Wednesday, 14 October 2020

गीतिका --मुक्तक लोक

चौपाई गीतिका---
चौपाई (१६ मात्राएँ)समान्त में गुरु
आदि में 2+3,+3 वर्जित है

यह भारत देश हमारा है
हमको प्राणों से प्यारा है।

भारत की आन बचाना है
आतंकी ने ललकारा   है।

जीवन धन्य उसी का है
जो माँ का कर्ज उतारा है।

राज यहां था सघन तिमिर का
  एक सूर्य से जो हारा है ।

देशभक्ति नस नस में दौड़े
यह तो जीवन की धारा  है।

महा पर्व है यह चुनाव का
अंतर्मन ने हमे पुकारा है।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा  छ ग

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गीतिका :-----

2122     2122    212


बुन रहा हर आदमी इक जाल है

सोच परहित की नहीं न मलाल है।

देखता है फायदा  अपना सदा

हाल सबका ही लगे बेहाल है।

गैर की खुशियां  नहीं  भाती उसे

जिंदगी लगती बड़ी  जंजाल है।

साजिशें हर पल रचे दिन रात वह

कौन रखता अब किसी का ख्याल है।

चाहते हैं लोग नव बदलाव को

पहल कौन करे  अब यह सवाल है।

रूप हर दिन बदल कर छल जो करें

देश के नेता खुद  अब दलाल  हैं।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर

रायपुर छ ग







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