Monday, 22 March 2021

छंद रचना के नियम ---( भाग -2)

तरंगिनी-३५४, सोमवार २२-०३-२०२१  प्रदत्त छंद : उल्लाला, चन्द्रमणि सम मात्रिक :- 
छंद : उल्लाला सम मात्रिक -22  22  212  
कुल13 मात्रा पदांत में  212

जीवन के दिन चार हैं
ज्यों नदिया की धार है।

व्यर्थ न जाये बीत ये 
 चिंतन की दरकार है।

शैशव यूं ही बीतता
यौवन तो त्यौहार है।

तरह तरह के ख्याल में
उलझा मन का तार है।

लोभ स्वार्थ की दौड़ ये
माया का संसार है ।

*** विशेष पोस्ट ***
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तरंगिनी छंद समारोह एवं समीक्षा - 363
    सोमवार दि 24/05/2021
आज का चयनित छंद - कुण्डलिया। (मात्रिक )
शिल्प विधान-- दोहा+रोला
दोहा - चार चरण ,दो तुकान्त ।
विषम चरणों में 13 मात्रा, आरम्भ में 121 स्वतंत्र शब्द वर्जित, 
चरणान्त में 12 /111 अनिवार्य ।
सम चरण 11 मात्रा,  सम चरण के अंत में 21 अनिवार्य ।
रोला - 8 चरण  चार तुकान्त ।( तुकान्त दो दो पंक्ति का भी मान्य होता है )
रोला के विषम चरणों में 11 मात्रा चरणान्त में त्रिकल अनिवार्य ।
सम चरणों में 13 मात्रा, आरम्भ में त्रिकल अनिवार्य अंत में गुरु अनिवार्य  ,अंत में 22 श्रेष्ठ 
कुंडलिया छंद में दोहा के चतुर्थ चरण को पुनः रोला के प्रथम चरण के रूप में प्रयोग करने का विधान है ।
छंद का प्रथम शब्द /शब्द समूह को भी छंद के अंत में लाया जाता है जो सर्प की तरह कुंडली मारकर बैठा प्रतीत होता है ।
इसीलिए उक्त छंद का नाम कुण्डलिया है ।
उदाहरण 

धानी आंचल भूमि का , उड़ता है स्वच्छंद ।
ऋतु वसंत उल्लासमय, लिखती मधुरिम छंद ।
लिखती मधुरिम छंद , भाव के बंधन टूटे ।
हुई कल्पना मुग्ध , सजाए शब्द अनूठे ।
पीला उड़े पराग , हुआ कवि मन भी चंचल ।
लिखवाता नव छंद , धरा का धानी आंचल ।
            वरिष्ठ कवयित्री कान्ति शुक्ला (मुक्तक लोक )
         
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हिल-मिल कर चलिए सदा , बढ़े    प्रीत  की   रीत
पीड़ा  तन मन  की  मिटे , दिल जग का लो जीत
दिल  जग   का  लो  जीत , मीत बन  जाये दुनिया
मिले    सुमन   खुश   रंग , खिलेगी मन की बगिया।
कह    कवि   नन्दन   देव , हसीं हो जीवन महफ़िल
सुख   की   है   यह   रीत , निभाओ सारे हिल-मिल

        देवकी नन्दन सैनी  मुक्तक लोक 
××××××××××
अरुणोदय आभा लिए,,,हुई सुहानी भोर/   
चहुंदिशि छाई लालिमा,धरणी भई विभोर,
धरणी भई विभोर,,,,कली ने आँखें खोलीं,
गली गली में शोर,,,डाल पे चिड़ियाँ बोलीं/
सुन "वीणा"के बोल,हुआ सुन्दर सूर्योदय/
स्वर्णिम हुई प्रभात,,मनोहारी अरुणोदय//
*****
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
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माऩव-सेवा  धर्म  की,  संकट  में  पहचान |
करुणा ममता से मनुज, बनते सदा महान ||
बनते सदा  महान,मिला है सबको अवसर |
कोरोना है आज, भूख को  भोजन  तत्पर ||
धरती   के  भगवान,  हृदय  में  रहते  देवा |
प्यास मिटाते श्याम,  धर्म  है  मानव-सेवा ||
~
- श्याम केशव धर्मपुरीकर मुक्तक लोक 

सभी साहित्यकारों का कुण्डलिया छंद के साथ छंद पटल पर सादर अभिनन्दन है ।
समीक्षा की दृष्टि से अधिकतम दो छंद ही प्रेषित करें ।
समीक्षा समारोह को गतिशील करने के लिए सभी रचनाकारों का सहयोग अपेक्षित है।
जय शारदे माँ! 
जय मुक्तक लोक! 

      राकेश मिश्र

युग पल पल में ढल रहा
बिन बांचा अखबार है।

चार दिनों की बात जो
बूझो बेड़ा पार  है ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग 
दिनांक  11  ,11,2020

दोहा - विधान (23 प्रकार) और मात्राएँ

विधान _ पंक्ति में 24 मात्राएं*_ 
विधान - दोहा एक मात्रिक छंद है जिसमें 2 पंक्तियां तथा 4 चरण होते हैं। पहला और तीसरा चरण, *विषम* तथा दूसरा और चौथा चरण , *सम* कहलाता है। विषम चरणों में 13 मात्राएं तथा सम चरणों में 11 मात्राएं होती हैं।
*मात्रा क्रम* 
8+2+1+2(विषम चरण), 8+2+1( सम चरण ) 
8+2+1+2(विषम चरण), 8+2+1( सम चरण ) 
*_लय_* - 
लाला लाला ला लला, लाला लाला लाल
लाला लाला ला लला, लाला लाला लाल


_*_दोहा लिखते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए*__ 
1. अठकल यानि 8 में दो चौकल (4+4) हो सकते हैं। चौकल की प्रथम और द्वितीय तथा अठकल की प्रथम और पंचम मात्रा से पूरित जगण शब्द (121 मात्राओं वाले शब्द) प्रारंभ नहीं हो सकता है।
2. चौकल की तृतीय और चतुर्थ मात्रा से जगण शब्द प्रारंभ हो सकता है।
3. दोहे में संयोजक शब्दों *और* , *तथा* , *एवं* , *औ'* का प्रयोग यथासंभव नहीं करते हैं । *अरू* का प्रयोग कर सकते हैं।
4. दोहे में कारक ( ने ,को, से ,के लिए, का, के ,की , में, पर आदि ) का प्रयोग कम से कम करते हैं।
5. हिंदी में खाय, मुस्काय, आत, भात, डारि, मुस्कानि, होय, जोय, तोय जैसे देशज क्रिया-रूपों का प्रयोग यथासंभव नहीं करते हैं।
6. दोहा में विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान अवश्य करते हैं।

*दोहा छंद के 23 मुख्य प्रकार*
👇👇👇
01. भ्रमर दोहा – 22 गुरु 04 लघु वर्ण
02. सुभ्रमर दोहा – 21 गुरु 06 लघु वर्ण
03. शरभ दोहा – 20 गुरु 08 लघु वर्ण
04. श्येन दोहा – 19 गुरु 10 लघु वर्ण
05. मण्डूक दोहा – 18 गुरु 12 लघु वर्ण
06. मर्कट दोहा – 17 गुरु 14 लघु वर्ण
07. करभ दोहा – 16 गुरु 16 लघु वर्ण
08. नर दोहा – 15 गुरु 18 लघु वर्ण
09. हंस दोहा – 14 गुरु 20 लघु वर्ण
10. गयंद दोहा – 13 गुरु 22 लघु वर्ण
11. पयोधर दोहा – 12 गुरु 24 लघु वर्ण
12. बल दोहा – 11 गुरु 26 लघु वर्ण
13. पान दोहा – 10 गुरु 28 लघु वर्ण
14. त्रिकल दोहा – 09 गुरु 30 लघु वर्ण
15. कच्छप दोहा – 08 गुरु 32 लघु वर्ण
16. मच्छ दोहा – 07 गुरु 34 लघु वर्ण
17. शार्दूल दोहा – 06 गुरु 36 लघु वर्ण
18. अहिवर दोहा – 05 गुरु 38 लघु वर्ण
19. व्याल दोहा – 04 गुरु 40 लघु वर्ण
20. विडाल दोहा – 03 गुरु 42 लघु वर्ण
21श्वान दोहा-02गुरु 44 लघु वर्ण
22.उदर दोहा-01गुरु 46 लघु वर्ण
23.सर्प दोहा-48 सब लघु वर्ण

**************
मात्राएँ :--
मात्राभार गणना ( विस्तृत )
*********************
मात्रा आधारित छंदमय रचनायें लिखने के लिए मात्रा या मात्राभार की गणना का ज्ञान होना अति आवश्यक है ,,,,आओ इस ज्ञान- विज्ञान को जाने —

नोट —-१) मात्रा या मात्राभार को = लघु ,,,,(इसके उच्चारण में / बोलने में ,कम /अल्प समय लगता है)

२) मात्रा या मात्राभार को = गुरु कहते हैं ,, ,(इसके उच्चारण में / बोलने में ,अपेक्षाकृत ज्यादा/अधिक समय लगता है)

**##(१)*** हिंदी में ह्रस्व स्वरों (अ, इ, उ, ऋ) की मात्रा १ होती है जिसे हम लघु कहते हैं

**##(२)*** हिंदी में दीर्घ स्वरों (आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ,अं, ) का मात्राभार २ होता है ,, जिसे हम गुरु कहते हैं.

**##(३)*** हिंदी में प्रत्येक व्यंजन की मात्रा १ होती है,,,, जो नीचे दर्शाये गए हैं — –
*** क,ख,ग,घ , *** च,छ,ज,झ,ञ ,
*** ट,ठ,ड,ढ,ण , *** त,थ,द,ध,न ,
*** प,फ,ब,भ,म , ***य,र,ल,व,श,ष,स,ह
जैसे—- अब=११, कल=११,, करतल =११११ ,,पवन १११ ,,मन =११ ,,चमचम=११११ ,,जल =११,,हलचल ११११,,दर =११,,कसक=१११,,दमकल =११११ ,,छनक =१११ ,दमक =१११ ,उलझन =११११ ,, बड़बड़ =११११,, गमन=१११ , नरक=१११ ,, सड़क=१११

**##(४)*** किसी भी व्यंजन में इ , उ ,ऋ की मात्रा लगाने पर उसका मात्राभार नहीं बदलता अर्थात १ (लघु) ही रहता है-
दिन =१ १,निशि=११,,जिस=११, मिल=११, किस =११ , हिल =१११, लिलि =११,नहि =११,,महि =११ कुल=११, खुल=११, मुकुल =१११, मधु =११, मधुरिम =११११ , कृत =११, तृण =११, मृग=११,, पितृ=११,, अमृत=१११,, टुनटुन= ११११ ,, कुमकुम =११११ , तुनक =१११, चुनर =१११ ,ऋषि =११ ,, ऋतु =११,, ऋतिक =१११

**#(५)*** किसी भी व्यंजन में दीर्घ स्वर (आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ ,अं,) की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार (दीर्ध=गुरु ) अर्थात २ हो जाता है.–
हारा=२२ ,,पारा=२२,, करारा =१२२,,चौपाया =२२२ ,,गोला =२२,,शोला=२२,,पाया =२२,,, जाय २१,,, माता =२२,,, पिता=१२,,, सीता= २२,, गई (गयी )=१२,, पीला =२२,,गए (गये )=१२, लाए (लाये) =२२, खाओ =२२, ओम =२१, और =२१,, ओकात =औकात =२२१,, अंकित २११, संचय =२११,पंपा ==२२,,मूली=२२,,शूली =२२,, पंप (पम्प ) =२१, अंग =२१ ,,ढंग =२१,, संचित =२११,, रंग=२१ ,, अंक=२१ , रंगीन =२२१, कंचन=२११ ,घंटा=२२ , पतंगा=१२२, दंभ (दम्भ )=२१, पंच (पञ्च )=२१, खंड (खण्ड )=२१,सिंह =२ १ ,,,सिंधु =२ १ ,,,बिंदु =२ १ ,,,, पुंज =२ १ ,,, हिंडोला =२ २ २,,कंकड़ =२११,,टंकण =२११ ,,सिंघाड़ा =२२२ ,लिंकन =२११ ,,लंका २२ ,

**#(६)*** गुरु वर्ण (दीर्घ) पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,
जैसे – नहीं=१२ ,सीँच =२१, भींच=२१ , हैं =२,छींक=२१ ,दें =२, हीँग =२१, हमेँ =१२ , सांप =२१

**#(८ )***शब्द के प्रारम्भ में संयुक्ताक्षर का मात्राभार १ (लघु) होता है , जैसे – स्वर=११ , ज्वर =११,प्रभा=१२
श्रम=११ , च्यवन=१११, प्लेट= २१, भ्रम =११, क्रम ११, श्वसन =१११, न्याय =२१,

**#(९ )*** संयुक्ताक्षर में ह्रस्व (इ ,उ ,ऋ ) की मात्रा लगने से उसका मात्राभार १ (लघु) ही रहता है ,
जैसे – प्रिया=१२ , क्रिया=१२ , द्रुम=११ ,च्युत=११, श्रुति=११, क्लिक =१ १, क्षितिज =१११, त्रिया =१२ ,

**#(१० )*** संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,(अर्थात कोई शब्द यदि अर्द्ध वर्ण से शुरू होता है तो अर्द्ध वर्ण का मात्राभार ० (नगण्य ) हो जाता है )–
जैसे – भ्राता=२२ , ज्ञान (ग्यान )=२१, श्याम=२१ , स्नेह=२१ ,स्त्री=२ , स्थान=२१ ,श्री=२,

**#(११ )*** संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,(अर्थात किसी शब्द के बीच में अर्द्ध वर्ण आने पर वह पूर्ववर्ती / पहलेवाले वर्ण के मात्राभार को दीर्घ/गुरु कर देता है )—
जैसे – अक्कड =२११,,बक्कड़=२११,,नम्र =(न म् र) =२१ , विद्या (वि द् या )=२२, चक्षु (चक्शु ) =२१,सत्य=२१ , वृक्ष (वृक्श) =२१,यत्र (यत् र )=२१, विख्यात=२२१,पर्ण=(प र् ण ) २१, गर्भ=(गर् भ) २१, कर्म =क (क र् म) २१, मल्ल =२१, दर्पण =२११, अर्चना २१२,, विनम्र (वि न म् र) =१२१,,अध्यक्ष (अध्यक्श)=२२१

**#(१२ )*** संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु / वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं आता है–
जैसे -प्राप्तांक =२२१ ,,प्राप्त =२१, हास्य=२१ , वाष्प =२१ ,आत्मा=२२ , सौम्या=२२ , शाश्वत=२११ , भास्कर=२११.भास्कराचार्य ,,२१२२१ ,,उपाध्यक्ष (उपाध्यक्श)=१२२१

**#(१३ )*** अर्द्ध वर्ण के बाद का अक्षर ‘ह’ गुरु (दीर्घ मात्रा धारक) होता है तो ,,,अर्द्ध वर्ण भारहीन हो जाता है जैसे —
तुम्हें=१२ , तुम्हारा=१२२, तुम्हारी=१२२, तुम्हारे=१२२, जिन्हें=१२, जिन्होंने=१२२, किन्होनें=१२२,,उन्होंने =१२२,,कुम्हार=१२१,, कन्हैया=१२२ ,, मल्हार=१२१ ,,कुल्हा =१२,,कुल्हाड़ी=१२२ ,तन्हा =१२ ,सुन्हेरा =१२२, दुल्हा ==१२,,अल्हेला =१२२ ,

**#(1४ )*** किन्तु अर्द्ध वर्ण के बाद का अक्षर ‘ह’ लघु होने पर मात्राभार वही रहता है जैसे —-
अल्हड़ =२११,,कुल्हड़=२११ ,,चुल्हड़ =२११ ,,दुल्हन =दुल्हिन २११,, कुल्हिया =२१२ , कल्ह २१,,तिन्ह =२१
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गणों के नाम, सूत्र चिह्न और उदाहरण इस प्रकार हैं-

गण – सूत्र – चिह्न – उदाहरण

यगण – यमाता – ।ऽऽ – बहाना

मगण – मातारा – ऽऽऽ – आज़ादी

तगण – ताराज – ऽऽ। – बाज़ार

रगण – राजभा – ऽ।ऽ – नीरजा

जगण – जभान – ।ऽ। – महेश

भगण – भानस – ऽ।। – मानस

नगण – नसल – ।।। – कमल

सगण – सलगा – ।।ऽ – ममता

( *यमाता राज भान सलगा* )


साभार ---------------+

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