युगों से नदियां सागर से, एक तरफा करतीं प्यार
सागर का दिल मचले, सरिता से करें आँखें चार
प्रेमातुर सागर लुभाने आये सरिता के पास
मि ट जाये उसका खारापन ,बदलेगा संसार
युगों से नदियां सागर से, एक तरफा करतीं प्यार
सागर का दिल मचले, सरिता से करें आँखें चार
प्रेमातुर सागर लुभाने आये सरिता के पास
मि ट जाये उसका खारापन ,बदलेगा संसार
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
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मित्र गण!
सादर अभिवादन।
मुक्तक -
खिड़की-खिड़की झाँकता यह मनचला दिनेश!
कलियुग- कलुष- प्रभाव से कोई बचा न शेष!
रवि के प्रति मत पेश कर कवि! मिथ्या आरोप,
कोने - कोने खोजता छिपे तिमिर - अवशेष!!
- 'पल्लव'
चित्र ~ गूगल से साभार।
मै कविता को ढूंढ रही थी
फूलों की डोली में बैठी वह
वसंत के संग घूम रही थी
बौराती आम की डाली में
काली कोयल कूक रही थी
मैं कविता को ......
पारिजात आँचल में समेटे
टेसू की शाखों में हर्षित मन
झूला डाले झूल रही थी।
मैं कविता को ........
सांझ ढ़ले जब पंछी चहके
जूही चमेली का गजरा ले
लम्बे बालों में गूँथ रही थी
मैं कविता को...........
सुंदर पीली चूनर पहने
मुक्तक लोक में झूम रही थी
मैं कविता को ढूंढ रही थी
डॉ च नागेश्वर
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मुक्तकलोक<>मंगलवार,21-02-2023
शब्दलोक समारोह-454
प्रदत्त शब्द- जिह्यवा, रसना,जीभ आदि
1
मुख गुफा के भीतर में, पहरे में है जीभ
तीस से ज्यादा प्रहरी,नन्हीं कोमल जीभ.
रस से भरी है रसना, पाती सबका प्यार
मीठे बोल हैं इसके,चारअँगुल की जीभ.
2
लगे विवश पर है नहीं, बड़ी चतुर यह जीभ
मानुष को वश में रखे, लाल गुलाबी जीभ.
दो कारगर अस्त्र हैं, स्वाद और हैं बोल
डाले सब पर मोहनी, ऐसी है यह जीभ.
चंद्रावती नागेश्वर,
रायपुर छत्तीसगढ़
दिनांक 21,02,2023
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हिंदी दिवस 14 , 9, 2023
मुक्तक लोक 484
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सहज सरल है भाषा हिंदी , याद रखो
देश वासियों.
यही विरासत है पीढ़ी की, याद रखो देश प्रेमियों.
भारत के जन मन की बोली
सुन ले जो उसकी ये होली.
दिल से दिल की बात कहे
बंद कपाट हृदय के खोली.
इसे संवारो सब मिलकर के ,बंधु सखा बहन भाइयों .
सहज सरल है भाषा हिंदी , याद रखो देश वासियों.
विज्ञान के मानक पर खरी
शब्द अर्थ से है हरी भरी .
बाहों में समेटे व्याकरण
रस अलंकार की लगे झरी.
मन भूमि संस्कारित करती, ना भूलो सुत प्रवासियों.
सहज सरल है भाषा हिंदी, याद रखो देश वासियों.
अपनी बोली अपनी भाषा
हो उन्नत सबकी अभिलाषा.
मान देश का हमें बढ़ाना
हो विकास सबकी है आशा,
मानवता ही धर्म हमारा , बढ़े चलो कर्म योगियों
सहज सरल है भाषा हिंदी ,याद रखो देश वासियों.
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छत्तीसगढ़
जिंदगी है जंग तो जौहर दिखाना चाहिए
मुश्किलों के बीच रहकर भी मुस्कुराना चाहिए
डराती खूब है मुश्किल हम डरें नहीं इनसे ,
परखना काम इनका है मुस्कुराना
चाहिए।
जिंदगी सदा सुख -दुख की धूप -छांव जैसी है
रखना धीर मन मे सदा मुस्कुराना चाहिए।
नहीं कंटकों पर हम चलें दूर हम उनको करें
हटा कर राह से उनको मुस्कुराना चाहिए।
बन सकता अवरोध नहीँ राह का पत्थर कभी
उन्हें बना कर सीढ़ी फिर मुस्कुराना चाहिए।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
पताका देश का हम तो, सदा ऊंचा रखा करते
वतन की शान /(आन)के ख़ातिर ,कफन पहने सदा रखते।.....
दुश्मनी जो करें हमसे , उसे जिंदा नहीं छोड़ें
हर इक जर्रा सलामत हो ,दुआ इसकी किया करते ।.......
रहे आबाद/(आजाद) गुलशन ये, यही कोशिश हमारी है।
चढ़ा कर भाल ( शीश ) हम अपना ,मरण उत्सव कहा
करते।........
रक्त चंदन चढ़ाया है , सजाया भाल को माँ के
रहे अभिमान से ऊंचा। ,यही हम कामना करते ।.......
.
बहा कर खून की नदियां , धरा रखते सदा पावन
जलाकर दीप प्राणों का , सफल (धन्य) जीवन किया
करते।......
.
पखारें रक्त से अपने, चरण तेरे हमेशा माँ
दुआ करना यहीं जनमें, यही हम कामना करते .....
सुखी रहना वतन वालों, तिरंगा अब तुम्हें सौंपे
बचाना लाज भारत की , भरोसा हम यही करते ।
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
दीपक तू क्यों जलता है
सदा उजाला करता है
देवालय में आस प्रतीक तू बनता है
गिरजाघर में मौन पार्थना करता है
ख़ुशी में घी से भर कर जलता है
दुःख में तेल भी कम पड़ता है
दीपक जब तू जलता है ..... सदा उजाला करता है........
आंधी में जब तुझपे संकट आता है
आँचल की ओट चाहता है
वेग हवा का जब थम जाता
उस आंचल को ही झुलसता है
अंधकार में ही चमकता है ............. सदा उजाला करता है..........
सुबह -सुबह जब सूरज आता है
तेरा तेज कहाँ गुम हो जाता है
क्या टू उसे नमन करता है
सारे जग का जो तम हरता है
आँख मीच इष्ट आराधन करता
या प्रणव मन्त्र तू जपता है ..... सदा उजाला करता है........
अंधकार की छाती में
क्या तू कविता लिखता है
तरल तेल में भावों को रखता
माटी के घेरे में नया छंद तू रचता है
क भी तो जीवन गीत सुनाता
या विरह राग तू गाता है
डा चन्द्रावती
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नहीं है नारी। :--
कवि बिहारी की कविता
मन में खलबली मचा गई
मेरी कल्पना को जगा गई
कहा -भाल पर अंकित बिन्दी
मुख सौंदर्य कई गुना बढा गई
शून्य आकार की बिंदी
सबके मन को भा गई
पुरुष प्रधान समाज में
नारी आज भी क्यों
रखी जाती है हाशिये में
सर्व ज्ञात है पूर्णता देता है
शून्य सदा अंक के दाहिने में
तन बल,बुद्धि बल,कार्य कौशल
हर क्षेत्र में पुरुषों से कहीं भी
पीछे रहती नहीं है नारी
पुरुषों के अहम पर , पड़ती हैं भारी
ठीक है मिलती यदि उन्हें ,इसी से संतुष्टि
तो ढूंढ लेते हैं हम भी इसी में अपनी ख़ुशी
क्योंकि हम नहीं है उनकी प्रतियोगी
हम तो सृजन में हैं सहचरी सखी सहयोगी
पर न भूलो मूल्य इस शून्य का
बढ़ाती हमी जीवन में महत्व पुरुष का
पुरुष यदि अंक है एक या नौ का
हम वही शून्य हैं बिना जिसके
मिल सकती नहीं उन्हें पूर्णता
आज हम है उसके दक्षिणांगी
बिना शक्ति अर्धनारीश्वर शिव अधूरे
राधा बिना कृष्ण भी हैआधा
प्रिया प्रभु राम की हैं जानकी
बिन नारी सृष्टि में सर्वत्र होगी शून्यता
मिले सृजन को नारी से ही निरन्तरता
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
शंकर नगर
रायपुर छ ग
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मैं कविता को ढूंढ रही थी
बारिश में वह घूम रही थी------
सावन की रिमझिम बारिश में
खोई प्रियतम के सपनों में ।
पावस के उस नेह छुवन की
बून्द बून्द को चूम रही थी .......
मैं कविता को ...........
शरद ऋतु का मौसम आया
पूनम का चंदा हरषाया ।
उजला रूप बहुत मन भाया
नेह सुधा में भीग रही थी .......
मैं कविता को .........
.पछुआ तभी कँपाती आई
उसको भाए नहीं रजाई
चुन चुन पत्ते आग जलाई
प्रिय की पाती बांच रही थी.......
मैं कविता को ..........
.
भौरें गुन गुन करते आये
हवा बसंती मन को भाये
कोयल कुहके सरसों फूले
वन उपवन में झूम रही थी......
मैं कविता को ............
भीषण गर्मी जब है पड़ती
सूरज तपता धरती तपती
कड़वी नीम की मीठी छांव में
झूला डाले झूल रही थी......
मैं कविता को ...........
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शब्दों की डुगडुगी बजाती हूँ
भावों के करतब दिखाती हूँ.......
सुन लेना समझ लेना
लगे अच्छा तो चुन लेना.........
उम्र छोटी सी मेरी है
तजुर्बा खूब रखती हूं
सन्तुल मन्त्र जीवन का
पते की बात कहती हूँ
ध्यान इस पर लगाती हूँ .......
भावों के करतब दिखाती हूँ.......
पिटारी में गीत गजल
कविता मैं रखती हूं।
मेहरबाँ लीजिये अब
पेश करती हूं।
मनोरंजन हो आपका तो
ताली बजा देना।
हौसला इनसे पाती हूँ.....
भावों के करतब दिखाती हूँ.......
खत्म ये खेल होता है
कहूँ क्या दिल ये रोता है।
मेहनत व्यर्थ ना जाये
खयाल इसका ही आता है।
नेह की चादर बिछाती हूँ .......
भावों के करतब दिखाती हूँ.......
मदारी है जो ऊपर में
तमाश खूब दिखाता है।
बिना रस्सी औऱ डंडे के
सबको खूब नाचता है
पल भर भी न भूलो ये
यही मैं बात बताती हूँ ........
भावों के करतब दिखाती हूँ.......
विदाई की ये बेला है
नमन स्वीकार कर लेना है।
घुमंतू हम मुसाफिर तुम
मिलें कहीं तो मुस्कुरा देना ।
प्रीत नगरी में बसेरा है
पता इतना लिखाती हूँ .....
भावों के करतब दिखाती हूँ.......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
शंकर नगर रायपुर
धर्म है देश की सेवा, कर्म है लक्ष्य को पाना
चढ़ाते शीश अपना हम, वतन की शान के खातिर।
सदा ऊंचा तिरंगा हो ,फहरता शान से नभ में
यही हम चाह रखते हैं,गुणों के गान के खातिर।
दुश्मनों को भगाना है , यही जज्बात रखते हैं।
सुरक्षा देश की करना ,हमें सम्मान के ख़ातिर।
यहीं पर जन्म पाया है ,यहीं का अन्न खाया है
शपथ माँ की उठाते हैं, सदा उत्थान के खातिर।
अमर होता नहीं कोई , मनुज जीवन मिला हमको
किसी के काम आना है ,इसी अरमान के खातिर।
लिखें हम खून से अपने ,नया इतिहास अब यारों
उमड़ता है हृदय में जोश ,नव निर्माण के खातिर।
करें कुरबान अपनी जान, यही दिन रात सोचा है
जलाते प्राण का दीपक, नए दिनमान के खातिर।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
3/
सूर्यदेव से ऊर्जा लेकर ,आया नवल प्रभात
झूम उठे हैं तरुवर सारे,पुलक भरे हैं पात।
फूल खिले भँवरें मुस्काऐं ,गाते स्वागत गान
उजली किरणें ले कर आई,खुशियों की
सौगात
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छत्तीसगढ़
च नागेश्वर
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(आज का सुप्रभातम्,,,,,)
अधर कम्पित नत नयन हैं
यह प्रणय का पल्लवन है।
देह का निश्चित क्षरण पर
हृदय चिर सौन्दर्य घन है।
भंगिमा है मुखर भाषा
मौन इसका व्याकरन है।
नयनपथ से मनभवन तक
मधु तृषा का संचलन है।
प्रेम तो बस मरु धरा पर
सघन घन का आगमन है।
वेदना की वेदिका में
स्वयं का हंसकर हवन है।
तृषित उत्कण्ठित अधर का
आंसुओं से आचमन है।
प्रीति का परिचय यही है
तिमिर में विद्युत् किरन है।
स्वप्नसंकुल सघन वन में
मन भटकता इक हिरन है।
नेह के पथ को कहे कवि
असि धरा पर सन्तुलन है।
स्मृतिपटतल में प्रकाशित
पीर का नव संकलन है।
नवल किसलय से शिला पर
क्रौंच गाथा का सृजन है।
(डा० लक्ष्मीनारायणपाण्डेय)
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एक बात मैं कहती हूं जो, जानी मानी है
लोग ध्यान ना देते फिर भी, यह नादानी है.
जग को रचने वाला वह तो, अंतर्यामी है
पूजा पाठ व्रत उपवास सब, कुछ बेमानी है.
क्षमा नहीं है विधि विधान में, कर्म भोग न टले
स्वयं लिखो भाग्य अपना सच, यही कहानी है.
बिना कर्म के भीख मांगते, सुख वैभव चाहें
मिले हाथ कर्म के लिए जो, जाने ज्ञानी है.
लगे ढेर जग में सुख दुख के ,जो चाहे पाओ
अच्छे बुरे कर्म के बदले, मिले बतानी है.
नीयत से बरकत पाते हैं, यह खुद्दारी है
करें कर्म की पूजा बाकी, मन बहलानी है
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर
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