-- "मेरी नई पड़ोसन "
गीता बरसों से शिवजी नगर में रहती है । उनके सामने वाले मकानमें कोई नया किरायेदार शिफ्ट हुआ है नुक्कड़ वाले दूकान में उनसे मुलाकात हो गई। आपसी परिचय हुआ ।
ग्गीता जी ने कहा आपको तो सामान जमाने का बहुत माथा पच्ची का और थकाऊ काम है ।
रमा --- जी ....जी कौन समान कहाँ है? ढूंढना आसान नही है । मैने सोचा सामने दुकान है तो चाय कुछ नाश्ता का समान ले लूं।
गीता -- मैं घर जाकर चाय बना कर भेजती हूँ । उसने अपनी बेटी रूपा को चाय नाश्ता लेकर उनके घर भेजा। दरवाजा खुला ही था -- आंटी नमस्ते मैं रूपा हूँ ।दूकान में मेरी मम्मी से आपकी मुलाकात हुई है ।हम सामने ही रहते हैं । आप लोग चाय पीजिये ।और शाम का भोजन हमारे यहां बन रहा है। मैं आप लोगों कोआठ बजे लेने आउँगी ?इतना कहकर रूपा वापस लौट गई।
शाम को दोनों परिवारों का आपसी परिचय होता है । रमा बताती है कि -- मैं बैंक में जॉब करती हूँ।पति से डिवोर्स हो चुका है। क्यों ,कैसे ये बताना मैं जरूरी नहीं समझती । सबकी अपनी परिस्थितियां होती है । मेरा बेटा बी कॉम कर रहा है। ये रचना हाई स्कूल में है।
गीता कहती है --- आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई। ये मेरी बेटियाँ हैं रूपा और दीपा । इनके पिता B E O ऑफिस में क्लर्क हैं । अभी सप्ताह भर के लिए दौरे पर गए हुए हैं।मैं भी भारत माता स्कूल में पढ़ाती हूँ।
रमा --- खाना तो होटल से आ जाता। पर आप ने हमारे लिए इतनी मेहनत की ।आपका यह अपनत्व हमेशा याद रहेगा
गीता -- अब हम पड़ोसी हैं। आने वाले का स्वागत करना चाहिए यही तो पड़ोसी धर्म है।
रमा-- ठीक कहा आपने परदेश में पड़ोसी ही तो वक्त जरूरत में काम आते हैं।आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा।
डिनर के पश्चात खाने की तारीफ करते हुये रमा बच्चों के साथ घर वापस आ जाती है। दोनो परिवारों के बीच स्नेह बढ़ने लगा ।
गीता के पति रामेश्वर जी जब ऑफिस के दौरे से वापस आये उन्हें पेट मे दर्द हो रहा था ।ऐसा अक्सर हो जाता था, तो वे ईनो या डाइजीन ले लिया करते थे ।रूपा स्कूल से घर लौटी तो देखा पापा दर्द से तड़प रहें हैं। श्रीकांत की गाड़ी खड़ी देख उसने श्रीकांत को फोन किया।वह बिना समय गंवाए ऑटो लेकर आया रामेश्वर जी को लेकर पास के सीटी हॉस्पिटल में ले गया । डॉक्टर ने चेक करके बताया कि एपेंडिक्स फट गया है, तुरन्त ऑपरेशन करना होगा ।उसने अपनी मम्मी को फोन करके सब कुछ बताया। हॉस्पिटल में 10 हजार रु एडवांस की बात भी कही। स्थिति की गम्भीरता को देख कर रमा जी ने पैसे
जमा कर दिए। उधर रूपा मम्मी को लेकर हॉस्पिटल पहुंच गई। आनन फानन में ऑपरेशन हुआ।रामेश्वर जी की जान
बच गई। उसके बाद से रामेश्वर जी श्रीकांत को अपने बेटे से बढ़कर मानने लगे ।रमा जी को अपनी बहन बना लिया-----
अपनत्व और स्नेह के इस रिश्ते से दोनो परिवारों में खुशियों की बहार आ गई ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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शव जलाने के लिए लकड़ियाँ कम पड़ रही है
कुकुरमुत्ते की तरह हर सड़क चौराहे गली नुक्कड़ पर मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे चर्च को सामूहिक सहमति से तोड़ कर हॉस्पिटल और शिक्षण संस्थान बना दिये जायें और कोई कट्टरपंथी धर्म का ठेकेदार आगे आये तो उसे गोली मार दी जाय
तब जा कर होगा नए भारत का निर्माण
आनेवाले समय मे यही होगा
: I A S विक्रम जी ... आपका सामयिक चिंतन और आक्रोश की अभिव्यक्ति । स्वाभाविक है पर व्यवहारिक नहीं है।
1 . मंदिर, मस्जिद ,चर्च, गुरुद्वारे तोड़ने के लिए इस देश में कभी आपसी सहमति नहीं बन सकती ना ही, धर्म ठेकेदारों को गोली मारी जा सकती ।
2 .रही बात नए भारत के निर्माण की उसके लिए कहूंगी- *देश नहीं बनता नक्शे और जंजीरों से । वह तो बनता है उसके बाशिन्दों की तासिरों से *
इसके बाशिन्दों की नई पीढ़ी को देश भक्ति,मानवता ,आपसी सद्भाव, त्याग का पाठ बचपन से घुट्टी में घोल कर पिलाया जाए, तभी नए भारत का निर्माण सम्भव है
3 .इसके लिए हर नागरिक को खुद के आचार ,विचार,व्यवहार को बदलना होगा । डॉक्टर,इंजीनियर,कलेक्टर, पुलिस, टीचर , नेता के साथ हरेक को जिम्मेदार नागरिक बनाना होगा ।
4 . हॉस्पिटल और शिक्षण संस्थान वाली बात सही है पर उसके डॉक्टर और नर्स ,कम्पाउंडर , कर्मचारी --
शिक्षक विद्यार्थी सभी अपने विषय के विशेषज्ञ, ईमानदारी, और जुझारू होने चाहिए । ये तब होगा जब ये गुण उनके माता -पिता ने शैशवकाल से उनके मन मष्तिष्क में संस्कार रूप में डाला होगा ।
5. तो सबसे पहले बच्चे पैदा करने से पहले भावी माता पिता को शिशु पालन एवम उसे संस्कारित करने की ट्रेनिंग लेना अनिवार्य हो ।
6. रही नेता जनों की बात - सबसे पहले तो वह एक जिम्मेदार नागरिक है। उसे हम -तुम मिलकर नेता बनाते हैं। चयनित नेता ही सरकार बनाते हैं।
तो हम नागरिक /मतदाता ही उसे चुन कर भेजते हैं ।
फिर रोते ,पीटते ,चीखते,चिल्लाते हैं
सरकार ये नहीं करती ,वो नहीं करती।
ये सरकार बदलनी है ।
अरे जनाब बदलना है तो सबसे खुद को बदलो न।
7 . बेड वेंटिलेटर,आक्सीजन ,शवदाह की लकड़ियां ---कहाँ से मंगाई जाएंगी??
तत्काल इनकी आपूर्ति कैसे होगी ये सोचा है आपने ?? बेशुमार वनसम्पदा , किसने नष्ट किया । गैर जिम्मेदार लालची कुसंस्कारी लोगों ने जिनमे मजदूर ठेकेदार सब हैं। एक पेड़ काटने से पहले दस पेड़ लगाओ ये धर्म शास्त्र कहते हैं। क्या ये काम नागरिकों ने किया ?? हरे पेड़ आक्सीजन,फूल,फल ,ओषधि देते हैं।
सूखे पेड़ लकड़ी । अब ऑक्सीजन के प्लांट ,उद्योग तत्काल लगाए नही जा सकते । बेड भी तुरंत नहीं बन सकते ।
8 महामारी की चपेट में आकर मरने वाले भी तो आम नागरिक ही ज्यादा हैं।जिन्होंने मास्क लगाना,दूरी बनाए रखना, घर पर ही रहना ,अनिवार्य कार्य बिना बाहर न निकलना इसका पालन भी तो गम्भीरता से नहीं किया इनके कारण डॉक्टर, नर्स ,पुलिस , सफाई कर्मी भी बेमौत मर रहे हैं....
अब बताओ किसको किसको गोली मरोगे ????? गोली मारने से नया भारत नहीं बनता जोश में होश रखना जरूरी है ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
एक आम नागरिक
वरिष्ठ जन
दिनांक 4, 4,2021
आदरणीय विक्रम जी आप कम्प्यूटर युग के होनहार चिंतन शील, काबिल नौजवान हो । कम्प्यूटर क बटन छूते ही समाधान चाहते हैं । पर नव निर्माण के लिए समवेत प्रयास लग्न और धैर्य की जरूरत है
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
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---- "जिंदगी के फैसले "
धनेंद्र जबलपुर की आयुध फैक्ट्री में स्टोर कीपर है। अभी महीने भर पहले ही उसी शहर की नीरा से उनकी शादी हुई है । नीरा एम .ए . बी .एड . है । कई जगह नौकरी के लिए आवेदन दे रखा है ।एक दो जगह इंटरव्यू भी दिया है पर नियुक्ति नहीं मिली है ।
धनेंद्र मंडला जिले के एक गांव के निवासी हैं ।गांव में पले बढ़े हैं ,ग्रेजुएट हैं ।भले ही शहर में रहते हैं ।पर मूल सोच में कोई बदलाव नहीं आया है। ।शादी के पहले उनकी ख्वाहिश थी ,कि पत्नी कम से कम मैट्रिक पास मिल जाये , क्योंकि उनकी फैक्ट्री में यह नियम है कि किसी कर्मचारी की मृत्यु होने पर पत्नी को अनुकम्पा नियुक्ति मिल जाती है
धनेंद्र की तो किस्मत खुल गई । चाहा था सोना और मिल गया हीरा । नीरा हीरा ही तो है । देखने में सुंदर कामकाज में निपुण व्यवहार कुशल । पर हीरे की परख तो जौहरी ही कर सकता है न ?
उसके घर वाले तो पुराने खयालात के हैं । धनेंद्र को परिवार वालों में से कोई न कोई उसे हिदायत देते रहते-- अपने से ज्यादा पढ़ी लिखी ,ज्यादा हैसियत वाले घर की बहू लाया है । उसे दबाव में रखना ,नहीं तो सिर पर चढ़ जाएगी। पत्नी तो पांव की जूती की तरह होती है । उसकी जगह पांव में होती है याद रखना ,नहीं तो बाद में पछताना पड़ेगा ।
मित्र कहते -- धन्नू तेरी तो किस्मत खुल गई यार .....
इतनी पढ़ी लिखी गुणी पत्नी मिली है । सुना है सरकारी नौकरी भी मिलने वाली है।।तेरे तो दसों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाही में .....
यार हमें भी तो अपने घर खाने पर बुला न कभी । उनके हाथ के बने खाने की बहुत तारीफ सुनी है। वह आये दिन दोस्तोँ को खाने पर बुलाने लगा।वाकई खाना बहुत स्वादिष्ट बनाती सलीके से परोसती है।
चाचा ताऊ के लड़के उसे उकसाते रहते - पत्नी को पति से कमतर होनी चाहिए ।नहीं तो उसकी नजर में पति की कोई इज्जत नहीं रह जाती ।
अब धनेन्द्र भी दिखा देना चाहता है ,कि वह कैसे पत्नी पर रौब रखता है ।उसे जल्दी ही मौका मिल गया । उसके फूफा जी अपने दामाद के साथ उनके घर मिलने आये । वे चिकन प्रेमी हैं घर मे चिकन आया ।
खाने के समय जैसे ही थाली परोसी गई उसमे में नान वेज न देख कर धनेंद्र चीख कर बोला --- चिकन की सब्जी कहां है? जल्दी लाओ ...
नीरा --- मंझली जेठानी जी बनाकर लाने ही वाली है।
फूफ़ा जी -- अरे भई हमे तो नई बहू के हाथ की बनी रसोई खानी है ।
नीरा -- जी हमे क्षमा करें। हमारे घर में सब शाकाहारी हैं । हमें नानवेज बनाना नहीं आता। उसे छोड़कर बाकी सब चीजें हमने बनाई है।धनेंद्र को तो सबके सामने उसे नीचा दिखाने का मौका मिल गया । उसने ऊंचे स्वर में बोला --- कैसी गंवार हो ?? तुम्हारे माँ बाप ने घाँस -फूस के अलावा कुछऔर बनाना नहीं सिखाया?
नीरा - क्षमा चाहती हूँ ,हम आचार्य श्री शर्मा जी से दीक्षित शुध्द शाकाहारी हैं ।सबके परिवार के खान पान,रहन सहन अलग होते हैं। इसमे क्रोधित होने वाली या अपराध करने वाली तो कोई बात हमे नजर नहीं आती ।
धनेंद्र को सबके सामने पत्नी पर रौब झाड़ने का एक मौका तो मुश्किल से मिला है ।उसे कैसे हाथ से जाने देता -- -तैश में आकर उसने कहा -- एक तो ढंग से खाना बनाना नहीं आता ,ऊपर से सबके सामने मुंह चलाती हो ? कहते हुए उसे थप्पड़ लगाने को हाथ उठाया ही था, कि नीरा ने उसका हाथ बीच में ही पकड़ लिया -
अब तो धनेंद्र आपे से बाहर हो गया और चीख पड़ा -- जो औरत पति का सम्मान करना नहीं जानती ।उसे अपने घर में एक पल भी बर्दाश्त नहीं कर सकता । निकल जाओ मेरे घर से अभी .........
मैं आपकी विवाहिता पत्नी हूँ । इस घर में जितना आपका हक है उतना मेरा भी है। इस समय मैं आप से यही निवेदन करती हूं कि आपसी मतभेदों को हम आपसी बात चीत से सुलझा लें । मुझे मालूम है, कि आप में समझदारी की कमी नहीं है। कुछ न कुछ गलत फहमी हमारे बीच आ गई है । ठंडे दिमाग से बाद में इस पर सोचना होगा। इस तरह तैश में आकर जिंदगी के फैसले नहीं लिए जाते......
समझदार पत्नी मतभेदों में उलझती नहीं उसे सुलझा कर स्थिति को अपने अनुकूल बना लेती हैं।
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दि.24 , 4 ,2021
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लघुकथा समारोह 69(द्वितीय)
संरक्षक-श्री ओम नीरव जी
लघुकथा- शीर्षक - "खाता मुकुन्दी लाल का"
रतन लाल अपने मित्र की बेटी की शादी से जंगल के रास्ते से लौट रहा था . आधी रात का वक्त था। तीव्र गति से अपनी बाइक पर चला जा रहा था। हेडलाइट की रोशनी में उसने देखा कि एक व्यक्ति दो बच्चों के साथ हाथ फैलाये खड़ा है । उसने गाड़ी रोककर पूछा - क्या बात है भाई?
उत्तर मिला - हमारी कार अचानक खराब हो गई है ।आस पास यदि कोई ढाबा हो तो वहां तक हमे छोड़ दीजिए। वहीं रात रुककर सबेरे चले जायेंगे। आपकी बड़ी मेहरबानी होगी ।
रतन ने कहा - बताइये कहाँ है आपकी कार? मैं मेकेनिक हूँ। प्रयास करके देखता हूँ ,शायद सुधर जाए ।
उसने अपना टूल बॉक्स लिया , तीनो कार के पास गए । बोनट उठा कर चेक किया उसे गड़बड़ी समझ में आ गई । कुछ ही देर में कार सुधर गई और स्टार्ट हो गई । कार वाले सज्जन ने पूछा भाई कितने रुपये देने हैं ?
रतन बोला - मेरा बिल आप दे नहीं पाएंगे सर ।आपका काम हो गया आप जाइये ।
कार वाले ने कहा - मैं डॉक्टर हूँ -आप बोलिये तो सही मुंहमांगी रकम दूंगा ऊपर से टिप भी मिलेगी । आपने बड़ी मुसीबत से हमे उबारा है ।
रतन ने कहा -- मैं जब भी किसी बहुत मुसीबत में पड़े व्यक्ति की मदद करता हूँ।उसका कोई पैसा नहीं लेता।
वो रकम मुकुन्दीलाल जी के खाते में जाता है। बोलो दे सकते हो ।
अब डॉ चकराया फिर भी बोला - हाँ हाँ जरूर ....
रतन बोला - आज से आप ये वादा करिए कि आप दिन में कम से कम एक बहुत जरूरत मंद की चिकित्सा के पैसे मत लेना । ये सोचना कि मुकुन्दी लाल के खाते में जमा किया ।
रतन ने उस डॉक्टर का नाम पूछा न पता अपने रास्ते चला गया।
बात आई गई हो गई। इस घटना के कुछ साल बाद रतन के बेटे का एक्सीडेंट हो गया । बेटे को लेकर उसी डॉक्टर के हॉस्पिटल में गया । एक महीने तक उसका इलाज चला ।बिल की रकम लगभग ढाई लाख काउंटर में जमा करने गया, तो डॉक्टर ने अपने रुम में उसे बुलवाया और पूछा- मुझे पहचानते हो । रतन ने याद करने की कोशिश की पर याद नही आया ।
डॉ ने मुस्कुराते हुए बिल की पर्ची उठाई और पीछे लिख दिया -- मुकुन्दी लाल के खाते में जमा हो गया ।
रतन ने डॉक्टर साहब के चेहरे को ध्यान पूर्वक देखा तो उसे उस रात की घटना याद आ गई । डॉक्टर ने कहा -भाई ये मुकुन्दी लाल कौन है । हमे भी तो बताओ ?
-- मेरे दादा जी ने मरने से पहले मुझसे वचन लिया था कि रोज एक मुसीबत में पड़े व्यक्ति की मदद करना उसका पैसा मत लेना । हमेशा तुझे बरकत मिलेगी । मुझ अनाथ को बचपन से पाला ,पढ़ाया मेकेनिक का काम सिखाया। उनका नाम मुकुन्दी लाल था ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
9425584403
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