मंगलवार,दि.25/8/2020
प्रदत्त शब्दःकामदेव/मनसिज/मनोज/मन्मथ/कंदर्प ....
मनसिज मदन या नया कोई, हर्ष बोधित नाम भी।
घायल करें तीर पुष्पों के,चला कर रति काम भी।
अनुभव कराये स्वर्ग सम जो,अन्य मौसम हो अगर
इस बसंती रूप पर धरा के ,मोहते हैं श्याम भी।
झूम कर स्वागत करें, महकी हवा भी दूर तक
पुष्प सुंदर जो करें सबको सुवासित हृदय तक।
गीत स्वागत के रचें खिलते कमल तालाब के
प्रेम की अनुभूति से भरता हृदय चिर काल तक।
डॉ चन्द्रावतीनागेश्वर
रायपुर छ ग
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भूखा तन बस देखे रोटी , धन बिन होता जीवन भार
भरा पेट हो तो मन उपजे, तरह तरह के सोच विचार।
सब कुछ नहीं पर है बहुतकुछ,इस जीवन में धन कास्थान
धर्म अर्थ और काम मोक्ष, इनपर चाहें सब अधिकार।
(2)
बड़ी शक्ति है धन में क्रय की ,यह तो जीवन का आधार
मेहनत बिना मिले नहीं धन, होता है धन से व्यापार ।
धन बल्कि आगे नत मस्तक ,अच्छेअच्छों का ईमान
नहीं बिकाऊ होती ममता ,कहता है सारा संसार ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
युगों से नदियां सागर से, एक तरफा करतीं प्यार
सागर का दिल मचले, सरिता से करें आँखें चार
प्रेमातुर सागर लुभाने आये सरिता के पास
मि ट जाये उसका खारापन ,बदलेगा संसार
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
सेंट क्लारा u s a
[02/09, 10:26 pm] Chandrawati Nageshwar: संग लिए किरणों को आता
अंधकार को दूर भगाता ।
पूजा का ये दीपक जलकर
सबके मन मे आस जगाता ।
दीप पर्व या विजय पर्व में
दीप जलाकर सांझ समय में।
दोना में रख जलता दीपक
तैराते हम बहते जल में ।
भाव लहर के साथ गंग में
दीप जलाके छोड़ें जल में ।
प्रीति-स्मृति,कामना के दीपक
जा पुरखों तक स्वर्ग लोक में।
जन्म मरण हो या सुख दुख में
जल-थल में या हो तन-मन मे ।
जला करे इसकी ज्योति सदा
राह दिखाये धरा गगन में ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर ,छ ग
[02/09, 11:03 pm]
बढ़े ज्ञान शिक्षा से सबका, अंधकार मिट जाता है
शिक्षा से रोशन हो घर घर ,भेद सभी मिट जाता है ।
खूब पढ़ें सब खूब बढ़ें हम,अम्न देश में आ जायेगा
इक दूजे का मन रखें हम, कष्ट सभी मिट जाता है।
एक दीप जैसा बन शिक्षा, दिन रात जल करता है
बाग यही सुंदर फूलों का , दिन रात खिला करता है।
सुंदर शोभित बनता जीवन, जगमग करता तारों सा
संकट में यह देता हिम्मत , दिन रात भला करता है।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर ,छ ग
डॉ चंद्रावती नागेश्वर: दोहा मुक्तक लिखने का प्रयास किया है----समीक्षार्थ सादर प्रस्तुत है ...
( 1 )
हिंदी है भाषा वही, मीठी लगती खूब
जन जन के मन में बसी,हरियाती जस दूब ।
भावों की सह गामिनी,यह तो बडी अनूप
प्रीत रखें इससे सदा,भाव लहर में डूब ।
( 2 ) हजारों साल लगते हैं तब,भाषा विकसित होती है
देश वासियों के मन में जो ,बीज एकता के बोती है।
स्वाभिमान से पूरित करती,देती है पहिचान अलग
अपनत्व प्रेम के धागे में, हमको यही पिरोती है ।
(3) अपनी भाषा ज्ञान ग्रन्थ पढ़ ,मन चिंतन पुष्प सजाना
खुद क्या हो यह तो जानो तब, दूजों की थाह लगाना।
भरे सिंधु हैं अथाह ज्ञान के,हर भाषा में मिलते हैं
विस्तार ज्ञान का करने को, बहु भाषा ज्ञान बढाना।
(4) बहु भाषी -बहु वेशी मिलकर ,देश हमारा निर्मित है
एक सूत्र में बांधे हिंदी ,इसकी शक्ति अपरिमित है।
वीर बहादुर इसके राक्षक, भारत माँ के हैं गौरव
राष्ट्र भाषा जिनकी हिंदी ,संचित शक्ति असीमित है।
(5 ) उजली आभा जो रखती है, भाषा मेरी हिंदी
संग सभ्यता के संस्कृति की वाहक है हिंदी।
देवभूमि भारत की लिपि है देवनागरी
तन मन पुलकित करती गंगा जल सी हिंदी ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
मुक्तक-लोक
शब्द मन्थन समारोह ३२८
मङ्गलवार २२ सितम्बर
सोना- चांदी हीरा- मोती, रुपिया -पैसा सब बेकार
प्रेम-त्याग करुणा मन में रख, करते रहना पर उपकार।
मीठी वाणी ऊंची शिक्षा ,सद व्यवहार और ईमान
मानव जन्म मिला मुश्किल से, सद्गुण से करना सिंगार।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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बैठी यहां विदेश में, सात समंदर पार
ले आई दिल मे छुपा,अपनों का मैं प्यार ।
दुआ सभी करना यही, शब्द सुमन के साथ
अंतिम दर्शन के लिये, सांसे मिले उधार ।
[17/09, 16:57]
डॉ चंद्रावती नागेश्वर:
सेंटाक्लारा
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