Friday, 15 May 2020

लघुकथा लेखन श्रृंखला - 9 पुत्र का पत्र ,बालआरक्षक ,अपने जैसी बनाना

प्रमाणित किया जाता है कि,यह लघुकथा मेरे द्वारा लिखित मेरी मौलिक रचना है एवम कॉपी राईट  का उल्लंघन नहीं करती.......
                                          डॉ चंद्रावती नागेश्वर                  
शीर्षक " पुत्र का पत्र"
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आप भी सोच रहे होंगे कि नेट और कम्प्यूटर के ज़माने में msg बॉक्स के आलावा किस शादी शुदा बेटे के पास इतना वक्त है कि माँ को पत्र लिखने का वक्त मिल गया |माँ से बात करने का वक्त बड़ी मुश्किल से निकल पता है बाहर हाल सच मानिये बेटे ने वक्त निकाला और अपनी सारी संवेदनाएं उड़ेल दी इस पत्र में  आपका ह्रदय  भी  द्रवित  हुए बिना नही रह पायेगा  .

 मेरी माँ ........
मैं बड़े ही उद्विग्न  और अशांत मन से यह पत्र लिख रहा हूँ भावनाओं की  ऊँची ऊँची लहरों के तूफान में फंसा अपने दिल की बात तुम्हें  लिख रहा हूँ| 
     माँ........
         लोग प्रायः लड़कियों को ही  संकोची ,शर्मीली मानते हैं |किन्तु सच कहता   हूँ लड़के अपना दुःख दर्द बाँटने और कहने में बहुत ही संकोच करते हैं मर्द प्रजाति अपने अंतर्मन की अनुभूतियों को अनेक तालों में जड़ कर  रखता है |
         तुम्हें बड़ा शौक था न मेरे लिए अच्छी सी बहू लाने का  मैं जनता हूँ।  एक माँ के लिए यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी  और लाड़ भरा मोहक सपना होता है.   आपने  अठारह साल तक छोटे से पौधे को  पेड़ बनने तक अपने आंचल की छाँव में रखा,  उसे खाद पानी दे कर सींचा , चिड़िया की तरह मुँह में चुग्गा डाला ,बीमारी में सैकड़ों बार रात -रात भर  जाग कर सेवा की  नोकरी भी करती तब भी घर का सारा काम खुद अपने हाथों से करती ,  हाथ पकड़ कर लिखना सिखाया ,ख़ुद होमवर्क कराती, पढ़ाती , हम कभी बाहर ट्यूशन पढ़ने नही गए.  ,खुद परीक्षा की तैयारी कराती ,हमारी पसन्द की एक एक चीज बना कर खिलाती ,हमारे कपड़े धोती ,प्रेस , करती,साईकिल चलाना सिखाती,  शाम को रोज घुमाने ले जाती  क्या क्या गिनाऊँ माँ  हमे तो पता ही नही चलता था, कि तुम कब जागती और कब सोती | हमने सदा सादगी पूर्ण जीवन जीते देखा ।तुम्हें  न ब्यूटी पार्लर जाते देखा ,न मंहगे गहने कपडे  पहनते देखा | हमेशा परिवार वालों के लिए जूझते ही देखा  ।
  आई आई टी में मेरा चयन हुआ,  महीने भर इसकी ख़ुशी में जश्न का माहौल रहा. मेरी पढाई पूरी हुई ,नौकरी लगी. तुम्हारी बहू    .. बहू ...की रटन  शुरू हुई, लड़की  पसन्द की गई  शादी हुई, बहू घर आई. तुमने अपने गहनों 2की पोटली उसके सामने रख दी ,कहा- जो चहिये ले लो |  उसने यह कह कर मन कर दिया की पुराने स्टाइल के गहने उसे पसन्द नही उसे तो हीरों का सेट चाहिए , जो तुम्हारे पास था ही नहीं. तुमने कहा --मैंने कोहिनूर हीरे जैसा  बेटा तुम्हे सौंप दिया है, उसके आगे सारे हीरे फेल हैं| 
   माँ वह सोलह  अट्ठारह  साल की अल्हड़ किशोरी नही, बड़ी उमर की पूर्ण परिपक्व लड़की है ,उसकी अपनी रूचि,अपनी इच्छाएं,अपने सपने हैं. मैं जानता हूँ, कि तुम इन सबमे कहीं बाधक नही हो । तुम उसे बेटी बनकर रखना चाहती हो ।पर माँ  ऐसा कभी नही हो सकता.   वह अनाथ नहीं है ,उसकी जन्मदायिनी माँ  है न, उसकी जगह वह तुम्हे कैसे दे सकती है ? उसका भरा पूरा परिवार है,
तुम मेरी माँ हो उसकी नहीं, तुम उसकी सास हो और उसकी माँ की जगह तुम नहीं ले सकती. माँ जीवन में नया पन सबको अच्छा लगता है ,स्वाभाविक है, मुझे भी अच्छा लगता है.
      अब रही मेरी बात ,तो मैं तुम्हारा बेटा हूँ- और रहूंगा | जो कुछ कहना सुनना हो-  मुझसे कहो न,  हाँ---- माँ ---- एक बात और तुम्हे याद दिलाना  चाहता हूँ, जो तुम प्रायः भूल जाती हो ......तुम मेरा पास्ट हो .... मेरा अतीत ...... मेरी पत्नी मेरा वर्तमान है ....मुझे वर्तमान में  जीना  है. मेरी पत्नी मुझपर एकाधिकार चाहती है, तो इसमें गलत क्या है ?वह मुझसे प्यार करती है - मैं और मेरी पत्नी तु..म..से... मु,,,,क्ति ,.... और यह कहने में  एक मुझे न कोई संकोच है,न पछतावा ,न ग्लानि...... एक म्यान में दो तलवार कैसे रह सकते हैं ?
                                     डॉ.  चन्द्रावती नागेश्वर
 दि. 15 ,5,2020
                                  शंकर नगर रायपुर,छ.ग                      
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लघुकथा लोक 17 (द्वितीय)
शीर्षक --* बाल आरक्षक *
आदरणीय संचालक महोदय सम्माननीय मंच एवम विद्वतजनो को सादर ....
             बाल आरक्षक राजेश  आज बारहवीं बोर्ड पास करने के बाद मार्कलिस्ट लेकर पुलिस की वर्दी पहनकर
थानेदार साहब के सामने जाकर उन्हें सैल्यूट किया और
बोला -- राजेश लीलाकान्त  साहू रिपोर्टिंग माय ड्यूटी स..र ...थानेदार साहब ने उसका स्वागत करते हुए  कहा --
    मोस्ट वेलकम यंग   मै .. .न
फिर स्टाफ को संबोधित करते हुए बोले - साथियों  राजेश हमारे थाने में तेरह साल की उम्र से  अनुकम्पा नियुक्ति पर   "बाल आरक्षक " के पद पर डयूटी कर रहा है । इनके पिता  बस्तर के नक्सली मुठभेड़ में अपने प्राण न्योछावर कर दिए । पिता के स्वर्ग सिधारने के बाद  छोटी सी उम्र में तीन बहनोँ ओर माँ की परवरिश की जिम्मेदारी उठाने  यह यहां पर नौकरी करते  हुए अपनी पढ़ाई भी करता रहा है ।
          मेट्रिक पास करके आज यह अट्ठारह साल पूरा  
करने के बाद कांस्टेबल पद पर पूर्ण वेतन पर नियुक्ति 
दी  जाती है । अगले महीने इसे ट्रेनिंग के लिए 
राजनांदगांव  भेजा जाएगा । मैं सभी स्टाफ की तरफ से 
    राजेश को जन्मदिन की बधाई देता हूँ ।
--थैंक यू वेरी मच स..र 
     आप सबसे  मेरा एक रिक्वेस्ट है--आज शाम को  मेरी 
माँ ने हमारे घर में  मेरे बालिग होने पर और रेगुलर नौकरी  मिलने की खुशी में  मेरे जन्मदिन पर एक छोटी सी पूजा का कार्यक्रम रखा है । आप  सबको माँ ने बुलाया है। मैंने आप सब के स्नेह की छाँव में जीवन का अविस्मरणीय पाठ  पढा है  ,यहांआप में से जिसे भी समय मिलता मुझे कोई गणित,कोई इंगलिश,कोई विज्ञान पढा देता, आप लोगों की बात चीत से कानून की कई धाराएं, याद हो गई
है मैं तो ग्रेजुएशन के बाद पी एस सी की तैयारी भी साथ साथ करूँगा ।
 मुझे आशीर्वाद देने औऱ मुंह मीठा करने अवश्य आइयेगा ......

डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर  छ ग

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लघुकथा समारोह-17 (प्रथम )
आदरणीय संचालक महोदय सम्माननीय मंच एवम स्नेही मित्रों को सादर .......
लघुकथा शीर्षक --  * अपने जैसी बनाना *
             सीमा  अपनी बेटी  सुमन को  मरणासन्न हालत में लेकर अपने पिता के पास आई  और  रोते हुए बोली -- पापा मेरी बेटी को बचा लो पापा ।  छै महीने हो गए आपके दामाद की नौकरी छूट गई है।ससुराल वाले ठीक से इलाज नहीं कराते । जो भी पैसा लगेगा मैं  बाद में पाई पाई चुका दूँगी । 
पिता ने कहा --रो मत बेटी ।अभी तेरा बाप जिंदा है।   पैसे की चिंता मत कर, इसे कुछ नहीँ होगा ।कल 11बजे की  गाड़ी से हम  इसे नागपुर  ले चलते हैं ।वहां के अच्छे डॉक्टर को दिखाते हैं  सुमन एकदम ठीक हो जाएगी । 
         नागपुर में शिशुरोग विशेषज्ञ को दिखाया गया बच्ची को टी बी हो गया था ।  लम्बा इलाज चला, काफी पैसे खर्च  हुए।पिता के कहने पर सीमा रक्षा बंधन तक 
मायके में ही रुक गई।
भाई गोविंद सीमा को बिल्कुल पसंद नही करता।उसे लगता है ,कि पिता सीमा को बहुत चाहते हैं । चोरी  छिपे
अक्सर उसे पैसे देते रहते हैं।  किन्तु  असल बात यह  है कि  गोविंद  गलत संगत में पड़ कर  बिगड़ चुका है। पिता
 की बात नहीं मानता माँ को डर धमका कर शराब ,सट्टे में 
पैसा उड़ा देता   दिन रात के झगड़े से उसकी पत्नी  उसे छोड़ कर मायके में ही रहती है ।
     रक्षा बंधन के पहले  पापा ने सीमा को अपना A T M
 देते हुए कहा -  सीमा  मैं रिटायर हो चुका हूं । मेरे बाद पता नहीं गोविंद तेरी इज्जत करेगा या नहीं ।  सुख दुख में  बेटियों को मायके में ही तो सुकून भरा ठौर मिलता है ।
तू अपनी माँ के साथ बाजार जाकर  अपने और बच्चों के लिए  मन पसन्द अच्छी मंहगी साड़ी, और अच्छे कपड़े ,
 सुमन ,सोनिया के लिए  चैन खरीद लेना । पैसों की चिंता बिल्कुल मत करना ।बैंक में अभी दस लाख रुपये हैं । 
गोविंद को हीरो होंडा खरीदने के लिए  चेक बना कर दे दिया है ।
  सीमा ने माँ ,भाभी ,भतीजी  सबके लिए मनपसन्द कपड़े 
 खरीदे  कहा --पापा अभी सोना मंहगा है, आपको घर भी  रिपेयरिंग कराना है । बाकी बाद में देखेंगे । ये कपड़े  बिल और ये आपका A T M  पापा  सम्हाल कर इसे रखिये ।
     रक्षाबंधन के बाद पिता की आज्ञानुसार बहन को पहुंचाने उसके ससुराल गया । रास्ते में बहन को खूब खरी खोटी सुनाई  कहा --शादी के बाद  तू यहां क्यों चलीआती है।  मुझे तेरा यहां आना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।शादी के बाद ससुराल ही तेरा घर है।अब मत आना यहाँ ।
                   उसके कुछ महिने बाद पाप का फोन आया --सीमा बेटी गोविंद नागपुर के लता मंगेशकर हॉस्पिटल में भर्ती हैं।  उसे लिवर का कैंसर बताया है उसके बचने की उम्मीद नही है। जल्दी आजा ।
 रोते बिलखते सीमा नागपुर पहुंची। भाई की हालत देख कर उसे बहुत दुख हुआ । भाई  को शायद उसी का इंतजार था  ।  बहन  देखकर उसके आंसू झरने लगे । 
अपनी बेटी सोनिया का हाथ सीमा के हाथ मे देते हुए कहा --- बहन मुझे माफ़ कर दे .... मैं बहुत ही बुरा हूँ ...
 अब से ये तेरी जिम्मेदारी है... इसे खूब पढ़ाना .. अपने जैसी ही अच्छी बनाना  ....

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग 
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