन का खर्च चलाना मुश्किल है।
दादी ने कहा -बेटा तुम हमारी चिंता मत करो । अपने सिर पर छत बना रहे तो इज्जत बनी रहती है। दादी को कोई काम नहीं आता था। उनके सामने हम तीनों के पेट पालने की चिंता थी । घर में कोई जमा पूंजी भी नहीं थी ।दादी ने अपने कर्ण फूल और गले की हँसुली बेचकर पान की दूकान खोली। पड़ोस के , लोग ,रिश्तेदार उन्हें ताने कसते।
पर वो चुप ही रहती ।खाना बनाती, दोनो बच्चों को स्कूल भेजती फिर दिन भर दूकान में बैठी रहती । शिवा सामान लाने में उनकी मदद करता । दादी प्रायःहम लोंगो से छिप कर रोती रहती । दादी हमें बहुत समझाती रहती -बेटा तुम लोग खूब पढ़ना एक दूसरे का खयाल रखना । सुख -दुख में कभी एक दूसरे का साथ न छोड़ना। कुछ दिन बाद दादी की छोटी बहन भी हमारे साथ रहने आ गई। उनके बेटे बहू उन्हें साथ नहीं रखना चाहते थे ।
शिवा मेट्रिक पास हो गया ।नौकरी ढूंढने लगा। दादी ने कहा -- तुम कालेज कर लो ।फिर काम धंधा ढूंढना । अभी नमक चटनी का जुगाड़ तो कर ही लेती हूँ। तुम्हारी फीस भी हो जाएगी ।
शिवा BSC करने लगा साथ ही वह पास पड़ोस के बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगा।उसने
B sc के बाद MSC भी कर लिया । अब वह दादी को दूकान लगाने को मना करने लगा । उसे एक -दो जगह नौकरी का आफर भी आया पर दादी को छोड़ कर नही
गया। शिवानी भी मेट्रिक पास कर ली है
शिवानी ने देखा उनके स्कूल की मेडम के दो छोटे बच्चेहैँ वह उनकी देखरेख के लिए विश्वसनीय आया ढूंढ रही है ।छोटी दादी और शिवानी मिलकर अपने घर पर ही झूला घर खोल लिया है ।
शिवा ने भी एक सहयोगी मित्र के साथ मिलकर कोचिंग सेंटर खोल लिया है । बहुत अच्छी कमाई हो जाती है ।
इधर शिवानी भी ग्रेजुएशन के बाद प्राइवेट इंग्लिश में एम.ए .कर रही है । एक बड़ा मकान भी अब खरीद लिया।
उनकी आगे की प्लानिंग है कि एक वृद्धाश्रम खोला जाय । जिसमे साथ -साथ झूलाघर भी हो ,ताकि बुढ़ापे में एकाकी बुजुर्गों की वाजिब रेट में देखरेख हो सके और नन्हें बच्चों को ममता और दुलार मिल सके ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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लघुकथा समारोह -12 -( द्वितीय )
शीर्षक -- * इन्द्रप्रभा *
आदरणीय संचालक महोदय सम्माननीय मित्रों एवम मंच
अनूपपुर के * जीवन दीप * क्लीनिक के डॉक्टर दम्पति आज बहुत खुश हैं। उनके जीवन मे बरसों बाद खुशियों ने दस्तक दी है ।आज उनकी मानसपुत्री इन्द्रप्रभा की सफलता का जश्न बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है । इत्तेफ़ाक से आज उसका पुनर्जन्म दिवस भी है।इस साल उसने बारहवीं बोर्ड में प्रावीण्य सूची में स्थान पाया है ।साथ ही P M T की परीक्षा में प्रथम प्रयास में ही
चयनित हुई है।
स्टेज पर श्वेत परिधान पहने डॉक्टर दम्पति के साथ बैठी इन्द्रप्रभा अपनी सफलता की सतरंगी आभा बिखेर रही है।मानो बदली के बीच धूप निकली हो।
डिनर लेते समय डॉ शालिनी उन यादों में खो गई जब आज से पांच साल पहले लगभग आधी रात को गांव नकटीखार से एक विवाह समारोह से वह अपने पति के साथ लौट रही थी।वहां से 30 KMकी दूरी पर अनूपपुर में उनका क्लिनिक है। बीच में जंगल का सूनसान सा कच्चा रास्ता है । अचानक उनकी कार से एक किशोरी लड़की टकरा कर गिर पड़ी ।कार से उतरकर दोनो पति पत्नी ने उसे उठाया,चोट ज्यादा नहीं लगी थी ,शायद डर के कारण वह अचेत हो गई थी । उन्होंने फर्स्ट एड बॉक्स निकाल कर उसका उपचार किया । उसे कार की पिछली सीट पर लिटा कर अपने क्लीनिक लौट आये। क्लीनिक में ड्यूटीपर जो नर्स थी, उसे आवश्यक निर्देश दे कर ऊपर अपने निवास में चले गए । तब डॉ शालिनी ने पति से बताया कि लड़की प्रेग्नेंट है । उन्होंने सुबह अपने मित्र को घटना की जानकारी दी ।
लड़की से पूछताछ में पता चला कि नकटीखार में मामा के घर में रहती है । मामा किसी सेठ के कार ड्राइवर हैं ।
जो अक्सर बाहर रहते हैं। मामी के भाई उसे अकेली पाकर डरा धमकाकर उससे अनाचार किया करता है।उसने मामी से इस बारे में बताया, तो उसे मार -पीट और अपमानित करके यह कह घर से निकाल दिया -कि अब कभी वापस लौट कर मत आना ।उसके माता -पिता जीवित नहीं हैं। वह कहां जाए ?सोच कर जान देने घर
से चली थी । इंदु जान बूझकर उनकी कार से टकरा गई।
डॉ दम्पति ने सोच विचार कर उसके मामा का पता लगाया । उनसे सहमति पत्र लिखवा कर उस लड़की को अपनी दत्तक पुत्री बना लिया। उस अभागी लड़की का नाम इंदु है। वह गांव के स्कूल में नवमीं तक पढ़ी है । समय आने पर इंदु ने मृत बच्चे को जन्म दिया ।
इंदु के सामान्य हो जाने पर डॉ शालिनी उसे प्यार से समझाया करती है --कि उसे अपने जीवन की पिछली घटना को भूल कर नई जिंदगी शुरू करना है । इंदु बहुत समझदार सुशील और लगन शील लड़की है ।अपने जीवनदाता डॉकटर को भगवान की तरह मानती ।उनका हर वाक्य उसके लिये ब्रह्मवाक्य है।
डॉ दम्पति ने उसे आगे पढ़ाने का निश्चय किया । शहर के अच्छे स्कूल में उसका नाम लिखवाया । अब उसका नाम इंदु से इन्द्रप्रभा करवा दिया गया। दसवीं पास करने के बाद उसने अपने आश्रयदाता की तरह डॉक्टर बनने की इच्छा जताई । बारहवीं बोर्ड की पढ़ाई के साथ उसे ऑनलाइन कोचिंग ज्वाइन कराया गया । प्रथम प्रयास में ही P M T में उसका चयन हो गया है।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
राय पुर छ ग
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लघुकथा समारोह-- 12 (प्रथम)
आदरणीय संचालक महोदय प्रिय मित्रों एवम सम्माननीय मंच ....
लघुकथा -- *बड़प्पन *
बिरियानी सेन्टर के मालिक अमान भाई की दो बीबियाँ हैं ।खैरुन उनकी चचा जात बहन ही थी । उससे तीन बेटियां हैं । वंश चलाने बेटा भी तो जरूरी है । यह सोचकर उन्होंने अम्मी जान के कहने पर अपने खाला की सुंदर पढ़ी लिखी बेटी सकीना से निक़ाह करके घर
ले आये । साल भर में अल्लाताला की मेहरबानी से सकीना ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया जिसमें एक बेटी
और एक बेटा है ।
जिस घर मे पांच बच्चों की फौज और दो -दो बीबी हो वहाँ तो प्रायः आपस मे तू -तू मैं -मैं होना सामान्य बात है । सकीना अब फिर आसरे से है ।खैरुन की बेटियाँ भी जवान हो रही हैं । उसे ये आये दिन की
खीच -खीच अच्छी नहीं लगती । पर क्या करे ,जहाँ
चार बर्तन रहते हैं तो आपस मे टकराते हैं और आवाज तो होती ही है । कभी घर के कामों को लेकर,कभी बच्चों
की शैतानियों को लेकर,कभी कपड़ों लेकर दोनो सौतों में आपस मे तना तनी होती रहती है ।
आज ही नन्हे कलीम को गोदी में लेने के लिए शमा और शबा लड़ पड़ी कलीम गिर पड़ा है और जोर जोर से रोने लगा ।इसी बात को लेकर सकीना ने शबा को
दो चांटे जड़ दिए ।खैरुन सकीना से लड़ पड़ीं । लड़ते लड़ते दोनो एक दूसरे के पुरखों तक पहुंच गई ,खूब लानत मलालत हुई । आस पड़ोस की अनेक महिलायें तमाशा देखने जमा हो कर खूब मजे लिए । उन दोनों ने
एक दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कमी नहीं छोड़ी ।
जब थक गई तो सकीना ने अपने कमरे जा दरवाजा बंद कर सांकल चढ़ा लिया और पलंग पर बैठ गई। अपमान और गुस्से के कारण चण्डी सी लग रही थीं।
थोड़ी देर में खैरुन ने स्टोव जलाया और दो कप चाय बनाया और भुजिया का एक पैकेट लेकर सकीना के कमरे की कुंडी खटकाने लगी....
-अंदर से आवाज आई कौन है ???
-- सक्कु मैं हूँ....
--आवाज पहचान कर बोली... अभी भी मन नहीं भरा क्या? और कुछ कसर बाकी रह गईं है क्या ???
--अरे पगली दरवाजा तो खोल, देख मेरा हाथ जल रहा है --सकीना ने भरे मन से दरवाज़ा खोला तो देखा खैरुन भाप निकलती दो कप चाय लिए दरवाजे पर खड़ी है ।
अंदर जाकर उसे चाय देते हुए बोली ।
---ये तेरे चाय पीने का टाइम है गुस्सा थूक दे और ले चाय पी ले।ऐसे समय गुस्सा करना ठीक नही ।पता नहीं मुझे भी इतना गुस्सा क्यों आ गया। बड़ी हूँ मुझे समझना चाहिए था । उसके बाद दोनों गले मिलकर ऐसे रोने लगी जैसे थोड़ी देर पहले कुछ हुआ ही नहीं ...
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
राय पुर छ ग
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लघुकथा समारोह 11(प्रथम)
आदरणीय संचालक महोदय स्नेहिमित्रों एवम मंच
शीर्षक --* शतपुत्रा *
निर्धन परिवार की शांता बाई बहुत मेहनती और समझदार है शादी को 12 साल हो गये बच्चे नहीं हुए ।पति ने दूसरी शादी करली । उसे मारपीट कर घर से निकाल दिया गया । वह घर से पैदल चलते हुए ही 12 कोस चलकर धामन पुर स्टेशन पहुंची।
ट्रैन छूटने ही वाली थी आखरी डिब्बे में किसी तरह चढ़ गई। शौचालय के पास ही हाथ पांव सिकोड़ कर बैठ गई। थकान और भूख उसे पस्त थी रात हो गई , ट्रेन के हिलने से उसे नींद आ गई।
नींद में ही एक 4-5 साल की एक बच्ची पता नहीं कब से उससे सट कर सो रही थी ।
सुबह ट्रेन पूना पहुंची पूरा डिब्बा खाली हो चुका था।ट्रेन अब आगे नहीं जाएगी।जब वह स्टेशन पर उतरी तो बच्ची भी उसके साथ उतरकर आई आई कहती हुई उसके पीछे चलने लगी । आई भूख लगी है ।पता नहीं कहाँ से भटकते हुए उसके साथ लग गई रूखे उलझे बाल ,फ़टे कपड़े,हाथपांव में मैल की परत । उसने उसे सीने से लगा लिया ।अपना नाम मुनिया बताया ।माता पिता के बारे में कुछ नहीं बता पाई। स्टेशन के बाहर एक होटल में बर्तन मांजने के बदले खाना मिल गया। अब उसे जीने का मकसद मिल गया ।
नन्ही मुनिया ही उसकी दुनियां है ।कुछ दिन बाद वहां से दूर एक भोजनालय में 100 रु महीना और खाना के साथ रात में सोने की जगह भी मिल गयी । छै महीने के बाद नुक्कड़ में पेड़ के नीचे चाय पकोड़े की दुकान लगा लिया ।वहीं टीन टप्पर डाल कर सोने लायक जगह बन गई । पास ही में थाना है एक दिन एक दुधमुंही बच्ची किसी को कुढ़े के ढेर में मिली जिसे थाने में लाया गया ।शांताबाई ने अनुनय विनय कर बच्ची की देखरेख करने घर ले आई इस तरह साल भर में वह दो बच्चियों की माँ बन गई ।पुलिस वालों से पहचान बन गई।अबतोअबोध,गुमशुदा ,अनाथ बच्चों की माँ,आश्रयदाता बन चुकी है । उसके बच्चे शहर के सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं।शहर के कुछ समाजसेवी संस्थाए उनसे जुड़ गई हैं । एक दानदाता सेठ ने छै कमरों का मकान -शांता बाई मातृ छाया के नाम कर दिया है ।
अब तक 68 वर्षीया शांता बाई की ममता की छाया में100 से अधिक बच्चे पल चुके हैं धन्य है वह मां ......
.डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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