Saturday 3 October 2020

लघुकथा --श्रृंखला-- 21 मन का भोजन,बिना अपराध सजा,लोग क्या कहेंगे

लोग क्या कहेंगे ????

       शीतल और प्रभा दोनो बचपन की सहेलियां हैं। 29 फरवरी को शीतल के बेटे की शादी है । प्रभा को उसने शादी से सप्ताह भर पहले ही बुला लिया। शादी दुधवा नेशनलपार्क के रिजोर्ट में होने वाली है ।शीतल के पति रंजन वन विभाग में D F O हैं। मेहमानों में खास रंजन के मित्र रिटायर्ड मेजर बलवंत सिंह हैं । प्रभा
उनके हंसमुख और जिंदादिली से बहुत प्रभावित हुई।जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई।
 शानदार शादी और रिसेप्शन के बाद नेशनल पार्क की सैर के बाद  मेहमान लौट गए । प्रभा को बुखार आ गया। मेजर अपनी गाड़ी में उसे करेली छोड़ते हुए  जबलपुर जाने की सोचकर चले । तबियत अधिक बिगड़ने पर हास्पिटल में भर्ती करना पड़ा। प्रभा शादी केंटीन साल बाद विधवा हो गई थी। घर पर अकेली ही रहती हैं।
इसलिए मेजर को वहां रुकना पडा।
                    दूसरे दिन प्रभा को घर 
पहुंचा कर वे लौट गए । फोन पर दोनों में बातें होती रहती है । इसके बाद कोरोना के कारण जनता कर्फ्यू और अनिश्चित कालीन लाक डाउन लग गया । एकाकी रहने वाले वृद्धजन के लिए खतरा बढ़ गया। समय काटे नहीं कटता हैं।
  लॉक डाउन हटने के बाद  मेजर प्रभा के घर पहुंचे । उनके साथ जाकर जरूरी सामान की खरीदारी हुई। लंच के बाद मेजर ने प्रभा के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया ।
प्रभा - (एकाएक वह हक्की -बक्की)
रह गई, फिर बोली  -- मेजर साहब आप मजाक अच्छा कर लेते हैं ---
 मेजर -   मैं मज़ाक नहीं  सीरियसली
     कह रहा हूँ----
 आप भी अकेली इस उम्र में ---  कोरोना की महामारी फैली हुई है। कोई न कोई तो साथ होना चाहिए न ?
मैं भी विधुर हूँ 65 से ऊपर का हूँ । मुझे भी तो साथ चाहिए । 
प्रभा ---  शादी और इस उमर में ???
 लोग क्या कहेंगे ???????
मेजर --- कौन लोग हैं  ??? जिनके क्या कहने से आप डर रही हैं ????
  प्रभा ---- पास पड़ोस के लोग--- -समाज के लोग  ----रिश्ते दार--- हमारे अपने बेटे --बहू - बेटी-- दामाद..  मेजर ---- हम बूढ़े हो गए तो क्या हमें सुरक्षित और  सुख चैन से जीने का अधिकार नहीं है ??? 
       सारी उमर तो अपने परिवार की
सुख -सुविधा के लिए ,हाय हाय करते निकल गई। हमे जब इस उम्र में उनकी देखभाल और साथ जरूरत है
तब वो हमारे पास नहीं आ सकते----
क्या ये समाज के या पास पड़ोस के या अपनी खुद की औलाद या उनके रिश्तेदार --  तुम या मैं बीमार पड़ें तो  सेवा करने या साथ देने आएँगे ????
  प्रभा --.  बात  तो आपकी सही है...
 लेकिन --------  
  मेजर --- जितनी जिंदगी बची है आओ मिलकर हंसी -खुशी जी लें ।
 कुछ जंन सेवा और समाज सेवा भी कर लें  --
सोच समझ कर प्रेक्टिकल होकर सोच समझ कर फैसला लेना ।
     लोग क्या कहेंगे ????     मत सोचो ,,,,,,, 
 अंततः।  दोनो ने कोर्ट में विवाह कर लिया।
 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
 रायपुर ,छ ग

----------- ---^- -----------:------------------^-----------    
मन का भोजन है ---/मनोरंजन"
 शिविका गोद भराई के लिए  मायके आई है ।अब तीन महीने यहीं  रहना है।माँ अपने समय में मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त है ।शिवि के पास काम कुछ है नहीं तो दिन भर या मोबाइल में गप्पे करती है, या T V 
सीरियल,मूवी देखने में लगी रहती है ।
 माँ ने शिवि  को समझाया -- बेटा  अब तू माँ बनने जा रही है तुझे तन मन से स्वस्थ शिशु को जन्म देना है।  ये T V देखना बन्द करो ।हर 10 मिनट में आलतू फालतू एड और बकवास सीरियल ,हिंसा,बलात्कार से भरे बकवास मूवी देखकर अपनी भावी पीढ़ी का मानसिक विकास अवरुद्ध कर रही हो।अपने मातृत्व की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रही हो।
 शिवि--    क्या माँ आप भी  बीसवीं सदी में अठारवीं सदी की बातें कर रही हो।मैं तो मनोरंजन के लिये यह देखती हूँ।
 आप ही तो कहती हो कि खुश रहा कर मन खुश रहेगा ,तनावमुक्त रहेगा तभी तो बच्चा हंसमुख रहेगा।
 माँ -- माना कि मनोरंजन  मन का रंज दूर करता है ।खुशी देता है ,पर मन को रंजित भी तो करता है।
 शिवि --- आपकी बात मेरी समझ में नहीं आ रही है।
 माँ -- मन अर्थात भावना और बुद्धि को अपने रंग में रंगता भी तो है।
 मनो रंजन के साधन ही तो मन का खाद्य हैं  ,भोजन या  आहार हैं । जो हम देखते हैं ,सुनते हैं,पढ़ते हैं  उनसे हमारी सोच का स्वरुप बनताहै,आवेगों की लहरें उठती हैं, जो मन के अचेतन हिस्से में एकत्रित होता रहता है । इससे भावनाओं को पोषण मिलता है।
 जिस तरह हमारा भोजन स्वस्थ शुद्ध , स्वादिष्ट पौष्टिक,होना चाहिए यह भी उम्र, जरूरतके अनुरूप होना चाहिए।
                       हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भोजन का तो बहुत ध्यान रखते हैं  फल,दूध, विटामिन अन्न युक्त सन्तुलित आहार लेते हैं लेकिन  मन के भोजन का जिम्मा बिना सोचे विचारे T Vवाले को दे देते
हैं। जो कि पैसा कमाने वाले लोग हैं।
उन्हें हमारे बच्चों के मानसिक विकास से क्या लें देना है ।
 शिवि -- माँ आप तो बहुत दूर की सोच रखती हैं। मैं तो सोचती थी कि अच्छे स्कूल में पढ़ने से ही बुद्धि का विकास होता है ।
माँ--  अच्छा स्कूल, अच्छा टीचर का रोल तो  चार साल की उम्र के बाद ही आता है जहां  विभिन्न विषयों के साथ
 सामाजिकता ,आपसी सहयोग,दूसरों के साथ आपसी तालमेल सीखते हैं। 
        उसके पहले  शिशु के बुद्धि का 70%या 80%विकास तो मां  के गर्भ में हो जाता है । जिसे हम नींव कहते हैं। बाकी शिक्षा -दीक्षा के द्वारा उसका आकार  बढ़ता है। उसका खण्डन मण्डन होता है। 
शिवि ---समझ गई माँ  अपने भावी पीढ़ी  के मानसिक आहार का पूरा
ध्यान रखूंगी.......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर  छ ग
--------------------^ -----------------^----------------- /
"बिना अपराध सजा"

    [12/10, 12:14] Chandrawati Nageshwar: भरत सिंह ने अपनी जमीन बेच एक कार खरीदी।अपनी चहेती रंजीता
के साथ सैर सपाटे में मगन रहते । खेती ,मकान दूकान सब बिक गए  । 
              कार एक्सीडेंट में रीढ़ की हड्डी टूट गई । पत्नी ने खूब सेवा की।  सारे गहने बिक गए ।छै महीने नागपुर के बड़े अस्पताल में भर्ती रहे व्हील चेयर में घर लौटे है।  
             भरत के मित्र  मनोहर उन्हें देखने के लिए घर आये हैं उन्होंने ही बताया --भरत सिंह एक नम्बर के अकड़ूं अपनी पत्नी को तो पैर की जूती ही समझते। उसकी हर बात में मीन मेख निकालना अपना फर्ज समझते। भाभी मिली तो एकदम सोलह आने। रूप -गुण,काम- धाम,बोली-व्यवहार,चाल-ढाल,समझदारी सबमे गांव भर में सबसे आगे। उसे रंजीता के चक्कर में छोड़ दिया।
             भरत की कमाई का कोई ठिकाना नहीं । खेती बाड़ी ,किराने की दूकान थी।पर काम करने में ध्यान नही देते।उन्हें गाने -बजाने का बड़ा शौक।  रमायण मण्डली तबला ,ढोलक,बेंजो, बढ़िया बजाता।भगवान ने शक्ल सूरत ,कद- काठी तो ठीक- ठाक ही दी है।  उन्हें सजने सँवरने का बहुत शौक है। उसे एक से बढ़ एक कपड़े चाहिए ,अनेक सौंदर्य प्रसाधन ,खुशबू वाले कई तरह के तेल , कपड़ो के स्प्रे   बिना घर से बाहर कदम न धरता।
          भरत के एक्सीडेंट की खबर पाकर भाभी  दौड़ी आई खूब सेवा की तब कही इसकी जान बच पाई। इस बेवकूफ को तो यह भी नहीं मालूम कि इसका नौ साल का एक बेटा भी है।
 जो कृष्णा पब्लिक स्कूल इंदौर के  हॉस्टल में पढ़ रहा है।
    भाभी बहुत स्वभिमानी और समझदार है। जब भरत रंजीता को घर ले आया था तब बेटा कोख में था । बच्चे पर पिता के चाल चलन  का बुरा 
प्रभाव न पडे यही सोच कर
[12/10, 13:12] Chandrawati Nageshwar: अपने भाई को बुलवाया मायके चली गई। मायके में साड़ी की बड़ी दूकान है। घर पर ही एक छोटी सी दूकान खोलकर अपना खर्च चलाती है।  
    भरत तो अपनी करनी का फल भुगत रहा है ।पर भाभी किस अपराध की सजा पा रही है------
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ  ग
-------------------+--------------+-----------------+-------+
[12/10/2020,  Chandrawati Nageshwar: " मन का आहार है मनोरंजन"
 शिविका गोद भराई के लिए  मायके आई है ।अब तीन महीने यहीं  रहना है।माँ अपने समय में मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त है ।शिवि
 के पास काम कुछ है नहीं तो दिन भर
या मोबाइल में गप्पे करती है, या T V 
सीरियल,मूवी देखने में लगी रहती है ।
 माँ ने शिवि  को समझाया -- बेटा  अब तू माँ बनने जा रही है तुझे तन मन से स्वस्थ शिशु को जन्म देना है।  ये T V देखना बन्द करो ।हर 10 मिनट में आलतू फालतू एड और बकवास सीरियल ,हिंसा,बलात्कार से भरे बकवास मूवी देखकर अपनी भावी पीढ़ी का मानसिक विकास अवरुद्ध कर रही हो।अपने मातृत्व की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रही हो।
 शिवि--क्या माँ आप भी  बीसवीं सदी में अठारवीं सदी की बातें कर रही हो।मैं तो मनोरंजन के लिये यह देखती हूँ
 आप ही तो कहती हो कि खुश रहा कर मन खुश रहेगा ,तनावमुक्त रहेगा 
तभी तो बच्चा हंसमुख रहेगा।
 माँ -- माना कि मनोरंजन  मन का रंज दूर करता है ।खुशी देता है ,पर मन को रंजित भी तो करता है।
 शिवि --- आपकी बात मेरी समझ में 
नहीं आ रही है।
 माँ -- मन अर्थात भावना और बुद्धि को अपने रंग में रंगता भी तो है।
 मनो रंजन के साधन ही तो मन का खाद्य हैं  ,भोजन या  आहार हैं । जो हम देखते हैं ,सुनते हैं,पढ़ते हैं  उनसे हमारी सोच का स्वरुप बनताहै,आवेगों
की लहरें उठती हैं,भावनाओं को पोषण मिलता है।
 जिस तरह हमारा भोजन स्वस्थ शुद्ध , स्वादिष्ट पौष्टिक,होना चाहिए यह भी उम्र, जरूरतके अनुरूप होना चाहिए।
                       हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भोजन का तो बहुत ध्यान रखते हैं  फल,दूध, विटामिन अन्न युक्त सन्तुलित आहार लेते हैं लेकिन  मन के भोजन का जिम्मा बिना सोचे विचारे T Vवाले को दे देते
हैं। जो कि पैसा कमाने वाले लोग हैं।
उन्हें हमारे बच्चों के मानसिक विकास से क्या लें देना है ।
 शिवि -- माँ आप तो बहुत दूर की सोच रखती हैं। मैं तो सोचती थी कि अच्छे स्कूल में पढ़ने से ही बुद्धि का विकास होता है ।
माँ--  अच्छा स्कूल, अच्छा टीचर का रोल तो  चार साल की उम्र के बाद ही आता है जहां  विभिन्न विषयों के साथ
 सामाजिकता ,आपसी सहयोग,दूसरों के साथ आपसी तालमेल सीखते हैं। 
        उसके पहले  शिशु के बुद्धि का 70%या 80%विकास तो मां  के गर्भ में हो जाता है । जिसे हम नींव कहते हैं। बाकी शिक्षा -दीक्षा के द्वारा उसका आकार  बढ़ता है। उसका खण्डन मण्डन होता है। 
शिवि ---समझ गई माँ  अपने भावी पीढ़ी  के मानसिक आहार का पूरा
ध्यान रखूंगी.......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर  छ ग
[12/10/2020, 12:14] Chandrawati Nageshwar: भरत सिंह ने अपनी जमीन बेच एक कार खरीदी।अपनी चहेती रंजीता
के साथ सैर सपाटे में मगन रहते । खेती ,मकान दूकान सब बिक गए  । 
              कार एक्सीडेंट में रीढ़ की हड्डी टूट गई । पत्नी ने खूब सेवा की।  सारे गहने बिक गए ।छै महीने नागपुर के बड़े अस्पताल में भर्ती रहे व्हील चेयर में घर लौटे है।  
             भरत के मित्र  मनोहर उन्हें देखने के लिए घर आये हैं उन्होंने ही बताया --भरत सिंह एक नम्बर के अकड़ूं अपनी पत्नी को तो पैर की जूती ही समझते। उसकी हर बात में मीन मेख निकालना अपना फर्ज समझते। भाभी मिली तो एकदम सोलह आने। रूप -गुण,काम- धाम,बोली-व्यवहार,चाल-ढाल,समझदारी सबमे गांव भर में सबसे आगे। उसे रंजीता के चक्कर में छोड़ दिया।
             भरत की कमाई का कोई ठिकाना नहीं । खेती बाड़ी ,किराने की दूकान थी।पर काम करने में ध्यान नही देते।उन्हें गाने -बजाने का बड़ा शौक।  रमायण मण्डली तबला ,ढोलक,बेंजो, बढ़िया बजाता।भगवान ने शक्ल सूरत ,कद- काठी तो ठीक- ठाक ही दी है।  उन्हें सजने सँवरने का बहुत शौक है। उसे एक से बढ़ एक कपड़े चाहिए ,अनेक सौंदर्य प्रसाधन ,खुशबू वाले कई तरह के तेल , कपड़ो के स्प्रे   बिना घर से बाहर कदम न धरता।
          भरत के एक्सीडेंट की खबर पाकर भाभी  दौड़ी आई खूब सेवा की तब कही इसकी जान बच पाई। इस बेवकूफ को तो यह भी नहीं मालूम कि इसका नौ साल का एक बेटा भी है।
 जो कृष्णा पब्लिक स्कूल इंदौर के  हॉस्टल में पढ़ रहा है।
    भाभी बहुत स्वभिमानी और समझदार है। जब भरत रंजीता को घर ले आया था तब बेटा कोख में था । बच्चे पर पिता के चाल चलन  का बुरा 
प्रभाव न पडे यही सोच कर
[12/10/2020, 13:12] Chandrawati Nageshwar: अपने भाई को बुलवाया मायके चली गई। मायके में साड़ी की बड़ी दूकान है। घर पर ही एक छोटी सी दूकान खोलकर अपना खर्च चलाती है।  
    भरत तो अपनी करनी का फल भुगत रहा है ।पर भाभी किस अपराध की सजा पा रही है------
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ  ग

No comments:

Post a Comment