Sunday, 24 May 2020

लघुकथा श्रृंखला - 10 (दोस्त का कर्ज,सोच अपनी अपनी,भला हो कोरोना का )

  
लघुकथा समारोह 18/1
  शीर्षक -  * दोस्त का कर्ज *
            
          लघुकथा लोक -18 प्रथम
आदरणीय संचालक महोदय सम्मान्य मंच एवम स्नेही मित्रोंको सादर  प्रस्तुत है--
 शीर्षक * दोस्ती और दान *
    डॉ   शिवम   और डॉ भावेश अभिन्न मित्र हैं।शिवम सुसम्पन्न परिवार का है । भारत मे रहता है भावेश सामान्य परिवार का प्रतिभावान  मेहनती ईमानदार है। अमेरिका 
जाकर अपनी क्वलिफिकेशन बढ़ा कर  कुछ पैसे कमा वापस भारत लौटना चाहता है दोनो मित्रों में प्रायः  बातचीत  होती रहती है  --
डॉ  भावेश   -- कैसे हो शिवम बच्चे  कैसे हैं ? बहुत दिनों 
से तुम से ठीक से बात नहीं हो पा रही है ।

 डॉ शिवम -  क्या बताऊँ यार ?---बड़ी मुसीबत में  हूं.... सच कहते है लोग कि  बुरे वक्त में तो साया भी साथ नहीं 
देता । मैंने अपने रिश्तेदारों परिचितों से सहायता मांगी पर सब ने किनारा कर लिया ।
  डॉ भावेश  -  ऐसी क्या बात हो गई  ? मुझसे जो बनेगा मैं जरूर करूंगा । खुल कर बताओ तो  --- 
डॉ  शिवम -- तुम्हें बताया था कि , मेरे क्लीनिक का एक्सटेंशन करवा रहा हूँ।  20 बेड वाले को 50 बेड वाला करवा रहा हूँ । बैंक से लोन एप्लाई किया  था ।  50 लाख का लोन सेंक्शन होने की पूरी प्रक्रिया  अंतिम स्टेज पर थी।  इस बीच बैंक मैनेजर का दूसरी जगह ट्रांसफर  हो गया । नया मैनेजर आने वाला है ।नए सिरे से पेपर की जांच होगी । लोन पास होने में दो -तीन माह विलम्ब हो जायेगा ।
 डॉ  भावेश - तो  फिर इसमें प्रॉब्लम कैसी ?  
डॉ शिवम --  मेरे पास जो पैसे थे , कांट्रेक्टर को एडवांस दे चुका हूं ,नींव खोदी जा चुकी है, दो ट्रक सीमेंट मंगवाया जा चुका है ।  बाकी सामान भी आगया  है,अब  35 लाख और  उसे देना है।
मेरी बदकिस्मती देखो  कि भरी गर्मी में लगातार तीन दिन तक अचानकआंधी तूफान बारिश से ट्रक का तिरपाल उड़ गया सारा सीमेंट पत्थर बन गया ,नींव में पूरा पानी भर गया  । 
      मेरे भाई अब तू ही मुझे बचा सकता है ।तुमने मुझे बताया था, कि मकान खरीदने 40 लाख रु रखे हो ।
 वो पैसे मुझे भेज दो । 
बस तीन महीने की ही बात है लोन मिलते ही  तुम्हारा सारा पैसा  तुम्हें लौटा दूंगा। तुम्हारा ये एहसान जिंदगी भर  नहीं भूलूंगा । 
 डॉ भावेश ;  अपने अजीज मित्र की दुख गाथा  से द्रवित होकर दूसरे दिन ही 35 लाख रु अपने मित्र शिवम के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए । 
  डॉ भावेश -  (एक साल बाद) यार शिवम  मैंने एक एजेंट से मकान खरीदने की बात की है । जितनी जल्दी हो सके मेरे पैसे  लौट दो,मैं एक-दो बार और भी कह चुका हूं।
 डॉ शिवम --पैसे --अच्छा याद आया। मैं नहीं लौटा सकता यार । तुम तो फॉरेन में खूब कमा रहै हो। 
 अरे लोग तो दोस्त के लिए जान दे देते हैं । तुम क्या मेरे लिए  दा--न  नही दे सकते ? ????
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
9425584403
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लघुकथा समारोह 18 /2
आदरणीय संचालक  महोदय सम्माननीय मंच एवम लघुकथा प्रेमी मित्रों को सादर ---
प्रमाणित  किया जाता जाता है कि,प्रस्तुत लघुकथा  मेरी मौलिक रचना है   एवम कॉपी राईट का उल्लंघन नहीं करती।
                        .डॉ चंद्रावती नागेश्वर

शीर्षक  *भला हो कोरोना का *
कॉलोनी के छोटे से फ्लेट की बालकनी से बाहर झांकती 
वृद्धा  ने देखा -लगभग  5 -6 वर्षीय बालक  उससे कुछ बोल रहा है,  पर वह ठीक से समझ  नहीं पा रही है । उसने इशारे से बच्चे को ऊपर बुलाया।
बच्चा बेल बजाया फिर  कहा -दादी मैं आ गया---
--मेरी बॉल आपकी बालकनी में है ,प्लीज दे दीजिए न ---
--वहीं रुक ,अभी सेनिटाइज करके देती हूं।
उसे बॉल देकर बोली अब धूप बढ़ रही है ।अपने घर जाओ --
 --दादी   आप यहां अकेली  क्यों रहती हो  ?क्वारेन्टीन    में हो क्या ?
-- हाँ  --अब भागो यहां से --
 --दादी  ,टी वी वाली आंटी कहती है कि 14 दिन का होता है आप तो बहुत दिन से  अकेली रहती हो।
 -- तू बहुत बात करता है  अब जा मुझे लांग टाइम का
  क्वारेन्टीन है  । 
बच्चे ने बड़ी मासूमियत से बोला -- आप मेरी दादी जैसी 
दिखती हो । मुझे कोई प्यार नहीं करता ,  -मेरे साथ कोई नहीं खेलता ....मेरी माँ नहीं है न....छोटी माँ मुझे बिल्कुल पसंद नहीं करती । अपनी बेटी को बहुत प्यार करती है। 
 उसके साथ खेलती है ,हंसती है , मुझे बाहर भगा देती है, हमेशा यही कहती है --कितने लोगों को कोरोना हो गया , पर इसे  नहीं होता ,,,,इसे कोरोना हो जाय तो पीछा छूटे..
         दादी आप मेरे साथ  खेलो न प्लीज .... हम डिस्टेंस बनाकर बैठेंगे , सांप सीढ़ी ,लूडो मेरे पास है,,,,
अब दादी की आंखे छलकने लगी ।
उसे घर के अंदर बुलाया , हाथ धुलाया, प्यार से सिर सहलाया ।खाने के लिए केला ,एप्पल  दिया । 
बहुत दिनों बाद उसके एकाकी जीवन में बहार का एक झोंका आया  । भला हो इस कोरोना का -----जिसकी बदौलत  लम्बे समय बाद दोनों के चेहरे खिल उठे।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
9425584403
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 शीर्षक  --  *  सोच अपनीअपनी  *

सुबह से शाम तक मैं  तो काम करते करते थक जाती हूँ मैं भी हाड़ मांस  की बनी हूँ कहती हुई शुभांगी किचन में जाकर गैस जलाया बच्चों के लिए
नाश्ता बनाया और दिवेश और हितेश को खिलाने लगी । ऑफिस से आते आते उन्हें झूलाघर से ले आती है ।दोनों अपने हाथ से खाते भीतो नहीं।
शुभी --एक कप गर्मागर्म चाय हमारे लिए ला दो । कहते हुए उसके पति महेश अखबार लेकर  टी टेबल पर पांव फैलाकर सोफे पर बैठ गए ।
(शुभी आफिस से आकर तुरन्त काम में जुट जाती है दिवेश क्लास टू में और हितेश KG 2में हैं) ।चाय के साथ वह बच्चों का बस्ता लाकर टेबल पर रखते हुए होमवर्क कराने कह गई   इतना सुनते ही महेश का पारा गरम होगया -
 गुस्से में तेज आवाज में बोला --देखो शुभी मैं ऑफिस से थककर आता हूँ।
   कितनी बार बता चुका हूं। घर का काम करना ,बच्चे पालना औरतों की
जिम्मेदारी है । मुझसे ऐसे कामों की उम्मीद मत रखना ।  
 (जब से बच्चे स्कूल जाने लगे हैं  उन दोनो में तकरार  बढ़ने लगी है.।)सुबह बच्चों को  स्कूल के लिए  तैयार करने, सामने चौक तक बस में छोड़ने कहे तो चिक  चिक।महेश को सुबह जल्दी
 उठना पसन्द नहीं ।बेचारी शुभांगी क्या -क्या करे ?
कल ही उसकी सास कुछ दिन के लिए उनके घरआई है, बहू की बात सुनी उनकी दिनचर्या देखी। फिर बेटे को समझाया -
      महेश बेटा नौकरी वाली लड़की से शादी करने का तुम्हे ही शौक था।जब तक बच्चे नहीं थे तुम दोनों बड़े खुश थे। बच्चोंके साथ जिम्मेदारी बढ़ी तो तुम्हे घर के कामों  में हाथ बंटाना ही चाहिए।
महेश --मैं बाहर का काम कर देता हूँ बैंकक काम,राशन लाना,सब्जी लाना, बिजली बिल, इसकी स्कूटी सुधरवाना
और क्या करूँ ?
शुभी -  मैं भी ड्यूटी से थककर  आती हूँ बच्चे भी थके होते हैं जब तक मैं रात का खाना बनाती हूँ बच्चे बिना होमवर्क किये खाकर सो जाते हैं ,जब होमवर्क पहले कराती हूँ, वो बिनखाये
भूखे सो जाते हैं।
 महेश -   अभी बित्ते भर के छोटे छोटे बच्चों को पढ़ाने का क्यों टेंशन लेना ।
पूछ लो माँ से  इसतरह तो हमारे माँ 
बाबूजी ने कभी पीछे लग कर  हमेनहीं 
पढ़ाया । हम पढ़-लिख लिए कमा खा रहे हैं न ? ये भी पढ़ लेंगे ---नहीं पढ़े तो भी कोई टेंशन नहीं
 शुभांगी और मेरे प्रोविडेंटफंड के पैसे से दोनोंबच्चो के लिएअलग दुकान खोल देंगे। इससे आगे मुझे ना कुछ कहना है न सुनना है ......
शुभांगी ने अब सोच लिया - अबजो करना है मुझे ही करना है चाहे जितनी मेहनत करनी पड़े करूँगी ।  अगर पति जीवित नहीं होते तब भी मुझे इनकी शिक्षा , भविष्य के लिए मुझे ही करना पड़ता  ? तो अब क्यों नही ...
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
     राय पुर
942558 4403
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