Sunday 8 November 2020

लघुकथा श्रृंखला क्रमांक---22 आत्मविश्वास की चमक,अनुकम्पा नौकरी,दीवाली का तोहफा,भाई दूज का टीका




                                                                  
लघुकथा समारोह 42 -(प्रथम )
 आदरणीय संचालक महोदय एवम कथाप्रेमी मित्रों को 
 शीर्षक--   "आत्म विश्वास की चमक"
   आज निशा बहुत खुश है । स्नेहसिक्त सराहना का हार्दिक आभार आदरणीया विश्वास की चमक से उसका चेहरा  दमक रहा है। गांव के शासकीय  अस्पताल में नौकरी के लिए उसका चयन हो गया है ।
         जिंदगी के इन तीन सालों ने उसे  समझ और परिपक्वता में अपनी उम्र से दस साल बड़ी बना दिया है। 
वह अपने गुजरे वक्त के बारे में  सोच रही है .......
                निशा को मात्र पन्द्रह साल की उम्र में प्रसव के लिए मायके भेज दिया गया था । वह बहुत बुझी बुझी सी  रहती थी । 
बच्चा  होने के माह   भर बाद वह अपनी दादी से कहती है --- दादी में  ससुराल नहीं जाऊंगी। मेरे पति आधे पागल हैं।
  नौकरानी से ज्यादा वहाँ मेरी कोई इज्जत नहीं है । मेरे जेठ  मुझ पर  बुरी नीयत  रखते हैं ।  मुझे वहां नहीँ
 रहना है।यह बात दादी ने उसके  पिता  से बताई । 
 निशा ने अपनी  टीचर दीदी को सारी बात बताई ।
दीदी  ने कहा-- मैं प्राइवेट10वीं की परीक्षा फार्म  भरवा  देती हूं।किताब कॉपी भी दिलवा दूंगी ।  मन लगा कर पढ़ना मैं बीच बीच में पढ़ा दिया करूँगी। निशा अपनी किस्मत का  अंधेरा तुझे खुद दूर करना है । 
अपने हक के लिए लड़ने का क़ानूनी रास्ता भी है। पिता शराबी,पति मंदबुद्धि कमसिन उम्र,रसूखदार प्रतिपक्ष हो तो यही रास्ता उचित है
तुझे पढ़ना है अपने बच्चे के लिए ,खुद अपने लिए ।
 तू  दसवीं पास हो जाएगी, फिर दो साल की
नर्सिंग ट्रेनिगं कर लेना।  कहीं भी नौकरी मिल जाएगी।
दादी ने बच्चे सम्हालने की जिम्मेदारी
सम्हाल ली । वह आत्मनिर्भरता के रास्ते पर चल पड़ी।
               उसे  वह दिन भी याद आया जब  गांव के स्कूल में वह नवमी में पढ़ रही  थी ।उसकी छोटी माँ जल्दीसे जल्दी  उसकी शादी कर देना चाहती  है ।जिसे उसकी दूर के रिश्ते की बुआ ने उसे कह रखा- था - देख लल्ली मेरा सबसे लाडला  बेटा है रतन । दो की शादी हो गई।  तेरी जेठ बेटी  निशा को मैंने  देखा है ।रतन के लिए मुझे पसंद है।  अब तुम्हारे ऊपर है। अगर शादी करा दोगी, तो तोले भर के मेरे झुमके तुझे ईनाम में दूंगी ।
लल्ली - ठीक है बुआ । समय देख के निशा के बापू से बात  करती हूं।निशा की शादी के बाद तो घर पर मेरा राजचलेगा।
          कुछ दिन बाद अपने पति  को लेकर उसी बुआ के घर गई ।जहाँ उनकी खूब आव भगत हुई।  
निशा के पिता मद्य प्रेमी हैं। उन्हें जी भर के मदिरा पिला कर चार पंच के सामने  निशा  से रतन की शादी की बात पक्की हो गई ।
 निशा की  बूढ़ी दादी मना करती रही।पर उसकी बात किसी ने नहीँ मानी। निशा की दादी ने रतन के बारे सुन रखा था ।
      महीने भर में चट मंगनी और पट शादी करदी गई । तेरह बरस की निशा दुल्हन बनकर ससुराल आ गई घर में  खाने पीने की कमी नहीं है ।  पर उसका पति  रतन मन्द बुद्धि का है ।अनपढ़ और बेरोजगार है । उसकी कोई इज्जत नहीं करता । सब उसका मजाक बनाते रहते थे। निशा भी उस घर के लिए मुफ्त की नौकरानी से अधिक नहीं है। साल भर में निशा एक बेटे की माँ  बन गई। निशा बहुत समझदार है।  
 अपने बेटे को वह  उसके पिता की तरह   जिल्लत की जिंदगी नही  देना चाहती थी।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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लघुकथा समारोह क्रमांक- 42( द्वितीय )

 "अनुकम्पा नौकरी "
----शादी के पांच  साल बाद ही ललिता के पति की दुर्घटना में मौत हो गयी।उसका बेटा अवनीश अभी तीन साल का है ,और दूसरा अभी तो कोख में ही है  तेरहवीं के दिन दोनो पक्ष के सभी  रिश्तेदारों के सामने  उसके देवर  देवेश ने कहा -- ललिता भाभी चौथी से ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है। उनका  बेटा अभी बहुत छोटा है। मैं 12वी पास हूँ,इसीलिये भाई की परवरिश का जिम्मा मैं लेता हूँ। भाई  की अनुकम्पा नौकरी  का हक दार मैं बनूँगा । ये बात शपथ पूर्वक भाभी को सबके  सामने स्टांम्प पेपर में लिखकर देना होगा । 
       ललिता ने हाथ जोड़ कर कहा --
 मुझे और मेरे बच्चे को मेरे हाल पर छोड़ दिया जाए । मैं   खुद ही नौकरी करना चाहती हूं।
ससुर बोला --  घर में बहुत खेती बाड़ी है । खाने पीने की कोई कमी नहीं है।
हमारे घर की बहू बेटियाँ बाहर जाकर
 आज तक नौकरी नहीं किया है ।इससे परिवार की मर्यादा भंग होती है।  लोग हम पर ताने कसें ,ये हम बर्दाश्त नहीँ कर सकते ।
  उसके ससुराल वालों की नजर ललिता के पति की पी .एफ . राशि और अनुकम्पा नौकरी पर लगी है । 
 देवेश ने  पुनः एक चाल चली ।बोला --  मैं ललिता से शादी करने को तैयार हूं ।
 ललिता  --पर मुझे तुम जैसे शराबी , जुआरी  से शादी नहीं करना है।
              नौकरी किसे करनी है किसे नहीं ?इस बारे  में बाद में बात कर लेंगे अभी छै महीने का समय है । उसके बाद पिता के साथ मायके लौट गई। 
              महीने भर बाद ही ललिता स में भाई के साथ
 विश्राम पुर जाकर ,Lके डरपति के ऑफिस जाकर नौकरी के लिए आवेदन पत्र लेकर स्वयम बड़े साहब से मिली और
नम्रता पूर्वक कहा ---साहब ये नौकरी की जरूरत  ससुराली
रिश्तेदारों से ज्यादा मुझे है। मैं जानती हूँ कि संयुक्त परिवारों में एक  विधवा स्त्री और बिना बाप के बच्चों की क्या दुर्गति होती है ? ? ?   
नौकरी कर के  मैं खुद अपने दोनों बच्चों की बेहतर परवरिश
देना चाहती हूँ।उनका भविष्य सँवारना चाहती हूं ।सिर उठा कर जीना चाहती हूं।
        5 महीने बाद नौकरी ज्वाइन भी कर लिया ।आगे चलकर ललिता दसवीं की प्राइवेट परीक्षा  पास कर ली।उसके बाद बारहवीं भी कर लिया।अब आवक जावक विभाग में  काम करती है। 
डॉ  चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग

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लघुकथा समारोह 43 ( प्रथम )
शीर्षक   --"दिवाली  का तोहफा "
        दिवाली की रात गहराने लगी । देहरी ,ओसारे पर रखे मिट्टी के दिये की लौ मद्धिम पड़ने लगी । तभी रात के सन्नाटे में गूंजती है एक बच्चे के रोने की आवाज  उहाँ ... उहाँ..... 
निम्मी को लगा कि यह उसका भ्रम है। उसका पति भागवत ताड़ी पीकर सो रहा था। बहुत उठाने पर भी नहींउठा।    
                गांव से इतने दूर  सूनसान श्मसान की तरफ से अभी अभी जन्मे बच्चे के रोने की आवाज  -- उहाँ .... उहाँ ...... उहाँ ........उसे बार बार  क्योँ परेशान कर रही है ???? 
 निम्मी से रहा नहीं गया ।  वह लालटेन ले कर आवाज की ओर चल पड़ी । नदी के  किनारे श्मसान घाट के पास पीपल के नीचे पुराने कपड़ों में लिपटी  एक नन्ही बच्ची दीवाली की उस रात  उम्मीदों के दीप जला रही है ----     उसने अपने ठूंठ  हाथों से उसे उठाया और अपनी झोपड़ी में ले आई । उसका मातृत्व जाग उठा । उसकी झोपड़ी में रुदन की आवाज गूंज उठीं। दोनो एक दूसरे को देखकर खिल उठे।
     एक ओर बच्ची की भूख ,देख- भाल,  की चिंता दूसरी ओर अपनी बिमारी उसे न लगे इसका भय  ... बहुत सोचा कि क्या किया जाय ?? फिर उसे   मातृ छाया  पालना  घर  की याद आई। दोनो ने तय किया कि उस बच्ची को पालना घर मे रखकर पालेंगे । उसे  अपना नाम देंगे।
  रात  के अंधेरे में निम्मी  पैदल पांच कोस चलकर  सुबह सुबह पालना घर पहुंची। पालने में  डालकर  इंतजार करने लगी । दरवाजे की घण्टी बजाई  जब अंदर से एक महिला निकली - उसे बताया कि यह मेरी बच्ची है ।मैं इसे  अभी पाल नहीं सकती । पर इसका  खर्च उठाने का पूरा प्रयास करूँगी।  इसे देखने भी आया करूँगी।
 पालना घर के मालिक से उसकी बात करवाई गई । जिनसे निम्मी ने बताया -- माता जी  हम पति -पत्नी दोनो को  संक्रामक कुष्ठ रोग है । डॉक्टर ने बताया है कि हमारे बच्चों को भी यह  रोग हो जाएगा । हमने बच्चा न हो ऐसा आपरेशन करा लिया है । यह बच्ची ईश्वर की ओर से  इस दीवाली का  तोहफा है  .......
 यहां के रजिस्टर में इसका नाम रोशनी है माँ का निम्मी  पिता भागवत लिखिए---

     डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
    रायपुर ,छ ग
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शीर्षक---   भाई दूज का टीका 

        
    पूनम का  छोटा भाई है रजत ।जो उम्र में उससे तेरह साल छोटा है। घर में छोटा होने के कारण माँ बापू सबका लाडला । बहुत ही शरारती । उसकी हर जिद  पूरी हो जाती।इसलिए बहुत ही जिद्दी हो गया है ।
    बापू खाने -पीने ,पसंद के कपड़े पहनाने का लाड़ करते । पढ़ाई में कोई  ढिलाई पसंद नहीं करते । रजत का मन पढ़ने में नहीं लगता।
 पूनम  शादी के बाद पति के पास शहर  आ गई   । रजत भी जिद करके आगे की पढ़ाई के नाम से बहन के घर  रहने लगा । बहन के घर से कालेज पांच किलोमीटर दूर है ।परीक्षा पास है यह  कहकर हॉस्टल में चला गया। वहां
पढ़ाई तो नहीं किया ।सोनम नाम की लड़की से दिल लगा बैठा और मंदिर में शादी कर लिया। उसी के साथ रहने लगा। छोटी सी डेली नीड्स की दूकान भी खोल लिया। है।  पूनम को इस  शादी बारे में कुछ भी पता नहीं चलने दिया। 
                 दीपावली के दो दिन पहले  किसी  बात को लेकर सोनम और रजत में खूब बहस हुई ।  गुस्से में सोनम अपना सामान लेकर मायके चली गई । इधर रजत मरने के इरादे से कीट नाशक पी लिया । जब पेट और गले में जलन और ऐंठन होने लगी साथ ही घबराहट-  बेचैनी होने
लगी तो बहन की याद आई । वह ऑटो करके पूनम के घर पहुंचा ।
 ऑटो से उतर कर  अर्ध चेतन अवस्था में दरवाजे पर ही गिर पड़ा।
पूनम के कहने पर ऑटो वाले ने सहारा देकर भीतर सोफे पर लिटा दिया । ऑटो वाले को पैसे दिया । 
       भाई के मुंह पर पानी का छींटा दिया- पानी पिलाया । उसे कुछ होश आया तो वह रजत पर बरस पड़ी ---
पूनम ने गुस्से में कहा  -  देख रजत मैंने कितनी बार तुझसे कहा है कि शराब पीकर मेरे घर मत आया कर ।
 तेरे जीजू को ये सब पसन्द नहीं है ।
  मुझे तेरे कारण कितनी बातें सुननी पड़ती है ।  भाई मुझे मेरे ससुराल में तो चैन से रहने दे ।
 रजत ---  दीदी मैं जानता हूँ मैं बहुत बुरा हूँ। मुझे कोई नहीं पसन्द करता,  
इसीलिए तो इस दुनियां से ही जा रहा हूँ।  अब कभी तेरे दरवाजे पर लौट कर नहीं आऊंगा । मैंने- ज..ह..र ...
 पी लिया है ।
आज  भैया दूज है... टी ...का....  किसी तरह इतना  बोल पाया और बेहोश हो गया ।
  इतना सुनते ही पूनम सन्न रह गई । पति भी ऑफिस काम से बाहर गए हुए थे। उसने अपने पति के मित्र आनंद जी को फोन कर के बुलाया,जो उसी शहर में पुलिस विभाग में हैं ।  वे आये और स्थिति गम्भीरता देख कर तुरन्त
   अपने साथ डॉक्टर के पास ले गए।तत्काल भर्ती करके उनके   पेट में पाइप डालकर  पेट की सफाई की गई।  
जेब मे सुसाइड नोट तो नहीं पर कीट नाशक की शीशी मिली।जोआधी खाली थी। वह शीशी एंटी डोज़ देने में सहायक बनी। सुबह  तक उसे होश आया ।  डॉक्टरों ने खतरे से बाहर बताया।  डॉक्टर से पता चला कि  रजत को पूरी तरह नार्मल होने में  15 दिन लग जाएंगे ।आंखों में कुछ धुंधला सा दिखेगा , अन्न नली औऱ आंत में छाले आगये हैं । खाने पीने में विशेष ध्यान रखना होगा । 
 पति के लौटने पर पूनम  ने  रोते रोते अपने भाई के यम के द्वार से वापसी की सारी  कहानी बताई।उसके माता पिता 
  भी आ गये थे। हॉस्पिटल से घर लौटने पर दरवाजे पर ही
आरती उतारी  तिलक लगाया , दीर्घायु की कामना की ।
रजत ने भी बहन के चरण स्पर्श करके सबसे अपनी करनी की क्षमा मांगी।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
9425584403

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