Saturday 22 May 2021

लघुकथा श्रृंखला - 37 : जन्मदिन हरीश का ,मास्टर जी का सपना ,एक मौका तो दीजिए , "जाग मालती जाग " , और माँ मर गईं,


           

शीर्षक   ---   मास्टर जी का सपना

              पितृ विहीन गौरी गांव के स्कूल में पढ़ती है।दिखने में सुंदर पढ़ने में तेज गौरी  को देख स्कूल के मास्टर जी सोचते काश यह मेरी बेटी होती, तो मैं इसे खूब पढ़ाता। गौरी पर माँ सरस्वती की विशेष कृपा है।
                               गांव में पांचवी तक ही स्कूल है।   गौरी को पांचवी पास किये साल भर हो गए।जब उन्हें पता चला कि गौरी के नाना  लखन दास अपने जीते जी गौरी की जल्दी शादी कर  कन्यादान  का पुण्य  पाना चाहते हैं । वे उचित अवसर देख अपने बेटे के लिये रिश्ते की बात करने आये ।
  मास्टर जी --   लखन बाबा जी  राम राम ।कैसे हैं आप?
 सुना है आप गौरी की शादी करना चाहते हैं? 
 गौरी के नाना -  हाँ गुरु जी ।  उमर हो चली है  ।तबियत भी ठीक नहीं रहती। इसीलिए  जितनी जल्दी ही सके अपनी जिम्मेदारी पूरी करना चाहता हूं।गरीबी में पली है। खाते पीते घर का लडका देख रहा हूँ ।
 मास्टर जी-आप अगर ठीक समझें तो मैं अपने बेटे के लिए गौरी का रिश्ता ले कर आया हूँ। मेरा बेटा आपका देखा भाला है । आपकी नातिन आपकी आंखों के सामने रहेगी। अपनी बेटी जैसी रखूंगा उसे ।किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा उसे ।
         मास्टर जी जानते थे ,कि गौरी का जन्म नाना नानी के घर हुआ। नानी के घर वह पली बढ़ी है गौरी के पिता ने दूसरी शादी कर ली। वे अनपढ़ फगनी को पसन्द नही करते थे। तब से फगनी अपने माँ बाप के पास ही है।  
फगनी तो देखने सामान्य है ,पर उसकी बेटी गौरीअपनी दादी के नयन नक्श लेकर जन्मी है। बहुत ही सुंदर है । लोग कहते हैं- वह तो  हीरा है ,जिसकी चमक छुपाई नहीं जा सकती। मास्टरजी उसी हीरे को तराशना चाहते हैं ।उसकी नानी  को हमेशा गौरी  के सुरक्षा की चिंता लगी रहती । मन तो बहुत करता पर वह उसे कभी अच्छे साफ सुथरे कपड़े कपड़े नहीं पहनाती। उसके मन मे डर बना रहता है कि किसी की नजर न लग जाये ।
 मास्टर जी गौरी आपके स्कूल में पढ़ने जाती थी ।पढ़ने में भी बहुत होशियार है । गौरी अभी ग्यारह साल की है । पर अभी से उसे देखकर मोहल्ले के लड़के शीटी मारने लगे हैं ।मैं बूढा कब तक उस पर पहरा रख पाऊंगा ।
          नाना ने कहा -जितनी जल्दी हो सके हम अच्छा लड़का देख के गौरी की शादी कर देना चाहते हैं।कहीं कोई ऊंच नीच हो गई, तो बिरादरी में नाक कट जायेगीं ।आज  कल का जमाना खराब है ।
     मास्टर जी का चिर संचित सपना पूरा होने जा रहा है। वे   तो गौरी जैसे हीरे को अच्छी तरह तराशना चाहते हैं।
 नाना नानी ने सोचा-लड़काउम्र में थोड़ा ज्यादा है । तो क्या हुआ? मास्टर जी के संरक्षण में लड़की सुखी  रहेगी।        शुभ मुहूर्त में फगनी की शादी हो गई ।
      गौरी अपने पति के साथ बहुत खुश है । पति का पढ़ने मे उसका मन  कभी नहीं लगता था।गौरी का पति मनोज श्याम वर्ण का ठिगने कद का हैं। टीचर  पिता जानते थे ,कि पढने में कमजोर मनोज को किसी तरह आठवीं तो करवा दिया पर  उसे। नौकरी मिलना असम्भव है।  सेकेंड हैंड दो कार खरीद  दिया ,उसे ही बुकिंग में चलाता है।
         गौरी के साथ मनोज की शादी होने पर उनकी आने वाली पीढ़ी  तो सुधर गई। गौरी पढ़ने लिखने में तेज है  अब बेटा न सही  बहू आगे पढ़ना चाहती है उसे ही उन्हें आगे पढ़ाना है।
                   मास्टर जी उससे  प्राइवेट दसवीं का फार्म भरवाया  सारी किताबें लाकर दी  रोज उसे दो घण्टे पढ़ाते। वह  बड़े लगन से पढ़ती। परीक्षा मेंअच्छे नम्बर से पास हो गई। उसके तीन साल बाद बारहवीं की परीक्षा की  तैयारी करवा कर परिक्षा फार्म भरवाया । अपने साथ पास के शहर ले जा के परीक्षा दिलवाई।
                बारहवीं  करते तक गौरी  एक बेटा और एक बेटी की माँ बन गई।  मास्टर मास्टरनी पोते पोती खिलाने में मगन हो गए। बी.ए ,करने के बाद गौरी की सरकारी स्कूल में नौकरी भी लग गई ।  आगे चलकर गौरी ने बी ए और एम ए तक पढ़ाई करके प्रधान अध्यापिका बनकर मास्टर जी की चिर संचित अभिलाषा पूरी कर दी।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
दिनांक 28 ,5  ,2021

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जन्मदिन हरीश का "

हरीश के जन्म के 15 दिन  बाद ही  माँ की मृत्यु हो गई।बूढ़ी नानी ने उसे कलेजे लगाकर पाला।  उसका मामा चमन  इतवारी (नागपुर) रेलवे स्टेशन  के पास झुग्गी बस्ती में  रहता है। नानी के साथ सात साल की उम्र में  हरीश मामा के घर आ गया।  मामा मजदूरी करते हैं ।किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो पाता है ।मामा दयालु स्वभाव के हैं। कुछ दिन रहने के बाद  हरीश  की दोस्ती  पास पड़ोस में रहने वाले कबाड़ बीनने वाले लडकों से हो गई। वह भी उनके साथ  शहर के कूढ़े दान से  प्लास्टिक के बोतल ,टीन  टप्पर,लोहा लंगड़,फेके गए पुराने कपङे कागज के गत्ते,किताब , कापी  कांच के टुकड़े बीन कर लाता और कबाड़ खरीदने वाले सेठ के पास बेच कर   25 से 30 रु कम लेता । एक दिन दोपहर कोअपने साथियों के साथ
 गायत्री मंदिर के पास से गुजरे । वहां पंचकुंडीय यज्ञ के समापन उपलक्ष में भंडारा चल रहा था । हाथ पैर धोकर  वे भी पंगत में बैठ गए।  उन्हें भी भर  पेट खाने को अच्छा भोजन मिला । 
  मंदिर कमेटी वाले बालसंस्कार शाला प्रारम्भ करने की बात सोच रहे थे  उनमे से विवेक की नजर इन बच्चों पर पड़ी ।विवेक जी ने बच्चोँ केपास आकर उनका नाम  पता  पूछा और अगले दिन फिर बुलाया ।
       अगले दिन हरीश और उसके साथी साफ कपड़े  पहन कर वहाँ गए ।   वहाँ उन्होंने देखा कि  एक 11वर्षीय पार्थ नाम के लड़के का जन्मदिन है। हवन के पश्चात जितने लोग मंदिर परिसर में उपस्थित थे  उनके  हाथ मे पुष्प अक्षत दिए गए मंत्रोच्चार के साथ  उस बालक पर बरसाए गए ।  जन्मदिन की बधाई दी गई ।  सभी को मिठाई दी गई । हरीश और उनके साथी आज के विशेष मेहमान थे  जिन्हें वहीं पर। बैठा कर पत्तल में भरपेट पूरी सब्जी खिलाया गया  आज तक उन झुग्गी निवासी बच्चो को इतना मान कभी नहीं मिला था । वे बहुत खुश हो गए ।
                 उसके बाद मनोरा दीदी और आरती दीदी के साथ विवेक भैया भी आये अपनी गाड़ी में बिठा कर उनकी बस्ती मैं उन्हें छोड़ने गए । हरीश के घर बैठे  बच्चों से कहा अपने अपने माता पिता को बुलाकर कर लाएं ।  उन्हें समझाया कि वे  उस झुग्गी बस्ती के बच्चों को हप्ते में दो दिन बिना कोई शुल्क लिए पढ़ाना चाहते हैं। 
          इस तरह उन पांच सात बच्चों को लेकर  बाल संस्कार शाला शुरू हुई।  चमन की झोपड़ी में  शनिवार रविवार को बच्चे दो घण्टे के लिए आते   उन्हें खेल खेल में मनोरंजक ढंग से  अक्षर ज्ञान, गिनती,स्वच्छता, गायत्री मंत्र  बोलना ,सरल सी प्रार्थना,छोटे बाल गीत , सलीके से बोलना उठने -बैठने  के तौर  तारीके सिखाये गए ।धीरे धीरे बच्चों की संख्या बढ़ती गई। गायत्री मंदिर के कार्य कर्ता जन मिलकर चंदा करके वहां एक बड़ा हाल बनवा दिया । आये दिन पर्व  त्योहार में  यज्ञ हवन  होने लगे। 
                           इस बीच  सावन महीने  की अमावस्या तिथि को हरेली के दिन  हरीश  का जन्मदिन आया।  
  हरीश की नानी और मामा बड़े उत्साहित हैं कि पहली बार उस झुग्गी बस्ती  में  हरीश का जन्मदिन विशेष तरीके से मनाया जाएगा। इस हप्ते हरीश ने  कबाड़ बेचकर  सत्तर रु.कमाए हैं। उसने  विवेक भैया को पैसे देते हुए कहा - हवन और मिठाई के लिए मैं इतना ही जमा कर पाया । बाकी के लिए क्या करें?  मनोरा दीदी ने कहा - तुम्हारे लिए नए कपड़े हमारी तरफ से ।
 चमन मामा और नानी ने हॉल की साफ सफाई कर दी । सुबह नौ बजे  सारे लोग इकट्ठा हो गए। संस्कार शाला के बच्चे फूल तोड़ कर ले आये ।आम के पत्ते तोड़ कर तोरण बना लिए  ।उसके बाद शंख नाद और दीप प्रज्वलित करके  कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। नए कपडे पहनकर हरीश हवन में बैठा  जयघोषऔर मंत्रोच्चार के साथ विधि विधान  से हवन पूजन के बाद सभी उपस्थित लोगों को अक्षत चावल दिए गए  हरीश के सिर पर पुष्प अक्षत डाले गए  सबने मिलकर विवेक भैया के साथ ये शुभकामना दोहराई -"हरीश दीर्घायु बने,स्वस्थ रहे, इन फूलों की तरह महकता रहे,,मानवता के धर्म का पालन करे ।  मामा और नानी की सेवा करे। अच्छा इंसान बने । हरीश बहुत भावुक हो गया ।  अपने गुरुओं एवम सभी बड़ों के चरण स्पर्श किये,मित्रों   से गले मिला।सबको बूंदी बांटा  गया। हरीश के द्वारा आंवले का पौधा लगवाया गया। उस पौधेकी बड़ा करने की उसे जिम्मेदारी दी गयी ।
                  उसके बाद संस्कार शाला  के हर बच्चे को अपने जन्मदिन का बेसब्री से इंतजार रहने लगा। 
 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
 रायपुर छ ग 
22  ,5 ,  2021
----------------------*---------------------*--- ----  ----*नम्स्कार आदरणीय 
      मैं भारतीय परम्पराओं पर आधारित             लघु कहानियां लिखती हूँ. मेरा उद्देश्य है कि,  हमारी वर्तमान और भावी पीढ़ी इसकी अहमियत जाने और समझें.  
  कृपया मुझे एक अवसर दीजिए तो सही.... 
       
 कि उसके लिए यह पहला और आखरी मौका है ।
 उसने एक साल तक फिजिकल फिटनेस की तैयारी के लिए फिजिकल कालेज पेंड्रा में C PED कोर्स में एडमिशन ले  कर होस्टल में रहकर तैयारी की   एथलेटिक्स इवेंट की टेक्निक सीखा ,वहां के कोच से सही मार्गदर्शन मिल गया स रनिंग के लिए स्पाइक्स, इशु  करवा लिया । वहां उसे तीन चार साथी भी मिल गये जो सेना, पुलिस  में जाने में रुचि रखते हैं। उनके साथ प्रेक्टिस  करती। समय निकाल कर पुलिस भर्ती परीक्षा  से सम्बंधित पुस्तकें पढ़ती । 
          उसके बाद आवेदन फॉर्म भरा, इंटरव्यू दिया  और  टॉप रेंक लेकर चयनित हुई । पोस्टिंग मिलने के बाद कि ट्रेनिग में जाने के लिए पिता से अनुमति और आशीर्वाद लेने गांव लौटी।उसे देखकर पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया
               गांव के सरपंच ने  उसके स्वागत और सम्मान में कार्यक्रम रखा खूब बधाइयाँ मिली ।उसके बापू ने माइक पर कहा। बेटी बेटे में कोई फर्क ना है ।ये तो मेरी बेटी ने आज साबित कर दिखाया । उन्हें मौका जरूर मिलना चाहिए। दो साल बाद पुलिस विभाग के सहायक इंस्पेक्टर  से उसकी शादी हो गई।  बाद में बापू को  भी वह सपने साथ ले गई ।
 
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर  छ ग 
31  ,5  ,2021
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शीर्षक --"जाग  मालती जाग "

शीर्षक --"जाग  मालती जाग"

मालती और रश्मि दोनो सहपाठी हैं। भिलाई के  कुसुम ताई के घर में दोनो पांच साल तक रूम पार्टनर रहीं हैं । उसके बाद से दोनों अभिन्न सहेलियाँ बन गई हैं । मालती स्कूल टीचर है,और रश्मि बैंकऑफ इंडिया में क्लर्क है।दोनो 35 साल बाद भीअपनी हर बात एक दूसरे से शेयर करती रहती हैं। यह बात रश्मि की बेटी पायल ने हमे बताया।  जब भी  दोनो बातें करती हैं  तो 20 से 30 मिनट से कम वक्त नही लगता ....
देखो मालती मौसी का ही कॉल है -   कैसी हो रश्मि ? बच्चे कैसे हैं ? बहुत दिनों तुम्हारी कोई खबर नहीं मिली ?
 रश्मि - ठीक हूँ ।दोनो अपनी गृहस्थी में खुश  हैं। तू अपनी बता  कैसी है ? इस बार काफी दिनों बाद फोन किया ...
मालती -   मैं अच्छी हूँ । इस कोरोना और लॉक डाउन ने तो जिंदगी में बहुत उथल पुथल मचा रखी  है। सबके मन में एक दहशत सा छा गया है।  अच्छा रश्मि सुन तुम्हें एक बात बतानी है । मैंने  मृत्यु उपरांत अपना देहदान करने का निश्चय कर लिया है।
 रश्मि - तुम ऐसा कैसे कर सकती हो ?
          तुम्हारे दोनो बेटे  बड़े समझदार और संस्कारी हैं।उनके रहते देहदान तुम की बात सोच भी कैसे सकती हो?
 बेटों से किसी बात पे नाराजगी है  क्या ? 
 मालती -   नहीँ  ऐसी कोई बात नहीं है।वो दोनो तो मेरा खूब ध्यान रखते हैं।
 रश्मि --  तो फिर क्या बात है ? मालती मैं जानती हूं कि सनातनधर्म ,पूजापाठ और कर्मकांड में तुमहारी पूरी आस्था है।पुनर्जन्म को भी मानती हो।फिर ये देहदान के बारे में निश्चय भी कर लिया। मेडिकल कालेज से फॉर्म मंगा कर दो गवाह के हस्ताक्षर करवा के आनन फानन में जमा भी करवा  दिया।मुझे लगता है ये काम बहुत सोच समझ कर करना चाहिए था ।    
  मालती - अरे बहन वो कहावत है- शुभस्य शीघ्रम और
तुरत दान महा कल्यान ...भई  हम तोजीवन में कोई बड़ा दान कर नहीं सके।घर गृहस्थी ,बच्चों के पालन -पोषण पढ़ाई- लिखाई के चक्कर में ही रह गये,और किसी भी तरह के दान जैसे,धन,वस्त्र,सुवर्ण,रजत,तांबा ,विद्या,रक्तदान ,अंगदान ,प्राणदान,तो नहीं कर पाये, लेकिन मरने के बाद देहदान  तो कर ही सकती हूं न ??? जिससे मन को कुछ  तो सन्तुष्टि मिल सके..........
 रश्मि तुरन्त बोली --- पर  शास्त्रों में लिखा से मरने के बाद शरीर के सभी अंग सहित अंत्येष्टि किया जाना चाहिए तभी आत्मा को शांति ---- ???
मालती ---किस युग में जी रहे हैं हम  जानते हैं कि कुछ बीमारियों में जिंदा  रखने के लिए ऑपरेशन से कुछ अंगों को निकाल देते हैं,एक्सीडेंट में भी अंगभंग हो जाता है। तब....क्या  ???  करना चाहिए बताओ तो ..... मैं तुमसे पूछती हूँ कि वर्तमान की जिंदगी ज्यादा जरूरी है या
 मौत के बाद का तथाकथित पुनर्जन्म?
   मेरी प्यारी सखी  रश्मि मरने के बाद  अगले जन्म में
 हमे इस जन्म के कर्मानुसार जन्म मिलेगा ठीक है न?
हमने दो दिन पहले क्या खाया?क्या पहना यह याद नही रहता,तो पूरी जिंदगी भर,क्या -क्या पुण्य या पाप किये  कैसे याद रख सकते हैं -?
 * जो बीत गई सो बात गई अतः जब  जागे तभी सबेरा *
                2020 से 2021के बीच वैश्विक महामारी में हमारे  अनेक रिश्तेदार,मित्र ,बेटे,बेटियां,परिचित ,पड़ोसी मृत्यु के भेंट चढ़ गए ,जिनकी बॉडी तक नहीं मिली। क्या बूढ़े क्या जवान सभी काल के गाल में समा गए।
    रश्मि सुन ध्यान से  ---  पिछले कुछ दिनों से सुबह शाम मेरी आत्मा मुझसे कहती है --जाग मालती जाग  अगर अब भी कुछ  परोपकार -दान नहीं कर पाई तो कब करेगी ? जीवन के सन्ध्या काल में भी जग हित के लिए कुछ तो कर ले  ...  इतनी शिक्षा और समझदारी पर लानत है ....यदि अब भी कुछ न कर पाई तो ......
 बुद्धजीवी कहलाती हो , इतनी भयंकर महामारी में भी 65 की उमर में शायद इसीलिये स्वस्थ रखा है कि अब कुछ ऐसा कर लो कि अंत काल में पछताना न पड़े  .......
                 अपने जन्म  को नहीं तो मरण को तो  सार्थंक  करती... जा .....  ओ  .....
          बस उसी आवाज से प्रेरित हो कर प्रतिपदा यानी
भारतीय नव वर्ष को ही विक्रम संवत आरम्भ के शुभ दिन 
में देहदान का फार्म जमा कर दिया ।अब तुझे जो समझना है वो समझ ले ...............

 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दिनांक6 ,6, 2021

(लेखिका ने 2015 में ही देह दानकर दिया है।)

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  शब्द बाण से माँ मर गईं 

लघु कथा 
 माँ  मर गई ...
बेटा जब  छोटा..था माँ की गोद ही  उसका  संसार था. माँ  ने सीने से लगा कर बड़ी  मुश्किलों से उसे पाला बहुत  बीमार रहता था  टी बी, अस्थमा ,डायरिया  एनीमिया   मिजल्स  जैसी अनेक बिमारियों  से ग्रसित  हो गया था बचपन में  विशेष देखभाल 
और  दिन- रात की सेवा,  दुआ ,   दवा, मन्नत, व्रत ,उपवास  के बल पर किसी तरह 
बड़ा  किया  उसे  चलना  ,बोलना ,  पढना.लिखना सिखाया  धीरे धीरे  बेटा  बडा होने  लगा  फिर वो दिन भी आया   जब बहुत बड़ा आदमी बन गया .
माँ को उसकी  शादी  की चिंता होने लगी.  उसकी  पसंद की लडकी से शादी हो गई , 
वक्त पंख लगा कर उड़ने  लगे.   बेटा अब एक  बच्चे का बाप बन गया  वह   बच्चे का ही नहीं अपनी माँ का  भी बाप बन गया. परम  विद्वान् 
 अपनी  वृद्धा माँ से कहने लगा  ---- माँ   मै  चाहता हूँ  कि मेरे नन्हे  बच्चे पर   दुःख की छाया   भी  न पड़े . हमें तो  प्यार नहीं मिला लेकिन हम  अपने बच्चे  को खूब  प्यार  से पालना  चाहते हैं 
  तुम हमारे  साथ   रहती हो तो तुम्हारे  दुःखभरे अतीत  की नेगेटिविटी का असर  हमारे बच्चे पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष पड़ता है यही  हम  नहीं  चाहते ........ 
 इतना सुन कर  माँ   सन्न रह गई   .......
वह   वहीं  सोफे   पर धंस  गई  उसकी  आँखों के  सामने अपने  उस  बेटे का बचपन चलचित्र   की  तरह   एक एक  कर  घूमने लगा ....  बित्ते भर के बेटे का  लम्बा  इलाज  उसके लिए हर पल की जाने वाली  दुआ  पार्थना सब  आंसू बन  बरसती  रही  सारी रात...घड़ी के  कांटे   और अदृश्य परमात्मा ही  मौन साक्षी रहा   ..... उसकी  ममता प्यार  दुलार   समर्पण  आंसुओं  में  पिघलने    लगा  कतरा  कतरा बहता रहा  .......रात  की  नीरवता  में यही  आवाज  गूंजती रही........ माँ दुआओं  का  है घर  ..... हो   खुदा पर  भी  असर,,,,,,,
रात   गहराती   रही   साथ  में  उसके दिल  में  दर्द  का  सागर गहराता रहा....    दर्द के  समन्दर   में   डूब  कर माँ मर गई .......
.डॉ  चन्द्रावती   नागेश्वर







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