लघुकथा श्रृंखला क्रमांक -23
लघु कथा समारोह 44 -( द्वितीय )
आदरणीय संचालक महोदय एवम कथाप्रेमी मित्रो को सादर ------
" शीर्षक-" - *मुआवजे की रकम औऱ जुर्माना*
आज दुकालू,राम सिंह, रेशम बाई, बैसाखू ,सुमरन सब मिल कर अपनी परेशानी और दुखगाथा सुनाने नवभारत के कार्यालय में आये हुए हैं।
बैशाखू -- साहब हम गरीबों की कहीं कोई सुनवाई नहीं है । आप अखबार के माध्यम से हमारी बात ऊपर तक पहुंचा सकते हो ।
चीफ एडिटर ने उनकी समस्या पूछी -
सतरेंगा गांव के दिव्यांग राम सिंह ने बताया --- मेरी40 वर्षीया पत्नी को हाथी ने पैरों तले कुचल कर मार डाला।वह जंगल से लकडी काट कर अपनी जीविका चलाती है। मैं । लकवाग्रस्त हूँ चल नहीं पाता ।
गांव वालों ने वन विभाग वालों को सूचना दी।पंचनामा हुआ उसके बाद चंदा करके उसकी अन्त्येष्टि हुई। तब से छै माह हो गये ,रामसिंह कभी भूखे रहकर ,कभी भीख मांग कर अपनी भूख शांत करता हूँ। मुआवजे के लिए
वन ,विभाग जिला कलेक्टर कार्यालय के चक्कर लगा रहा हूँ।
। मुझे हाथी के आतंक से पीड़ित अपने जैसे 4 -5 लोग और मिले ।कोई कोई 3महीने से,कोई 4 महीने से अपना आवेदन। और पंचनामा लेकर मुआवजे के लिए भटक रहे हैं फूटहामुड़ा का सुकालू बताया -- मेरी माँ को अपने खेत में महुआ बीनते समय भर दुपहरी में दंतैल हाथी ने अपने सूंड में लपेट कर पटक पटक कर मार डाला ।
रेशम बाई--साहब मेरे पति बाजार से शाम को राशन लेकर सायकल से लौट रहे थे दो हाथी पैडग़री के पास से अचानक दिखाई दिए वो भाग नही
पाए । हाथी ने मार डाला। हमारे छोटे छोटे बच्चे हैं हम अनाथ हो गए।
केंदई फाल, फूटहामुड़ा,करतला,
सत रेंगा, कोरबा जिले के सुदूर वन परिक्षेत्र में आते हैं। आये दिन हाथियों का झुण्ड कभी 2,कभी 4 -6की संख्या में आते हैं । जान- माल का नुकसान कर जाते हैं । गांव में घुस कर कभी घर तोड़ देते हैं,खेत के फसल रौंद देते हैं।
कर्मठ पत्रकार मोहित सेन अपने साथियों के उन गावों में जाकर स्थिति का जायजा लिया।मुख पृष्ठपर प्रभावी हेडिंग देकर आर्टिकल छापे। तब कहीं सरकार की नींद टूटी ।
पीड़ितों को मुआवजा मिल पाया ।
यह कितनी बड़ी त्रासदी है -- जब मंगलू ने अपनी केले की खेती को हाथियों से बचाने लोहे की बाउंड्री घेर कर करेंट से जोड़ दिया ,तब एक हाथी मर गया ।तो उसे तुरंत गिरफ्तार किया गया । उसे सजा और 15000 रु जुर्माना हुआ । और अब
हाथी द्वारा आदमी के मारे जाने पर 5पांच हजार से भी कम मुआवजा कार्यालय के कई चक्कर लगाने के बाद मुश्किल से मिल पाया है -----
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
9525584403
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लघुकथा समारोह -45
"जीत आत्म विश्वास की"
स्वस्तिका -- पापा मुझे बस एक मौका और दे दो प्लीज।अबकी बार अगर मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ तो
जैसा भी लड़का मिले मेरी शादी कर देना । मैं कुछ नहीं कहूंगी।
पापा --बेटा तुम समझती क्यों नहीं चार बेटियों का बाप हूँ, सामान्य सी नौकरी है। तेरी उमर बढ़ती जा रही । कम से कम Bsc कर लेती ,तो शादी के लिए लड़का ढूंढ़ना शुरू करूँ। तेरी बात मानकर तेरे से छोटी विनीता की शादी भी कर दिया है। अब तेरा नम्बर है। फिर छोटी निकिता भी तो है।
माँ ने भी समझाया --देख स्वस्ति तेरी बड़ी दीदी पल्लवी की शादी मैट्रिक के बाद ही हमने अच्छा घर वर देख कर कर दिया था शादी के तीन साल बाद ही जमाई जी नक्सली मुठभेड़ में मारे गये होनी को कौन जानता था, उसके ससुराल वाले पल्लवी को मैट्रिक की परीक्षा भी नहीं देने दिए शादी के बाद दो पेपर बचे थे।यदि उस समय मेट्रिक हो गई होती, तो उसे नौकरी मिल जाती वो आत्मनर्भर हो जाती ।तब से हमने सोच लिया कि ग्रेजुएशन के पहले बाकी बेटियों की शादी नहीं करेंगे।
अब तू ही बता हम क्या करें?मैट्रिक में 89% लेकर अपने स्कूल में टॉप किया
है।अब दो साल हो गया ,तू घर मे बैठी है।PM T की तैयारी करने में लगी है।बेटा हमारी इतनी हैसियत नहीं कि तुझे कोटा या इंदौर भेजके कोचिंग का खर्चा उठा सकें।अपनी तरफ से तू जी जान लगा कर पढ़ाई कर रही है ।
दोनो बार कटआउट के किनारे आकर रह गई ,इस बार वेटिंग में नम्बर आ गया । अरे डेंटल में चली जाती।
स्वस्तिका ---माँ मुझे ये आखिरी बार प्रयास करने दीजिए ---मुझे अपनी तैयारी पर पूरा भरोसा है ।इस बार निश्चित मेरा चयन होगा ही ।
उसके बाद स्वस्तिका अपनी पिछली कमियों का स्वआकलन किया। हर तीन महीने में अनुमानित प्रश्नपेपर बना कर नियत समय में हल करना और जांचना शुरू किया ।
इस बार PMT में उसका 25वाँ रेंक आया। भोपाल के GMC में उसका चयन हो गया।
उसके माँ -पापा मोहल्ले वाले सब खुश हैं। उसे बधाइयाँ दे रहे हैं। उसने सिद्ध कर दिया कि बिना कोचिंग के भी PMT में जनरल केटेगरी में सेलेक्शन हो सकता है ।
बस जरूरत है धैर्य और लगन की।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
9425584403
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: लघु कथा समारोह- 45 ( द्वितीय)
शीर्षक -- ऐसी है निर्मला बहू
आज सुबह सुबह सन्त राम ने अपने समधी सखा राम को फोन किया -- जय राम समधी जी ।
सखा राम -- जय राम जी,बताइए सब राजी राजी खुशी तो हैं ।
सन्तराम --सब कुशल मंगल है ।आपको एक खुशखबरी देने फोन किया है,कि 30 नवम्बर की शाम को अपने पटेल समाज का वार्षिक समारोह है ।उसमें आपको सपरिवार आना है।
वहाँ आपकी बेटीऔर हमारी बहू निर्मला को "आदर्श बहू का सम्मान "
मिलने वाला है ।
सखा राम- वा..ह भई वाह.. ये तो बहुत ही खुशी की बात है ।आप को बधाई हो। मैं निर्मला की माँ को लेकर जरूर आऊंगा।
सन्तराम - मैं आपसे कई बार कह चुका हूं कि आपकी बेटी को आपने इतने अच्छे संस्कार दिए हैं हमारे घर के लिये वह तो साक्षात लक्ष्मी औऱ अन्नपूर्णा है।हमने पिछले जन्म में जरूर बहुत अच्छे कर्म किये हैं ,जो ऐसी सुशील बहू हमको मिली।
सखा राम - ये तो माँ गायत्री की कृपा है। हमारा भाग्य किआप जैसे सज्जन
से हमारी रिश्तेदारी जुड़ी। आपने तो कंकड़ को तराश कर हीरा बना दिया।
समधी जी मेरी तो तीन बेटियां हैं।मैं खेती किसानी वाला गांव का रहने वाला बस बेटियों को जैसे तैसे पाल पोसकर दसवीं तक ही पढ़ा पाया। परिवार की मान मर्यादा का पाठ ही
सीखा पाया।हूँ। ये मेरी निर्मला का पुण्य कर्म है कि आप जैसा धर्म पिता मिला । अच्छा समधी जी मेरे घर कोई आये हैं ।फिर मिलते है ।जय राम जी..
सखाराम को पुरानी बातें याद आने लगी - जब सन्तराम अपने 20 वर्षीय बेटे सुदीप को लेकर अपने भाई के साथ उनकी बेटी निर्मला का हाथ मांगने आये थे ।श्याम वर्णी षोडसी निर्मला मात्र 10 क्लास पढ़ी थी । उन्होंने साफ साफ बता दिया कि पत्नी मानसिक रोगी है पांच साल से बिस्तर पर है । सुदीप बारहवीं पास पर बेरोजगार है। सास की सेवा करनी है रसोई से लेकर घर का सारा काम सम्हालना है।
निर्मला की माँ ने कहा -- मेरी बेटी में अभी लड़कपन भरा है।वह घर गृहस्थी की जिम्मेदारी कैसे सम्हाल पाएगी???
सन्तराम ने बताया --घर मे मेरी 18साल की बेटी है उसके लिए रिश्ते आरहे हैं उसकी शादी करनी है।बारह साल की उम्र से माँ की बीमारी के कारण वह पूरा घर सम्हाल रही है निर्मला बहू बनकर मेरे घर मे जाएगी पर बेटी बनकर रहेगी। जितना पढ़ेगी पढ़ाउँगा।उसे सुरक्षित भविष्य दूंगा ये मेरा वादा है।
मेरे घर में खाने - पीने, रुपये- पैसे की कमी नहीं है बस गृहणी की कमी है । बिना दान दहेज के गायत्री मन्दिर में सादे समारोह में शादी होगी। सन्त राम जी सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर हैं। समाज में बड़ा मान सम्मान है।
सखाराम जी को रिश्ता पसन्द आया। सुदीप और निर्मला की शादी हो गई। शादी के बाद निर्मला ने अपनी ननद के साथ मिलकर बड़ी कुशलता से घर की सारी जिम्मेदारी सम्हाल ली। दो साल के बाद ननद की शादी हो गई।सास का इलाज करवाया गया। समय पर दवा, सही भोजन और लगन से सेवा मिली वह भी ठीक हो गई। सुदीप के लिए मोबाइल शॉप खोल दिया।
उसके बाद निर्मला 12वीं की परीक्षा दी। ससुर ने निर्मला को सलवार शूट पहना कर गर्ल्स डिग्री कॉलेज में रेगुलर बी.ए. पढ़ाया । बी एड करवा दिया। सिलाई सीखने भेजा। अब वह गरीब लड़कियों और महिलाओं को सिलाई भी सिखाती है। ससुर रिटायर हो गए । घर के कामों में ससुर और पति निर्मला की मदद करते हैं। । इस साल उनके घर नया मेहमान जो आने वाला है ।
रिश्तेदार और उनकी जाति समाज के लोग निर्मला की मेहनत लगन मधुर व्यवहार की प्रशंसा करते नहीं थकते। सबके मन मे यही चाहत होती है कि बहू मिले तो निर्मला जैसी। निर्मला M A का एग्जाम भी देने का सोच रखा है।
टीचिंग जॉब के लिए भी वह प्रयासरत है।
ऐसी हजारों में एक है निर्मला बहू....
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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