Monday 27 July 2020

छंदबद्ध ..........(( कथा गीत) )

.कथा गीत,बसन्त का जादू , कोरोना संकट पर चिंतन - छंद सरसी ,हिंदी दिवस  ,लेखनी गीत,
कामकंदला का प्रेम, लाक डाउन में भूखी बच्ची, सुभद्रा का  प्रेम, संवदिया का संदेश, आम्र पर्ण कि जीवन कथा , शिव उमा की  सैर, मातृ ऋण से मुक्ति , कृष्ण  जन्म कथा
---------------------*---------------*---------------------प्रदत्त छंद दोहा                                     
 💐  💐    एक कथा दोहा मुक्तक के माध्यम से।        --                      --    ( यह ऐतिहासिक सत्य कथा मेरे   पीहर की  है ) 
     बसा एक सुंदर नगर,    कामा नगरी नाम
     गीत नृत्य  का केन्द्र वह, कामसेन नृप धाम।
    परम् योगिनी नर्तकी ,  स्वर्ग  अप्सरा जान
    चित्र  लिखे से लोग रहें  ,देख  नृत्य अविराम।

     इक दिन की बात यह ,लगा हुआ दरबार
    नृत्य   करे   है नर्तकी , सब पर चढ़ा खुमार।
     पहुंचा सभा मे विप्र जब , उसका अद्भुत तेज
     साधक वह संगीत का ,   वादन करे  सितार।

      संगम  सुर लय  ताल का , सिमट गया संसार
      इंद्र लोक फीका लगे ,   बरसे खुशी  अपार । 
       एक मधुप आया तभी , हो न नृत्य लय भंग
       सधी श्वांस के वेग से , भृंग  किया चिक पार।
,
        देख करिश्मा साधना  ,  माधव करे प्रणाम
         अपना हार उतार  के , किया प्रिया के नाम
         चकित हुए नृप देख कर , पावन  प्रेम अपार।
         इक दूजे के वे  हुए   ,   गए सभी सुख धाम डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
  रायपुर, छ. ग.             
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बसन्त गीत का जादू
-नृत्य करती सी लगे मधु मास की जादूगरी ,
बाग  में कलियाँ करें परिहास की जादूगरी।

तरु लताएं झूमती दस्तक मिली ऋतु राज की,
है बहकता पवन फागुन मास की जादूगरी ।

पुष्प सुंदर मोहते मन को भरें आनंद से
खिल कर वनों में खिलखिलाते पलास की जादूगरी।

झूम कर स्वागत करे महकी हवा  भी दूर तक
विरह व्याकुल प्रिय मिले विश्वास की जादूगरी 

घायल करें तीर पुष्पों के चला कर रति काम भी ,
रात पूनम श्याम राधा के रास की जादूगरी।

 गुन गुनाते  भ्रमर के यश गान पर मोहे सभी,
छंद रचती कोकिला केउल्लास की जादूगरी।
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[11/02, 12:19] Chandrawati Nageshwar: 
रखें लक्ष्य मन में सभी,प्यार खुशी सहयोग
खुशबू सबको चाहिए ,पेड़ न रोपें लोग

प्यार ज्ञान सम्मान की,होती सबको चाह
खास व्यक्ति ही पा सकें, मुश्किल है यह राह।
 
सुंदर तेरी दृष्टि है,प्यारा लगे जहांन

प्रीत दिवस अब पास है,मुझको प्रेमी जान।
बिना शर्त यदि प्रीत हो,जब तक तन में प्रान
सारा जग प्यारा लगे,प्रेम बने वरदान।
: मेरा होम वर्क 
आन पड़ा था विकट समय तब, पांच माह की बच्ची छोड़
पिता अकेला निकला घर से,ढूढें दूध नियम को तोड़।
हुई संक्रमित ड्यूटी पर माँ,बेबस ममता बंधन तोड़।
नत मस्तक थे लोग सभी तो,उस जननी को करें सलाम
कोरोना का युद्ध लड़े वह, जीवन है सेवा के नाम ।
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 क्रमशः   .... .....  जादूगरी  का शेषांश 

चहकते पंछी प्रभाती गीत गाते है सदा 
तितलियां सुंदर उड़े आकाश उसी अहसास की        जादूगरी।

गीत स्वागत के रचें खिलते कमल तालाब के
कालिंदी तट गोपियों के संग रास की जादूगरी
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
24 /10/2020
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सम्मानित मंच..... 

 द्वार खड़ी है व्याकुल बहना, पीहर  से आया संदेश 
संवदिया है यह पीहर का, भली करे भगवान गणेश. 

लगता है कुछ गड़बड़ कोई, किसका  आया अंतिम वक्त
 घुमड़ रही मन में आशंका, धनी गए मेरे परदेश. 

धड़क रहा दिल जोरों से है, मन काबू कर खोला द्वार
 सुना तभी - मैं  दुख का मारा, भाई तेरा नाम महेश.

 मैं अनाथ हूं बचपन से ही, लौट रहा हूं बरसों बाद
 मामा मेरे- पिता तुम्हारे, तुम सुगना- जीजा अवधेश.
 
मामा ने भेजा है मुझको, देकर कपड़े चिट्ठी 
संग 
 करो तैयारी अब चलने की, तीज के दिन है  गृह प्रवेश.

 डॉ चंद्रावती नागेश्वर 
बोस्टन, यू.एस.ए

   रूप नगर का वैभव अद्भुत, आंखों में रहता
    साधना करे जहां रूपसी,   झरना था बहता।

2      राज नर्तकी काम कंदला, का था नाम बड़ा
    कला उपासक दूर देश का,अचरज में खड़ा।

3    दिव्य स्वरों के आकर्षण से,राज महल पहुंचा
     अद्भुत नृत्य देख कर वह ,    खो गया सम

4       प्रेम पाश में बंध गए वो, सबका मन खटका

       राज कोप का भागी वह तो,रहा वहीं अटका।

5   राज दंड की गाज गिरी जब,तब मन को खटका
     निष्कासन की सजा सुनी तो ,मन दर्पण चटका ।

6       

7          

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संकट पर चिंतन। ( सरसी छंद  )   16 --11

वक्त यही है करना होगा ,   मिलकर हमें विचार

     बिना विचारे अब तक था जो ,मनमाना व्यवहार।

सृष्टि रचा कौतुक में प्रभु ने  , तरह तरह के जीव

     सुंदर सुंदर वन  उपवन भी ,दिया विविध आहार।

  सूर्य चन्द्र बादल बिजली सब , है परहित के काज

      सागर नदिया धरा गगन  है,   खूब भरा भंडार ।

   एक अनोखा जीव बनाया, मानव जिसका नाम

    शक्ति शौर्य -प्रेम भाव भर कर , भेजा है करतार।

मन पर रखना सदा नियंत्रण , इस पर  देना ध्यान

     दूर लोभ से रहना तुमको ,  करनेपर उपकार।

  अगर सन्तुलन बिगड़ा फिर तो ,होगा महा विनाश

   सब कुछ तेरे हाथों में है ,      नाव और पतवार।

     डॉ चन्द्रावती नागेश्वर    ,  5, 4 , 2021

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दिख रहा है चित्र में जो

    है क्षितज सा दूर में जो।

      सांझ घिरती आ  रही है

       पात बिछुड़ा पेड़ से जो।

        अंक में अपने लिया है 

          मान विपदा में किया है।

            डोर से अपनत्व की वह

              नेह बंधन बांध  दिया है।

                 श्वांस का आधार था मैं

                    हृदय के आकार का मैं।

                       हूँ   बुढ़ापे  में  नकारा

                         पेड़ के  हित भार सा मैं।

                    व्याकुल बहुत  क्लांत मन ये

                      धीर  है अब  शांत मन ये ।

                        हृदय  से आभार  करता

                          नेह  पा अभिभूत मन ये

 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर

   रायपुर   छ ग दिनांक 7  ,7  2021

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      शब्द विवश हैं 

 नैन मुखर हैं
मूक हुए वाचाल अधर 
भटक गए हैं
बागी अक्षर
टूट रहे हैंबंधन 
कैसे दू आमंत्रण 
क्या दूँ  सम्बोधन   
व्याकुल  है  मन  
पाने  तेरा दर्शन 
यादें करती क्रन्दन 
मीत  मेरेतुम आकर  
सार्थक  कर दो जीवन   
       डा   चंद्रावती नागेश्वर 
 कोरबा  छत्तीसगढ़
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   हाथी,करी,कुंजल,गज,मदकर,मतंग, एवं समानार्थी...
 हाथी आये एक दिन , लिए संग परिवार
करें भ्रमण वे नगर में ,मिले नहीं आहार।
घर उनके छीने मनुज ,उजड़ा है आवास
दूषित जल के स्रोत हैं,झेलें कष्ट अपार।
                          2
डेरा डाले नगर में  ,लगा न्याय दरबार
दिया हमे भी ईश ने, जीने का अधिकार।
 शक्ति प्रदर्शन की हमें ,अभी नहीं है चाह
कुंजर दल मिल सोचते , सह जीवन ही सार।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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एक है भाषा मेरे देश की ,नाम है उसका हिंदी 
माथे पर सज  कर बन जाये, वो आनन की बिंदी।

 कण्ठ वासिनी भाव दर्शिनी,
मुख से मुख की पथिका
 विचार वीथिका की प्रवासिनी,
अतुल निधि की मलिका 
बावन अक्षर  सेवक इसके , 
सोलह स्वर की  बंशी

ऐसी भाषा  मेरे देश की, नाम है जिसका हिंदी
माथे पर सज  कर बन जाये, वो आनन की बिंदी।
 रूप सलोना लगता उसका, 
घर घर की वह  गृहिणी
बंगाली उड़िया गुजराती,
पंजाबी बहु वर्णी ।
तमिल तेलगु कन्नड़ अवधी।
इसकी सखी सहेली।

मोहक भाषा मेरे देश की
   नाम है उसका हिंदी
माथे पर सज  कर बन जाये, 
वो आनन की बिंदी।

मन आंगन में महके खुशबू,
  ये बहुजन की भाषा ।
स्वाभिमान की शान बढ़ाये,
 सुख दुख की परिभाषा।
सहज सरल और' सुघड़ सलोनी
 जन मन की अभिलाषा।

मीठी भाषा मेरे देश' की ,
 नाम है उसका हिंदी।
माथे पर सज कर बन जाये, 
वो आनन की बिंदी।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर 
रायपुर छ  ग
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सभी  स्नेही साथियों को सस्नेह ये समर्पित है ,,,,,,,
डगर डगर शहर शहर चल पड़ी ये लेखनी
.  दे रही है प्रीत का संदेश  ये लेखनी .........

 दूर कर भेद मन के हर दिलों को जोड़ती
देश में विदेश में झूमती चली ये  लेखनी ।

हम कहाँ तुम कहाँ  जानते नहीं थे कभी  
साथ सबको ले के जा रही ये लेखनी ...........

भावना की धार है शब्दों की नाव है  
पतवार बनके पार ये लगा रही ये लेखनी ..........

भोर में विभोर कर यामिनी में स्वप्न बन 
  मन में चाहतें  भी  जगा रही ये लेखनी ..........

गीत गजल  काव्य के लोक में पंछियों सी 
   नभ के अंक में चहचहाती जा  रही  ये लेखनी........

 भावना के सिंधु  में शब्दों  का उफान  ले
पतवार बन के पार ये लगा  रही है लेखनी
डा .चन्द्रावती नागेश्वर ,वेन्कुअर  [कनाडा]
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बड़ी दुआ से उसको पाया, प्राणों से मुझको प्यारा 
जिसे रक्त से अपने सींचा, है एक पुत्र वह न्यारा. 
बीमारी में बचपन बीता,मुश्किल से उसे बचाया
 प्रभु कृपा -अथक सेवा के बल , का ही मिला सहारा. 

 सीधा-साधा मितभाषी है,  पर मुझ पर गुस्सा करता 
 बनी  नहीं ममता में  अंधी,  पर सख्ती कर मन दुखता. 
 एक आंख में प्यार रहा तो ,रखा सुधार लक्ष्य दूजा
 अब तक मन में रोष रखे है, जो अब भी छलका करता.
अब तो ढलती संझा बेला, अब ना बनूं बोझ भारी 
 दिल से क्षमा मांगती तुझसे, तू ही  जीता मैं हारी.
 मन में मलाल कभी न रखना, मातृ  ऋण से मुक्त किया 
 विगत जन्म का था ऋण तेरा, इस जन्म में उसे उतारी. 
 चंद्रावती नागेश्वर रायपुर छत्तीसगढ़
 दिनांक 21 10 2022बुधवार, 
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लिये थाल में बहना राखी, मन में लिए हृदय की बात
 संकोच बहुत तो मन में है,कही न जाये  दिल की बात. 

 मैं जो चाहूं- दोगे मुझको, बहुत करो तुम मुझसे नेह 
 मुझे लगे भय बलदाऊ से, लग सकता उनको आघात.

सखा  तुम्हारे वीर धनुर्धर, डालूं  उनको मैं वर माल
 द्रुपद सुता की लाज बचाई, तुम्हीं बिछाओ नई बिसात. ू 

 भाई तुमसे इस राखी में, मांग रही हूं पहली बार
 बहन सुभद्रा फिक्र न करना, मैं हूं तेरा प्यारा भ्रात. 

 तेरी समस्या का निकलेगा, निश्चित ही अब कोई राह 
 तुम  इकलौती बहना प्यारी, राखी बांधो पुलकित गात
 डॉ चंद्रावती नागेश्वर, रायपुर छत्तीसगढ़
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शब्द लोक समारोह 426 दिनांक—-9-8-2022
प्रदत्त शब्द— वृषभ, बैल , वलद 
.
शिव प्रिया शैलजा दोनों ही, नंदी पर हो चले सवार 
धरा भ्रमण को गये  संग में, भोले बाबा बड़े उदार. 

जीव जंतु सब हर्षित थे पर, दिखा राह  में जख्मी नाग
गले लगाया उसे उठाकर, बना लिया  अपना गल हार. 
 सर्पराज से पूछी -गौरी, - किसने किया
 तुम्हें बेहाल
 मन के मेरे शांत भाव ने,चाहा  था करना उपकार.

 वृषभ राज भी  समझ गए सब, खुद की रक्षा पहला धर्म
 मां अंबे ने कहा उसे फिर,  डसो नहीं- करो फुंफकार.
  जब शातिर हो दुश्मन अपना,  सीधे पन से चले न काम
 अस्त्र शस्त्र और शास्त्र, सभी किया करते  उद्धार.

डॉ चंद्रावती नागेश्वर
 रायपुर छत्तीसगढ़
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.मुक्तकलोक<> बुधवार,03/08\20 विश्वम्भर शुक्ल जी, 
  **पटल पर आप  सभी स्नेही परिजनों का  चित्र मंथन समारोह- में आत्मीय अभिनंदन, वंदन है. पावस के भीगे भीगे मौसम  में शीतल बयार के साथ अतिथि रचना के रूप में प्रस्तुत है  कुछ मुक्तक  फुहार.... 
 आम्रपर्ण की कथा सुनाती
 जीव जगत की बात बताती. 
  शैशव यौवन  और बुढ़ापा 
  सबकी जो है दशा दिखाती ?????.. ...

 ** कई रंग दिखाती थी यही 
   कई स्वप्न सजाती भी रही. 
   कोमल रक्तिम रंग लिए थी 
   वह अपनी  बीती  हमें  कही. 

**  बचपन की गलियों से निकली
        कैशौर्य मार्ग पर वह मचली
      हरी-भरी सी  चिकनी सुंदर. 
      यौवन के  पथ पर झूम चली. 

**   रौनक़ जिससे वन उपवन में
       सोच  रही कुछ बातें मन में.
        पीली  सूखी  मुरझाई  सी
        सिकुड़ी सिमटी बेबस वन में.
        
    डॉ चंद्रावती नागेश्वर
     रायपुर छत्तीसगढ़
-------*-----*----------------*--------------*-------*-----छुप गये झिलमिल तारे उषा ने खिड़की खोली 
चुपके  चुपके चपल सूर्य ने पलकें खोली 
रंग रंग के  फूलों ने सजाया स्वागत द्वार 
उपवन में गूंजी चिड़ियों की मीठी बोली 
 डा. च नागेश्वर
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तरस रहे हैं राम श्याम भी,  इस धरती पर आने को
 मिले नहीं दशरथ कौशल्या, भारत में जन्माने को

 रोम  रोम में  बसने वाले,राम रूप में जन्मे तब
 जीव चयन आसान नहीं था,वह  आदर्श निभाने को.

 दस चक्रों को साधा जिसने ,  कठिन तपस्या किया करें  (दशरथ )
कौशल जिसकी  प्रबल भक्ति का, हुए   
  विवश प्रभु आने को. 
(कौशल्या)
 अवध नगर में जन्म लिया था 
वध वर्जित मन भाव जहां 
 उचित  वक्त  संकट का होता , शत्रु मित्र 
 आजमाने को. 
संकल्प लिया  जीवन पथ में, गरिमा   रिश्तों  की रखने 
किया विलय जनहित में निज हित,नव संतुलन बनाने को.

 मान रखा परिजन पुरजन का, प्रिय  सबसे कर्तव्य उन्हें
  उपजा  मन मतभेद अगर तो, किया  पहल  समझाने को .
सबसे ऊपर स्वाभिमान है,  रखें  धीर मन संकट में.
 अपनी रक्षा प्रथम धर्म है,सार यही बतलाने को .
डॉ चंद्रावती नागेश्वर 
रायपुर छत्तीसगढ़
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[20/09, /2022] Chandrawati Nageshwar: शब्द लोक समारोह -४३२ मंगलवार जी तथा मंच को सादर निवेदित :-
शब्द : पावन/ पुनीत/ पवित्र/शुचि,    समानार्थी शब्द....
एक कहानी मैं कहती हूं, सुन लो मेरे मीत
 परमपिता का वह प्यारा था, उसका पावन प्रीत.

 अपनी मस्ती में नित रहता, सब  से वह अनजान 
हर मौसम में रहे मस्त वह, गाता प्रभु के गीत.

बारिश के मौसम में झूमें,  भीगे नाचे खूब 
वह तो गृह त्यागी सन्यासी,  जाने  ना  जग  रीत.

भीग  गया था ठंड लगी तो,  ढूंढ  रहा था आग
 देख एक होटल की भट्ठी , खड़ा हुआ निश्चिन्त. 
.
 मिला उसे तब बिन मांगे ही गरम जलेबी दूध 
धन्यवाद कह  बढ़ा  नाचते, देखा नव इक रीत. 

 क्रोधित एक प्रेमी ने उसको, मारा थप्पड़ खींच
 नाच नाच कर गंदा पानी,उछाल किया अनीत. 

 उस साधु ने मौन प्रश्न किया कैसा तेरा खेल
दिया नहीं  शाप उसे उसने,  रख मन भाव पुनीत. 

 क्रोधित प्रेमी गिरा भूमि पर, निकले उसके प्राण
 बुरा भला कहा भीड़ ने,  वह तो रहा विनीत

 सह ना पाया मेरा प्रेमी,  मेरा भी  अपमान
 उसने भी तो दिया दंड है, यही न्याय की जीत.
डॉ चंद्रावती नागेश्वर, 
रायपुर छत्तीसगढ़
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मुक्तक लोक (408), शब्द मंथन
अभिमान, घमंड, मद, दर्प, अहं----

एक पिता के थे दो बेटे, थे वे साहस के अवतार
 शूर  वीर जब  चले राह पर,  लिए हाथ में वे  तलवार.

 गर्व  पिता के परिजन के प्रिय, अजय विजय थे उनके नाम
 वो रहते थे  मीनापुर में, गुरु भाई से करते प्यार.

 गए एक दिन मिलने उससे, दुखी बहुत था उनका मित्र
 बड़ा घमंडी राजा उनका, करे प्रजा पर अत्याचार.

 अहं  दूर करने राजा का, मन में आया एक 
 उपाय  
है इक सुंदर राजकुमारी, उसे हरा दे  जो  इक   बार

 सौंप राज का भार उसे ही   ,  बेटी का फिर  करे  विवाह  
दम्भी  को संदेश मिला तब , चला  लिये  
 कर में  तलवार 

 विजय बना फिर राजकुमारी,  आया कर में  ले वर माल
हार  हुई  दंभी राजा की ,  हुई विजय की  जय जय कार
डॉ चंद्रावती नागेश्वर

[20/09, 3:36 pm] Chandrawati Nageshwar: शब्द लोक समारोह -४३२ मंगलवार दिनांक २०-०९-२०२२, समारोह अध्यक्ष  जी तथा मंच को सादर निवेदित :-
शब्द : पावन/ पुनीत/ पवित्र/शुचि,    समानार्थी शब्द....

एक कहानी मैं कहती हूं, सुन लो मेरे मीत
 परमपिता का वह प्यारा था, उसका पावन प्रीत.

 अपनी मस्ती में नित रहता, सब  से वह अनजान 
हर मौसम में रहे मस्त वह, गाता प्रभु के गीत.

बारिश के मौसम में झूमें,  भीगे नाचे खूब 
वह तो गृह त्यागी सन्यासी,  जाने  ना  जग  रीत.

भीग  गया था ठंड लगी तो,  ढूंढ  रहा था आग
 देख एक होटल की भट्ठी , खड़ा हुआ निश्चिन्त. 
.
 मिला उसे तब बिन मांगे ही गरम जलेबी दूध 
धन्यवाद कह  बढ़ा  नाचते, देखा नव इक रीत. 

 क्रोधित एक प्रेमी ने उसको, मारा थप्पड़ खींच
 नाच नाच कर गंदा पानी,उछाल किया अनीत. 

 उस साधु ने मौन प्रश्न किया कैसा तेरा खेल
दिया नहीं  शाप उसे उसने,  रख मन भाव पुनीत. 

 क्रोधित प्रेमी गिरा भूमि पर, निकले उसके प्राण
 बुरा भला कहा भीड़ ने,  वह तो रहा विनीत

 सह ना पाया मेरा प्रेमी,  मेरा भी  अपमान
 उसने भी तो दिया दंड है, यही न्याय की जीत.

 डॉ चंद्रावती नागेश्वर, 
रायपुर छत्तीसगढ़

मुक्तक लोक -सम्मानार्थ - चित्र मंथन समा. 437- 26 अक्टूबर2022,
 बड़े दिनों के बाद दूज को, यम गए बहन से मिलने 
 द्वारे पर देखा भाई को, लगे पुष्प मन के खिलने.
 यमुना बहना ने स्वागत में, चंदन तिलक लगाया था 
 खिलाया रुचिकर भोजन भी, हर्षित मन लगा झूमने  
                            2
 दिया खुशी से वर बहना को, जो भाई तिलक कराये 
 बहना के घर जाकर इस दिन,  यम भय   मन से मिट  जाये.
 मिलने से पहले यमुना से,  मुक्त किये 
जीव नरक से 
 कार्तिक शुक्ल दूज को मिल सब, हम भैया दूज मनाये. 

 डॉ चंद्रावती नागेश्वर 
 रायपुर छत्तीसगढ़
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कृष्ण कथा की बात कहें  हम
मन  चिंता महतारी में
 अभी-अभी जन्मा वह  बालक सैनिक पहरेदारी में.

 बादल गरजे  बिजली चमकी, खूब झड़ी थी वर्षा  की
भादो मास अष्टमी तिथि को. जन्मे थे  अंधियारी  में. 
 लिए सूप  में बालक को तब, यमुना जी में बाढ़ बहुत
  पार कराया लीलाधर ने, उनको  बारिश  भारी में.

 शैशव  में असुरों को मारा,   पावन प्रेम सिखाया है
  रास रचैया बंसीवाला, जादू  था  बनवारी में.

 डरें  कोप से देवराज के, सारे ब्रज के वासी जब
 अभिमान ने तोड़ने इंद्र का, कौशल था गिरधारी में.
 डॉ चंद्रावती नागेश्वर
 रायपुर छत्तीसगढ़
मुक्तक लोक,शब्दमंथन-४३८,,दिनांक-१-११-२०२२
,(प्रदत्त शब्द-दर्प,अहंकार,घमंड आदि),विश्वम्भर शुक्ल जी तथा सुधी मंच को सादर --
               (1)
 बहुत पुरानी बात   सुनाते 
 था इक जंगल सभी बताते. 
 कहते उसको सागौनी वन
 सुंदर  पेड़ों  के गुण गाते. 
                ( 2)
 किसी को चौड़े पत्ते भाते
कद भी इनके खूब लुभाते.
 अलग जाति के छोटे पौधे 
 आसपास इनके उग  आते. 
                ( 3)
 सागौन  सभी की हंसी उड़ाते 
दर्प   भाव   से    ये    इतराते. 
वक्त   कभी  एक नहीं   रहता 
छोटे    सारे  चुप  रह जाते. 
                   (4)
 इक  दिन हवा चली तूफानी
 गिर गये पेड़ सब अभिमानी. 
झुक झुक जाते छोटे पौधे  
अहंकार की यही निशानी. 
चंद्रावती नागेश्वर
 छत्तीसगढ़ रायपुर
 शब्द लोक ---अतिथि, पहुना,  अभ्यागत, मेहमान

 आज हमारे घर आया है, एक नया मेहमान
 अब तक था सपनों में सबके,  पूर्ण किया अरमान. आया है इस घर में वह तो,  इंतजार  के  बाद 
 इस नन्हे से आगंतुक पर, सभी छिड़कते  जान.
                                 2
 किसके जैसा दिखता है वह, लगा रहे अनुमान
 आपके पापा जैसी बिल्कुल मम्मी सी मुस्कान. 
 आगत  के स्वागत को तत्पर,  लिए आरती थाल
   दादा  जैसे  तेवर  लगते,    ताऊ सा  विद्वान.

 डॉ चंद्रावती नागेश्वर, रायपुर छत्तीसगढ़


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