Friday 18 September 2020

लघुकथा श्रृंखला -20 गुरांवट शादी,खीर वाली माई,नीयत से बरकत,पौरुष का अहम




लघुकथा समारोह --35 ( प्रथम)
 शीर्षक -- गुरांवट  शादी
आदरणीय संचालक महोदय आदरणीय संरक्षक महोदय एवम कथा प्रेमी मित्रों प्रस्तुत है लघुकथा----
            विधवा सुशीला घर पर ही छोटी सी परचूनी की दूकान चलाती है। उसका बेटा धीरज इसी साल आई टी आई करके निकला है। नौकरी मिले तो घर की हालत सुधरे,पर अच्छी नौकरी मिलती कहाँ है?
शहर में रामसहाय जी की सोने चांदी  दूकान है । दो बेटे - दो बेटी हैं ।बड़ा कालेज में पढ़ाता है - बड़ी सुमित्रा को काफी दहेज देकर शादी कर पाए हैं। छोटी मधु बचपन से ही पोलियो ग्रस्त है ।रामसहाय जी बड़े हिसाबी किताबी व्यक्ति हैं।दो बेटियों को मोटी रकम दहेज में देना ही है ।तो बेटों की शादी में वसूलना भी तो है।
 एक बार मधु की शादी हो जाये फिर ढूंढ कर चाँद सी बहू खूब दहेज के साथ लाना है। उनकी पत्नी तो सांवली है ,तो  बेटियां भी श्याम वर्णी हैं ।लड़कों  का रँग नहीं  कमाई  देखी जाती है ।
 राम सहाय अपनी लँगड़ी सांवली बेटी का रिश्ता कई जगह लेकर जा चुके थे, पर असफ़ल रहे।                                                   बहुत सोच विचार कर सुशीला के घर मधु की शादी का रिश्ता लेकर अपने साले के साथ गए । उनका बेटा धीरज आकर्षक व्यक्तित्व का होनहार लड़का है। 
 दूर के रिश्ते से भाभी लगती थी ।- राम सहाय --- भाभी राम राम 
 सुशीला- राम राम  देवर जी,आज कैसे मुझ गरीबिन की याद आई।
 चाय नाश्ता के बाद  असल मुद्दे की बात वे बोले --मैं अपनी बेटी मधु का रिश्ता तुम्हारे धीरज के लिए लेकर आया हूँ----  --   आप लोग पैसे वाले हैं। हम गरीब लोग । ये कैसे हो सकेगा ??
--अब सोच लो आपके दिन फिरने वाले हैं।  तुम चाहो तो हमारी बेटी मधु लक्ष्मी बनकर तुम्हारे घर आ सकती है।
             दहेज में दो बेड रूम का मकान,दस तोला सोना,तुम्हारे धीरज को माइंस में नौकरी लगाने का जिम्मा लेता हूँ।
अभी सगाई ,नौकरी लगते ही शादी करनी है ।
---अब बताओ आपका क्या विचार है ??????
  सुशीला ने बेटे से पूछा -- बेटे ने अपनी सहमति दे दी।
 उसने पास पड़ोस के सयाने लोगों और अपनी जाति के मुखिया जन को बुलाया। उन सबके सामने बात रखी।
 उसके साथ अपनी एक शर्त भी रखी।
--- देखो भाई लोग रामसहाय जी अपनी बेटी का रिश्ता लाये हैं। और अपनी बेटी को आपके सामने अपनी खुशी से उपहार स्वरूप मकान  ,सोना,दमाद की नौकरी की बात कह रहे हैं । पर मेरी भी एक शर्त है ---  मेरी बेटी  स्वाति भी शादी के लायक हो गई है। हमारे समाज में   अदला -बदली या गुरांवट प्रथा का चलन है ।
 येअपने प्रोफेसर बेटे की शादी  स्वाति के साथ करना स्वीकार करेंगे, तभी ये रिश्ता मुझे मंजूर होगा । नहीं तो राम राम ---
              स्वाति सोलह की है,दसवीं में पढ़ रही है।मेरी बेटी     सुंदर है ,गुणी है,पढ़ने में होशियार है। आपका घर रोशन कर देगी।जितना चाहे उतना मैं पढा दूंगी। 
 राम सहाय--  स्वाति  मेरे बेटे से 10- 11साल छोटी है।उसकी अभी पढ़ने की उम्र है।उसके लिए लड़का ढूंढने में
मैं मदद करूँगा, शादी में पैसों से कुछ मदद कर दूंगा ।
  ---- नहीं भैया दो साल बाद शादी के लिए खर्चा का जुगाड़ कहां से करूँगी। बड़ी मुश्किल से तो दो वक्त की रोटी चलती है । मैंने सोच लिया है ।जहां भी बेटे की शादी करूँगी उसी घर मे बेटी दूंगी।एक साथ- एक खर्चे में दो शादी निपटाऊंगी ।अब आप सोच लो -- ----
अंततः वहीं रिश्ता तय हुआ -----
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
 शंकर नगर ,रायपुर
9425584403

शीर्षक   ----   *खीर वाली माई*

ब्रजेश की पोस्टिंग देवास के पास  कारपोरेशन बैंक में है । पत्नी दीप्ती की  पोस्टिंग।  मध्यप्रदेश विद्युत मंडल में है ।देवास से 25 km दूर अपनी कार से रोज आना जाना करते है। सुबह नाश्ता लेकर 9 बजे घर से बैंक के लिए निकल जाते हैं बैंक से 2km दूर एक छोटा सा ढाबा पड़ता है ।वहां लंच कर लेते हैं। 
 आज   दीप्ति की तबियत ठीक नहीं थी।उसे डॉक्टर के पास ले जाना था, तो कुछ देर हो गई । नाश्ता भी नहीं किया ,लेट आने के कारण बॉस नाराज हो गए तो मूड खराब है। जिस ढाबे में ब्रजेश दोपहर का लंच लेते हैं वहां  का नौकर दीनू उसका विशेष ध्यान रखता है। उसके आनेके पहले टेबल साफ कर देता ।सर आइये आज काफी देर हो गई आपको। 
ब्रजेश - जल्दी थाली लगाओ। बहुत भूख लगी है। 
दीनू -जी सर  अभी लाया ---सर आज स्पेशल खाना है आपके लिए ।
ब्रजेश -- वाह ! आलू मखाने की सब्जी ,पूड़ी , खीर .... मजा आ गया...  आज कोई त्यौहार है क्या ???
 दीनू ---जी सर  जन्मदिन है खाना बनाने वाली माई ...के बेटे का ---
     ब्रजेश आज जरा टेंशन में था । खीर और स्पेशल सब्जी के स्वाद और महक में इतना खो गया कि सब भूल गया । जाते समय कहते गये कि  इतनी खीर से मेरा मन नहीं भरा ......
             शाम को बैंक से लौटते वहाँ चाय जरूर पीते हैं।
दीनू - स्पेशल चाय पिलाओ और 4 कटोरी खीर  पार्सल पैक कर देना।
दीनू --सर खीर तो  खत्म हो गई....
ढाबा में खाना कौन बनाता है??
----   एक बूढ़ी माई बनाती है।
---  कहाँ है ??   मैं मिलना चाहता हूं।
--- वो तो अपने घर चली गई।
  -- तुमने उसका घर देखा है???
--- जी ,सर
 ढाबे वाले से बात कर दीनू को अपनी कार  में बैठाकर अपने साथ माई के घर  ले जाता है ।
 उनके घर जाने पर माई  को देखते ही ब्रजेश पहचान गया। वह  बचपन में उनके घर मे काम करने वाली आया ही है।उनकी कान्ति माई ।वह आया,कुक,सभी  काम करती थी ।कान्ति माई करीबन 15साल उनके घर काम किया है। घर के सदस्य की तरह वह रहा करती थी । 
            ब्रजेश को घर आया देख  वह बहुत खुश हुई। ब्रजेश उसे अपने साथ  अपने घर में चलने के लिए मना लिया।  अब तो ब्रजेश के घर की सारी समस्या का हल उसके पास है। 
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग 
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लघुकथा समारोह 36( प्रथम )

"लघुकथा समारोह 36/प्रथम
आदरणीया संचालक महोदया ,आदरणीय संरक्षक
महोदय एवम कथाप्रेमी मित्रों
को सादर प्रस्तुत है.....
   शीर्षक ----  ---  *पौरुष का अहम*
शुभम --क्या पढ़ाई पढ़ाई करती रहती हो ? 
रश्मि नौकरी मिल गई, और क्या चाहिए तुम्हे ?
रश्मि --चाय पीनी है आपको ?वहींडाइनिंग टेबल पर थरमस में चाय और डिब्बे में मठरी है प्लीज निकाल लो न।
शुभम --बीबी के घर में रहते अपने हाथसे लेना  मुझे अच्छा नहीं लगता।
शुभम --जिंदगी मिली है खाने -पीने ,मौज करने के लिए,कि जब देखो तब किताबों में आंखे गड़ा कर आंख
फोड़ने के लिए ------?????
शुभम ---हमने भी पढ़ाई की है अजय माला  से। एक रात की पढ़ाई में परीक्षा पास किया जाता है।
        रश्मि ---  सबके पढ़ने का तरीका अलग होता है।  मुझे तो अच्छे परसेंट और अच्छा डिवीजन लाना है।
         हमारी अलग अलग शिफ्ट है तुम सबेरे जाते हो मैं 12 बजे जाकर साढ़े पांच बजे छूटती हूँ । स्कूल जाने से पहले घर का सारा काम निपटाती हूँ। आने के बाद रात का खाना भी तो बनाना है।खाने के बाद नींद आने लगती है ।पढ़ने में मन नही लगता। इसीलिये तो अभी थोड़ी देर पढ़ लेती हूं। 
शुभम -कोई  एहसान तो नहीं करती खाना बनाना,घर के काम तो औरतें सदियों से  करती हैं ।इसमे नया क्या है भई?  मुझे पहले वाली हँसती-हँसाती गुनगुनाती रश्मि 
चाहिए।ये पढ़ाकू रश्मि मुझे बिल्कुलअच्छी नहीं लगती....
रश्मि --तब की रश्मि तुम्हारी प्रेमिका थी।उसपर घर गृहस्थी की क़ोई जिम्मेदारी नहीं थी।
                जब से मुझे नौकरी मिली है ,तुम्हारा व्यवहार बहुत बदल गया है। अब उतना समय नहीं मिल पाता।
कहते हो कि कामवाली  के हाथ का खाना नहीं खाना है,दोनो समय ताजा खाना चाहिए।तुरन्त सिंकी गर्म रोटी ही चाहिए । वो सब तो करती हूँ।
शुभम--नौकरी नहीं सम्हलती तो छोड़ दो न ....
 जिनकी पत्नी नौकरी नहीं करती उनकी भी जिन्दगी
चलती है न ???

  रश्मि तो मन में अक्सर इसका कारण ढूंढती रह जाती
 है ।  वह उसे पहले जैसे ही दिल से चाहती है। पूरा ध्यान रखती है।पत्नी धर्म निभाती है।फिर भी एक अव्यक्त सी 
अनचाही दरार उनके बीच पड़ गई है। 
रश्मि की खास दोस्त है रवीना ।एक दिन रश्मि को मंदिर में मिली  उसने  पूछा -- क्या बात है रश्मि आजकल बहुत परेशान लगती हो ?
रश्मि---कुछ खास  नहीं ।बस एग्जाम पास आ रहे  हैं और तैयारी के लिए समय नहीं मिल पा रहा है ।उसीका टेंशन है।
रवीना --तो छुट्टी ले ले,मेडिकल छुट्टी कब काम आएगा?? 

रश्मि -- छुट्टी भी ले लूं  तो भी घर में पढ़ नहीं पाऊंगी। शुभम को मेरी पढ़ाई से चिढ़ है। वो नहीँ चाहता कि मैं पढूं और उससे आगे बढूं ।
      शुभम मेरे हर काम में खोट  निकालने लगे है। सारे पैसे अपने कंट्रोल में रखते है। मेरी हर बात का विरोध करते हैं। पैसे कोई भी खर्च करे आखिर घर की जरूरतों पर ही तो हो रहा है .। यह सोच कर मैं चुप रह जाती हूँ। दोस्तों के साथ सैर सपाटे, मूवी,होटलिंग बढ़ गई है।  
 पर और कोई गलत आदत नहीं हैं।
रवीना---   वो भी तो टीचर है । फिर तुम दोनो का लव कम सेटल मैरेज है। एक दूसरे को पहले से जानते समझते हो । फिर ऐसा क्यों ?
रश्मि ---वो खुद  आगे पढ़ना नहीं चाहते ।और मुझे भी नहीं पढ़ने देते ।हम दोनो  कालेज में साथ पढते थे। एक दूसरे पर जान छिड़कते थे। 
उनकी नौकरी लगी और हमारी शादी हो गई। शादी के बाद वेकैंसी निकली ,तो मैंने भी आवेदन किया। इंटरव्यू के साल भर बाद मुझे उनसे अपर ग्रेड में नौकरी मिल गई। तबतक मैंने प्राइवेट एम .ए. प्रिवीयस कर लिया। इस साल फ़ाइनल हो जाये फिर बस -----
रवीना --- तो ये बात है । शुभम के मन में डर है कि कहीं
तुम्हारा  परसेन्ट अच्छा  आ गया,  तो तुम लेक्चरर  बन
जाओगी,देर सबेर प्रिंसिपल -------
 इस समस्या का तो हल बड़ा मुश्किल है बहना.....इससे
पुरुषअहम को जबरदस्त आघात जो लगेगा .......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर शंकर नगर
9425584403
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2
शीर्षक ---*नीयत से बरकत *

लघुकथा समारोह -36 (द्वितीय )
 आदरणीय संचालक जी,आदरणीय संरक्षक महोदय एवम कथा  प्रेमी मित्रो को सादर -----
शीर्षक ---*नीयत से बरकत *
अमोल मात्र 14 साल का है ।अपने छोटे भाई अनूप को लेकर दादी के गुजरने के बाद  अपनी किस्मत अजमाने ट्रेन में बैठ गया।पांचवी तक  पढ़ा है । ट्रेन में एक वृद्ध  व्यक्ति मिले पूछे - कहाँ जा हो रहे हो ??
दादा जी काम की खोज में निकला हूँ।
वृद्ध-- क्या काम जानते हो ??
 अमोल--  खाना बना लेता हूँ, घर की सफ़ाई, बगीचे की देख भाल करना जानता हूँ ।
 वृध्द -   चलो मेरे घर ।खाने  रहने के अलावा  हजार रु दूंगा । ईमानदारी से काम करोगे तो साल  में पैसा बढ़ा दूंगा। 
अमोल --जी मुझे मंजूर है। 
(शहर में तो घर की सफाई के ही हजार रु ,कुक डेढ़ हजार ,गार्ड पांच-छै हजार ले लेता है।)
 
  वृध्द रिटायर्ड हैं। अकेले ही रहते है।उनके बच्चे दिल्ली में रहते हैं।  बच्चों के पास महीने दो महीने  रहकर आते  हैं। यहां बड़ा सा बंगला सामने पीछे काफी खाली जगह  चारों तरफ बाउंड्री। घर से लगा एक छोटा सा कमरा है । अमोल की तो किस्मत खुल गई।बड़ी मेहनत से काम करता। हप्ते भर में ही दोनों भाई मिलकर पूरा गार्डन साफ कर दिए।
15 दिनों में घर की सफाई भी हो गई।मालिक ने सोचा
कि इसके ईमान की परख करके देखूं।
--    अमोल मैंने एक लड़के काम पर रख लिया है ।
--- तुम से कम पैसे में काम करने को तैयार है।
 ----अगर आप मेरे काम से पूरी तरह संतुष्ट  नहीं है तब तो कोई बात नहीं ।अगर आपको पैसे की तंगी है इस वजह से मुझे निकलना चाहते हैं ,तो मैं बिना तनखा के भी काम  करूँगा । आप हम दोनों भाई का छत और  दो वक्त की रोटी  हमेशा देते रहना । मेरे भाई का नाम सरकारी स्कूल में लिखा देंना बस वो पढ़ लिख ले। मुझ अनाथ को आपने सहारा दिया । आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा सर जी।
      मुझे दादी की सीख याद है। वो कहा करती थी।  "बेटा जहां भी काम करो पूरी ईमानदारी से करना नीयत से बरकत मिलती है ।"
            विश्वास रखिये सर जी  मेरी नीयत और ईमान 
  मेरी पूजा है।
 अब बताओ  मेरे काम से आप सन्तुष्ट हो कि नहीं।अपनी मरी हुई दादी की सौगंध है ।आपको कभी शिक़ायत का मौका नहीं दूंगा।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग 

9425584403
















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