*सेवा सम्मान और सन्तुष्टि *
रोहन और रोहित आज बहुत खुश हैं उन्हें गणतंत्र दिवस पर मुख्यमंत्री के कर कमलों से। " उत्कृष्ट सेवा सम्मान" मिलने वाला है, ऐसा जिला कलेक्टर कार्यालय का मुहर लगा पत्र मिला है। उनके सेवा कार्य को आज सरकारी फाइलों से होते हुए जिले मेंपहिचान मिली है।
भिलाई से 20 KM दूर जामुल के पास रहते हैं। 20 वर्ष पहले दोनों भाइयों ने। " नेह निकुंज" के नाम से प्रकृति की गोद मे एक वृद्धाश्रम खोला था। भिलाई के पत्रकारों ने इनका इंटरव्यू लिया ---
पत्रकार -- आपके मन में वृद्धाश्रम खोलने का आइडिया कैसे आया ??
रोहन --- हमारे चचेरे,फुफेरे 6- 7-भाई दिल्ली,मुम्बई में नौकरी करने गये,फिर वहीं बस गए। अपने माता पिता को घर पर ही छोड़ गए। हमारी देख भाल में । हमारे मन में विचार आया कि क्यों ना अपने दूर के रिश्तेदार वृद्धों को भी यहीं बुला लिया जाये। इसके एवज उनकी देखभाल ,खाने पीने का खर्चा मिल जाता और हमारा भी काम चल जाता।
धीरे धीरे इस काम मे रुचि और
सन्तुष्टि बढ़ने लगी। इसे व्यवसायिक रूप देने का निश्चय किया। लोगों का सहयोग मिला,हमारे काम को सराहना
मिली।बुजुर्गों का अनमोल आशीर्वाद भी मिला।
पत्रकार --अभी आपके आश्रम में कितने बुजुर्ग हैं ??
रोहित - 30 हैँ। 10 दादीऔर 20 दादा जी
पत्रकार - रहने की व्यवस्था किस तरह है ??
रोहन - तीन हाल और 6 कमरे हैं में 3 हाल में 6 बेड, कमरों में 3 -3 बेड अटेच टॉयलेट बाथ है ,सेपरेट सबके सेपरेट रेक हैं,सब कमरों में पंखे हैं।
मनोरंजन के लिए सब हाल में t v है। ,पुस्तकालय है, छोटा सा गॉर्डन है। बड़ा सा अहाता है सब्जियों की खेती है । बुजुर्गों की देख रेख के लिए 7 -8
सेवादार हैं। 2 महिला सहायिका हैं।24 घण्टे के लिए चौकीदार हैं । 2 कुक हैं डॉक्टरी सहायता के लिए पास में ही क्लिनिक है।
बुजुर्गों की सन्तुष्टि, उनका आशीर्वाद ही हमारा परम् लक्ष्य है।शहर के कुछ स्पेशलिस्ट साप्ताहिक निशुल्क विजिट करते हैं। योग सिखाने वाले भी निशुल्क सेवा देते हैं।
हम अनुभवी और विशेषज्ञ लोगों से बातचीत करके इसे बेहतरीन बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
पत्रकार - बहुत बढ़िया। सेवा करके पुण्य कमा रहे हो साथ मे नाम और सम्मानभी----- हार्दिक बधाई......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
4 --10 2020
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" ले डूबी लापरवाही "
आज कंचन के नवजात पुत्र को गुजरे 10दिन हुआ है। आज उसे हास्पिटल से घर लाया गया है । वह किसी से बोलती भी नहीं ।खाना पीना सब त्याग दिया है। दुखी मन से खिड़की के पास बैठी रहती है । उसकी आँखों मे होलिका दहन की धधकती ऊंची ऊंची लपटें दिखाई देती हैं। उसके मनके अंदर भी इसी तरह की शोकाग्नि की लपटें उठती रहती है । आँखों से अविरल अश्रु प्रवाहित होते रहते हैं।
उसके पति प्रकाश कालेज में पढ़ते थे तब किसी लड़की को
पसन्द करते थे ,शादी करना चाहते थे।लड़की की शादी उसके पिता ने कहीं और कर दी। बाद में कंचन से प्रकाश की शादी हो गई। वो कंचन को पसंद नही करते।ससुराल वाले समझाते हैं,धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा।
बच्चा कोख में आया तब से कंचनके मन में उम्मीद जागी कि
उसे नहीं तो अपने बच्चे को चाहेँगे ही ------
होली के दिन ही उसका बेटा आलोक जन्मा था,पूरा हास्पिटल उसके रुदन की आवाज से गूंज उठा था । कंचन की हालत ठीक नही थी ।दो दिन से दर्द से छटपटाती रही ऑपरेशन के लिए ब्लड की जरूरत थी पर वह अकेली है उसके पति तो हास्पिटल में भर्ती करके नाइट ड्यूटी पर चले गए ।तब फोन ,मोबाइल का जमाना नहीं था ।
रात में लाभग ड़ेढ़ बजे मरणांतक पीड़ा झेल कर बेटे को जन्म दिया । उसके बाद उसकी आंखे बंद होने लगी,और कुछ भी याद नहीं रहा। सुबह 4 बजे उसकी मूर्च्छा टूटी । दोनो हाथों बेड से चिपके हुए थे बाटल लगा हुआ था ।
तब भी बच्चा झूले पर लगातार रोये जा रहा था ---- उसका मन कर रहा था
कि बच्चे को उठा कर सीने से लगा लूँ, पर वह करवट भी नहीं ले सकी।
उसने शक्ति भर जोर लगा कर आवाज लगाई सि..स्टर...सि...स्टर....
दरवाजे पर ऊंघती सफाई कर्मी नर्स को बुला लाई । उसे स्टेचर पर दूसरे
रूम में शिफ्ट किया गया । कंचन ने
कहा ---सिस्टर मेरा बच्चा मुझे दे दो ---
सिस्टर---अभी नहीं । तुम्हारे पति के
आने के बाद।
कंचन बडी बेसब्री से पति का इंतजार करने लगी ।उसे लग रहा था कि दीवार घड़ी का कांटा जल्दी क्यों नहीं बढ़ रहा है। शामको उसके पति आये साथ मे पास पड़ोस की5- 6 लेडिस भी मूक खड़ी हो गई ।
कंचन नेपति से पूछा -- हमारा बच्चा कहाँ है??? मेरे पास लाते क्यों नहीं???
मैं अभी आया कहकर पति बाहर निकल गए ।
मोहल्ले वालों से पता चला कि --- उसका बच्चा सुबह9 बजे दम तोड़ दिया। मुझे मेरा बच्चा चाहिए .....
चाहे मरा हुआ हो या जिंदा .....
एक बार तो उसे गोद मे लेने दो ....
सीने से लगाने दो ....
तब से आज तक पति की लापरवाही को बच्चे की मृत्यु का दोषी मानती है ......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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आंखे खुली राह गईं ...
6माह से दिनकर सिंह जी बीमार हैं उन्हें लकवा हो गया है ।जब से बड़े बेटे ने मकान खाली करने की नोटिस दिया है वे सदमे में आ गये हैं।
दिनकर जी सोचते थे कि मैंने बच्चों को बढिया परवरिश दी है। दोनो को पढा लिखाकर रोजी रोटी से लगा दिया, शादी कर दी।बेटे के नाम से अलग मकान बनवा दिया। गांव में अपने लिए। बड़ा सा मकान बनवा लिया सोचा दोनो पति पत्नी मजे से रहेंगे ।खूब घूमेगे । दान पुन्न करेंगे ।
साल में प्रथम श्रेणी के पास साथ मे सर्वेन्ट के लिए भी पास मिलता है । पेंशन भी है ।मेडिकल सुविधा भी है ।
हमारे मरने के बाद ये मकान दोनो बेटियों को देना है।आखिर वो दोनों भी तो हमारी औलाद हैं।ऐसा अपने मित्रों और रिश्तेदारों को बताते रहते हैं। अपने हिसाब से बेटे के नाम सारी सम्पत्ति कर दिया।
बेटे के बच्चे अनुशासन के अभाव में आवारा निकल गए । बेटा बहू नेकहा --- , गांव का मकान मेरे बच्चों के नामकर दो। इसके लिए दिनकर जी सहमत नहीं हुए । तो वकील से नोटिस भिजवा दिया।रिश्ता तोड़ लिया । खोज खबर लेना बंद कर दिया।उसे बूढ़े माँ बाप की देख भाल की कोई चिंता नही है ।
बहू कहती है -- मकान से ही अपनी सेवा करवा लो ।
अब दिनकर जी की पत्नी भी बूढ़ी हो गई ।उनकी सेवा नही कर पाती। वे अंतिम समय में बेटे को एक नजर देखने को तरस गए ।चिट्ठीभेजी टेलीग्राम भेजा पर वो नहीं आया। दोनो बेटियां बारी बारी सर सेवा करती रहीं। डॉक्टरों ने बता दिया कि अब बचना मुश्किल है ।
आखिर में लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा लिया गया । शून्य में निहारते रह गएउनकी आंखें खुली की खुली रह गई और प्राण पखेरू उड़ गए .......
पिता के मरने के बाद भी अर्थी को कन्धा देने नहीं आये। बेटियों ने ही मुखाग्नि दी ,अस्थि विसर्जन किया। दशगात्र किया।रूढ़िवादी रिश्तेदार तो क्रियाकर्म में नहीं आये।अनाथ आश्रमवालों को भिखरियों को भर पेट खाना खिलाया।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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