Sunday 6 September 2020

लघुकथा श्रृंखला -;--- क्रमांक -19 पितृ दोष ,पढ़ा लिखा होता तो .. आधुनिक आदर्श वादी कन्या...माँ का डर

आधुनिक आदर्श :-आदरणीया संचालक महोदया आदरणीय संरक्षक जी एवम स्नेही मित्रों के समक्ष समीक्षार्थ प्रस्तुत है मेरी लघुकथा ::::

 शीर्षक  * ऑनलाइन पितृदोष निवारण*          .                       
        पितृ पक्ष प्रारम्भ हो चुका है। आज पंचमी तिथि है। विगत छै महीने से  वेणुमाधव और उसकी पत्नी विभा को इसी दिन का इंतजार था।  जब से हरिद्वार के विख्यात ज्योतिषी हरि शंकर जी ने उनके पांच वर्षीय पुत्र  रौनक
 एवं वेणु की जन्म कुंडली मे पितृ दोष बताया है ।  इसके निवारण के लिए पति पत्नी बेचैन हो उठे। 
उसकी 76 वर्षीया वृद्धा मां भारत में अकेले असहाय जीवन गुजार रही है। पिता पांच साल बिस्तर पर पड़े रहे ।उनकी परवाह नहीं की ।माता पिता अपन औलाद को मुंह से कुछ नहीं कहा पर उनकी तड़पन के अनकहे शब्दों की गूंज  ही पितृ दोष बनकर बैठ गया।उनका  बेटा पांच साल का हो गया, हमेशा बीमार रहता है। न खुद चैन से सो पता है न माता पिता चैन से रह पाते हैं।
        रौनक बचपन से बहुत बीमार रहता है  । ये सब
 u s a के सेनहोजे शहर में रहते हैं।शहर के बड़े बड़े स्पेसलिस्ट से इलाज करवाया  एक समस्या ठीक होती तो दूसरी नई समस्या उठ खड़ी होती है। 
        पितृ दोष निवारण पूजा का उपाय ही नहीं करवा पाए थे , जो आज सम्पन्न होना है । हरिद्वार के प्रख्यात आचार्य सदानंद स्वामी के आश्रम में ये पूजा ऑन लाइन करवाई जा रही है। 20 फरवरी 2020 से 85000/-रु का एडवांस चेक भेजकर  रजिस्ट्रेशन करवाया गया है।
                    आज सुबह 7 बजे 11 बजे तक पूजा सम्पन्न होंनी है।  भारत और अमेरिका में साढ़े बारह घण्टे का का अंतर है। भारत का सुबह अमेरिका की शाम का वक्त है। आचार्य जी के निर्देशानुसार  सामग्री की तैयारी रख  इधर हरिद्वार आश्रम में लेपटॉप  ऑन हुआ उधर सेनहोजे में  वेणु ऑन लाइन हुए।  आचार्य जी मंत्रोच्चार करते -करवाते । पूरे विधि विधान से पूजा सम्पन्न हुई ।
इस तरह पितृ दोष निवारण पूजा सम्पन्न हुई।
         इसमें  दोषनिवारण हुआ या नहीं ये वक्त ही बताएगा ......

     डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
      रायपुर        छ ग
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             लघुकथा लोक -     समारोह 32 (प्रथम )
सम्माननीय संचालक महोदया,आदरणीय संरक्षक महोदय एवम मंच को सादर समीक्षार्थ......

 शीर्षक --पढ़ा- लिखा होता तो....

---              प्रेमनगर कालोनी में कुल 25 ब्लॉक में 600 M I G फ्लैट बने हैं । हर पांच  साल में कालोनी वासियों की प्रबन्धन समिति का चुनाव होता है । इस बार वहाँ के बड़े  पुराने प्रतिष्ठित  निवासी मंगल सिंह अध्यक्ष चुने गए हैं। कालोनी में एक छोटा सा मन्दिर है।उसका जीर्णोद्धार  करवाने का प्रस्ताव है ।मंदिर से लगा बड़ा सा सभागार भी बनवाना है । लगभग 8 -10 लाख का खर्च  बताया गया।  हर निवासी 500 रु और समिति के नवगठित पदाधिकारियों को एक हजार चन्दा देना है ।
       चन्दा लेने की शुरुआत अध्यक्ष महोदय से की गई।
उन्होंने कहा ----मेरे तरफ से 5 लाख  का चेक भर लो ।
सचिव चेक भरकर  कहा --इसमे हस्ताक्षर कर दीजिये ।
उन्होंने उस पर  अंगूठा लगा दिया ।
 समिति वाले  एक दूसरे का चेहरा देखने लगे । सचिव से रहा नहीं गया।उन्होंने कहा --ये क्या मजाक है???भई ...
 ये मजाक नहीं सच्चाई है ---- मैं अनपढ़ हूँ --- फिर उहोने 
अपनी राम कहानी इस तरह  बताई कि ---आज से 16 साल पहले  इस कालोनी में चौकीदारी करता था। इस बार की तरह नया चुनाव हुआ था।
समिति के सदस्यों का निर्णय था --अब चौकीदार ,सफाई
कर्मी पढ़े लिखे लोगों को ही रखा जाएगा।  सभी अनपढ़ लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया।     
   परिवार पालने के लिए  मैंने कालोनी के बाउंड्री के बाहर चाय पकौडे का ठेला लगा लिया । धीरे  धीरे 
 अच्छी आमदनी होने लगी।  कालोनी में कुछ किराएदार 
  कॉलेज पढ़ने वाले लड़के और अविवाहित लोग भी थे ,
उनके लिये खाना बना देता।
         हमारा काम चल पड़ा। हमने धीरे से एक रेस्टोरेंट खोल लिया ।  टिफिन सप्लाई का काम इतना बढ़ा की सहायता के लिए गांव से भाई बन्धुओं को भी बुलाना
 पड़ा। यहॉं इसी कालोनी मेंआठ साल पहले अपने लिये मकान भी खरीद लिया । 
     
               भाइयों अब आप ही बताएँ मैं आपलोगों से 
क्यों मजाक करूँगा ????  वहां उपस्थित  लोगों ने कहा --  वाकई आपने तो कमाल ही कर दिया। इतना प्रोग्रेस किया जितना पढ़े लिखे भी -----उन्हें बीच मे रोकते हुए 
मंगल सिंह ने कहा----अगर उस समय पढ़ा लिखा होता तो शायद आज भी चौकीदार ही बना रह जाता  .....

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
शंकर नगर ,रायपुर 
9425584403

लघुकथा लोक का  समारोह 33 / द्वितीय 
आदरणीया संचालक महोदया  आदरणीय संरक्षक महोदय एवम प्रिय मित्रों के समक्ष सस्नेह प्रस्तुत है ....

 * आधुनिक आदर्शवादी कन्या *
      
 निरंजन  विगत 4 साल से बंगलोर के नामी मल्टी नेशनल
कम्पनी में आई टी इंजीनियर है  उसकी प्रतिभा मेहनत और कार्य  शैली से कम्पनी उसे जर्मनी से भेज रही है । जाने के पहले उसके माता पिता  बेटे की शादी कर देना चाहते हैं । बेटे की पसंद को  देखते हुए  उसके पसन्द की लड़की नम्रता से  यह सोचकर   बात किया कि लड़की भी इसे पसंद करती है या नहीं हम  यह जान तो लें । निरजंन की माँ ने नम्रता का फोन  नम्बर ले कर उसे अपना परिचय देते हुए शादी के बारे  में उसके विचार जानना चाहा ,फिर  निरंजन के लिए प्रस्ताव
रखा तब नम्रता ने कहा ---  मैं  कोई ऐसी वैसी लड़की नहीं हूं। मैं तो अपने घर वालों की मर्जी के खिलाफ शादी नहीं करूंगी।  मैं तो  सेटल मैरिज करूँगी।
बड़ों के आशीर्वाद के साथ इज्जत से विदा होउंगी।
               नम्रता ने अपने घर वालों से एक आदर्शवादी
बेटी की तरह कह रखा है कि -- मैं तो आप लोगों के पसन्द से ही शादी करूँगी ।
            अत्यंत साधारण परिवार की नम्रता को ग्रेजुशन के बाद एक अच्छी कम्पनी में बंगलोर में नौकरी मिल गई 
उनके परिवार में नम्रता ही अब तक की पहली लड़की है। जो ग्रेजुएशन कर पाई है औरअच्छे वेतन पर नौकरी कर रही है। वह अपनी चचेरी,ममेरी,फुफेरी बहनों और पास पड़ोस वाली लड़कियों के लिए आदर्श मानी जाती है। 
      बंगलोर जैसा बड़ा  शहर, लड़कियों पर घरवालों द्वारा लगाई जाने वाली बन्दिशों से मुक्ति, देखने में सुंदर ,और नौकरी ने जैसे उसे पंख दे दिए हैं।अब उम्र का तकाजा भी है  वह इस मौके का भरपूर फायदा उठाना चाहती है।फूल हो और भौंरे न हो ऐसा तो कहीं हो ही नहीं सकता। अपने ही विभाग के नौजवान प्रतिभावान बॉस प्रतीक  से उसकी आँखें चार हो गई।  नम्रता उसके साथ  रिलेशन शिप में 
रहने लगी।   
           प्रतीक  का हैद्राबाद ट्रांसफर हो गया।निरंजन
उस ऑफिस में आया तो  उससे प्यार करने लगी। अब
सालभर से उसके साथ रिलेशनशिप में रहने लगी। नम्रता ने अपने घर वालों को उसकी इस करतूत के बारे में पता ही नहीं है ।
                निरंजन उसे सच्चे  मन से चाहता है। नम्रता के घर वाले दूसरी जाति के लड़के से विवाह करने को तैयार
नहीं  हैं ।उन्हें अपनी बेटी के चरित्र और बातों पर बड़ा नाज है।  
निरंजन दुखी मन से  जर्मनी चला गया .........
 नम्रता अपने नए बॉय फ्रेंड की खोज में लग गई.....
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग 
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आधुनिक आदर्श कन्या * (व्यंग्य)
       अत्यंत साधारण परिवार की नम्रता को ग्रेजुशन के बाद एक अच्छी कम्पनी में  बंगलोर में नौकरी मिल गई ।
उनके परिवार में नम्रता ही अब तक की पहली लड़की है। जो ग्रेजुएशन कर पाई है और  अच्छे वेतन पर नौकरी
कर रही है। वह अपनी चचेरी,ममेरी,फुफेरी बहनों और पास पड़ोस वाली लड़कियों के लिए आदर्श मानी जाती है। 
      बंगलोर जैसा बड़ा  शहर, लड़कियों पर घरवालों द्वारा लगाई जाने वाली बन्दिशों से मुक्ति, देखने में सुंदर ,और नौकरी ने जैसे उसे पंख दे दिए हैं।अब 
उम्र का तकाजा, फूल हो और भौंरे न हो ऐसा तो कहीं हो ही नहीं सकता। अपने ही विभाग के नौजवान प्रतिभावान बॉस  निरंजन से उसकी आँखें चार हो गई।  नम्रता उसके साथ  रिलेशन शिप में रहने लगी।   
          इस बीच निरंजन जर्मनी से अच्छा ऑफर आया । जाने के पहले उसके माता पिता  बेटे की शादी कर देना चाहते हैं । बेटे की पसंद को  देखते हुए लड़की से शादी के लिए पूछा --- तब नम्रता ने कहा ---  मैं  कोई ऐसी वैसी लड़की नहीं हूं। मैं तो अपने घर वालों की मर्जी के खिलाफ शादी नहीं करूंगी।  मैं तो  सेटल मैरिज करूँगी।
बड़ों के आशीर्वाद के साथ इज्जत से विदा होउंगी।
               नम्रता ने अपने घर वालों से अपने प्यार और रिलेशनशिप से साफ मुकर गई।   निरंजन दुखी मन से  जर्मनी चला गया .........

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर  छ ग
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लोक कथा समारोह 34 /प्रथम
आदरणीय संचालक महोदया ,एवम कथाप्रेमी मित्रों को सादर .......
लघु कथा  --  *माँ का डर*

स्कूल से आकर वनिता ने माँ को बताया -माँ मेरा प्रमोशन के साथ ट्रांसफर कन्हारी में हो गया है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है क्या करें ?
भाई ने कहा -- घर छोड़ कर कहीं नहीं जाना है यहीं रहना है।
माँ  बोली --बिटिया आज कल जमाना खराब है ।वहाँ अकेली रहना ठीक नहीं ।तुमसे आज तक हमने रसोई का काम करवाया ही नहीं।अब बुढ़ापे में तुम्हारी रोटी पानी हमसे बनाई नहीं जाएगी। प्रमोशन से क्या करना ?? नौकरी बनी रहे बस है।

      माँ मन मेें सोचती रही--  बेटा तो कमाता नहीं है।  दिन भर  यहाँ वहाँ घूमता रहता है। उसके पिता तो जीवित रहे नहीं  । किसी का दबाव नहीं होने से बिगड़ गया है। ऊपर से  पिछले दिनों एक लड़की भगा लाया है  ।  चाहे जितना बुरा हो आखिर बेटा है मेरा । उसके जिंदगी की फिकर  मुझे लगी रहती है। पितरों को पानी भी तो वही देगा ।
       वनिता बहुत ही सीधी है।दुनियादारी की समझ नहीं है उसे। वो तो भला हो भगवान का उनकी कृपा से मैट्रिक पढ़ते ही उसकी नौकरी लग गई जिससे ये घर चल रहा है।अब तो   बत्तीस की हो गई है।इसकी शादी की उमर निकल गई हैै।सच तो यही हैै कि जानबूझ उसकी शादी की तरफ़ धयान     नहीं दिया। वर पक्ष के लड़कों मेंं खूब कमियां नििकालती।       अब तो मन में डर  है  कि अच्छी कमाऊ लड़की देखकर  अगर किसी ने वनिता  को बहला लिया तो,  ये घर कैसे चलेगा --------

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग 

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