Thursday 29 October 2020

लघु कथा श्रृंखला--क्रमांक 21 -----दोस्ती ऐसी भी --अनोखा निर्णय ,दूसरों के तौर तरीके,अतिथि सत्कार

लघु कथा समारोह-40  ( द्वितीय)
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आदरणीय संचालक महोदय एवम कथाप्रेमी मित्रों को सादर प्रस्तुत....
 शीर्षक --  "दोस्ती ऐसी भी...."

अभय आज अपने  स्कूल के तीनों जिगरी  दोस्तों को लगभग 15 सालों बाद  सामने देखकर एकदम हड़बड़ा गया। लगता हैअब वो बहुत  संपन्न आदमी हो गये हैं।
 अभय को अपने स्कूल के दोस्तों से खाने का आर्डर लेकर परोसते समय बड़ा संकोच हो रहा था.।उनमे से दो मोबाईल फोन पर व्यस्त थे अनंत लैपटाप पर। अभय  अपने पिता के गुजर जाने के कारण पढ़ाई पूरी नही कर पाया था।उन तीनों ने उसकी ओर ध्यान से देखा भी नही।वे खाना खा कर बिल चुका कर चले गये ।अभय को लगा  ने शायद उसे पहचाने नहीं या उसकी गरीबी देखकर अनजान  बने रहे।
उसने एक गहरी लंबी सांस ली और टेबल साफ करने लगा.टिशू पेपर उठा कर कचरे मे डलने ही वालाथा, शायद उन्होने उस पर कुछ अधूरा हिसाब लिखा हुआ सा लगा। 
  अचानक उसकी नजर उस पर लिखे हुये शब्दों पर पड़ी.लिखा था - अभय तू हमे खाना खिला रहा था ,तो तुझे क्या लगा तुझे हम पहचानें नहीं?अरे 15 साल क्या अगले जनम बाद भी मिलता तो तुझे पहचान लेतेl तुझे टीप देने की जुर्रत हम कैसे करते ?
.हमने पास ही फैक्ट्री के लिये जगह खरीदी है.औरअब हमारा इधर आना-जाना तो लगा ही रहेगा.आज तेरा इस होटल का आखरी दिन है।हमारे फैक्ट्री की कैंटीन तेरे अलावा कौन चलाएगा ?तुझसे अच्छा पार्टनर और कहां मिलेगा??? याद हैं न स्कूल के दिनों हम चारो एक दूसरे का टिफिन खा जाते थे.  आज के बाद रोटी भी मिल बाँट कर साथ-साथ खाएंगे। 
.उसने डबडबाई आँखों ऊपर वाले का आभार किया। उस पेपर को दिल के पास वाली जेब मे रख लिया......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रॉयपुर छ ग
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[29/10, 15:52] Chandrawati Nageshwar: लघुकथा समारोह--क्रमांक 40 (प्रथम) 
आदरणीय संचालक महोदय  एवम कथाप्रेमी मित्रों को सादर प्रस्तुत है --/

 "अनोखा निर्णय " 
 तुषार और श्रेया के  माता पिता आज एक गम्भीर समस्या  पर विचार विमर्श करने महामाया के मंदिर में आये हुए हैं । देवी दर्शन के पश्चात मन्दिर के पीछे वाले हिस्से में बैठ कर बातचीत करने लगे । 
तुषार के पिता प्रमोद जी श्रेया के पिता अर्थात अपने समधी गोविंद जी से बोले --
समधी जी तुषार के कोरोना के चपेट में आने के बाद से हम सबपर वज्रपात हुआ है।इस दैवी विपदा को हमारे जैसे कई परिवार झेल रहे हैं ये हमारा परम् दुर्भाग्य है कि हमे अपने बेटे का पार्थिव शरीर भी अंतिम क्रिया के लिए नहीं मिला ।मेरा तुषार पुलिस विभाग में  रहकर जन सेवा करता हुआ दुनिया से विदा हुआ है श्रेया जैसी सुंदर सुशील संस्कारी बहू को हमे सम्हालना है।एक बेटा खोया है अब श्रेया और अपनी पोती अंकिता को खोनानहीं चाहते।
 उनके जीवन खुशियों का सबेरा लाना चाहते हैं। इसमे आपका पूरा सहयोग चाहिए।
गोविंद जी - आप तो जानते हैं ,श्रेया
अभी दमाद जी आकस्मिक मृत्यु के सदमे से उबर नहीं पाई है। 3 महीने 
हो गए न उसे खाने का होश है, न पहनने का । अंकिता को भी उसकी नानी ही सम्हालती है।
प्रमोद जी  -- हम ये जानते हैं। इसी लिए हमने सोचा है।कि हमारे छोटे बेटे  साहिल के साथ श्रेया का पुनर्विवाह  कर दें।  यदि आपकी सहमति हो तो हम साहिल को इसके लिए मनाने की कोशिश करते हैं और आप लोग  श्रेया को राजी करने की जिम्मेदारी लें।
 गोविंद जी- आपका प्रस्ताव हर दृष्टि से सर्वोतम है। आप लोग वास्तव में बहुत बड़े  कलेजे वाले हैं।जो हमारी बेटी के उजड़े जीवन में बहार  लाना चाहते हैं  धन्य भाग हमारे कि आप लोगों से रिश्तेदारी जुड़ी ।
  प्रमोद जी--अब आगे कुछ मत बोलिये ----हमे अपने अपने मिशन पर
लग जाना है।  योजना बनाकर साहिल और श्रेया में नजदीकियां बढ़े ऐसे अवसर उपलब्ध कराना है। इस काम में धैर्य और सूझ बूझ से काम लेना होगा।  दोनो  विवाह के लिए जितनी जल्दी राजी हो जाएं।  
इनकी कोर्ट मैरिज करवाकर फिर से जिन्दगी को पटरी पर लाना है ----
 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर  छ ग
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लघुकथा समारोह- 40 (प्रथम)आदरणीय संचालक महोदया, आदरणीय संरक्षक महोदय एवम कथा प्रेमी मित्रों को सादर ----
शीर्षक -"दूसरे के तौर तरीके" 
          अनिरुद्ध की माँ आज ही भारत से U S Aआई है।  तीन माह के पोते ऋत्विक  को उसे सम्हालना है। उसके बेटा बहू दोनो एक मल्टी नेशनल कम्पनी में जॉब करते हैं। रात के डिनर के बाद जब वह सोने जा रही थी,  तब उसने देखा कि अनिरुध्द  ऋत्विक को सुला रहा है । औऱ वह बच्चा लगातार रोये जा रहा  है।
 जमुना देवी --स्वीटी बेटा देखो तो  बच्चा बहुत रो रहा है ।शायद सोना चाहता है या फिर भूखा है ...
--जी मम्मी .... उस दिन तो बहू ने उसे सुला दिया।
  फिर दूसरे दिन वही क्रम दुहराया गया।   बच्चे को पिता सम्हालता रहा और वह  घण्टों रोता रहा ..
.तीसरे दिन भी बच्चा अलग कमरे में  रोता रहा .......
  अब चौथे दिन जमुना देवी से नहीं रहा गया । उसने कहा--- तुम लोग बच्चे को रोज रात में इतना बिलख बिलख कर रोता रहता है।
 रोज ही रात को स्वीटी काम लेकर बैठ जाती है। अनिरुद्ध से बच्चा सम्हलता नहीं है, रोता रहता है। मुझे भी गोद मे लेने से या चुप कराने से मना करते हों।आखिर क्यों ????
 स्वीटी ने कहा ---  मम्मी जी ये इंडिया नहीं अमेरिका है। यहाँ बच्चों को पालने औऱ रहन, सहन के तौर- तरीके  बहुत अलग हैं। अब हमें अमेरिका में ही रहना है ,तो यहां के तौर तरीके से अपने बच्चे पालने हैं। 
जमुना जी -- स्वीटी तुम भी भारत में जन्मी,पली,बढ़ी हो। अनिरुध्द भी  वहीं केतौर -तरीके से पला बढा है। उसमे क्या कमी है ?ये तो बताओ..
स्वीटी- यहां के स्पेशलिस्ट डॉक्टर कहते है-- छोटे बच्चों को पैदा होने का बाद जितनी जल्दी हो सके या एक महीने के भीतर ही माँ सेअलग दूसरे कमरे में अकेले सोने की  आदत डालनी चाहिए । इससे उनका  शारीरिक और मानसिक विकास तीव्र गति से होता है। उनकी नींद डिस्टर्ब नहीं होती । वे जल्दी  आत्मनिर्भर बनते हैं स्वस्थ रहते हैं।
 जमुना जी - स्वीटी बेटा मैं भी साइकोलॉजी में एम.ए हूँ नौकरी भी किया है । मैं नही कहती कि डॉक्टर गलत कहते हैं या तुम झूठ बोल रही हो।दोनो  अपनी अपनी जगह सही हो। पर मेरे एक सवाल का जवाब दो ...यू एस में 60% इंजीनियर और 50% डॉक्टर भारतीय हैं।क्या तुम दोनों के साथ ये सभी भारतीयों का शारिरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास की दृष्टि से इन अमेरिकन्स से पिछड़े हैं ? यू एस के आर्थिक विकास की धुरी ये भारतीय ही बने हुए हैं ----
         भारतीयों के मानसिक ,बौद्धिक  क्षमता का कायल न केवल अमेरिका वरन पूरा विश्व है । अगर भारत में वोट की राजनीति और जातिगत आरक्षण का कोढ़ नही होता तो विश्व में भारत शिखर पर होता।
      सारांश यही है कि शिशु को माँ के सानिध्य से वंचित करना मूर्खता है।
      सच तो यह हैकि पश्चिमी देशों में 
भौतिकता का बोलबाला है,सामाजिक बन्धन नहीं है । आये दिन तलाक होते हैं  छोटे बच्चों को छोड़ कर माँ को कमाने जाना पड़ता है,एकल परिवार में को तलाक के बाद बच्चेको 14 वर्ष तक माँ को पालना पड़ता है नैनी ( आया )भरोसे बच्चे पलते हैं इसीलिए  शैशव काल से माँ से दूर रखा जाता है ।हमे अपनी  अच्छी परम्पराएं छोड़ दूसरों  के गलत तौर-तरीके को नहीं अपनाना चाहिए....

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग

"अतिथि सत्कार"

डॉ मेहता पत्नी के साथ अपने रिश्तेदार के घर से  लौट रहे थे,  रास्ते में  कार पंक्चर हो गई  रात काफी हो गई है ।भूख भी जोरों की लगी है, पर आस पास दूकान नजर नहीं आ रहा है। कुछ दूरी पर एक छोटी सी झोपड़ी में उजाला से देख कर पहुंचे। अंदर से बच्चे रोने की आवाज आ रही है। दरवाजा खुला है ।
 सांकल बजाने पर महिला निकली  पूछा  --क्या है ?
  ---दो पैकेट बिस्किट  मिलेगा ??
  फिर पूछा - चाय मिलेगी  ? 
-- महिला ने कुछ सोचा फिर कहा- बैठो बच्चे को चुप करा कर बनाती हूँ।
  उसे जरा जादा देर लग गई ।
  दो कप अदरख इलायची वाली  स्वादिष्ट  कांच के गिलास में लाकर दिया ।
--- चाय तो बहुत ही स्वादिष्ट है । सच में इतनी बढ़िया चाय तो बड़े बड़े होटलों में नहीं मिलती । 
 -वह  100 का नोट देखकर बोली -- मेरे पास छुट्टे नहीं है । आप  बिस्किट के 20रु दे दीजिए ।
 डॉ साहब --तुम पूरा ही रख लो ।
  वह बोली --नहीं  साहब  हम किसी से ज्यादा पैसे नहीं लेते । 
  ये होटल नहीं है ।हम चाय नहीं बेचते। गुजारे के लिए ये छोटी सी दूकान चलाते हैं । 
  आप हमारे मेहमान  जैसे हो ।मेहमानों को चाय पिलाने का पैसा नहीं लेते । आप हमारा मन रखने
  के लिए  चाय की तारीफ कर रहे थे।
    बच्चे के लिए थोड़ा सा  दूध बचाया था उसका ही चाय बना दिया ।
  -- अब बच्चे को क्या  पिलाओगी ??
 दूध की गंजी में थोड़ा आटा घोल कर  पका कर  लपसी बना कर बच्चे और उसके पिता को भी खिला देंगे।
            बच्चे का बाप 3 -4 दिन से बुखार में तप रहा है ।बैद की दवा काम  नहीं कर रही है।  
 --- मैं भी  डॉक्टर हूँ मरीज को देख सकता हूं । 
 अंदर जाकर देखने के बाद दवा दिया
और बोले वायरल बुखार है । अब ठीक हो जाएगा।
     ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की ,वे चले गए। बहुत देर तक उस महिला के अतिथि सत्कार के बारे में सोचते रहे।
 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग

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