शीर्षक --- "टर्निंग प्वाइंट "
नन्ही सी रोजी अपने पिता से बहुत प्यार करती है।रोज अपने पिता को झल्लाये हुए परेशान काम पर जाते देखती तो देखती तो उसे अच्छा नहीं लगता । शाम को घर लौटते तब भी
परेशान और चिड़चिड़े से रहते । वह उनकी परेशानी दूर करना चाहती है ।पर कैसे ? उसे याद आया स्कूल में टीचर जी ने कहा था । कि दूसरों से मुस्कुरा कर बात करने से उन्हें खुशी मिलती है। वैसे रोजी तो बहुत खुश मिजाज लड़की है ।
उसके बापू ऑटो चलाते हैं । वह अगली सुबह अपने बापू से बोली - आज मैं आपके साथ ऑटो में चलूंगी । ले चलो न.... . बापू -- कहाँ जायेगी अभी सुबह सुबह ? काम धंधे का समय है अभी बाद में चलना ।
रोजी -- बस चौक तक .... पास ही तो है ।वहां से मैं पैदल वापस आ जाउंगी ।
बापू ---अच्छा ठीक है चल मेरी अम्मा । अब खुश ...
चौक में पहुँच कर उसे ऑटो से उतार कर बोला --ध्यान से रोड के किनारे किनारे चलकर जाना ।
जैसे ही वह उतरी उसने देखा एक सवारी आटो के नजदीक आया । उसने मुस्कुरा कर हाथ जोड़ कर कहा -नमस्ते
अंकल..... .आपका दिन शुभ हो ....
उसने भी मुस्कुराते हुए कहा - थैंक यू बेटा ... फिर स्वतः ही बोला -- बहुत ही प्यारी बच्ची है।उसकी मुस्कुराहट देखकर
दिल खुश हो गया ।
रिक्शे वाले ने खुश होकर बताया --मेरी बेटी है.... साहब आपको कहाँ जाना है ?
.----रेलवे स्टेशन के कितने लगेंगे ?
----- साहब बुकिंग में सौ रुपये ।
-----ठीक है चलो .......मैं रोज इसी समय ट्रेन से बिलासपुर जाता हूँ मेरा घर M I G 29 है रोज घर से ले जाआगे ?
----- जी साहब ।
एक नन्ही सी प्यारी सी मुस्कान ने दो लोगों की सुबह को खुशनुमां बना दिया ।
---रिक्शा वाला बी .ए. पास है पहले रायपुर के सिलतरा की फैक्ट्री में काम करता था । पिछले साल कोरोना बीमारी के कारण लाक डाउन के कारण नौकरी छूट गई । परिवार पालने के लिए अब ऑटो चलाता है ।
उस दिन उसने सोचा --- मैं रोज बिना वजह क्यों झल्लाते रहता हूँ? माना कि ये काम मेरी पसंद का नहीं है । लोगों से मुस्कुरा कर बात भी तो कर सकता हूँ।ईश्वर मेरे लिए जितनी सवारी भेजना है जरूर भेजेगा । मेरे हक का पैसा कोई नही छीन सकता है । उस दिन वह खुशी खुशी खुशी घर लौटा अपनी बेटी के लिए टॉफी लाया । उसे बहुत प्यार किया और बोला -- आज से तू मेरी गुरु है
रोजी -- क्यों ? बापू मैं तो बहुत छोटी हूँ न? गुरु तो बहुत बड़े होते हैं।
बापू ---- बेटा तेरी प्यारी सी मुस्कान ने मुझे आज ये सीखा दिया कि हमेशा खुश रहना चाहिए । ये काम हमारी गुड़िया रानी के सकती है तो हम क्यों नही?
------शाबास .... अब हुई न मेरे अच्छे बापू वाली बात .... अब मैं किसी से झल्लाकर बात नहीं करूंगा ।प्रामिस....सबसे मुस्कुरा के बात करूंगा।
----- थैंक यू बापू .....
जिंदगी में टर्निंग प्वाइंट कभी भी आ सकता है और कोई भी ला सकता है । जिससे हमारे जीने का तरीका बदल जाता है।
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दि 15, 4 , 20 21
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शीर्षक --- " माँ के दिल की आह "
शलभ का फोन है -- हलो माँ कैसी हो ?
माँ ---मैं ठीक हूँ। तू बता ...
--- माँ घर की डील हो गई न ? एडवांस मिल गया?
--- अभी नहीं ।
--- मैंने कहा था न जल्दी करो ।अब आपको यहीं हमारे साथ ही रहना है । कितने साल हो गये अपको वहां अकेले रहते।मुझे आपकी चिंता लगी रहती है। कितनी उम्र हो गई है।अब आपको अकेले नहीं रहने दूंगा।
----- लेकिन बेटा मुझे वहाँ अच्छा नहीं लगता ।तुम लोग दिन भर काम पर चले जाते हो । शाम को लौटते हो । हप्ते भर का खाना बना कर फ़्रीज में रख रख कर खाते हो
चाउमिन,पीजा, बर्गर खाकर पेट भर लेते हो।
शलभ --वहां तो सभी ऐसा ही करते हैं । आप के लिए चावल दाल सब्जी मसाले तेल भी तो लाकर रख दिया था न?
माँ --- वो तो ठीक है लेकिन वहां भूनने- बघारने पर भी तो पाबन्दी है न?वहाँ अपार्टमेंट में लगभग सभी अंग्रेज ही हैं। जिन्हें मसालों की गंध बिल्कुल भी पसन्द नही है । भारतीयों के दरवाजे के सामने से नाक मुंह मे रुमाल रख कर निकलते हैं ।
वहां तो पूड़ी,पराठा भी नही बना सकते ।पापड़ भी नहीँ तल सकते। और तो और भगवान की तस्वीर के आगे अगरबत्ती और दीपक भी नहीं जला सकते। जरा सा धुंआ निकला नहीं कि सायरन बजने लगता है,पुलिस आ जाती है । फाइन लग जाता है ।वार्निंग मिलती है।
शलभ --- माँ अपना ही राग अलापती रहोगी कि मेरी भी कुछ सुनोगी ? मैं तो तीन बड़ी खुश खबरी बताने के लिए फोन किया था ।
माँ ---अच्छा बो- -ल---
शलभ --- माँ तुम दादी बनने वाली हो। आपका पोता आने वाला है । अच्छा सा नाम सोच कर रख लेना।
माँ -- तुझे कैसे मालूम कि लड़का ही होगा ?
शलभ -- वहां के डॉक्टर चेक कर के पहले ही बता देते हैं।
दूसरी खुशखबरी -हमारा ग्रीनकार्ड भी जल्दी ही बनकर आ जायेगा। ।
तीसरी खुशखबरी -अब हम अपार्टमेंट में नहीं नीचे वाले सेपरेट तीन बेड रूम वाले मकान में रहेंगे।वहाँ आस पास
3 --4 भारतीय परिवार भी रहते हैं ।
शलभ ने बताया था कि अमेरिका में बैंक में ब्याज नहीँ मिलता। जो मिलता है वह नाममात्र का होता है। उसने 40%पैसे फिक्स डिपाजिट में डाल दिए । बाकी पैसा शलभ के अकाउंट में भेज दिए । घर के सामान अपने रिश्तेदारों पास दो तीन इंडियन फैमिली वाले रहते हैं। अब तो यहां बोर होने कैवल ही नहीं है ।तुम और तुम्हारा पोता दिनभर व्यस्त रहोगे ।
जैसे ही घर की रजिस्ट्री होती है ।पैसे को डॉलर में कनवर्ट करवा के मेरे अकाउंट में ट्रांसफर करवा देना। तुम जब यहां आओगी तब यहां के स्टेट बैंक में तुम्हारे नाम से अकाउंट खुलवा दूंगा।
सब काम पूरा होने के बाद शलभ फ्लाइट की टिकिट भेज दिया । अमेरिका जाने के बाद छै महीने बेबी शावर ,गोद भराई, बच्चे के जन्म की पार्टी व जश्न मनाने में कैसे निकला पता ही नहीँ चला।
एक दिन शलभ ने कहा -- माँ आपका ग्रीन कार्ड बनवाना है। भारतीय दूतावास से कुछ पेपर बनवाना पड़ेगा, आपके और पापा के ऑफिस से कुछ पेपर चाहिए। दिल्ली तक आपका टिकिट करवा दिया है ।वहां से कनेक्टिंग फ्लाइट है भोपाल की भी है । मैने सारे फार्म आपके बैग में सुरक्षित रख दिया है ।आप पेपर बनवा कर मुझे खबर करना तो मैं आपको लेने आऊंगा । तब दिल्ली के पेपर बनवाते हुए हम यहां आ जायँगे आपका भी ग्रीनकार्ड बन जायेगा तुम हमेशा के लिए यहां रहने लगोगी हमारे साथ।
उसके बाद अब दो साल हो गए न लेने आया ,न कोई पेपर भेजा, न कोई खोज खबर लिया । अपना फोन नम्बर भी बदल दिया ।
उसने रिश्तेदारों के घर कुछ दिन बिताये फिर दो कमरे का छोटा सा मकान किराये पर ले कर जरूरी सामान खरीद कर बेटे के आने की उम्मीद में दिन काट रही है। अब तक न उसका आधार कार्ड बना ,न राशन कार्ड ,न स्मार्ट कार्ड,न आयुष्मान कार्ड । न वह घर की रही न घाट की । पुराना घर ,मोहल्ला पड़ोसी सब छूट गए ।अपने बेटे के लिए दिल से बद्दुआ भले न निकले ।पर उसके एक एक आंसू और तड़प की कीमत तो उसे चुकानी होगी । उसके लिए वह कितना ही ग्रहदोष निवारण ,शांति पाठ करवा लें, पूजा करवा लें,या दान दक्षिणा दे दे । कितना भी कमा ले। सुख से कभी नहीं रह पाएगा माँ की आह तो लगेगी।
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दि. 13,4,202
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लघु कथा लोक समारोह 65 /प्रथम
शीर्षक - "बगावत दुल्हन की "
आज जगदलपुर के जिला अस्पताल की हेड नर्स सुनीता का विदाई समारोह है। विगत सैंतालीस साल से बस्तर के इस बेहद पिछड़े सुविधा विहीन क्षेत्र में उसने खूब काम किया ।लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया ,नई उम्र की लड़कियों को पढ़ने और आगे बढ़ने में हर सम्भव सहायता करती है।पिछले साल भी कोरोना काल में दिन रात अपने जान की परवाह किये बिना मरीजों की सेवा करती रही है। उसे राज्य सरकार की ओर से जिलाधीश महोदय ने ,"मदर टेरेसा सम्मान " का सम्मान पत्र ,सम्मान चिन्ह और ढाई लाख रुपए की सम्मान राशि का चेक प्रदान किया ।
प्रोगाम के बाद घर आकर फूलमाला और सम्मान पत्र टेबल पर ऱखकर सिर टिका कर सोफे पर बैठ गई ।
उसके सामने चुपके से उसका अतीत आकर खड़ा मुस्कुरा रहा था । जब से उसने बगावत की राह पकड़ी एक -एक कर सारी घटनाएं मुखर होने लगी ।
शहर में पली बढ़ी रिटायर्ड प्रायमरी टीचर की सबसे छोटी बेटी सुनीता शादी के बाद बीहड़ जंगलों के बीच बसे मान पुर गांव के देवेंद्र सिंह की बहू बनकर आई है। तब न टी वी थे न मोबाइल और न घरोंमें शौचालय होते थे । नववधू के स्वागत आरती और नेंग दस्तूर के बाद शाम ढलने के बाद हाथ भर लम्बा घूंघट निकाले हाथ मे लोटा लिए बहू बेटियों को एक अधेड़ स्त्री दिशा मैदान के लिए थोड़ी दूर मैदान में ले गई। लौटते समय एक युवती जिसकी गोद में तीन साल का बच्चा था, सुनीता के पांव पकड़ कर रोते हुये बोली --- मैं तुम्हारे पति की ब्याहता हूँ। ये बच्चा भी उन्ही का है । मैं बीमार हो गई तो मुझे मायके भेजकर तुमसे शादी कर ली। उनसे कुछ भी कहना बेकार है। पर तुम तो पढ़ी लिखी समझदार हो औरत का दर्द समझ सकोगी इसी उम्मीद में तुम्हारे पास आई हूं। मैं अनपढ़ गंवार इस बच्चे को लेकर कहाँ जाऊँ ?
सुनीता कुछ देर के लिए स्तब्ध रह गई । फिर उसे अपने साथ लेकर पति के पास आई और पूछी ---- क्या यह स्त्री तुम्हारी ब्याहता है ? ये बच्चा तुम्हारा------
पति ने शान के साथ कहा ---हां है तो क्या ?
सुनीता ने घूंघट उलट कर नाराजगी जताया ।
पति ने कहा -- हम ठाकुर हैं ।हमारे समाज में एक नहीं कई शादियाँ करने का रिवाज है ।
सुनीता ---और झूठ बोलने का भी रिवाज है क्या ?
पति गुस्से को दबाते हुए -- तुम इस घर में अभी अभी आई हो।अपनी हद में रहना सीख लो ।इस घर में मर्दों से इस तरह सवाल जवाब बर्दाश्त नहीं किया जाता । इतनी चेतावनी देकर वहां से चले गए।
वह भी सुहाग रात वाले कमरे में में जाकर अंदर से बंद कर लिया।उसने सोच लिया किसी भी तरह रात गहराने के बाद सबकी नजर बचा कर यहाँ से निकलना है ,और फिर लौट कर कभी वापस नहीं आना है।उसे ये शादी स्वीकार नहीं है ।
उसने मांग टीका ,चूड़ियां, शादी का लाल,जोड़ा उतार कर
पलँग पर रख दिया ।
उसने एक थैले में अपने पिता के घर के जेवर,,नेग में मिले रुपये टार्च डाला ।एक पतला से चादर
ओढ़कर पीछे के दरवाजे से दबे पांव पैदल ही निकल पड़ी।
लगातार तीन घण्टे चलकर थक गई । कुछ घर दिखाई दिए। मुर्गे ने बांग दिया, उसे एक वृद्धा स्त्री को अपनी ओर आती दिखाई दी। उसने रोनी सूरत बना कर कहा -माँ जी मेरी सहायता करो मेरे पिता बहुत बीमार है मुझे अंतिम दर्शन करना है ,पति परदेश में हैं ससुराल वाले मायके नहीँ जाने देते। इसलिए अकेले ही निकल पड़ी हूँ।वृद्धा को दया आ गयी ।उसने अपने बेटे को नींद से जगाया और उसे सायकल से स्टेशन छोड़ने को कहा । सुबह छै बजे की ट्रेन से पिता के घर आई । पिता को सारी बातें बताई ।उन्होंने इज्जत का हवाला देकर घर मे रखने से मना कर दिया। वहाँ से अपनी मौसी के घर गई। मौसी का बेटा दूसरे शहर में नौकरी करता है । उसने सहायता की ।उसने
नर्सिंग ट्रेनिंग का फार्म भरवाया । दो साल की ट्रेनिंग के बाद नौकरी के लिए अपने गांव, शहर से दूर बस्तर क्षेत्र को चुना ।जहां उसके कोई रिश्तेदार नही थे।
यहां आकर खुद को काम में व्यस्त कर लिया। 37 साल की उम्र में उसी के हॉस्पिटल में काम करने वाले डॉक्टर ने शादी के लिए प्रपोज किया ।तीन साल पहले उसकी पत्नी
की केंसर से मृत्यु हो चुकी थी और नौ साल की एक बेटी
है । उसके साथ अंतरजातीय विवाह कर लिया ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दिनांक15 ,4,2021--------------*- ------------------
-- **पान वाली दादी**
अजय खुशी खुशी घर आया और दादी से बोला -- दादी अब कल से तुम दूकान में नहीँ बैठोगी । मुझे नगर निगम में क्लर्क की नौकरी मिल गई है।
दादी- अभी तो तेरी नौकरी लगी है ।वो भी संविदा में तनखा तो मिलने दे । घर में छै जन खाने वाले ,इसके अलावा और भी तो दीगर खर्च है । दीपा मैट्रिक में है ।उसकी शादी के लिए लड़का देखना है ।शादी की तैयारी करनी है। अभी तुम्हारी ज्योति दीदी कुंवारी बैठी है । उसकी शादी दो साल से टल रही है । बेटा थोड़ा धीरज रखो ।ये शादी निपट जाने दो ।इसी पान की की दूकान ने हमे मुसीबत से उबारा है ।
अजय --- दादी मैं अब बड़ा हो गया हूँ न ? सब सम्हाल लूंगा।
आपकी पछत्तर साल उमर हो गई है । ये काम करने की नहीं आराम करने की उमर है। मैं पार्ट टाइम कुछ और काम खोज लूंगा ।
दादी ---बेटा मैं यहाँ बैठी ही तो रहती हूँ ।कौन पत्थर तोड़ती हूँ ,कि बोझा ढोती हूँ ? फिर दूकान का जो समान भरा ह,ै उसे बेचना तो पड़ेगा न ? ऐसे निर्णय एकाएक नही लिए जाते बहुत सोच समझ के लेने पड़ते हैं ।
अजय --ठीक है जितना सामान भरा है जैसे ही वह बिकता है। तुम्हेंऔर नहीं मंगवाना है ।
दादी --- अभी तो आरती का समय हो गया है।चलो आरती
करके सब खाना खाते हैं।
रात में जानकी देवी जो आज दादी बन गई है घर की मुखिया है ।उसे नींद नहीँ आरही है। उसे बीते दिनों की याद आ रही है । पन्द्रह साल की उमर में शादी होकर इस घर में आई थी । सास ससुर देवर जेठ सभी साथ रहते थे ।तब बाहर के काम के लिए नौकर चाकर भी थे । घर में सास का हुकुम चलता था । बहुएं एक हाथ लम्बा घूंघट डाले या तो पर्व त्यौहार में मंदिर ही जाती थी ।आज से 90 साल पहले गांव में दो मंजिला पक्का मकान था ,जो दूर से ही दिखता था।ननदों की शादी हुई देवर जेठ अलग अलग दूसरी जगह दूकान खोल कर परिवार के साथ चले गए। खेती बाडी का हिस्सा बंटवारा हो गया । इस मकान में हम और हमारा परिवार ही रह गया।
तीन बेटियों और एक बेटे की शादी के बाद पति गुजर गए । बड़ा बेटा किशोर बहुत दूर शहर में नौकरी करने लगा परिवार सहित वहीं बस गया।
छोटे बेटे कन्हैया को यहीं नौकरी मिल गई। उसे मिर्गी की बीमारी थी उसकी आकस्मिक मृत्यु हो जाने से घर की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई । जवान बहू के पांच बच्चों में बड़ा अभी पन्द्रह साल का अजय दसवीं में पढ़ रहा था। दो बेटियां शादी के लायक हो गई हैं।
घर का एक हिस्सा किराये पर उठा दिया, घर के बर्तन ,जेवर बिकने लगे, गाय ,बैल बिक गए। बिना कमाई के तो कुबेर का खजाना भी खाली हो जाता है। ।देवर, जेठ ,बड़े बेटे से सहायता मांगी किसी ने सहायता नहीं मिली । इतने बड़ा परिवार के दो जून की रोटी कैसे और कब तक चले ? उसके अलावा और भी खर्चे होते हैं।
तब भी चिंता में जानकी देवी के आंखों की नींद उड़ गई थी । बड़े घर की बहू जो कभी बिना घूंघट के घर के बाहर कदम नही रखी थी । घर के का काम और रसोई के अलावा कोई काम नहीं किया । उस जमाने में न तो गांव -गांव में स्कूल थे, न तो लड़कियों को पढ़ाया जाता । पर वह हिसाब की पक्की है।जबानी कर लेती है । दीवार में लकीर खींचकर भी सौ हजार तक के नोट गिन लेती ।
बड़ा घर था घर में दरबार सा लगा रहता था। तीज त्यौहार में भजन,कीर्तन, रामायण,आल्हा गाये जाते। पूरे मोहल्ले के लोग वहीँ इकट्ठे होते ।अतिथि सत्कार में चाय का चलन तब नहीं था। पान, सौंफ,सुपारी दिया जाता था ।जानकी देवी को तरह तरह के आकार के पान के बीड़े बनाना बहुत अच्छा लगता था।
उन्होंने बहुत सोचा फिर समस्या का हल ढूंढ ही लिया।
अपने दिवंगत बेटे के मित्र के साथ जाकर सोने की हंसुली को सेठ लालचन्द के पास गिरवी रखा और गुमटी बनवाई ।पान दूकान खोलने का सारा इंतजाम करके घर के पास वाले चौक में दूकान खोल लिया । उसने सोच लिया कि मुझे परिवार पालना है । एक बच्चा पोलियो ग्रस्त है।
लोग क्या बोलेंगे--ताना मारेंगे --व्यंग्य करेंगे इस पर
जरा भी ध्यान नहीं देना है....... ये लोग मेरे बच्चों की परवरिश तो नहीं कर देंगे। मुझे अपने नाती पोतों का पेट पालना है,उनका भविष्य सँवारना है ....... मैं दूकान खोल कर कुछ गलत नहीं कर रही हूं। इस उमर में अपने परिवार के लिए जो बेहतर कर सकती हूं ।जरूर करूँगी । किसी के सामने अब सहायता के लिए हाथ तो नही फैलाऊंगी।
धीरे धीरे दूकान में दैनिक जरूरत की चीजें भी रखने लगी । उनके अच्छे व्यवहार,सही क्वालिटी,सही कीमत की वजह से कुछ ही दिनों में दूकान अच्छी चलने लगी। परिवार सम्हल गया। गांव तो अब शहर बन गया शहर में मोहल्ले में सब उनका सम्मान करते हैं ।उनका छोटा पोता अभय पढ़ने में मन नहीं लगाता । इस दूकान का रूप -रंग बदलकर उसे सौंपना चाहती है।
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दि.16 ,4 ,2021
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