Wednesday 5 August 2020

लघुकथा श्रृंखला ----16( 5 /8 /2020 ) अवैध कब्जा ,कुलदेवी पूजन ,अयाचित सुख

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अवैध कब्जा ,कुलदेवी पूजन ,अयाचित सुख

लघुकथा समारोह 28 (प्रथम )
आदरणीय संचालक महोदय,संरक्षक महोदय
एवम लघुकथा प्रेमी  मित्रों को सादर .....

       अवैध कब्जा का कारोबार

आजकल शहरों क़स्बों के आस पास जहाँ सरकारी जमीन खाली दिखी। लोग रातों रात अवैध कब्जा जमाने लग जाते हैं।  ऐसे ही शांति नगर वाल्मिकी नगर , आम्बेडकर नगर ,  और अब ये हनुमत नगर बनने वाला है।
    केसला और खरमोरा गांव के बीच
श्मसान घाट के पास  रोड के किनारे बरसों से खाली जगह पड़ा था ।  एक रात सुकुल दास ने पीपल के नीचे बड़ा सा पत्थर रख सिंदूर में घी का गाढ़ा पेस्ट बनाकर रंग दिया। उससे टिका कर एक गदा भी रख दिया । नारियल के साथ अगरबत्ती  भी जला कर रख दिया। दूसरी रात एक मढैया डाल दिया । हप्ते भर में  कुछ खूंटा गड़ा कर दूर तक की बाउंड्री बन गई । महीने दो महीने में   उसकी देखा देखी  जिसको जितनी  जगह मिली मंगल सिंग, राम पाल ,सुखराम,सेवकदास,सभी ने उसे घेर कर झोपड़ी तान लिया ।
                  रोड के किनारे बोर्ड लग गया हनुमत नगर ।धीरे धीरे बस्ती बसने लगी । दुकाने खुल गई। जमीन की खरीद  बिक्री  शुरू हो गई । चुनाव के बाद पट्टे भी मिल जाएंगे।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
शंकर नगर रायपुर
 छ ग ,3/ 8 /2020


कुल देवी पूजन

  मेरी ननद दामिनी ने बताया कि  ---आज कुलदेवी पूजन का दिन है  उनके परिवार में यह परम्परा  है कि पहला बेटा पैदा होने पर पूरे परिवार के अपने गोत्रजों को बुलाया जाता  है।
विवाहित बेटियों और उनके परिवार को नहीं बुलाते।
                 
     दामिनी उस घर की छोटी बहू है  उसके लिए इस तरह के कार्यक्रम में शामिल होने का पहला अवसर है । 
  उसका बेटा अभी छै माह का है ।आगे चलकर उसे भी तो यह आयोजन करवाना पड़ेगा।
 
 दामिनी पूजा से आकर बहुत ही दुखी है ।उसके तो आंसू ही नहीं थम रहे हैं।
बार बार यही कह रही है  मुझे नहीं करना है कुलदेवी पूजन -----
  पूछने पर ननद की देवरानी स्मिता ने बताया कि --देवी पूजन की पूरी तैयारी के पहले पड़ोसी के घर से एक बकरा खरीद कर लाया गया ।उसे नहला कर फूल माला पहनाया गया , आरती उतारी गई, पूड़ी,बड़ा दाल चावल आदि जो रसोई    बनी  थी खिलाया गया,फिर स्टूल पर एक 
पटरा रखके तेजधार वाले हथियार से उसका गला काट कर उसके खून को 
देवि माँ  की मूर्ति के माथे पर लगाया गया ।उसके बाद देवी माँ की पूजा आरती हुई।
दामिनी तो बकरे का खून देखकर ही बेहोश हो गई। होश आने के बाद से ही लगातार रोती ही जा रही है।
  वहां से आने के पहले ताऊजी ,दादा जी ,दादी जी सभी से हाथ जोड़ कर कह दिया कि- आगे से इस तरह की  पूजा  में कभी नहीं आएगी। अपने बेटे के लिए भी ऐसी पूजा वह नहीं करवएगी।देवी माँ तो दया,करुणा की सागर है ऐसी पूजा से
से वो कभी प्रसन्न नही हो सकती ।
देवी माँ ने संसार के सब जीवों को पैदा किया है। 
 उस बकरे की माँ को भी तो दुर्गा माँ ने पैदा किया है। वह बेचारी कितना चिल्लाती रही है --मन - मन में वह श्राप दे रही होगी  --जा तेरे बेटे को भी ऐसे ही मारा  जाएगा.....
 
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
शंकर नगर रायपुर
छ ग
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लघुकथा समारोह 30 (प्रथम)

शीर्षक------* अयाचित सुख *
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 महीनों बाद जयंती  आज  अपने नए मायके से वापसी की तैयारी कर रही है। उसे अपनी नातिन वैदेही के साथ बाजार जाना है सफर के लिए जरूरी समान जैसे-- सेनिटाइजर हैं मास्क डिस्पोजल  हेंन्की ,हेंडगलब्स आदि 
यामिनी ने अपने अपनी दोनों बेटियों और पति को मना
 कर रखा है-- कि बुआ से अपने लिए कुछ भी लेना या खरीदवाना नहीं है 
         जयंती ने यामिनी का पासबुक नम्बर पता कर लिया है। उसे अपने लिए पैसे निकालने ही थे ।बैंक जाकर उसके एकाउंट में बाईस हजार ट्रांसफर कर दिए।बच्चों के लिए मनपसन्द गिफ्ट ख़रीदा । सच मे आज उसे लग रहा है कि अपनों से विदा हो रही है ।
 पकी उम्र ,कोरोना काल में अपरिचित शहर - जहां कोई जान पहचान नहीं है। वहां अकेले रहना  ये सब सोच सोच कर मन दुखी हो रहा है ।
    आजकल एकल परिवार के जमाने में भरे पूरे परिवार के साथ रहने का सुख क्या होता है ।उसेयहीं पता चला।
              विदाई की घड़ी पास आ ही रही है ।कल सबेरे ही  उसे वापस जाना है।    
 जयंती को रात में बहुत देर तक नींद नहीं आई ।वह अतीत की यादों में खो गई।  छत्तीसगढ़ केऔद्योगिक नगर रायगढ़ उसके पति जिंदल कम्पनी में काम करते  थे।वो किराये के क्वाटर में वे रहते थे। दोनो बेटे इंजीनियर बनकर अमेरिका जाकर बस गए।
        पति की मृत्यु के बाद से  विगत 12 सालों से जयंती  वहां अकेली  ही रह रही है। माँ पिता तो बीस साल पहले स्वर्गवासी हो गए।बड़ा भाई भी नहीं रहा । मायके ओर ससुराल में जेठ देवर कोई  जीवित नहीं  बचे।
        पहले नौकरी , बच्चों की पढ़ाई ,कोचिंग के चलते रिश्तेदारी में शादी ,बीमारी, गमी में आते थे तो --  3 -4 दिन से ज्यादा कभी नहीं रह पाए।इस बार भतीजी की बड़ी बेटी के जन्मदिन और अपनी सहेली के नए मकान के वास्तु पूजन दो दिन के अंतर में पड़े, तो वह सप्ताह भर के 
 लिए सबसे मिलने की सोचकर नागपुर आ गई थी । उसके यहॉं आने के दो दिन बाद ही कोरोना महामारी के कारण अनिश्चित कालीनलॉकडाउन लग गया।
ट्रेन बस सब बन्द। जयंती को मजबूरवहाँ लॉक डाउन खुलने और स्थिति सामान्य होने की प्रतीक्षा करनी पड़ी।  जब जब जयंती ने यामिनी के बढ़ते खर्च को देखते हुए किसी बहाने  से कुछ देना चाहा  ।यामिनी ने बुआ  को यह कह कर-- उसका दिल जीत लिया कि --बुआ यह मेरा  ही नहीं आपका भी मायका है । मैं भी तो माँ के घर
   में ही रह रही हूँ। यह आपके भाई का ही घर है।
 यहां आप जब तक मन चाहे  बेझिझक हो कर रहिये ।
             हमारी तो यह बड़ी इच्छा है कि-हमें आपका मार्गदर्शन और आशीर्वाद मिलता रहे---- आपके बेटे दूर। परदेश में रहते हैं।
      आप खुद को अकेली कभी मत समझना ।दामाद ने सामने आकर कहा  --- मैं  भी  तो आपका बेटा  जैसा हूँ  .....  मुझे पराया मत समझना ।कभी जरूरत पड़े तो आजमा लेना---इस तरह  उनके निश्छल व्यवहार से जयंती को अनायास ही अयाचित सुख की अनुभूति हुई।उसकी आंखें पनीली हो गई -----
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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  लघुकथा लोक ---समारोह29 / 【प्रथम】
आदरणीय संचालक महोदय,आदरणीय संरक्षक महोदय एवं कथाप्रेमी मित्रों  को सादर---
  शीर्षक  ----       *एंटीक  पीस मृदंग*
                 
                            जेठू का  भतीजा  राजधानी रायपुर के अत्याधुनिक फ्लैट में रहता है ।जेठू  पहली बार अपने गांव से अपने मित्र के साथ राज धानी रायपुर में छत्तीसगढ़  का राज्य  उत्सव देखने आया है। दोनों मित्र एक रिश्तेदार के घर ठहरे हैं  ।रोज सुबह शहर में घूमने निकल जाते।
            आज  दोपहर में उन्होंने देखा कि कलेक्टर बंगले की सफाई हो रही है।चारदीवारी के बाहर कूढ़े के ढेर में  वहां के नौकर छोटे बड़े दो मृदंग,शहनाई ,बाँस बाजाआदि  फेंक दिए हैं।जेठू सन्तू दोनो मित्रों ने उन्हें उठा लिया।  अपने अंगोछे से पोंछकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद  वे उसे बजाने लगे।
        उसकी  मनमोहक। आवाज सुनकर आने जाने वाले मन्त्र मुग्ध होकर आसपास खड़े हो गए।  नए कलेक्टर साहब की गाड़ी भी वहां से गुजरी। अपने नए एलाट हुए बंगले से फेके कबाड़ के करिश्मे ने उन्हें भी आकर्षित किया।
         उनके जेहन में  बचपन की कुछ कुछ बातें उभरने लगी ।बस्तर के दशहरा का मेला,नृत्य गीत ,मृदंग की 
थाप ।उन्होंने उन वादकों को अपने बंगले में बुलवाया।और परिचय पूछा।      
          जेठूराम के परदादा बस्तर के सघन वनो के बीच बसे बरतुला गांव के मुखिया थे।वैसे तो जेठू ढोल मृदंग शहनाई सभी वाद्य बजा लेते हैं। लेकिन उन्हें मृदंग विशेष पसन्द था।बस्तर में दस  दिनों तक दशहरा का उत्सव चलता है ।
आदिवासी संस्कृति के खुलकर दर्शन होते है। इस महापर्व मे गांव भर के लोगों का बस्तर के राजा की ओर से महाभोज का आयोजन किया जाता था।  विशेष वेषभूषा में आदिवासी नृत्य ,कर्मा, सैला नृत्य लोक गीत ददरिया प्रतियोगिता की होती। जेठूअपने पिता,काका, के साथ आदिवासी पोशाक पहन गले में मृदंग की रस्सी लटका कर झूम के नाचा करता था। 
      उनके  जाने के बाद कलेक्टर साहब सोचने लगे --- जीवन एक वाद्य ही तो है। जिसका संगीत जीवन में माधुर्य बन सकता है। 
चूंकि लोग इसे बजाना नहीँ सीख पाते तो दुख, दर्द ,पीड़ा ,हिंसा शत्रुता की विसंगति मेंडूबे रहते हैं
 जीवन सबको को मिला है।कई लोग इसे बजाना सीखते हैं  कुछ निपुण हो कर उसके जरिये अपनी पहचान बना लेते हैं। कुछ लोगों  के लिए  कबाड़ ,कुछ के लिए सजावटी एंटीक पीस बन जाता है......

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग

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